मित्रों,
आज हम श्रीकांत बोल्ला देखकर आए। सबसे पहले तो फिल्म के हीरो राजकुमार राव को धन्यवाद देते हैं, जिन्होने मिस्टर श्रीकांत बोल्ला के किरदार को बहुत खूबसूरती से निभाया है। फिल्म देखकर पहला विचार यही आया कि , एक छोटी सी जगह , आर्थिक तंगी और शारीरिक अक्षमता के बावजूद एक बच्चा अपने दृणविश्वास के बल पर करोणों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन सकता है!!!!!!
ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि , श्रीकांत की राह आसान नहीं थी। जन्म से अवहेलना का तंज, पढाई में बाधाएं, भारतीय शिक्षा नीति की कमियां इत्यादि ऐसे अवरोध हैं जो एक दृष्टीबाधित व्यक्ति को हमेशा आगे बढने से रोकते हैं। आमतौर पर सभी दृष्टीबाधित लोगों को उपरोक्त बाधाओं को झेलना पङता है। परंतु जो अपने जज़बे को दृणसंकल्प के साथ यथार्थ में अमलीजामा पहनाता है वही श्रीकांत बनता है।
श्रीकांत की आत्मकथा सभी के लिए सकारात्मक संदेश देती है, चाहे वो शारीरिक सक्षम हो या अक्षम। मुश्किलें तो जीवन में सबके साथ आती रहतीं है। परंतु सफलता के सपने को देखना और उसको जीना सबसे बङी शक्ति है जिसको श्रीकांत ने हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढाया। हम सब कुछ कर सकते हैं ये वाक्य वो जादूई शक्ति है जिससे सफलता की ऊंचाईयों को छुआ जा सकता है। आर्थिक तंगी कभी भी सफलता की बाधक नही है, जहां चाह है वहां राह आसान हो जाती है। कहते हैं, जो अपने पथ पर अटल है वही सफल है।
इस फिल्म में श्रीकांत जी का एक संवाद बहुत खास है, "नाना, अंधा भाग नही सकता लङ सकता है।" ये संवाद बहुत गूढ बात कहता है........... अपनी समस्याओं से भाग जाना (जो बहुत आसान पथ है) या अपने सपनों को साकार करने के लिए हर मुसिबत से डटकर लङना।
इस कहानी में स्पष्ट है कि, एक शिक्षित व्यक्ति किसतरह से रोजगार के माध्यम से स्वयं आत्मनिर्भर बनकर अनेक लोगों को आत्मनिर्भर बना सकता है। श्रीकांत के जीवन में दो किरदार बहुत महत्व रखते हैं, एक शिक्षिका देविका और आर्थिक मदद करने वाला व्यक्ति रवी।
फिल्म देखने के बाद वहीं उपस्थित कुछ लोगों से हमने पूछा कि, इस फिल्म को देखकर आपका क्या विचार है, ज्यादातर लोगों ने यही कहा कि हम लोग अक्सर छोटी छोटी समस्याओं से घबङा जाते हैं, रास्ता बदल लेते हैं । परंतु श्रीकांत के जीवन को देखकर लगा कि समस्याओं से भागने की बजाय समस्याओं को भगाने का उपाय करना चाहिये।
अगला प्रश्न मेरा था कि, क्या आपलोगों के मन में ये विचार आया कि हमें भी देविका या रवी बनकर सहायता करनी चाहिये ?
