Wednesday, 12 February 2025

अद्भुत सम्मान समारोह

मित्रों, विकास के इस दौर में दृष्टीबाधिता के क्षेत्र में मुश्किलें सूरसा के मुख की तरह हैं, फिर भी अनेक सदस्य अपनी दृष्टीबाधिता को नकारते हुए आज समाज में नयी पहचान बना रहे हैं। राह आसान नही है फिर भी उनका मानना है कि, "ऑधियों को जिद्द है जहाँ बिजली गिराने की हमें भी जिद्द है वहीं आशियां बसाने की" ऐसी ही सोच के साथ आज अनेक दृष्टीदिव्यांग बच्चे सहयोग की उम्मीद लिय़े आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर हैं। कहते हैं, पानी की एक-एक बूंद से सागर बनता है। उसी प्रकार अनेक व्यक्तियों के परस्पर सहयोग से ही मनुष्य का विकास संभव है। सहयोग की इसी भावना से परिपूर्ण अनीता दिव्यांग कल्याण समिति विगत 19 वर्षों से निरंतर दृष्टि दिव्यांगजनों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु प्रयास कर रही है। इसी श्रृंखला में अनीता दिव्यांग कल्याण समिति, इन्दौर के सौजन्य से VOICE FOR BLIND द्वारा दृष्टि दिव्यांगजनों के लिए एक निबंध लेखन प्रतियोगिता तथा सम्मान समारोह का आयोजन 10/02/2025 को माता जीजाबाई शासकीय स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय, इन्दौर परिसर में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वति को माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित करके किया गया। दृष्टि दिव्यांग बालिकाओं द्वारा सुरिली आवाज में सरस्वती वंदना तथा स्वागत गीत गाया गया।

समस्याओं के बीच में भी मन में समाधान का जज़बा लिये कई दृष्टि दिव्यांगजनों ने अपने विचार भेजे। उनके विचारों में स्पष्ट था कि वे विज्ञान की नई टेक्नोलॉजी के साथ इतिहास रचने को तैयार हैं। ऐसे ही विचारों में से निर्णायक मंडल द्वारा दो नाम चयनित किया गया। उज्जैन में जी.एस.टी विभाग में कार्यरत रूबी दूबे एवं इंदौर में बी.ए. प्रथम वर्ष की छात्रा रोशनी अहिरवार को 1100रू.- 1100रू के नगद पुरस्कार एवं प्रमाण पत्र तथा ब्रेल में गीता से पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम में चयनित प्रतिभागियों ने अपने आलेख का प्रस्तुतिकरण भी दिया। आलेख का विषय थाः- दृष्टि दिव्यांगजनों को कार्यक्षेत्र में तथा शैक्षणिंक क्षेत्र में चुनौतियां एवं सम्भावनाएं

कार्यक्रम के सम्मान समारोह में मित्रज्योति फाउंडेशन बैंगलोर की संस्थापक तथा राष्ट्रीय सम्मान से पुरस्कृत डॉ. मधु सिंघल ने मुख्य अतिथि की भूमिका निभाई। डॉ. मधु सिंघल स्वयं दृष्टि दिव्यांग है तथा पिछले 35 वर्षों से दृष्टि दिव्यांग महिलाओं के विकास हेतु कार्य कर रही हैं। उन्होंने विभिन्न कार्यक्षेत्रों में लगभग 5000 दृष्टि दिव्यांग महिलाओं को रोजगार दिलवाने में अपना योगदान दिया है। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने छात्राओं का मार्गदर्शन भी किया तथा समिति द्वारा डॉ. मधु सिंघल को उनके उत्कृष्ट योगदान हेतु सम्मानित भी किया गया।

इस सम्मान समारोह में माता जीजाबाई कॉलेज की पूर्व प्राचार्या डॉ. ऊषा कृष्णन, महाविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. बेला सचदेवा तथा धार उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की व्याख्याता श्रीमती तनुजा चक्रवर्ती को दृष्टि दिव्यांगजनों हेतु किए गए उनके योगदान हेतु समिति द्वारा सम्मानित किया गया तथा छात्राओं द्वारा उनका आभार भी व्यक्त किया गया। समिति द्वारा सभी सम्मानित सदस्यों को सम्मान पत्र के साथ श्रीमद्भगवत गीता की पुस्तक भेंट की गई।

इंदौर में दृष्टिदिव्यांग बालिकों की महाविद्यालय शिक्षा का प्रयास बेला सचदेवा द्वारा ही किया गया था। उनके प्रयास का की फल है कि आज अनेक बालिकाएं उच्च शिक्षा पाकर आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर हैं। विशेषतः बैंक में बहुत बालिकाएं कार्यरत हैं।

कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में गुरूकुल अकादमी की प्राचार्या श्रीमती सविता ठाकुर, महाविद्यालय की प्राध्यापक डॉ. अरुणा कुसमाकर, समाजसेवी एवं समिति सदस्य श्रीमती अनीता देसाई तथा समाजसेवी एवं समिति सदस्य श्रीमती प्रज्ञा शावरिकर ने सम्मिलित होकर कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई। अथितियों ने अपने उद्बोधन में बच्चियों का उत्साह वर्धन किया तथा समिति के कार्यों की सराहना की एवं भविष्य में भी सहयोग का भरोसा दिया। जय शंकर प्रसाद जी कहते हैं कि,
औरों को हँसते देखो मनु
हँसो और सुख पाओ
अपने सुख को विस्तृत करलो
सबको सुखी बनाओ 

इस कार्यक्रम के महत्वपूर्ण सम्मान से पहले याद करिये वो स्वर्णिम पल जब शिक्षक और अभिभावक अच्छी पढाई, उत्कृष्ट खेल प्रदर्शन या अच्छे व्यवहार के लिए शाबासी देते थे और ‘Keep it up’ कहकर हौसला बढाते थे। ये शब्द बाल सुलभ मन में उत्साह का संचार कर देते थे। कार्य को और बेहतर करने की प्रेरणा देते थे। इसी भावना को आगे बढाते हुए समिति द्वारा सफल पहल की शुरुवात की गई इसके तहत उन बालिकाओं को सम्मानित किया गया जो हमारी दृष्टिदिव्यांग बालिकाओं के लिये परिक्षा के समय उनकी कलम अर्थात राइटर बनकर सहयोग दे रहीं हैं। आज जहां युवा रील बनाने में , मोबाइल में व्यस्त है ऐसे में ये बालिकाएं अपना अमुल्य समय समाज सेवा में प्रदान कर रही हैं। सेवा के साथ-साथ अपनी पढाई पर भी ध्यान दे रहीं हैं। जहां खुद की परिक्षा में 3 घंटे लिखती हैं पर नियमानुसार दृष्टिदिव्यांग छात्राओं के लिये 4 घंटे का समय देती हैं। ऐसी ही 19 बालिकाओं को कार्यक्रम में प्रमाणपत्र तथा मेडल द्वारा सम्मानित किया गया। 
बालिकाओं के नाम इस प्रकार है—प्रियंका, सेजल, तनिषा, हर्षिता, योगिता, शीतल, अमिशा, पायल, कल्यांणी,आरती, तनिष्का, लकी, माही, निकिता, रूपा, आंचल, सरोज, कमल एवं खुशी इसमें से तनिशा 28 बार, हर्षिता 25 बार, तनिष्का 22 बार एवं योगिता 20 बार राइटर बन चुकी है। 10-12 बार भी कई बच्चियां अपना योगदान दे चुकी हैं। बीटेक की छात्रा अरुणिमा जोशी ने भी कार्यक्रम को सफल बनाने में शिद्दत से सहयोग दिया। स्वाभिमान आहत किये बिना सहायता करना उपरोक्त बच्चियों की संस्कृति है। पूरे कार्यक्रम में ये बच्चियां खुश होकर हर कार्य में सहयोग दे रहीं थीं। इन प्यारी बच्चियों को अनंत आशिर्वाद, रहीम दास जी का दोहा याद आ रहा है----
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥

स्वामी विवेकनंद जी ने कहा है कि-
"हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें।" हमें विश्वास है कि, इन बच्चियों से प्रेरित होकर भविष्य में और भी बच्चे सहयोग की मशाल को प्रज्वलित करेंगे।

कार्यक्रम का मंच संचालन डॉ. मनीष चौधरी द्वारा किया गया। डॉ. मनीष चौधरी राजनिती शास्त्र के प्रोफेसर एवं वक्ता हैं। दृष्टिदिव्यांगता को इन्होने कभी भी बाधा नहीं माना अपने प्रयासों से निरंतर आगे बढते रहे। समिति द्वारा आपको भी उत्कृष्ट मंच संचालन के लिए ब्रेल गीता एवं सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का समापन समिति अध्यक्ष श्रीमती अनीता शर्मा द्वारा धन्यवाद उद्बोधन से किया गया।

अंततः सभी पाठकों से निवेदन है कि, सहयोग देने वाली बालिकाओं का हौसला बढाने हेतु अपना संदेश ब्लॉग पर लिखें। मित्रों, प्रोत्साहन और प्रशंसा के भाव को शब्दो की अभिव्यक्ति दें क्योकि ये भाव एक मिठास की तरह है जो मन में मधुरता और कार्य में सकारात्मक गति प्रदान करते हैं। प्रोत्साहन और प्रशंसा की खुशबु को निश्छल मन से प्रसारित करें क्योंकि सफलता के रास्ते में ये अचूक औषधी है। कुछ पंक्तियों के साथ हम अपनी कलम को विराम देते हैं....

