Wednesday 5 November 2014

आत्मनिर्भर बनने की इच्छा को दृष्टीबाधिता भी रोक न सकी.....

अक्सर हम लोग पढाई के दौरान या कैरियर बनाते समय किसी न किसी ऐसी महान विभूति के जीवन के बारे में पढते हैं जिससे हमें प्रेरणा मिलती है। भले ही हम उन्हे व्यक्तिगत रूप से न जानते हों फिर भी उनके अनुभव से हम रास्ते में आने वाली विपरीत परिस्थितियों को दूर कर पाते हैं। विवेकानंद जी की बात करें या ए.पी.जे. अब्दुल्ल कलाम साहब की, ये विभूतियाँ आज भी अनेक लोगों के लिये आदर्श हैं। मेरे लिये भी ये आदर्श एवं प्रेरणा स्रोत हैं। इसके साथ ही मुझे कुछ ऐसी बच्चियों से भी प्रेरणा मिलती है, जिनके साथ हम कुछ शैक्षणिंक कार्यक्रमों के कारण जुङे। आज हम जिन बालिकाओं के बारे में बात करने जा रहे हैं वो भले ही लाखों लोगों के लिये प्रेरणास्रोत न हों किन्तु मेरे लिये एवं उन जैसी ही अन्य दूसरी बालिकाओं के लिये सफल प्रेरक हैं। इंदौर की रश्मि चौरे और रजनी शर्मा ऐसी बालिकाएं हैं जिन्होने, हर विपरीत परिस्थिति में धैर्य के साथ सकारात्मक दृष्टीकोंण लिये आत्मनिर्भर बनने की इच्छा को साकार करने में सफल हुईं हैं।

मित्रों, रश्मि और रजनी के जीवन का सफर इतना आसान नही है क्योंकि ईश्वर ने इन्हे बनाने में थोङी कंजुसी कर दी है। ये बालिकाएं दृष्टीबाधिता के बावजूद  अपनी दृणइच्छा शक्ति (Will Power) के बल पर सफलता के सोपान पर पहला कदम रख चुकी है अर्थात आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो गईं हैं। इनके जीवन का सफर आसान तो बिलकुल भी नही था क्योंकि यदि विज्ञान की माने तो ज्ञानार्जन का 80%  ज्ञान हमें आँखों द्वारा ही होता है। अपनी इस कमी के बावजूद इन बच्चियों ने जहाँ चाह है वहाँ राह है कहावत को चरितार्थ किया है। सोचिये! जहाँ हम आँख पर पट्टी बाँध कर चार कदम भी नही चल पाते वहाँ ये बालिकाएं जीवन के 22-23 वर्षों को पार करते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ रही हैं।

रशमि ने राजनीति शास्त्र से एम.फिल किया है, सपना है प्रोफेसर बनने का किन्तु उसकी एक विचार धारा ये भी है कि अन्य विधाओं की प्रवेश परिक्षा भी देते रहना चाहिये। वे प्रवेश परिक्षाओं हेतु पढाई भी करती रहती है। एम.फिल. के दौरान ही उसका चयन बैंक में हो गया। आज उसकी नियुक्ति इंदौर में युनियन बैंक की मुख्य शाखा में हो गई है। जन्म से ही रशमि को दृष्टीबाधिता की शिकायत थी। जैसे-जैसे बङी हुई तो छोटी बहन को स्कूल जाते देख बहुत रोती। ऐसा नही था कि माता-पिता पढाना नही चाहते थे किन्तु इटारसी जैसी जगह पर जहाँ सुविधाएं कम हों वहाँ दृष्टीबाधितों के लिये पढना तथा आगे बढना, किसी एवरेस्ट पर चढने से कम नही होता। समाज की उदासीनता भी ऐसी परेशानियों को और बढाने का ही काम करती हैं। ऐसे में रश्मि की दादी ने बहुत जागरुकता दिखाई वे कई स्कूल गईं वहाँ वे अध्यापकों से मिन्नत करती कि मेरी पोती को विद्यालय में बैठने दो, आखिरकार उनका प्रयास रंग लाया और एक विद्यालय ने रश्मि को एडमिशन दिया। जहाँ वे मौखिक शिक्षा ग्रहण करने लगी। रश्मि का पढाई के प्रति  आर्कषण देखकर उसके पिता उसे इंदौर में दृष्टीबाधित संस्था  में दाखिला करा दिये। जहाँ उसने ब्रेल लीपी का विधिवत अध्ययन किया। 8वीं के बाद सामान्य बच्चियों के साथ सरकारी स्कूल में पढी तद्पश्चात कॉलेज में उच्च अध्ययन के लिये गई। 9वीं से एम.फिल. तक की शिक्षा सामान्य छात्रों के साथ ही हुई। अध्ययन के दौरान नाटक, वाद-विवाद तथा नृत्य जैसी विधाओं में अनेक पुरस्कार प्राप्त करके स्वयं का एवं संस्थान का गौरव बढाया। परिवार की जागरुकता और रश्मि का हौसला सफल हुआ। असंभव को संभव करते हुए आत्मनिर्भर की चाह का अंकुरण हुआ, जो आज भी रश्मि की सकारात्मक सोच और दृणइच्छाशक्ति से पल्लवित हो रहा है।

