Wednesday 29 July 2020

प्रसन्न कुमार पिंचा (निःशक्तजनों के मसिहा)


गौरवशाली राजस्थान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को सहेजे पद्मावती का जौहर हो या पन्ना का बलिदान एक अनुठी मिसाल है। महाराणा प्रताप की इस वीर भूमि पर अनेक लोगों ने सिर्फ राजस्थान का ही नही बल्की सम्पूर्ण भारत का नाम गौरवान्वित किया है। उन्ही में से एक हैं प्रसन्न कुमार पिंचा जिनका जीवन अनेक लोगों के लिये प्रेरणामय है। प्रसन्न कुमार पिंचा जी पहले दृष्टीबाधित व्यक्ति हैं जिन्हे भारत सरकार के अधिनस्थ सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों का मुख्य आयुक्त नियुक्त किया। 28 दिसम्बर 2011 को मुख्य आयुक्त का पदभार ग्रहण करते ही पी.के.पिंचा जी भारत के पहले दृष्टीबाधित व्यक्ति बन गये जिन्हे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग में सक्षम व्यक्तियों का मुख्य आयुक्त का पद प्राप्त हुआ है। सबसे बङी खुशी की बात ये है कि, ये पद उन्होने सक्षम लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा में अवल्ल आकर प्राप्त किया न की किसी आरक्षण के तहत। कानून में स्नातक तथा अंग्रेजी साहित्य से एम एस करने वाले पिंचा जी को 1999 में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी (दृष्टीबाधित) के राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। ये पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायन द्वारा प्रदान किया गया था।

अनेक पुरस्कारों से सम्मानित पी. के. पिंचा जी ने बचपन से ही दृष्टीबाधित होने के बावजूद इसे कभी अपनी कमजोरी नही मानी और संघर्षो के साथ आगे बढते रहे। उनके विकास में परिवार का सहयोग बराबर रहा, खासतौर से पिता जी के विश्वास ने पी.के.पिंचा जी को जो हौसला दिया वो ताउम्र उनके जीवन की तरक्की का हिस्सा रहा। राजस्थान के चुरु जिले में मध्यम वर्गिय परिवार में जन्मे पिंचा जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके जन्म स्थान पर ही हुई। उनके पिता जी को ये आभास था कि दृष्टीबाधिता के बावजूद उनका बेटा अपने जीवन में बहुत कुछ कर सकता है, इसी विश्वास पर उन्होने अपने बेटे प्रसन्न को कोलकता के एक दृष्टीबाधित स्कूल में शिक्षा लेने भेजा। कुछ समय पश्चात प्रसन्न कुमार अपने जन्म स्थान वापस आ गये जहाँ दसवीं की परिक्षा सामान्य बच्चों के साथ पढते हुए ही अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण किये। तद्पश्चात कॉलेज की पढाई आसाम में पुरी हुई क्योकि कारोबार की वजह से आपका परिवार असम आ गया था। वहीं आपने कानून की भी पढाई पूरी की तथा अंग्रेजी साहित्य में मास्टर की डिग्री पूरी किये।

पिता का विश्वास और कुछ कर गुजरने की इच्छा ने पी.के.पिंचा जी को आगे बढने का हौसला दिया। असम के जोरहाट में सबसे पहले दृष्टीबाधित क्षात्र और क्षात्राओं के लिये एक विद्यालय की शुरुवात किये और वे उस विद्यालय के संस्थापक प्राचार्य बने। कुछ समय पश्चात असम सरकार ने इस विद्यालय का अधिग्रहंण कर लिया जिससे उनकी नियुक्ति सरकारी पद में हो गई इस तरह वो असम के पहले दृष्टीबाधित गज़ट ऑफिसर बन गये तद्पश्चात असम के समाज कल्याण विभाग में उनकी पदोन्नति हो गई हालांकी उनको ये पदोन्नति आसानी से नही मिली इसके लिये उनको काफी संघर्ष करना पङा और कानूनी लङाई भी लङनी पङी। आपके आत्मविश्वास और साहस की जीत हुई और पिंचा जी की नियुक्ति गोहाटी में संयुक्त निदेशक के रूप में हुई इसी दौरान आपको भारत के राष्ट्रपति के आर नारायन द्वारा बेस्ट एम्पलॉयर का पुरस्कार मिला।