गौतम बुद्ध ने कहा है कि , किसी और के लिये दिया जलाकर आप अपने रास्ते का भी अंधेरा दूर करते हैं।

Kindness is a language which deaf can hear and blind can see


धन्यवाद
जय हिंद वंदे भारत

10 फरवरी 2025 के सफल कार्यक्रम को प्रजातंत्र,  
इंदौर समाचार  एवं राज
समाचार पत्र में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया। 











 







Sunday, 2 February 2025

मां सरस्वती को नमन

 




या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां सरस्वती को नमन करते हैं और वंदन करते हैं। सभी पाठकों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं


🙏

Tuesday, 28 January 2025

क्रोध का मुख्य जनक हमारी अपेक्षाएं

आज के परिवेश में लगभग हम सब एक अजीब दुनिया में जीवन यापन कर रहे हैं। भागती दौङती जिंदगी महत्वाकांक्षाओं से इस तरह भरी हुई है जहां छोटी-छोटी बातें भी सूरसा के मुख के समान लगती हैं। ऐसे में कभी-कभी व्यवहारिक बातें भी अव्यवहारिक लगने लगती हैं। जिससे हमारे आचरण में क्रोध रस कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो जाता है।

आज यत्र-तत्र क्रोध का प्रकोप इस कदर बढ गया है कि यदि किसी ने किसी को अंकल कह दिया तो क्रोध आ जाता है। क्रोध भी ऐसा-वैसा नहीं ज्वालामुखी जैसा, हाल में अंकल कहे जाने पर व्यक्ति को इतना खराब लगा कि उसने क्रोधवश अंकल कहने वाले व्यक्ति को मार-मार कर उसकी जान ही ले ली। क्रोध का पारा इतना गरम हो चुका है कि इंसान की जान भस्म हो रही है। कर्मचारी को एडवांस देने से मना करने पर मालिक की कार में आग लगा देना। बात-बात में पागल कहना भी कितना खतरनाक हो सकता है इसकी कल्पना से ही मन सिहर जाता है। 2025 में ही एक भाई ने अपनी बहन को पागल कहने की वजह से मार दिया। ऐसी अनेक घटनाएं तेजी से बढ रही हैं, जहां बात छोटी होती है लेकिन क्रोध इतना खतरनाक रूप ले लेता है जिससे इंसान का जीवन तुच्छ हो जाता है। ऐसी घटनाएं हम सभी के लिए विचलित करने वाली हैं। क्रोध में हम सभी अपना आपा खो देते हैं, क्रोध में की गई प्रतिक्रिया का उग्र परिणाम अति दुःखद होता है। आजकल क्रोध का वृहद रूप मॉब लीचिंग के रूप में दिख रहा है, ये ऐसा जलजला है जो सबकुछ तबाह कर देता है।

ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, हम सब समझते हैं कि क्रोध अपने लिए एवं दूसरे के लिए भी हानिकारक है फिर भी गुस्से पर कंट्रोल नही कर पाते हैं। सच तो ये है कि, मनुष्य की संवेदनाओं में गुस्सा भी एक आवश्यक तत्व है लेकिन अति तो हर तत्व की बुरी है चाहे वो प्यार का व्यवहार ही क्यों न हो। क्रोध के कई कारण हो सकते हैं, कई बार जीवन में मिली असफलताएं भी गुस्से का कारण बनती हैं और कहीं का गुस्सा कहीं और निकलता है। मन की पिङा को स्पष्ट प्रकट न कर पाना भी क्रोध का कारण हो सकता है। क्रोध का कोई दायरा नहीं होता उसे अपना- पराया, बड़ा- छोटा, घर-बाहर कुछ भी दिखाई नही देता। क्रोध और तूफान एक समान होते हैं, क्योंकि इनके जाने के बाद ही हमें मालूम होता है कि कितना नुकसान हुआ है। क्रोध हमारा ऐसा हुनर है, जिसमें फंसते भी हम हैं, उलझते भी हम हैं, पछताते भी हम हैं और पिछङते भी हम हैं।

गीता में कहा गया है कि,
क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति'॥
अर्थातः- क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है जिससे स्मृति भ्रमित हो जाती है। स्मृति-भ्रम हो जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है जिससे मनुष्य खुद अपना ही का नाश कर बैठता है।

क्रोध का मुख्य जनक हमारी अपेक्षाएं हैं। मनमर्जी के अनुरूप काम नहीं हुआ तो गुस्सा आ गया। क्रोध की उग्रता नकारात्मक विचार की जनक है। क्रोध के कारण हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट अटैक, सिरदर्द, नींद न आना, त्वचा और पाचन सम्बन्धी समस्याएं और शरीर की इम्युनिटी कम होने जैसी समस्याएं दिन प्रतिदिन बढ रही हैं। क्रोध हवा का वह झोंका है जो बुद्धि के दीपक को बुझा देता है। क्रोध तो एक ऐसी स्थिती है जहां, जीभ मन से भी अधिक तेजी से काम करती है।

ये सारस्वत सच है कि क्रोध एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है पर इसका कितना अनुपात सकारात्मक दिशा देगा और कितना नकारात्मक दिशा में ले जायेगा ये हमको समझना होगा। जीवन में हमारी सोच और देखने के नज़रिए पर भी बहुत सारी चीजें निर्भर करतीं हैं । कई बार परेशानी का हल बहुत आसान होता है, लेकिन हम परेशानी में फंसे रहते हैं।

