Friday, 30 August 2013

जिंदगी की पाठशाला



जीवन में हम सभी को अपने आस-पास के वातावरण से कई ऐसी बातें सीखने को मिलती हैं जो जीवन को नया आयाम देती है। कभी-कभी तो बच्चे भी हमें ऐसी सामाजिक भावना की सीख दे जातें हैं जिससे ये प्रमाणित हो जाता है कि बच्चे मन के सच्चे होते हैं, वो तो वाकई भगवान का रूप होते हैं। ऐसी ही एक बच्ची की बातें आप सभी से Share कर रहें हैं। उसकी बातों से हम बहुत प्रभावित हुए।

एक बार की बात है। एक बच्ची खाना नही खा रही थी, उसकी माँ कई प्रकार से समझा रही थी फिर भी वो खाना नही खा रह थी। आखिर में उसके पिता ने उसे समझाया कि तुम खाना खा लो उसके बाद तुम जो चाहोगी तुम्हे दिला देंगे। बच्ची ने पक्का करने के लिए पुनः अपने पिता से पुछा कि जो मैं माँगुगी आप दिलाएंगे। पिता ने पुनः आश्वासन दिया और साथ ही ये हिदायत भी दे दी कि कुछ मंहगा न माँगना। बच्ची ने भी मुस्कराते हुए अपने पापा को कहा कि वो मंहगी चीज नही लेगी। खाना खाने के बाद उसके पापा ने उससे पुछा कि तुम्हे क्या चाहिए? थोङा सहमते हुए बच्ची बोली पापा मुझे अपना सर मुंडवाना है, पूरे बाल कटवाने हैं! पिता ने आश्चर्य से पूछा, माँ तो नाराज ही हो गई कि इतने अच्छे लम्बे बाल हैं क्यों कटवाना चाहती हो। बच्ची अपनी बात पर अढी रही, आखिरकार उसके पापा ने उसका बाल कटवा दिया किन्तु उसकी माँ उससे बहुत नाराज रही यहाँ तक की दूसरे दिन स्कूल जाने के लिए तैयार भी नही की। उसके पापा उसे तैयार करके स्कूल छोङने गए। वहाँ वे उसके एक ऐसे दोस्त से मिले जिसके सर पर बिलकुल भी बाल नही था। वे कुछ सोचते उसके पहले ही उस बच्चे की माँ उनके पास आई और बोली, "सर आपकी बेटी का दिल बहुत बङा है। जिस बच्चे को इतने ध्यान से देख रहे हैं वो मेरा बेटा है,उसे ल्यूकेमिया है, किमोथैरिपी की वजह से उसके पूरे बाल झङ गए हैं। क्लास के बच्चे उसका मजाक न उङाएं इसलिए वो एक महिने से स्कूल नही आ रहा था। पिछले सप्ताह आपकी बेटी मेरे घर आई थी। उसने मेरे बेटे से वादा किया था कि सोमवार से स्कूल आए उसे कोई परेशान नही करेगा। मैने कभी सोचा भी न था कि वो अपने खूबसूरत बालों का बलिदान कर देगी। आप बहुत भाग्यशाली हैं कि आपको इतनी सुंदर आत्मा वाली बेटी मिली है।"

ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि उस नन्ही परी ने अपने पापा को ही नही बल्की हम सबको ये सीख दी कि इस दुनिया में खुशी उन्हे नही मिलती जो अपनी शर्तो पर जिंदगी जीते हैं बल्की उन्हे मिलती है, जो दूसरों की खुशी के लिए जिंदगी की शर्तों को बदल देते हैं।

Tuesday, 27 August 2013

जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई





राधा की भक्ति, मुरली की मिठास,
माखन का स्वाद और गोपियों का रास,
असुरों का नास, यशोदा का विश्वास,
गीता का ज्ञान, गोकुल की आस,
पूरी करें सबकी आस,
इन सब से मिलकर बनता है, 
जन्माष्टमी का दिन खास।
वो सबको राह दिखाते, सबकी बिगङी बनाते।
ऐसे मुरलीधर गोपाल की, जय हो कन्हैया लाल की

 






