अद्भुत शक्ती और उपकार की जीवंत मूर्ती, धरती पर
ईश्वर का ही स्वरूप है माँ। ममता, वात्सल्य और अपार स्नेह का सागर माँ की छत्रछाया
में ही है। हिन्दु धर्म में ब्रह्मा, विष्णु, महेश की आराधना की जाती है। कहते
हैं, ब्रह्मा सृष्टी के सृजन कर्ता हैं, विष्णु सृष्टी के पालन कर्ता हैं और शिव
सबका उद्धार करते हैं। माँ ये तीनो ही देवताओं का सम्मलित रूप है क्योंकि माँ जनम
देती है इसलिये ब्रह्मा, पालन करती है इसलिये विष्णु और अच्छे संस्कार देते हुए
सभी इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करती है इसलिये शिव है, तभी तो
कहते हैं “मातृ देवो भवः”।
अपने मिसाइल मैन अब्दुल कलाम साहब ने अपनी पुस्तक
“अग्नी की उङान’, अपनी माँ को
समर्पित की है। उस पुस्तक में माँ की याद में लिखि कविता के कुछ अंश--
मेरी कायनात रही तू।
जब छिड़ा विश्वयुद्ध, छोटा सा मैं
जीवन बना था चुनौती, जिंदगी अमानत
मीलों चलते थे हम
पहुँचते किरणों से पहले।
दोस्तो, माँ के बिना तो महिमा (महि+मा) शब्द भी अधुरा है। माँ की कोई उपमा नही हो सकती। कवि कहते
हैं, माँ की उपमा किससे करु यदि सागर से करुं तो उसका जल तो खारा है लेकिन मेरी
माँ का दूध तो अमृत जैसा मधुर एवं मीठा था। इसलिये सागर भी माँ के सामने छोटा है।
यदि ये कहुँ कि आप चन्द्रमा हो तो, चन्द्रमा में भी दाग है, लेकिन मेरी माँ की
ममता में तो कोई दाग नही है इसलिये चन्द्रमा भी आपके सामने बौना है। सूरज से भी
नही कर सकता क्योंकि सूरज तो केवल रास्ता दिखाता है जबकि माँ तो अँगुली पकङकर चलना
सिखाती है। माँ आपको देवी भी नही कह सकता क्योंकि वो तो वरदान देती जबकि माँ आपने
तो जीवनदान दिया है। सम्पूर्ण विश्व में ऐसी कोई वस्तु नही है जिससे माँ की उपमा
की जाए क्योंकि माँ केवल माँ है।
ईश्वर
की सभी सजीव रचना जैसे, पशु एवं पक्षी में भी माँ के वात्सल्य का रूप विद्यमान है।
एक चिङिया एक-एक दाना लाकर अपने बच्चे को खिलाती है। हमारे विकास में धरती एवं गाय
का भी विशेष स्थान है, हम सब आदर से धरती माता एवं गौ माता कहते हैं। ये कहना
अतिश्योक्ति न होगी कि हमारा सम्पूर्ण विकास माँ की छत्रछाया में ही पल्लवित होता
है। माँ की ममता और प्यार भरा आँचल दुनिया से सामना करने की शक्ति देता
है। वो साया बनकर हर कदम पर साथ देती है। गैरों की दुनिया में अपनो का
एहसास है, माँ।
माँ एक पल के लिए भी दूर होती है तो जैसे कहीं कोई अधूरापन सा लगता
है। आज मेरी माँ मेरे पास नही है, वो मुझसे बहुत दूर जा चुकी है। अपने दिये
संस्कारों के रूप में पास न होकर भी पास
है, मेरी माँ क्योकि सबसे खास है मेरी माँ। कहिं न कहिं उनका प्रतिरूप मुझे मेरे
बच्चों मे दिखता है, मेरे प्रति उनका फिक्र का भाव मुझे मेरी माँ का एहसास कराता
है।
स्वामी विवेकानंद जी, शिवाजी, महात्मा गाँधी,
बालगंगाधर तिलक, सुभाषचन्द्र बोस, जैसी अनेक विभूतियों ने अपनी प्रसिद्धी का श्रेय
अपनी माँ को ही दिया है।
दोस्तो, जब हम जिन्दगी की जद्दोजहद से थक जाते हैं तो उसका वात्सल्य
से भरा स्पर्श सभी दुख तकलीफों को दूर कर देता। ईश्वर
की सृष्टी में, माँ
में ही ईश्वर का वास है जिसे हम सब दुख एवं तकलीफ में सबसे पहले आवाज देते हैं
क्योंकि माँ से तो हमारा रिश्ता दुनिया में आने के पहले से ही होता है। माँ से सिर्फ़ जनम का ही नही सांसों का नाता
होता है। काँटो भरी राह में फूलों का एहसास
माँ की गोद में ही मिलता है। प्यार और डाँट से जीवन को खुशहाल बनाती है। हमारे भले
के लिये कभी कभी सख्त भी हो जाती है। निःस्वार्थ भाव से अपने बच्चों को खुशियों का
उपहार देती। अपने सुख-दुख का ख्याल न रखकर बच्चे को बेहतर इंसान बनाने में
प्रयत्नशील रहती है।
समंदर की लहरें,
सुनहरी रेत,
श्रद्धानत तीर्थयात्री,
रामेश्वरम् द्वीप की वह छोटी-पूरी दुनिया।
सबमें तू निहित,
सब तुझमें समाहित।
तेरी बाँहों में पला मैं,सुनहरी रेत,
श्रद्धानत तीर्थयात्री,
रामेश्वरम् द्वीप की वह छोटी-पूरी दुनिया।
सबमें तू निहित,
सब तुझमें समाहित।
मेरी कायनात रही तू।
जब छिड़ा विश्वयुद्ध, छोटा सा मैं
जीवन बना था चुनौती, जिंदगी अमानत
मीलों चलते थे हम
पहुँचते किरणों से पहले।
तेरी उँगलियों ने
निथारा था दर्द मेरे बालों से,
और भरी थी मुझमें
अपने विश्वास की शक्ति-
निर्भय हो जीने की, जीतने की।
जिया मैं
मेरी माँ !
