आज के परिवेश में लगभग हम सब एक अजीब दुनिया में जीवन यापन कर रहे हैं। भागती दौङती जिंदगी महत्वाकांक्षाओं से इस तरह भरी हुई है जहां छोटी-छोटी बातें भी सूरसा के मुख के समान लगती हैं। ऐसे में कभी-कभी व्यवहारिक बातें भी अव्यवहारिक लगने लगती हैं। जिससे हमारे आचरण में क्रोध रस कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो जाता है।
आज यत्र-तत्र क्रोध का प्रकोप इस कदर बढ गया है कि यदि किसी ने किसी को अंकल कह दिया तो क्रोध आ जाता है। क्रोध भी ऐसा-वैसा नहीं ज्वालामुखी जैसा, हाल में अंकल कहे जाने पर व्यक्ति को इतना खराब लगा कि उसने क्रोधवश अंकल कहने वाले व्यक्ति को मार-मार कर उसकी जान ही ले ली। क्रोध का पारा इतना गरम हो चुका है कि इंसान की जान भस्म हो रही है। कर्मचारी को एडवांस देने से मना करने पर मालिक की कार में आग लगा देना। बात-बात में पागल कहना भी कितना खतरनाक हो सकता है इसकी कल्पना से ही मन सिहर जाता है। 2025 में ही एक भाई ने अपनी बहन को पागल कहने की वजह से मार दिया। ऐसी अनेक घटनाएं तेजी से बढ रही हैं, जहां बात छोटी होती है लेकिन क्रोध इतना खतरनाक रूप ले लेता है जिससे इंसान का जीवन तुच्छ हो जाता है। ऐसी घटनाएं हम सभी के लिए विचलित करने वाली हैं। क्रोध में हम सभी अपना आपा खो देते हैं, क्रोध में की गई प्रतिक्रिया का उग्र परिणाम अति दुःखद होता है। आजकल क्रोध का वृहद रूप मॉब लीचिंग के रूप में दिख रहा है, ये ऐसा जलजला है जो सबकुछ तबाह कर देता है।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, हम सब समझते हैं कि क्रोध अपने लिए एवं दूसरे के लिए भी हानिकारक है फिर भी गुस्से पर कंट्रोल नही कर पाते हैं। सच तो ये है कि, मनुष्य की संवेदनाओं में गुस्सा भी एक आवश्यक तत्व है लेकिन अति तो हर तत्व की बुरी है चाहे वो प्यार का व्यवहार ही क्यों न हो। क्रोध के कई कारण हो सकते हैं, कई बार जीवन में मिली असफलताएं भी गुस्से का कारण बनती हैं और कहीं का गुस्सा कहीं और निकलता है। मन की पिङा को स्पष्ट प्रकट न कर पाना भी क्रोध का कारण हो सकता है। क्रोध का कोई दायरा नहीं होता उसे अपना- पराया, बड़ा- छोटा, घर-बाहर कुछ भी दिखाई नही देता। क्रोध और तूफान एक समान होते हैं, क्योंकि इनके जाने के बाद ही हमें मालूम होता है कि कितना नुकसान हुआ है। क्रोध हमारा ऐसा हुनर है, जिसमें फंसते भी हम हैं, उलझते भी हम हैं, पछताते भी हम हैं और पिछङते भी हम हैं।
गीता में कहा गया है कि,
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति'॥
अर्थातः- क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है जिससे मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।
क्रोध का मुख्य जनक हमारी अपेक्षाएं हैं। मनमर्जी के अनुरूप काम नहीं हुआ तो गुस्सा आ गया। क्रोध की उग्रता नकारात्मक विचार की जनक है। क्रोध के कारण हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, सिरदर्द, नींद न आना, त्वचा और पाचन सम्बन्धी समस्याएं और शरीर की इम्युनिटी कम होने जैसी समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ रही हैं। क्रोध हवा का वह झोंका है जो बुद्धि के दीपक को बुझा देता है। क्रोध तो एक ऐसी स्थिती है जहां, जीभ मन से भी अधिक तेजी से काम करती है।
ये सारस्वत सच है कि क्रोध एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है पर इसका कितना अनुपात सकारात्मक दिशा देगा और कितना नकारात्मक दिशा में ले जायेगा ये हमको समझना होगा। जीवन में हमारी सोच और देखने के नज़रिए पर भी बहुत सारी चीजें निर्भर करतीं हैं । कई बार परेशानी का हल बहुत आसान होता है, लेकिन हम परेशानी में फंसे रहते हैं।
इस दुनिया में असंभव कुछ नहीं है, कहते हैं "मन के हारे हार है मन के जीते जीत" हम यदि दृणसंकल्प करलें की क्रोध को पराजित करना है तो अनेक उपाय हैं। जिससे हम सहज रह सकते हैं। ध्यान और योग से मन को शांत रखने का प्रयास कर सकते हैं। गौतम बुद्ध के अनुसार पांच प्रकार से क्रोध को नियंत्रित कर सकते हैं.. मैत्रि से, करुणा से, मुदिता से, उपेक्षा से एवं कर्मों की भावना से।