रश्मि के बारे में पढते समय आपके मन में ये अवश्य आया होगा कि बैंक में तो रुपये का लेन-देन होता है, वहाँ दृष्टीबाधित लोग कैसे काम करेंगे। मित्रों, आज विज्ञान ने बहुत तरक्कि कर ली है। कोई भी शारीरिक अक्षमता किसी भी कार्य क्षेत्र में बाधा नही है। यदि मन सक्षम और दृणं है तो रास्ते तो विज्ञान ने बना दिये हैं। सच तो ये है कि यदि हम असफल होते हैं तो अपनी मानसिक विकलांगता के कारण। यदि बात करें रशमी की तो उसकी नियुक्ति युनियन बैंक की मुख्य शाखा में हुई है। यहाँ वो सीधे तौर पर बैंक ग्राहंको से नही जुङी है। उसका कार्य़ क्षेत्र बैंक की अन्य शाखाओं के साथ है। जॉज़ 13,14 और 15 जैसे सॉफ्टवेयर के माध्यम से वे अपने कार्य को सुचारु रूप से कर रही है। प्रवेश परिक्षा में पास होने के बाद उसे लखनऊ में बैंक के कार्य संबन्धित ट्रेनिगं दी गई। जहाँ सामान्य बालक-बालिकाओं के साथ रश्मि जैसे ही 35 बच्चे थे, जिनकी नियुक्ति अलग-अलग बैंकों में हुई।  

अब बात करते हैं रजनी की, वह भी बहुत होशियार बालिका है। जब वे 12 वर्ष की थी, तब उसे आई.टी.पी. बिमारी हुई जिसमें रक्त में प्लेटलेट्स कम हो जाती है और शरीर की कमजोर नसों से रक्त बहने लगता है। इस बिमारी का प्रकोप उसके आँखों पर हुआ, आँख के अंदर की रक्तवाहिकाओं के फटने से उसकी आँखों के परदे पर खून जम गया और उसे दिखना बंद हो गया। 
(Idiopathic thrombocytopenic purpura (ITP) is a disorder that can lead to easy or excessive bruising and bleeding. The bleeding results from unusually low levels of platelets — the cells that help your blood clot .Idiopathic thrombocytopenic purpura, which is also called immune thrombocytopenic purpura, affects both children and adults. Children often develop idiopathic thrombocytopenic purpura after a viral infection and usually recover fully without treatment. In adults, however, the disorder is often chronic.  )

सोचिये! इतनी छोटी सी उम्र में जहाँ सब ठीक चल रहा हो वहाँ अचानक सब कुछ अंधकार में डूब जाये। निःसंदेह वो पल उसके एवं उसके परिवार वालों के लिये अत्यधिक कष्टप्रद रहा होगा। परंतु उसकी स्वंय की हिम्मत और परिवार वालों के साथ से उसे नये रास्ते पर आगे बढने का हौसला मिला। उज्जैन में अधिक सुविधा न होने के कारण रजनी के अभिभावक ने उसका दाखिला इंदौर की दृष्टीबाधित संस्था में करा दिया। पढाई में वो लगभग सदैव अव्वल रही और सामान्य बालिकाओं के साथ पढते हुए भी कक्षा में प्रथम आती रही। उसका ये क्रम विद्यालय तक अनवरत चलता रहा। कविता लिखने के साथ-साथ उसने वाद-विवाद, नृत्य तथा निबंध प्रतियोगिताओं में बहुतायत पुरस्कार अर्जित किये हैं। हिन्दी से एम.ए. प्रथम श्रेंणी में पास करने के बाद प्रशासनिक सेवाओं में जाने की तैयारी कर रही है। इसी दौरान उसकी नियुक्ति देवास में राजस्व विभाग में LDC के पद पर हो गई है। जहाँ उसे मेल चेक करना, लेटर टाइप करना जैसे दायित्व सौंपे गये हैं। संस्था में रहते हुए ही रजनी ने टाइपिंग का कोर्स भी कर लिया था। अपनी बिमारी के दर्द को सहते हुए आगे बढने के लिये सदैव तत्पर है। रजनी का मानना है कि,  भले ही मंजिल हो अभी दूर, वो भी मिलेगी एक दिन जरूर। उसके ऐसे ही सकारात्मक विचारों को उसकी कविता (रौशनी का कारवां) में पढा जा सकता है, जिसे हमने अपने ब्लॉग पर लिखा है। नित नई चिजों को सीखना उसकी आदत में है। वर्तमान में रजनी आंध्र बैंक भोपाल में राज्य भाषा अधिकारी के रूप में कार्यरत है। विपरीत परिस्थिति में भी कामयाबी की संभावनाओं को तलाशते हुए, आज रजनी अपने लक्ष्य की ओर बढते हुए कई लगों के लिये प्रेरणास्रोत है। 