Sunday, 25 August 2013

जीवन का खुशनुमा पल


हम सभी अपने जीवन काल में अनेक रिश्तों को जीवंत करते हैं। सभी रिश्तों का अपना महत्व भी होता है जिसे हम सभी पूरी ईमानदारी से निभाने का प्रयास भी करते हैं। ऐसे ही इन्द्रधनुषी रिश्तों की डोर में माँ और बच्चे का रिश्ता सर्वोपरि होता है। सभी रंगो से चटख(तेज) होता है। जब बच्चे कुछ ऐसा करें कि माँ-बाप का सर गर्व से ऊँचा हो जाये तो सोने पे सुहागा हो जाता है। हमें भी अपने बच्चों पर नाज है और हो भी क्यूं नही जब बच्चे पढाई के साथ-साथ संस्कारों को भी अपनाते हुए आगे बढें तो उन पर हर माँ को गर्व होता है।

अभी हाल ही में हमारे बेटे (प्रांजल शर्मा) ने श्रेष्ठ गुरुजनों के संरक्षण में पूरी ईमानदारी से मेहनत की, जिसका परिणाम ये हुआ कि उनका डॉक्टर बनने का सपना साकार हो गया। उनका चयन(Selection ) पहली बार में ही देश के दूसरे नम्बर के संस्थान AFMC (Armed Force  Medical College, Pune ) में हो गया। ईश्वर की कृपा से लगभग सभी प्रवेश परिक्षाओं में उन्हे सफलता प्राप्त हुई। उसकी मेहनत रंग लाई और उसे मनपसंद विद्यालय चयन करने का अवसर प्राप्त हुआ। एक माँ होने के नाते उसकी उपलब्धी, मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नही है। मेरी बेटी (आकांक्षा) ने भी सदैव मेरा मान बढाया। उसकी उपलब्धियों ने हमेशा गौरवान्वित किया। अच्छे अंको के साथ आगे बढते हुए प्रथम प्रयास में ही C.A. (Charter Accountant)  बन गई। मेरी खुशियों को तब चार चाँद लग गया जब हम दामाद(चिराग) के रूप में ऐसे बेटे को पाए जिस पर हमें तो गर्व है ही, साथ में हमारी सासु माँ के लिए कृष्ण कन्हैया का रूप है वो। चिराग भी पहले प्रयास में C.A. (Charter Accountant)  बन गया था।
ऐसे बच्चों की माँ होना मेरे लिए उस गौरव की बात है, जो हमें यशोदा और देवकी की अनुभूति दिलाता है।
खुशी का ये पल आप सभी से Share कर के हमें हर्ष हो रहा है। खुशी का ये इजहार मेरे बच्चों के साथ-साथ उन सभी बच्चों के लिए आर्शिवाद स्वरूप है जो अपनी मेहनत से अपने सपने को साकार करते हैं।

किसी ने सच ही कहा है- “Relation can’t be  understood by Language of money because some investment never gain profit, But they make us rich.


Tuesday, 20 August 2013

HAPPY RAKSHABANDHAN


कच्चे धागों का मजबूत बंधन है राखी
जांत-पांत और भेदभाव से दूर
एकता का पाठ है राखी
रिश्तों की मिठास लिए,
भाई-बहन का परस्पर विश्वास है राखी
शब्दों की नहीं पवित्र दिलों की बात है राखी
रक्षा का वादा लिए बहन का अधिकार है राखी।






Tuesday, 13 August 2013

आजादी के 66 वर्षों बाद भी क्या हम आजाद हैं ?