धर्म और आध्यात्म के पहलु से विचार करें तो मन को शांत करने एवं क्रोध को दूर करने के लिए भगवान विष्णु के “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप कर सकते हैं। गुस्सा आने पर पानी पीना या गिनती बोलना या फिर गहरी सांसें लेना भी सकारात्मक उपाय है। क्रोध एक तेज़ गति से आने वाली नकारात्मक भावना है, जिससे ध्यान हटाकर भी उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।
स्वामी विवेकानंद जी का कहना था कि, अगर कोई हमारी बुराई करे तो हमें गुस्से से बचना चाहिए और धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि क्रोध तो खौलते पानी के समान है, क्रोधी व्यक्ति भलाई नहीं देख पाता और खौलते पानी में प्रतिबिंब नही दिखता।
कबीर दास जी कहते है----
"क्रोध अगनि घर घर बढ़ी, जल सकल संसार
दीन लीन निज भक्त जो, तिनके निकट उबार"
अर्थात-- क्रोध की अग्नि घर घर में जल रही है और उसमें सारा संसार ही जल रहा है। परंतु जो भक्त परमात्मा का स्मरण कर उसमें लीन रहता है यानि आध्यात्म से भी क्रोध से बचा जा सकता है।
अब हमें सोचना है कि, क्रोध को जिवन में महत्वपूर्ण स्थान देना है या नई सोच के साथ आगे बढना है क्योंकि, “क्रोध मूर्खता से शुरु होता है और पछतावे पर खत्म होता है”। अतः क्रोध में वो सब मत गंवाइये जो आपने शांत रहकर कमाया है। इच्छा पूरी नहीं होती तो क्रोध बढता है और इच्छा पूरी होती है तो लोभ बढता है। इसलिये जीवन की प्रत्येक स्थिति में धैर्य बनाये रखना ही श्रेष्ठता है।
🙏“ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय”🙏
अनिता शर्मा
बहुत अच्छी बात कही है अपने क्रोध सोया का नाश करता हैबहुत अच्छी बात कही है अपने क्रोध सोया का नाश करता है
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteशानदार लेख! मनुष्य के पास निर्णय लेने के साथ ही परस्थिति चाहे जैसी हो नियंत्रण की क्षमता भी विद्यमान है. तो जरूरी है कि उसका इस्तेमाल हम सदैव ही सकारात्मक दिशा में करें. क्रोधकभी भी सृजन में सहयोगी नहीं रहा तो, जो हमें सहूलियत न दे उसको अपने जीवन से परे ही रखना चाहिए! इतने मूल्यवान लेख के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteराजेश पटेल
बहुत सही कहा आपने , धन्यवाद
Deleteजब से मनुष्य ने स्वयं को पहचानने की प्रक्रिया से दूरी बनाई है तब से क्रोध उसके जीवन का अंग बन रहा है स्वयं को पहचानने के लिए तो लोगों के पास समय ही जैसे नहीं है कई बार तो हल्की सी आलोचना भी लोगों को क्रोधित कर देती है बिना की गई आलोचना पर विचार किए ही क्रोध में व्यक्ति न जाने क्या-क्या बोल डालता है
ReplyDeleteसटीक विचार, धन्यवाद
Deleteआज के परिवेश में क्रोध पर आपका यह आलेख बहुत आवश्यक है।
ReplyDeleteअधिकतर लोग इस बात से सहमत होंगे कि क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए किन्तु स्वयं पालन करना कठिन होता है।
जो बात हमें अप्रिय लगे उसे एवाॅइड करना एवं सकारात्मक सोच में परिवर्तित कर देना भी क्रोध को शांत करने का एक उपाय हो सकता है।
सकारात्मक उपाय , धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर विचार, क्रोध को कंट्रोल करने और समझने में बहुत सहायक 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteवर्तमान समय में ऐसे लेख अत्यंत ही आवश्यक हो गए हैं आपके द्वारा सुंदर विचार साझा किए गए आजकल इस प्रकार के लेख बहुत कम पढ़ने को मिलते है यदि मिलते भी हैं तो हम उन्हें पढ़ना ही नहीं चाहते
ReplyDeleteक्रोध के विषय में यदि हम हर बात को अपने ऊपर लेकर सोचें जैसे रीजनिंग के प्रश्न हल किए जाते हैं
जो व्यवहार हमें स्वयं पसंद नहीं है वही व्यवहार हम दूसरे व्यक्तियों के सामने करने से बचें
यदि कोई आपके ऊपर क्रोध में आकर कुछ भी बोल रहा है तो सबसे पहले उसे बोल लेने दे केवल शांति से उसका श्रवण करें तत्पश्चात यदि संभव हो तो उसे शांत भाव से समझाने की चेष्टा करें
कोई भी बात कितनी भी सत्य क्यों ना हो परंतु देशकाल स्थिति देखकर ही उसे परोसा जाए
सटीक एवं सत्य सलाह , धन्यवाद
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