मित्रों, ऐसा नही है कि रजनी और रश्मि को कभी नकारात्मक खयाल नही आए किन्तु उन दोनों ने अपने आत्मनिर्भर बनने के सपने को ज्यादातर सकारात्मक खाद से ही सींचा। जिसका सुखद परिणाम आज उन दोनो के सामने है। ये मेरा सौभाग्य है कि हमें इनको पढाने का अवसर प्राप्त हुआ और जीवन में इनसे बहुत कुछ सीखने को भी मिला।  आज भले ही शिक्षा के सोपान को पार करके इन दोनों ने नौकरी के सोपान पर कदम रख लिया हो, परंतु उनकी राह आसान नही है। अभी भी वे समाज में अपने अस्तित्व को स्थापित करने का प्रयास कर रही हैं। हमारे समाज का कर्तव्य बनता है कि हम उनके प्रयासों की प्रशंसा करें और उनको अपना सहयोग दें क्योकि नये वातावरण में सामजस्य बैठाने में थोङा वक्त लगता है। वैसे तो इस प्रकार की परेशानी किसी के साथ भी हो सकती है किन्तु नई जगह पर वाँश रूम जाने या सीट पर वापस आने जैसी छोटी-छोटी मुश्किलों में महिला सहकर्मचारियों का सहयोग इनके लिये सकारात्मक सहारा बन सकता है। समाज का ईमानदारी से किया सहयोग रजनी और रश्मि जैसे अनेक लोगों को आगे बढने के लिये हौसला दे सकता है।  अतः अपना सहयोग दें न की दया, क्योंकि आपका सहयोग सभ्य समाज का संदेश भी देगा।

नोटः-  सभी पाठकों से निवेदन है कि, YouTube पर रजनी की आवाज में उसके मन की बात आप अवश्य सुने। आपके सकारात्मक संदेश भी रजनी एवं रश्मि को हौसला देंगे अतः अपने विचार अवश्य लिखें, हम आपका संदेश उन तक अवश्य पहुँचायेंगे। 
धन्यवाद
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7 comments:

  1. Very well done Rajni and Rashmi. Wish u all happiness and prosperity always. Thanks a lot for this article. Truly inspiring. We always make excuses for small small things. We should learn not to do that.

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  2. गहरे अंधेरे वाली चुनौतियों पर दृड़इच्छा शक्ति की रश्मियों से विजय प्राप्त की जा सकती है रश्मि इस बात का आदर्श उदाहरण है और रजनी ने अपनी इच्छा शक्ति के बल से अमावस वाली रजनी को एवरेस्ट जैसे इरादों पर फतह कर के नामुमकिन कुछ नहीं की रश्मियां बिखेर दी है। इन दोनों और इनके जैसी बालिकाओं को अपने नेक इरादों में कामयाबी मिली है तो इसलिए कि इनके हाथों में अनिता नामक श्वेतछड़ी साथ रही। आप की लगन और जज्बे को मेरा सलाम।

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  3. धन्यवाद कीर्ति राणा जी, आपके मार्गदर्शन के कारण ही आज हम ब्लॉग के माध्यम से इन बच्चियों की सफलता का संदेश अनेक लोगों तक पहुँचा सके हैं।

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  4. Continue your efforts sincerely & ultimately you will reach your goal. God will always help you.

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  5. good job keep it up

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  6. kahte h ki shabd vicharo ko vyakt karte h pr in dono ki prashnsha ke liye hame shabd hi nahi nahi milte h anita dono ko mera khoob ashirwad dena unka ane wala har savera roshan ho

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