मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, साधु या असाधु, धनी या दरिद्र; किसी
का भी शरीर चिर काल तक नहीं रहेगा, क्योंकि न ये शरीर हमारा है और न हम इसके। ये
तो हवा, पानी, मिट्टी एवं अग्नि से बना है और मृत्यु के पश्चात इसी में मिल
जायेगा। यदि हम चाहें तो हमारा अस्तित्व स्थिर रह सकता है। यदि हम अपने आस पास गौर
से देखें, तो ऐसे कई लोग मिल जायेंगे जो आँखों के बिना या शरीर के कोई और अंग के
अभाव में जीवन बसर कर रहे हैं। तब हमें अपने इस अनमोल शरीर का मोल पता चलता है जो
ईश्वर ने हमें निःशुल्क दिया है। कितना अच्छा हो कि मरने के बाद ये अंग किसी को
जीवनदान दे सकें। दान तीन प्रकार का होता है सात्विक, राजस व तामस। सात्विक दान सर्वश्रेष्ठ और सबसे पवित्र माना
गया है। ऐसे दान में ‘अंगदान’ आता है
जिसके द्वारा कोई व्यक्ति मौत के बाद किसी जरूरतमंद को जिंदगी दे सकता है।
देहदान के पवित्र संकल्प से दूसरों को जीवन देने की सोच विरले लोगों में ही देखने को मिलती है। उन्ही में से एक हैं, आजादी की सिपाही कैप्टन
लक्ष्मी सहगल जिन्होने नेता जी सुभाषचन्द्र बोस के साथ आजादी की लङाई में अपना
महत्वपूर्ण सहयोग दिया। उनकी 90 वर्ष की उम्र में कानपुर में मृत्यु हुई है उनकी
इच्छा थी कि उनकी देह का दान हो। उनकी इस इच्छा ने दो अंधेरी दुनिया को रौशन कर
दिया। 15 साल की बबली और 55 साल की रामप्यारी को कैप्टन
सहगल का कार्निया ट्रान्सप्लांट किया गया। समाज और
मरीजों की सेवा में सारा जीवन व्यतीत करने के बाद भी उनका अस्तित्व आज भी विद्यमान
है जो सामाजिक प्रेरणा की मिशाल है।
हममें
से कई लोग धार्मिक अंधविश्वास की वजह से अंगदान देने से डरते हैं। महान ऋषि दधीचि
को याद कीजिए, जिन्होंने समाज की भलाई के
लिए अपनी हड्ड़ियां दान कर दी थीं। उन जैसा धर्मज्ञ अगर ऐसा कर चुका है तो, आम लोगों को तो डरने की
जरूरत ही नहीं है। आंखें दान करने वाले अगले जन्म में अंधे पैदा होंगे, जैसी बातें अंधविश्वास हैं।
खुद सोचिए, अगर किसी ने दिल और गुर्दे
दान कर दिए, तो इस थ्योरी के हिसाब से तो
अगले जन्म में उसे बिना दिल और किडनी के पैदा होना चाहिए। क्या ऐसा मुमकिन है कि
कोई इंसान बिना दिल और किडनी के जन्म ले ?
आध्यात्मिक
गुरु भी इस बात को कह चुके हैं कि अंगदान करना एक बड़े पुण्य का काम है क्योंकि
इससे आप एक मरते हुए शख्स को जिंदगी दे रहे हैं। किसी को जिंदगी देने से बड़ा
पुण्य भला क्या होगा!
अंगदान
एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें एक इंसान (मृत और
कभी-कभी जीवित भी) से स्वस्थ अंगों और टिशूज़ को ले लिया जाता है और फिर इन अंगों
को किसी दूसरे जरूरतमंद व्यक्ति में ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। इस तरह अंगदान
से किसी दूसरे शख्स की जिंदगी को बचाया जा सकता है। एक व्यक्ति द्वारा किए गए
अंगदान से 50 जरूरतमंद लोगों की मदद हो
सकती है।
हमारे
देश में लिवर, किडनी और हार्ट के
ट्रांसप्लांट होने की सुविधा है। कुछ मामलों में पैनक्रियाज भी ट्रांसप्लांट हो
जाते हैं, लेकिन इनके अलावा दूसरे
अंगों का भी दान किया जा सकता है। ज्यादातर अंगदान तब होते हैं, जब इंसान की मौत हो जाती है,
लेकिन कुछ अंग और टिशू इंसान के जिंदा रहते भी दान किए जा सकते हैं।
ईश्वर ने हमें
सर्वअंग का उपहार किसी जरूरतमन्द व्यक्ति की सहायता के लिये भी दिया है। जरूरत
पङने पर जब अन्य व्यक्ति से यह दान लेते समय नहीं झिझकते तो फिर स्वयं दान
देने में हिचक क्यों?
उन लोगों के
बारे में सोचिए जिन्होनें कभी प्रकाश देखा ही नहीं… वो जो अस्पतालों में पड़े जीवन और मृत्यु से जूझ
रहे हैं… वो लोग जो किसी प्राकृतिक आपदा या दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं, हमारे
सहयोग से फिजिकली चैलेंज्ड भी एक आम इन्सान जैसा जीवन यापन कर सकते हैं।
आगे बढिए और आज
ही रक्तदान, नेत्रदान व अंगदान का संक्लप कीजिए। यह हम सबका कर्तव्य है। अंगदान जीवन का
उपहार है।
निज़ी स्वार्थ की सीमाओं से
परे जो सोच सके
खून से लथपथ मानवता के दामन को
पौंछ सके
ना मजहब की ना भगवान की
ज़रूरत है, तो बस इक ऐसे करुणा निधान इंसान की
.
जो बिखरी खुशियों को,
मानवता से भर सके
जय हिन्द जय भारत
अधिक जानकारी के
लिये आप दधीचि मिशन की वेबसाइट देख सकते हैं।
DADHICHI MISSION
Give Once, Live Once Again
Ph. +91 731 2341443, 7898225846, 9893012148 (Indore, Madhya
Pradesh)
+91
11 23381446, 9899141945, 9650211688 (Delhi)
Indeed an important message. And I did not know about Dadhichi Misssion earlier. Thanks.
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