इस दुनिया में असंभव कुछ नहीं है, कहते हैं "मन के हारे हार है मन के जीते जीत"  हम यदि दृणसंकल्प करलें की क्रोध को पराजित करना है तो अनेक उपाय हैं। जिससे हम सहज रह सकते हैं। ध्यान और योग से मन को शांत रखने का प्रयास कर सकते हैं। गौतम बुद्ध के अनुसार पांच प्रकार से क्रोध को नियंत्रित कर सकते हैं.. मैत्रि से, करुणा से, मुदिता से, उपेक्षा से एवं कर्मों की भावना से।

धर्म और आध्यात्म के पहलु से विचार करें तो मन को शांत करने एवं क्रोध को दूर करने के लिए भगवान विष्णु के “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप कर सकते हैं। गुस्सा आने पर पानी पीना या गिनती बोलना या फिर गहरी सांसें लेना भी सकारात्मक उपाय है। क्रोध एक तेज़ गति से आने वाली नकारात्मक भावना है, जिससे ध्यान हटाकर भी उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है।

स्वामी विवेकानंद जी का कहना था कि, अगर कोई हमारी बुराई करे तो हमें गुस्से से बचना चाहिए और धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि क्रोध तो खौलते पानी के समान है, क्रोधी व्यक्ति भलाई नहीं देख पाता और खौलते पानी में प्रतिबिंब नही दिखता।

कबीर दास जी कहते है----
"क्रोध अगनि घर घर बढ़ी, जल सकल संसार
दीन लीन निज भक्त जो, तिनके निकट उबार"

अर्थात-- क्रोध की अग्नि घर घर में जल रही है और उसमें सारा संसार ही जल रहा है। परंतु जो भक्त परमात्मा का स्मरण कर उसमें लीन रहता है यानि आध्यात्म से भी क्रोध से बचा जा सकता है।

अब हमें सोचना है कि, क्रोध को जिवन में महत्वपूर्ण स्थान देना है या नई सोच के साथ आगे बढना है क्योंकि, “क्रोध मूर्खता से शुरु होता है और पछतावे पर खत्म होता है”। अतः क्रोध में वो सब मत गंवाइये जो आपने शांत रहकर कमाया है। इच्छा पूरी नहीं होती तो क्रोध बढता है और इच्छा पूरी होती है तो लोभ बढता है। इसलिये जीवन की प्रत्येक स्थिति में धैर्य बनाये रखना ही श्रेष्ठता है।


🙏“ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय”🙏

अनिता शर्मा

 


















Saturday, 25 January 2025

76 वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

 

लोकतंत्र का  पावन पर्व हमारे गौरव, त्याग और बलिदान का प्रतीक है।  राष्ट्रीय भावना का जिवंत अनुभव कराने वाले अनुपम पर्व, गंणतंत्र दिवस का हम सब मिलकर हर्षोउल्लास के साथ वंदन करते हैं। लोकतंत्र को साकार करने में स्वतंत्रता के महान व्यक्तित्व को सहसादर नमन करते हैं। विविघता में एकता, समता एवं सामंजस्य की अनूठी मिसाल लिए 26 जनवरी हम सबके लिए उच्चतम आदर्श का पल है।

आज संविधान के 75 वर्ष पूर्ण होने पर ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, संविधान ने राष्ट्र की विरासत को बहुत खूबसूरती से संजोया है। आज हम सब ये प्रण करें कि, भाषावाद, प्रांतवाद और संप्रदायवाद से निकलकर वशुधैव कुटुम्बकम्, सर्वेभवन्तु सुखिन: एवं वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिता: जैसे आदर्शों को आत्मसात करने का प्रयास करेंगे। इसी मंगलकामना के साथ सभी पाठकों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 

                                            जय हिंद वंदे मातरम् 

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Monday, 13 January 2025

मकर संक्राति की शुभकामनाएं

 


आसमान में सफलता की पंतग उङती रहे, रिश्तों में तिल गुढ की मिठास लिए प्यार और सम्मान बना रहे, मकर संक्रांति का पर्व हर्षोल्लास से मनता रहे, इसी मंगल कामना के साथ सबको मकर संक्राति की हार्दिक शुभकामनाए 

Friday, 10 January 2025

गर्व करो हम हिंदु हैं (स्वामी विवेकानंद जी की जयंति पर विशेष)




सम्पूर्ण ब्रहमांड में हिंदुत्व का परचम लहराने वाले स्वामी विवेकानंद जी की जयंति पर उनका नमन करते हैं, वंदन करते हैं। गर्व से कहो हम हिंदु का जयकार लगाने वाले हम सबके प्रेरणास्रोत यशस्वी स्वामी विवेकानंद जी ने अपने आचार-विचार, व्यवहार एवं उपदेशों से संपूर्ण विश्व को हिंदु धर्म के प्रति नतमस्तक कराया है। आपने अपने उद्बोधन में कहा है कि,

