Sunday, 21 July 2013

गुरु पर्व


आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पर्व यानी गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। व्यक्ति के विकास में गुरु का अत्यधिक महत्व है। प्रकृति भी इस पर्व को बहुत उल्लास से मनाती है। चारों तरफ व्याप्त हरियाली ऐसी प्रतीत होती है मानो वो अपने गुरु को नमन कर रही हो। नाचते हुए मोर, कल-कल करती नदियाँ, हरे-भरे पेङ-पौधे इस पर्व को और भी गरिमामय बना देते हैं।
पुरातन काल में बच्चे गुरु कुल में पढ़ने जाते थे और शिक्षा की शुरुआत गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर अपने गुरु की पूजा करके करते थे। वहाँ गुरु की छत्रछाया में सभी शिष्य किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी सीखते थे। ये ज्ञान उन्हें हर विकट परिस्थिति में संयम से काम करने को प्रेरित करता था। भगवान राम को भी गुरुकुल में जाकर रहना पड़ा था, जबकि राजा दशरथ का पुत्र मोह उन्हें अपने से दूर नहीं करना चाह रहा था। परन्तु गुरु ने उन्हें समझाया कि एक सफल राजा बनने के लिए युवराज राम को लगभग सभी स्थितियों को व्यवहारिक ज्ञान से समझना चाहिए। विष्णु शर्मा की पंच तंत्र की कहानियों से भी गुरुकुल शिक्षा प्रणाली का पता चलता है कि किस तरह सभी शिष्यों को दैनिक जीवन के सभी कार्य स्वयं करने पढते थे। इस तरह वो जीवन के सभी कार्यों के महत्व को समझ सकते थे।
आज के परिवेश में हम गुरु कुल का मतलब हॉस्टल से लगा सकते हैं वो भी सर्व सुविधा युक्त, जहाँ रहते हुए जीवन में आई मुश्किलों की आँधी को झेल नहीं पाते। जिससे जरा सी नाकामयाबी पर आत्महत्या जैसे कृत्य को अंजाम दे देते हैं। विद्यालयों में आज जो किताबी ज्ञान हम ले रहे हैं उस आधार पर कई बार Table work में तो कामयाब हो जाते हैं परन्तु व्यवहारिक दुनिया में सफल नहीं हो पाते। धैर्य, साहस, स्वविवेक और संयम जैसे महत्व पूर्ण अंग को सिर्फ किताबों से नहीं सीखा जा सकता उसे वही प्राचीन गुरु शिष्य परंपरा से ही प्राप्त कर सकते हैं। कहते हैं सोना आग में ही तप कर कुंदन बनता है। उसी प्रकार एक सफल व्यक्ति जीवन के सभी पहलुओं को व्यवहारिक (Practical) ज्ञान के माध्यम से ही कुंदन बन सकता है। जिसे गुरु के मार्गदर्शन में ही सम्पूर्ण किया जा सकता है क्योंकि गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढी गढी काढे खोट, अंतर हाँथ पसारी के बाहर मारी चोट।।अर्थात जिस प्रकार कुम्हार, घड़ा सुंदर बनाते समय उसके अंदर हाँथ फैलाकर उसे चिकना बनाता है और ऊपर से उस पर चोट भी करता है उसी तरह गुरु भी शिष्य के उत्कृष्ट जीवन हेतु उसे अपने प्यार और आर्शिवाद का सहारा भी देते हैं और जीवन की कठिनाइयों का सामना करवाने में कठोर भी बन जाते हैं। सृष्टि में गुरु की महिमा अद्वितीय है हमारे सभी संत महात्माओं एवं बुद्धिजीवियों ने गुरु के महत्व को सर्वोपरि माना है। कहते हैं गुरु में ही ईश्वर का वास होता है। जिसमें कबीर की साखियों में गुरु का विशेष स्थान है। विकास के लिए ज्ञान का होना जरूरी है और ज्ञान गुरु की कृपा से ही संभव है। इस पावन पर्व पर सभी गुरुओं का वंदन करते हैं और नमन करते हैं।
     
गुरु सूरज का तेज है, गुरु सद्गुण की खान।
उनके सद्-उपदेश से, ले निज को पहचान॥



1 comment:

  1. Achchha avm GyanVardhak Lekh. GURU bina Gyan nahin........Guru Shishya ka Bahut achchha Udaharan.
    “गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढी गढी काढे खोट, अंतर हाँथ पसारी के बाहर मारी चोट।।“ अर्थात जिस प्रकार कुम्हार, घड़ा सुंदर बनाते समय उसके अंदर हाँथ फैलाकर उसे चिकना बनाता है और ऊपर से उस पर चोट भी करता है उसी तरह गुरु भी शिष्य के उत्कृष्ट जीवन हेतु उसे अपने प्यार और आर्शिवाद का सहारा भी देते हैं और जीवन की कठिनाइयों का सामना करवाने में कठोर भी बन जाते हैं। Brij Bhushan Gupta , 9810360393

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