निथारा था दर्द मेरे बालों से,
और भरी थी मुझमें
अपने विश्वास की शक्ति-
निर्भय हो जीने की, जीतने की।
जिया मैं
मेरी माँ !
मित्रों,
विझान के क्षेत्र में थॉमस अल्वा एडिसन एक ऐसा
नाम है जिनके नाम एक हजार से भी ज्यादा आविष्कारों का पेटेंट है। प्रकाश बल्ब का
आविष्कार करके घर-घर रौशनी पहुँचाने वाले एडिसन का बचपन में पढ़ाई
में
ध्यान नहीं लगता जिस कारण एडिसन को तीन स्कूल से
निकाल दिया गया था। एक शिक्षक ने उनकी मां से कहा, आपके
बच्चे को दुनियाँ का कोई शिक्षक नहीं पढ़ा सकता तब उनकी माँ ने उनको घर में ही
पढाना शुरू किया। उनकी माँ की शिक्षा और प्रोत्साहन का ही परिणाम है कि एडिसन को न केवल एक आविष्कारक के रूप में बल्कि एक उद्यमी के रूप में भी जाना
जाता है।
मां को खुशियाँ और सम्मान देने के लिए पूरी ज़िंदगी भी कम होती
है। फिर भी विश्व में मां के सम्मान में मातृ दिवस (Mother's Day)
मनाया जाता है। मातृ दिवस विश्व के अलग - अलग भागों में अलग - अलग तरीकों से मनाया
जाता है। परन्तु मई माह के दूसरे रविवार को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाता है।
मदर्स डे की शुरुआत अमेरिका से हुई। वहाँ एक कवयित्री और लेखिका जूलिया वार्ड होव
ने 1870 में 10 मई को माँ के नाम समर्पित करते हुए कई रचनाएँ लिखीं। वे मानती थीं
कि महिलाओं की सामाजिक ज़िम्मेदारी व्यापक होनी चाहिए। अमेरिका में मातृ दिवस
(मदर्स डे) पर राष्ट्रीय अवकाश होता है। अमेरिका में यह दिन उत्सव की तरह मनाया
जाता है।
प्रथम गुरु और छमाशील, ममतामयी माँ के सम्मान में किसी दिवस
का इंतजार क्यों? जबकि माँ की
ममता वो नींव का
पत्थर होती है जिस पर एक बच्चे के भविष्य की ईमारत खड़ी होती है। बच्चे की ज़िन्दगी का पहला अहसास ही
माँ की ममता होती है, उसका ममता और प्यार भरा आँचल हर पल हमें अपनी छाया में महफूज़ रखता है। बच्चे
के जीवन के
संपूर्ण वि़कास का केन्द्र बिन्दु, सृष्टी
के अनमोल वरदान को हर पल मेरा शत् शत् नमन। माँ का कोई विकल्प नहीं माँ
से बढ़कर कुछ नहीं।
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं माँ गुण लिखा न जाइ॥
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एक माँ की कलम से (Happy Mother's Day)
धरती सब कागद करौं माँ गुण लिखा न जाइ॥
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एक माँ की कलम से (Happy Mother's Day)
One of the best articles I have ever read on "Maa".
ReplyDeleteBhaut hii achhe tareeke se aapne "maa" ka gudgaan kiya hai. Thanks.
Thank you very much, Gopal
ReplyDeleteit's such brillent
ReplyDeleteno one can describe "माँ" in such a good manner
It's such a fabioulus article.
ReplyDeletenoone can describe "माँ" in such good words
it's fabulus
ReplyDeleteactually, i have no words for it
Ati Sunder,Sat Sat Naman
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