“मुझे उस धर्म से संबन्धित होने का गौरव प्राप्त है, जिसने संसार को सहिषूणता और सर्वस्वीकृति का पाठ पढाया है। गर्व है उस धर्म पर जिसकी पवित्र भाषा संस्कृत में अंग्रेजी के शब्द एक्सक्लूजन का अनुवाद ही नही हो सकता।“

विभिन्न स्रोतों से निकलकर जिस तरह नदियां अंततः समुंद्र में मिलती हैं। उसी तरह हिंदु धर्म समुंद्र की तरह विशाल है जिसमें सभी समाहित हैं। अमेरिका में अपनी एक सभा में स्वामी जी ने एक कहानी सुनाकर हिंदु धर्म की विशेषता बताई थी, वो कहानी इस प्रकार है......

एक कूंए में एक मेंढक जन्म से रहता था। वह जल के क्षुद्र जंतुओं और किङों को खाकर मोटा तगङा हो गया था। एक दिन समुंद्र से एक मेंढक उधर आया और कूंए में गिर गया। कूपमंडुप मेंढक ने पूछा तुम कहां से आये हो! दूसरे ने कहा मैं समुंद्र से आया हूं। कूपमंडुप मेंढक ने पूछा समुंद्र कितना बङा है और इतराते हुए एक छलांग लगा ली कूंए में। दूसरे मेंढक ने कहा मित्र, तुम संमुद्र की तुलना कूंए से कैसे कर सकते हो! कूपमंडुप मेंढक चिढकर बोला जा जा मेरे कुएं से बङा समुंद्र हो ही नहीं सकता। कूपमंडुप मेंढक की तरह ही अनेक धर्मावलंबी संकीर्ण भाव की कलह के कारण यही सोचते हैं कि उनका धर्म सबसे बङा है।

परंतु सच तो ये है कि, हिंदु धर्म जिसने संसार के सभी धर्मों और देशों के उत्पिङित और निराश्रित लोगों को अपने यहां आश्रय देता है। हिंदु धर्म तो वो है जिसने इसराइलियों के अवशेषों को अपने में सुरक्षित रखा है। हिंदु धर्म पर गर्व है उसने महान जोरोस्त्रियन राष्ट्र को आश्रय दी और आज भी पालन कर रहा है। गीता में कहा गया है कि, विभिन्न-विभिन्न रूची के अनुसार , विभिन्न कुटिल एवं सरल मार्ग से चलने वाले लोग सब आकर मुझमें यानि हिंदु धर्म में ही शरण लेते हैं।

स्वामी जी अपनी बात जिस शालिनता से कहते थे, उससे शायद ही कोई रुष्ट होता था। स्वामी जी सभा में गीता को प्रचारित प्रसारित करते हुए कहते हैं कि, आज की यह सभा संसार की सर्वश्रेष्ठ सभाओं में से एक है, गीता में कही बात का संकेत है। गीता में  कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि, हे अर्जुन! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूं। क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। विश्व की धरा पर सबसे प्राचीन और समभाव का प्रतीक हिंदु धर्म है।

ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, स्वामी जी द्वारा विश्व पटल पर हिंदु धर्म की अलौकिक समिक्षा हम सबको गौरवांवित करती है। शांति की पताका लिए हिंदु धर्म शौर्य का प्रतीक है। पुरषोत्म राम का त्याग, कृष्ण की लिलाओं का सजिव वर्णन है हिंदु घर्म। सूर, कबीर, मीरा रैदास की मधुर वाणी का संगीत है हिंदु धर्म। अतिथि देवो भवः का संस्कार है हिंदु घर्म। इसी स्वाभिमान से भरे भावों में हम अपनी कलम को विराम देते हैं.. हिंदु धर्म के उज्जवल प्रकाश में रोम-रोम स्वाभिमान से कहता है,, गर्व हमें हम हिंदु हैं

जय हिंद वंदे मातरम्

जय हिंदु धर्म

Wednesday, 8 January 2025

आज के परिदृश्य में ब्रेल की प्रासंगिकता (वाद-विवाद)

नमस्कार साथियों,

महामना दृष्टिबाधितों के मसीहा सर रॉबर्ट लुइ ब्रेल जी के 216 में जयंती के पावन अवसर पर अनीता दिव्यांग कल्याण समिति के सौजन्य से वॉइस फॉर ब्लाइंड समूह द्वारा दिनांक 4 जनवरी 2025 को 5:00 बजे शाम को ऑनलाइन गूगल मीट के माध्यम से जयंती समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर दृष्टिबाधित वर्ग के व्यक्तियों हेतु वाद विवाद प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसका विषय था..
(आज के परिदृश्य में ब्रेल की प्रासंगिकता)

धीरे धीरे ही सही.. पर आगे बढना जरूरी है,
कमियां ख्वाबों की बेढियां नहीं.. खुद को बेहतर बनाना जरूरी है।