कुछ लोगों का उत्तर था कि, हां जरूर हम शिक्षा के क्षेत्र मेंं अवश्य मदद करना चाहेंगे। आशा करते हैं ये फिल्म समाज को जागरुक अवश्य करेगी ।
श्रीकांत जी का संक्षिप्त परिचय
(श्रीकांत का जन्म 7 जुलाई 1992को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के सीतारमपुरम में एक तेलुगु भाषी परिवार में हुआ था। वह जन्म से ही दृष्टिबाधित थे। श्रीकांत साइंस पढ़ना चाहते थे लेकिन दृष्टीबाधित होने के कारण उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी गई। श्रीकांत ने भी हार नहीं मानी। कई महीनों तक कोर्ट में लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार श्रीकांत देश के पहले दृष्टीबाधित बने, जिन्हें 10वीं के बाद साइंस पढ़ने की इजाजत मिली।दृष्टी नहीं हैं लेकिन 23 साल की उम्र में खड़ी कर दी 80 करोड़ की कंपनी। श्रीकांत की कंपनी कंज्यूमर फूड पैकेजिंग, प्रिंटिंग इंक और ग्लू का बिजनेस कर रही है। आज कंपनी के हैदराबाद और तेलंगाना के पांच प्लांट हैं। इनमें सैकड़ों लोग काम कर रहे हैं। फिलहाल उनकी कंपनी में चार हजार लोग काम कर रहे हैं। खास बात यह है कि उनकी कंपनी में 70 फीसदी लोग दृष्टीबाधित और अश्क्त हैं। इन लोगों के साथ वे खुद भी रोजाना 15-18 घंटे काम करते हैं। अपनी सफलता के बारे में श्रीकांत का कहना है कि जब दुनिया कहती थी, यह कुछ नहीं कर सकता तो मैं कहता था कि मैं सब कुछ कर सकता हूं।)
मित्रों, मेरा भी यही उद्धेश्य है:---- शिक्षा के माध्यम से दृष्टीबाधित बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना।
"शिक्षा के माध्यम से अपने प्रिंट दिव्यांग साथियों को आत्मनिर्भर बनाने में; मैं (अनिता शर्मा) वॉइस फॉर ब्लाइंड के नाम से प्रयासरत हुँ। (वॉइस फॉर ब्लाइंड) ई लर्निंग का ऐसा मंच है जो दिखता नही किंतु हजारों प्रिंट दिव्यांग साथियों को देश दुनिया की जानकारी से अपडेट कराते हुए, शिक्षा की अलख को सोशल मिडिया की सभी विधाओं जैसे- यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर, स्काईप तथा वाट्सअप के माध्यम से रौशन कर रहा है, जिसके प्रकाश में भारत के विभिन्न राज्यों के प्रिंट दिव्यांग साथी लाभान्वित होकर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हैं।"
इस मुहीम में यदि आप भी जुङना चाहते हैं तो हमें, voiceforblind@gmail.com पर मेल करें
अपनी कलम को विराम देते हुए यही कहेंगे कि,
बिना कष्ट के सिध्दियां मिलती नहीं
जो तपा उसी की जय है।
कण कण में तेरा परिचय है,
यदि मन में दृणविश्वास है।
आपका थोङा सा समय किसी को आत्म सम्मान से जीने का अवसर दे सकता है
धन्यवाद 🙏
डिअर मैम, यह फिल्म मैंने भी देखी, इसमें अंत में जो स्पीच है उसने मेरा दिल जीत लिया. वास्तव में श्रीकांत जी से भी महान वह शिक्षिका है जिसने निःस्वार्थ हो कर उनकी मदद की, उनकी लड़ाई को अपनी लड़ाई बनाया और लाखों दृष्टिबाधित बच्चों के लिए एक ऐसा एग्जाम्पल सेट किया जो हमेशा प्रेरित करता रहेगा. मैम आप भी सैकड़ों-हजारों बच्चों के लिए देविका टीचर के समान हैं. मैं आपको और आपके काम को नमन करता हूँ. 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद गोपाल
Deleteआपने सही कहा श्रीकांत की स्पीच बहुत सही है, " हमें दया नहीं बराबरी चाहिए "
समाज की यही भावना होनी चाहिए
Compliments on a beautifully written and inspiring article.
ReplyDeleteKeep up the exceptional work that you are doing for visually impaired students, and I am sure more and more helping hands will come forward to support such noble cause.
Thank u🙂
DeleteVery nicely written article which is abundantly inspiring. After viewing the film your intention to understand the feelings of the people , shows your commitment to the cause. Please keep it up. We need many people like you in our society to address the issues of specially abled people. Good work indeed.
ReplyDeleteThank u
Deleteधन्यवाद 🙏
ReplyDeleteSuch a inspiring movy this is we should try to motivate our society through it
ReplyDeleteRespected mam thanks for this article
You are so inspiring for us
धन्यवाद
Deleteबहुत अच्छा आर्टिकल लगा मैडम आपने जो श्रीकांत मूवी देखी उसे पर इतना अच्छा आर्टिकल लिखने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद
DeleteBahut accha laga Madam aapka blog. 🙌🏼
ReplyDeleteMene jab movie dekhi to aapse hi connect kiya tha ki kese aap bhi blind students ko selflessly study material provide krte ho.
Even I'm feeling proud to be in your contact. God bless you and your work. ✨🙏🏼🌸👏
धन्यवाद चेतन
Deleteतुम भी writer बनकर हमेशा इस सामाजिक दायित्व को निभा रहे हो , इसके लिए तुमको आशीर्वाद। तुम्हारे जैसे और भी बच्चे इस मुहीम से जुडे तो और अच्छा होगा