उत्तराखण्ड में बचाव
कार्य लगभग समाप्त हो चुका है किन्तु पर्वतिय सुनामी से आई विपत्ति का मंजर इतना
दुखद है कि उसे भुलाया नहीं जा सकता। त्रासदी के कई कारण बताये जा रहे हैं।
राजनैतिक बयान भी किसी आपदा से कम नहीं हैं। लगभग तीन साल में उत्तराखण्ड को पुनः
व्यवस्थित करने का दावा भी हो रहा है। भौतिक संसाधन तो फिर भी व्यवस्थित हो जायेगा
परन्तु अपनो से बिछुङे अनगिनत परिवारों की भरपाई असंभव है।
प्राकृतिक आपदा के
कहर को हमारे सामजिक रीति-रिवाज और भी दुखद बना देते हैं। एक तरफ तो अपनों से इस
तरह बिछुङे कि उनका अंतिम दर्शन भी न हो सका तो दूसरी तरफ कुछ परिवारों को सामाजिक
कुरीतियों के दबाव में मृत्युभोज जैसे रीति-रिवाजों को मानना पङ रहा है। कितने
परिवारों पर से घर के मुखिया का साया ही सैलाब में बह गया किन्तु समाज को इससे कोई
सरोकार नहीं होता। हमारे घर के पास ही एक परिवार के माता-पिता दर्शन के लिये गये
थे किन्तु प्रलय के बहाव में कहाँ हैं परिवार को पता नहीं चल सका। दस दिनों के
उपरान्त सामाजिक रीतियों का पालन करते हुए उनका अंतिम संस्कार करना पङा। आत्मा की
शान्ति के लिये हमारे धार्मिक संस्कार तो फिर भी जायज है परन्तु रीति-रिवाज के नाम
पर पूरे समाज के लिये मृत्यु-भोज का आयोजन किसी अमानवीय त्रासदी से कम नहीं है। धर्म
के नाम पर ऐसी रीतियाँ प्राकृतिक आपदा से भी भयानक होती हैं। ऐसे नाजुक वक्त में
काश, मानवीय संवेदनाएं इस अमानवीय आपदा को रोकने में सक्षम हों।
असमय आए सैलाब में दिवंगत हुए अपनों को नम आँखों से श्रद्धाजंली सुमन अर्पित करते हैं, ईश्वर
उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे। जिन परिवारों पर ये आपदा आई है ईश्वर उन्हे इस दुःख
से उबरने की शक्ति प्रदान करे।
ऊँ शान्ति
Uttarakhand main huai Trasdi main mare gaye unginat logoan ko shardanjali. Ishawar unke parivar ko iss dukh ke sahan karne ki shakti pradan kare. Brij Bhushan Gupta, New Delhi, 09810360393
ReplyDelete