उपरोक्त ज़ज्बे के साथ हमारे दृष्टिबाधित साथी निरंतर आगे बढ रहे हैं। 4 जनवरी 2025 को उपरोक्त विषय पर कई प्रबुद्ध जनों ने अपने-अपने विचार रखें तथा कई विद्यार्थियों एवं शिक्षकों ने इस पर वाद विवाद प्रस्तुत किया जो बेहद सराहनीय एवं प्रशंसनीय रहा। कार्यक्रम के दौरान अनीता शर्मा द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया गया तथा इस कार्यक्रम के समायोजन के लिए श्री मनोज कुमार राठौर प्रोफेसर सीहोर द्वारा कार्यक्रम का कुशल समायोजन एवं संचालन किया गया।

इस दौरान कार्यक्रम में इंदौर ,भोपाल ,कर्नाटक, गुजरात, दरभंगा, बिहार,उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली जैसे कई बड़े-बड़े शहरों से दृष्टिबाधित समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने भागीदारी की और ब्रेल के संदर्भ में कई उपयुक्त सुझाव एवं जानकारियां प्रस्तुत की। ब्रेल की प्रासंगिकता के दौरान कई महत्वपूर्णसुझाव भी प्राप्त हुए हैं, जिन पर यदि सरकार या समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा विचार किया जाए तो निश्चित रूप से ब्रेल जो की दृष्टि बाधित व्यक्ति के जीवन का मूल आधार है वह और अधिक उपयोगी एवं सशक्त बन सकती है। कार्यक्रम में इंदौर से फिजियोथैरिपिस्ट महेन्द्र सिंह जी ने ब्रेल की उपयोगिता का अनूठा विवरण दिया उन्होने अपनी धर्म पत्नी जो दृष्टी सक्षम हैं उनको भी ब्रेल सीखा दी। जिससे उनको उनके प्रोफेशन में कार्य और सुगम हो गया।

कार्यक्रम के संचालन में कल्याण सिंह सहायक राजभाषा अधिकारी एनटीपीसी रिहंद द्वारा भी महत्वपूर्ण योगदान दिया गया एवं उन्होंने अपनी कविता प्रस्तुत कर महा मानव लुई ब्रेल के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की। इस अवसर पर सुश्री रूबी दुबे द्वारा भी लुई ब्रेल जी को श्रद्धांजलि प्रस्तुत करते हुए एक कविता प्रस्तुत की गई। इस अवसर पर सबसे छोटी एवं नन्ही परी पीहू सक्सेना द्वारा अंग्रेजी में एक कविता प्रस्तुत की गई जो निश्चित रूप से बेहद सराहनीय एवं प्रशंसनीय रही। सभी ने पीहू की सराहना की, कार्यक्रम में दो ऐसे व्यक्तियों को ब्रेल पढ़ने एवं सीखने के लिए प्रोत्साहित किया गया जिसमें श्री लखन लाल जी देवास से ब्रेल सीखने के लिए अति उत्साहित रहे। कार्यक्रम में उपस्थित रूबी दुबे ब्रेल सिखाने में विषेश दक्षता रखती हैं एवं लगभग 150 दृष्टीसक्षम शिक्षकाओं को ब्रेल सिखा चुकी हैं। रुबी बचपन से दृष्टिबाधित है और वर्तमान में जी एस टी विभाग में कार्यरत हैं।
कुछ सकारात्मक पंक्तियों से अपनी कलम को विराम देते हैं..

मुश्किलों की बारिश है, तो मुस्कुराती धूप भी खिलेगी।
इस फिसलन भरी राहों से निकल, हस्ती और भी निखरेगी।


पक्ष एवं विपक्ष में चयनित प्रतिभागी सुमित और अतुल भारत के भविष्य हैं। दसवीं कक्षा में अध्ययन कर रहे ये बच्चे अपनी शिक्षा के प्रति बहुत जागरुक और होशियार हैं। विषय से संबन्धित उनके विचार आप सब निचे दिये विडियो के माध्यम से सुन सकते हैं।

पक्ष- में प्रथम पुरस्कार सुमित एवं
द्रुतिय- पुरस्कार रूबी दुबे
विपक्ष- में प्रथम पुरस्कार अतुल आजमगढ
पुरस्कार राशी प्रथम 700 रूपये एवं
द्रुतिय 500रूपये

अनिता दिव्यांग कल्याण समिति द्वारा गूगल पे के माध्यम से पुरस्कृत राशी प्रदान की गई। पुरस्कृत साथियों को बधाई और उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं। वाद विवाद में सहभागी सभी दृष्टीदिव्यांग साथियों का आभार 🙏

दिए गये लिंक की माध्यम से ब्रेल लीपि एवं लुई ब्रेल जी के बारे में जानकारी ले सकते हैं..