सन् 2000 में एक्शन एड नामक अंर्तराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था से पी.के.पिंचा जी को ऑफर मिला उनके साथ काम करने का यही पर पिंचा जी ने ये साबित कर दिया कि वे विकलांगता के क्षेत्र के अलावा भी अन्य क्षेत्रों में काम कर सकते हैं। पूर्वोत्तर भारत के एक्शन एड ( अंर्तराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन) के वरिष्ठ प्रबंधक तथा विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन पर एक्शन एड के कार्य़ की देखभाल करने वाले वरिष्ठ प्रबंधक एवं थीम लीडर रहे। पिंचा जी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से भी जुङे रहे। कार्य के दौरान ही भारत सरकार द्वारा विकलांगता के क्षेत्र में दिये गये कार्यों को आपने बखुबी निभाया। इसी दौरान आपने मुख्य आयुक्त की प्रतियोगिता को अपने बौद्धिक बल पर अर्जित की न की विकलांगता के आधार पर।

पी.के.पिंचा जी ने ये सिद्ध कर दिया कि, कुछ कर गुजरने के लिये मौसम नही मन चाहिये, साधन सभी जुट जायेंगे सिर्फ संकल्प का धन चाहिये। गहन संकल्प से ही मिलती है पूर्ण सफलता। सपने तो सब देखते हैं लेकिन सपने को साकार करने का जज्बा ही लक्ष्य को सफल बनाता है।

अनेक चुनौतियों को पार करने वाले पी.के.पिंचा जी को पुराने गाने और गजलें सुनने का बहुत शौक था। आध्यात्म में रुची रखने वाले पिंचा जी को किताबें पढने का बहुत शौक था। आपने दृष्टीबाधितों के प्रति समाज में हो रहे  दुर्व्यवहार का जमकर विरोध किया और एक बार जब पी.के.पिंचा जी गुवाहटी में डेवलपमेंट बैंक, बैंक ऑफ इंडिया में खाता खोलने गये तो वहाँ कहा गया कि आप दृष्टीबाधित होने के कारण खाता नही खोल सकते तब उन्होने वहाँ ये कहा कि, क्या दृष्टीबाधित व्यक्ति को भारत की नागरिकता का अधिकार नही है?  आपकी इस जिरह के पश्चात खाता तो खुल गया लेकिन चेक पर बुक के इस्तेमाल की अनुमति नही मिली। आखिरकार कानूनी लङाई के माध्यम से आपने ये अधिकार भी प्राप्त किये जिसका लाभ आज अनेक दृष्टीबाधित लोगों को मिल रहा है। पिंचा जी का मानना है कि दृष्टीबाधिता किसी की दया पात्र नही है इसमें स्वंय का इतना हुनर है जो सामान्य स्कूल के बच्चों में भी नही होता। आज जरूरत है सिर्फ सकारात्मक दृष्टीकोंण की।