आजादी स्वतंत्र आकाश में पंक्षी की उङान जैसी अनुभूति है। स्वतंत्रता का अर्थ सिर्फ आर्थिक और सामाजिक नही बल्की सोच-समझ में भी आजादी का आगाज है। क्या हम वाकई आजादी के 66 वर्षों बाद भी उन विचारों से आजाद हो पाए हैं, जिनकी नींव अंग्रेजों ने डाली थी। हम आजाद हैं इसका अर्थ क्या है? देश को दूसरे देश से मिली आजादी, आर्थिक कर्जों से छुटकारे की आजादी, पुराने रीति-रिवाज को तोङकर आगे बढने की आजादी या एक इंसान होने के नाते स्वतंत्रता से सोचने, विचार करने तथा अपने फैसले स्वयं लेने की आजादी!
यदि विचार करें तो देश की सर्वोच्च संस्था न्यायपालिका आज भी आजाद भारत में अंग्रेजों के द्वारा बनाई परिपाटी पर चल रही है। न्याय की मूर्ती आँख पर पट्टी बाँधे हुए, हाँथ में तराजू लिए खङी है जिसे अंग्रेजों ने न्याय की देवी कहा। संभवतः उनका आशय रहा हो कि न्याय में किसी का चेहरा या रिश्ता न देखें, निष्पक्ष रहें किन्तु क्या कभी उन्होने भारतियों के साथ न्याय किया। जग जाहिर है कि 1857 के बाद भारतियों पर जो कहर बरपा उसमें कितना न्याय हमें मिला! हमारे देश में आँखे बन्द करना अच्छा नही मानते क्योंकि इतिहास गवाह है कि, धृतराष्ट्र तो अंधे थे पर गांधारी ने अपने आँखों पर पट्टी बाँध ली थी। जिसका दुष्परिणाम था, महाभारत का युद्ध। अतः हमारे यहाँ आँखों पर पट्टी बाँधना कभी भी स्वस्थ परंपरा नही मानी जाती फिर भी हमारी न्याय व्यवस्था उसी के अनुसार चल रही है।

आज भी शिक्षा प्रणाली मैकाले की शिक्षा प्रणाली पर चल रही है। मैकाले ने कहा था कि मै वो काम कर रहा हुँ जो भारतियों को सदियों तक गुलाम बना कर रखेगा। शिक्षा व्यवस्था को देखें तो मैकाले की बात सौ फीसदी सच नजर आती है। हमने अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी मान ली किन्तु वो सिर्फ नाम की राष्ट्रभाषा रह गई है। आलम तो ये है कि अंग्रेजों की अंग्रेजी के हम सभी गुलाम हैं। स्वतंत्रता दिवस का भाषण भी अंग्रेजी में देते हैं। महाविद्यालयों में दिक्षांत समारोह में दिक्षा काले कोट पहन कर लेते हैं। जबकि शिक्षालय, शुभ्रवसना हंसवाहनी का मंदिर है, जहाँ अज्ञान के अंधेरों को ज्ञान का प्रकाश मिलता है। ऐसे सुखद अवसर पर भी गुलामी को याद दिलाते काले वस्त्र पहनते हैं। जन्मदिन की खुशी पर भी दिये को बुझाकर फक्र महसूस करते हैं। हम किस आजादी की बात करते हैं जहाँ सोच तो आज भी गुलाम है।

अंग्रेज जाते-जाते भारत का त्रासदी भरा विभाजन कर गये। फूट डालो शासन करो का बीज बो गये जिसकी फसल आज भी राज्यों के बंटवारे और जाति के नाम पर आरक्षण के रूप में लहलहा रही है। अंग्रेजों के शासन काल में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था लकावाग्रस्त (Paralysis) हो गई थी। भारतीय अपने ही देश में इतने अपमानित होते थे कि कुछ जगहों पर लिखा होता था, हिन्दुस्तानियों और कुत्तों के आने पर पाबंदि है। हमारे स्वाभीमान को गुलाम बनाया गया था। क्या आज हम अपने स्वाभिमान को आजाद कर पाए हैं?
हम आजाद तो हुए किन्तु अपनी सोच को आजाद अभी भी नही कर पाए। आंशिक आजादी से भारत की फिजा में आज भी स्वतंत्र शुद्ध हवा के अभाव का एहसास है। जब हम सभी अपनी सभ्यता और अपने विचारों के साथ सशक्त-सम्पन्न भारत का निर्माण करेंगे तभी हम वास्तविक स्वाभीमान के साथ आजाद होंगे। यही सच्ची श्रद्धांजली होगी उन असंख्य देशभक्तों को जिन्होने अपने बलिदान से हमें आजादी दिलाई।
जय हिन्द जय भारत