आजादी स्वतंत्र आकाश में पंक्षी की उङान जैसी
अनुभूति है। स्वतंत्रता का अर्थ सिर्फ आर्थिक और सामाजिक नही बल्की सोच-समझ में भी
आजादी का आगाज है। क्या हम वाकई आजादी के 66 वर्षों बाद भी उन विचारों से आजाद हो
पाए हैं, जिनकी नींव अंग्रेजों ने डाली थी। हम आजाद हैं इसका अर्थ क्या है? देश को दूसरे देश से
मिली आजादी, आर्थिक कर्जों से छुटकारे की आजादी, पुराने रीति-रिवाज को तोङकर आगे
बढने की आजादी या एक इंसान होने के नाते स्वतंत्रता से सोचने, विचार करने तथा अपने
फैसले स्वयं लेने की आजादी!
यदि विचार करें तो देश की सर्वोच्च संस्था
न्यायपालिका आज भी आजाद भारत में अंग्रेजों के द्वारा बनाई परिपाटी पर चल रही है।
न्याय की मूर्ती आँख पर पट्टी बाँधे हुए, हाँथ में तराजू लिए खङी है जिसे
अंग्रेजों ने न्याय की देवी कहा। संभवतः उनका आशय रहा हो कि न्याय में किसी का
चेहरा या रिश्ता न देखें, निष्पक्ष रहें किन्तु क्या कभी उन्होने भारतियों के साथ
न्याय किया। जग जाहिर है कि 1857 के बाद भारतियों पर जो कहर बरपा उसमें कितना
न्याय हमें मिला! हमारे देश में आँखे बन्द करना अच्छा नही मानते क्योंकि इतिहास गवाह है
कि, धृतराष्ट्र तो अंधे थे पर गांधारी ने अपने आँखों पर पट्टी बाँध ली थी। जिसका
दुष्परिणाम था, महाभारत का युद्ध। अतः हमारे यहाँ आँखों पर पट्टी बाँधना कभी भी
स्वस्थ परंपरा नही मानी जाती फिर भी हमारी न्याय व्यवस्था उसी के अनुसार चल रही
है।
आज भी शिक्षा प्रणाली मैकाले की शिक्षा प्रणाली
पर चल रही है। मैकाले ने कहा था कि मै वो काम कर रहा हुँ जो भारतियों को सदियों तक
गुलाम बना कर रखेगा। शिक्षा व्यवस्था को देखें तो मैकाले की बात सौ फीसदी सच नजर
आती है। हमने अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी मान ली किन्तु वो सिर्फ नाम की राष्ट्रभाषा
रह गई है। आलम तो ये है कि अंग्रेजों की अंग्रेजी के हम सभी गुलाम हैं। स्वतंत्रता
दिवस का भाषण भी अंग्रेजी में देते हैं। महाविद्यालयों में दिक्षांत समारोह में
दिक्षा काले कोट पहन कर लेते हैं। जबकि शिक्षालय, शुभ्रवसना हंसवाहनी का मंदिर है,
जहाँ अज्ञान के अंधेरों को ज्ञान का प्रकाश मिलता है। ऐसे सुखद अवसर पर भी गुलामी
को याद दिलाते काले वस्त्र पहनते हैं। जन्मदिन की खुशी पर भी दिये को बुझाकर फक्र
महसूस करते हैं। हम किस आजादी की बात करते हैं जहाँ सोच तो आज भी गुलाम है।
अंग्रेज जाते-जाते भारत का त्रासदी भरा विभाजन कर
गये। फूट डालो शासन करो का बीज बो गये जिसकी फसल आज भी राज्यों के बंटवारे और जाति
के नाम पर आरक्षण के रूप में लहलहा रही है। अंग्रेजों के शासन काल में पूँजीवादी
अर्थव्यवस्था लकावाग्रस्त (Paralysis) हो गई थी।
भारतीय अपने ही देश में इतने अपमानित होते थे कि कुछ जगहों पर लिखा होता था, “हिन्दुस्तानियों और
कुत्तों के आने पर पाबंदि है’। हमारे स्वाभीमान को गुलाम बनाया गया था। क्या आज हम अपने स्वाभिमान
को आजाद कर पाए हैं?
हम आजाद तो हुए किन्तु अपनी सोच को आजाद अभी भी
नही कर पाए। आंशिक आजादी से भारत की फिजा में आज भी स्वतंत्र शुद्ध हवा के अभाव का
एहसास है। जब हम सभी अपनी सभ्यता और अपने विचारों के साथ सशक्त-सम्पन्न भारत का
निर्माण करेंगे तभी हम वास्तविक स्वाभीमान के साथ आजाद होंगे। यही सच्ची
श्रद्धांजली होगी उन असंख्य देशभक्तों को जिन्होने अपने बलिदान से हमें आजादी
दिलाई।
जय हिन्द जय भारत
Kash !!!!! ye soch har bhartiya ki ho jaay
ReplyDeleteBahut hi sachchha aur sateek lekh hai ye jo ki sedhe dil ko chhuta hai. Jarurat hai ki ab to kam se kam ham in baaton ko samjhe aur sach me aazad hon. Sirf Jai Hind Jai Bharat kah dene bhar se Jai nahi ho jati.
ReplyDeleteLekh achchha avm sachhai ko ujagar karta hai.
ReplyDeleteJiss tarah Aajadi milne main samay lagaa, vaise hee Badlaav ho / aa rahaa hai.
Change is always better. pl. wait some time more. Definetaly it will change as per your valuiable suggetions / Advise. There is no doubt भारत की फिजा में आज भी स्वतंत्र शुद्ध हवा के अभाव का एहसास है & Sirf Jai Hind Jai Bharat kah dene bhar se Jai nahi ho jati. Atai Hamain ekjut hokar shighre hee iss Gulaami Mansikta se Chhutkara pana hogaa . Brij Bhushan Gupta, New Delhi
Bahut kuch jaanne ko mila....hame to bas ek tarah kii aazaadi mili...abhi to kai baakin hain...bahur achcha lekh Ma'am
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