आपने अपने कार्यकाल के दौरान अनेक निःशक्त जनों तथा विकलांग लोगो के लिये कार्य किये। आपके प्रयास का ही परिणाम है कि 2013 में जारी सहलेखक (scribe) की गाइड लाइन स्पष्ट हो सकी, जिसका फायदा आज अधिकांश विद्यार्थियों को मिल रहा है। scribe की समस्या के निदान से 2013 के बाद दृष्टीबाधित लोगों के लिए अनेक क्षेत्र में नौकरी की अपार संभावनायें बनी। राज्यों में डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट (अपंग प्रमाणपत्र) बनने में आने वाली दिक्कतों का निदान आपके प्रयासों से काफी हद तक ठीक हुआ है। निःशक्त जनों की समस्या का समाधान जल्दि और आसानी से हो सके इस हेतु पिंचा जी ने सभी राज्यो सरकारों से जल्द ही निःशक्तजन आयुक्त का पद भरने की मांग की। आपने नये अधिनियम में सात की जगह दिव्यांगों की 21 श्रेणियां अधिसूचित की और उसे सख्ती से लागू करने का आदेश भी दिया। पिंचा जी चाहते थे कि, पूरे भारत वर्ष में दिव्यांगजनो के अधिकारों के लिए जितना अधिक युवावर्ग आगे आयेगा उतना अधिक सशक्तिकरण दिव्यांगजनों का होगा। युवाओं को वो आगे बढने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते थे एवं उनकी समस्याओं के निदान के लिए हमेशा उपलब्ध थे। पिंचा सर किसी दायरे में बंधे नहीं थे, वे सबके अपने थे और सब उनके अपने थे। अस्वस्थ होने के बावजूद भी वो हर किसी की सहायता को तैयार रहते थे। निःशक्त लोगों के जीवन में आने वाली वैधानिक समस्याओं का निवारण कैसे हो इस बात को आपने विडियो संदेश में बहुत अच्छे से समझाया है। हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषा में आपके ज्ञानवर्धक संदेश यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। आपके कार्यों की सराहना करना सूरज को दिये दिखाने जैसा है। आज आप भले ही हमसब के बीच नहीं हैं परंतु आपके द्वारा दिखाए गये रास्ते हम सभी का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे। आपके द्वारा स्थापित आदर्श हम सभी की प्रेरणा है। 2012 में आपने मुझे जिस तरह प्रोत्साहित किया संदेश भेजकर वो मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं है।

ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि जिसतरह विश्व स्तर पर हेलेन केलर का नाम लिया जाता है वैसे ही भारत में आप निःशक्त लोगों के मसिहा हैं। आपके सपनों को साकार करना ही सच्ची  श्रद्धांजली  होगी। वाइस फॉर ब्लाइंड आपके दिखाये मार्ग पर हमेशा चलने का प्रयास करेगा। वाइस फॉर ब्लाइंड के सभी सदस्य नम आँखों से आपको 
भावपूर्ण श्रद्धांजली  अर्पित करते हैं। 

नोट--- मेरी यादों में पिंचा सर........

साथियों 2012 में जब हम इन्क्लूसिव प्लेनेट पर सामान्य ज्ञान के ऑडियो पोस्ट करते थे तब पिंचा सर का मेरे पास प्रोत्साहन संदेश आया था। एक कमिश्नर का संदेश पढकर जो खुशी मुझे मिली उसको हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते। पिंचा सर ने इन्क्लूसिव प्लेनेट पर से मेरा नम्बर लेकर प्रोत्साहित किया था। उसके बाद तो कई बार बात हुई मेरे कार्यों को विस्तार से सुने। पिंचा सर ने ही हमें 2013 की scribe guide line की प्रति दी, जिसे हम फोटो कॉपी करके अधिकांश दृष्टीदिव्यांग बच्चों को वितरित किये। आपके द्वारा यूट्यूब पर अपलोड किये जाने वाले विडियो पर भी एक दो बार चर्चा हुई। अपने संदेशों से पिंचा सर भारत के प्रत्येक निःशक्त की समस्या का समाधान करना चाहते थे। 
प्रसन्न कुमार पिंचा जी खुद अपने आप में सिमटी हुई सदी हैं, आपके कार्य और व्यवहार हम सबके लिए जिवंत पाठशाला है।  



अनिता शर्मा
अध्यक्ष
वॉइस फॉर ब्लाइंड 











3 comments:

  1. गोपाल31 July 2020 at 21:16

    बेहद प्रेणादायक। ऐसे लोगों के बारे में जानकर उम्मीद जगती है। बहुत बहुत धन्यवाद।

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