धन्यवाद
अनिता शर्मा
अध्यक्ष
अनिता दिव्यांग कल्याण समिति
Mail ID.  voiceforblind@gmail.com





Tuesday, 31 December 2024

Welcome 2025 (Happy New Year)

दिवार पर लगा कलेंडर बदल गया , नये कैलेंडर ने  शुभकामनाओं के साथ दिवार पर जगह बना ली। 2025 का मुस्करा कर करो स्वागत । सुख-दुख की बातें भी गुनगुनाने लगी हैं, छोङो कल की बातें, कल की बात पुरानी नये दौर में लिखेंगे मिलकर नई कहानी। सकारात्मक सोच के साथ बढते चलो नई आशाएं नई संभावनाएं नवीन ऊर्जा के साथ स्वागत को तैयार हैं। तारीखों के बदलते ही जो यादें या डर विकास की राह में बाधा पहुँचाए उन्हे अपनी मेमोरीकार्ड से डीलिट कर देना चाहिए।खाली हुए स्पेस में सकारात्मक विचारों को सेव(Save) कर लेना चाहिए। क्या खोया क्या पाया इसका हिसाब क्युं करना? नई तारिखें अच्छा ही करेंगी इस आशा से कुछ अपनी सुनो, कुछ अपनो की सुनो जो सही लगे उस राह पर बढ चलो। एक नया सवेरा मंगल धुन बजाने लगा है सबका का जीवन शुभ और मंगलमय हो। हँसो और हँसाओ जिंदगी की किताब में तो हर तरह के पन्ने हैं कहीं मुशकिलों का सामना लिखा है तो कहीं अपनों का सहारा। सकारात्मक सोच और अपने इष्ट पर भरोसा रखते हुए पुरे उत्साह से नये साल का जश्न मनाओ।

सभी पाठकों को कुछ सकारात्मक पंक्तियों के साथ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 
जिंदगी एक संगीत है  गुनगुनाना जरूरी है। माना  सफलता का फल कभी कभी नही मिलता लेकिन कोशिश का बीज बोना भी जरूरी है। खुशियों और मुस्कुराहटों से जिंदगी के पल सजाना जरूरी है। नए साल के नये पन्नो पर  सफलता की संभावनाओं के लिए प्रयास करना भी जरूरी है। 

Happy New Year 

लिंक पर क्लिक करके संदेशों को पढ सकते हैं..








Tuesday, 24 December 2024

भारत रत्न अटल जी के शताब्दी वर्ष पर अभिनन्दन

भारत रत्न  अटल बिहारी वाजपेयी जी को सौवें जन्मदिन पर वंदन करते हैं और नमन करते हैं। अटल जी का जीवन एक ऐसी सकारात्मक किताब है ,जिसको आत्मसात करने से यथार्थ जीवन को सुगम बना सकते हैं। बाधाओं के बावजूद निरंतर गतिमान जीवन शैली के धनी अटल जी की कविताएं प्रेरणास्रोत हैं। प्राथमिक शिक्षा से लेकर राजनीति के शिखर तक आपने अपनी अद्भुत यात्रा में अनेक अविस्मरणिय कार्य किये हैं। विश्व पटल पर विवाद शुन्य व्यक्तित्व के धनी अटल जी से मर्यादा पूर्ण वार्तालाप करने का गुंण सिखा जा सकता है। ईश्वर जीवन में इतनी ऊँचाई न देना कि अपनो को गले भी न लगा सकुं ऐसी उदारता के प्रतीक थे अटल जी। अपने राजनीति सफर में आपने अनेक अभूतपूर्व और असंभव कार्य किये जिसे स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। अभिनंदन करते हुए अटल जी की  लिखी प्रसिद्ध पंक्ति हार नही मानुगा रार नही ठानुंगा को जीवन में आत्मसात करने का प्रयास करते हुए कलम को विराम देते हैं।

अटल जी के व्यक्तित्व को विस्तार से जानने के लिए दिये गये लिंक पर क्लिक करें ..


संसदिय गरिमा को आत्मसात करने वाले, आदरणीय अटल जी

जनजन के प्रिय नेता संवेदनशील कवि अटल जी


जय हिंद वंदे मातरम् 

Tuesday, 19 November 2024

शुभं जन्मदिनम्‌


मम जन्मदिने अहं ईश्वरस्य सान्निध्यस्य,
 तस्य सामर्थ्यस्य, तस्य उद्देश्यस्य च धन्यवादं ददामि।
 शुभं जन्मदिनम्‌

मित्रों, आज मेरे जीवन के साठ वर्ष कुछ खट्टी-मीठी योदों के साथ पूर्ण हो गये। कल जो वर्तमान था आज अतीत बन गया है। बचपन, यौवन जीवन की आपाधापी में गुजरे जमाने का हिस्सा बन गया। कभी खुशी-कभी गम का तराना, वर्तमान में जियो इसी सोच में गुनगुनाते बीत गया।आज नई जिम्मेदारियों के साथ गरिमामय शब्द वरिष्ठ नागरिक की श्रेंणी में शामिल हो गये।
आज मन किया लिखुं बिते साठ वर्षों में जीवन ने क्या खोया क्या पाया.. कुछ दिल का दिल में रह गया, कुछ बिन मांगे मिल गया। 

पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर वर्तमान जन्म अपना भाग्य लेकर आया। पिता को व्यपार में तरक्की हुई तो उनकी लाडली बेटी बन गये। माता-पिता की वजह से मिले सभी रिश्तों (भाई-बहन) संग बेपरवाह बचपन खुशियों संग उङान भरता रहा। कहते हैं, वक्त तो दिन-रात में बंटा हुआ है। सच ही तो है जीवन में खुशी दिन है जो कब खत्म हो जाती है पता नही चलती। वहीं गम वो रात है, जिसके बीतने का इंतजार बहुत लम्बा होता है। असमय पिता का ईश्वर के श्री चरणों में चले जाने से कब अल्हङ बचपन छोङ, बङे हो गये पता ही नहीं चला। परंतु 12-13 वर्ष की उम्र से ही विवेकानंद जी को पढने और सामाजिक सेवा से जुङने की वजह से यथार्थ में जीना और सकारात्मक सोच ने जीवन को आसान बनाने में सहयोग दिया। मां से प्राप्त शिक्षा से कभी भी अर्थ (धन) को महत्व नहीं दिये। खुशी का सरोकार भौतिक संम्पदा से नही है ये पाठ आज भी याद है। मेरा मानना है कि, परिवार साथ हो, सब स्वस्थ रहें, बच्चे अपने-अपने जीवन में खुश और स्वस्थ रहें, यही सबसे बङी संम्पदा है।

ज़िन्दगी तो एक ढलती शाम की तरह है, जिसमें कहीं उथल-पुथल है, तो कहीं थोड़ा आराम भी।

जीवन के अगले अध्याय में परिणय सूत्र में बंघने का पल आया।भाईयों के प्यार ने  पिता की कमी का अहसास होने नहीं दिया। जन्म के बाद से पहली बार धूम-धाम से  जन्मदिन मना तद्पश्चात वरमाला से विवाह का कार्यक्रम शुरु हुआ। दरअसल हमने मां से शिकायत की थी कि भाई का जन्मदिन मनाती हैं आप, बेटियों के साथ भेदभाव क्यों करती हैं। उनका वादा था कि इसबार जरूर मनायेंगे तुम्हारा जन्मदिन। ये संयोग ही रहा कि ईश्वर ने उनको वादा पुरा करने का शुभअवसर दे दिया। हिंदी महिने के अनुसार 21 नवम्बर को वही जन्मतिथी पङ गई जब शादी की तारिख पंडितों द्वारा निकली। हर्ष और उल्लास के साथ जिन्दगी नई दिशा में चल पङी.. 
ये लोग नया परिवार ये भी हमारे पूर्व कर्मो के आधार पर बहुत अच्छा मिला। ससूर के रूप में पिता मिले जिन्होने अपने जीवन परयंत मेरी मां को दिये वादे को निभाया। सास के रूप में मां मिली, जिन्होने बिना किसी उलहाने के घर गृहस्थी सिखाई। नये परिवार के अन्य सदस्यों का भी प्यार और साथ मिला। नौकरी की वजह से बाहर रहने से सासु मां का सानिध्य ज्यादा रहा। जीवन के हरपल सुख-दुख में साथ देने वाले साथी का क्या कहना.. सामाजिक बुराई दहेज के खिलाफ, लङकियों को भी सम्मान से जीने के लिए आर्थिक सक्षम होने की सोच रखने वाले, पत्नी के आने के बाद भी घर में खाना बनाने में या अन्य कार्यों में भी सहयोग करने में कोई संकोच नहीं करते। उनके इसी व्यवहार के कारण आसपास के कई लोग कहते थे कि आप लोगों की लव-मैरिज हुई है क्या। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि अब तक का जीवन उनके साथ बहुत अच्छा बिता। ऐसा नही है कि कभी बहस या झगङा नही हुआ पर आज जिस मुकाम पर हैं वहां सोचते हैं तो लगता है, जो किया, कहा, माना उसमें भला-बुरा जिंदगी में अनुभव की कमी ही रही। वरना सच तो ये है कि मिठे के साथ नमकीन भी जरूरी है। लोकिन नमकीन की अधिकता जीवन को कसैला भी बना सकती है, इसका बैलेंस होना भी जरूरी है। धूप-छांव की बराबर मात्रा से ही तो जीवन पल्वित होता है। 

खुश रहकर गुजारो तो मस्त है जिंदगी,
दुखी रहकर गुजारो तो त्रस्त है जिंदगी,
मिलती है एकबार,  प्यार से बिताओ जिंदगी।। 

जिंदगी आगे बढी घर में नन्ही परी का आगमन हुआ। जीवन उसमें ही सिमट गया। खुशियां शुक्ल पक्ष की चंद्रमा की तरह बढती गई। कुछ समय बाद प्यारा सा बेटा भी आ गया। बच्चों संग बच्चों की दुनिया में खेलते कूदते दिन-रात पलक झपकते बीत गये। मेरी सोच है कि, बच्चों के साथ खेलना, रहना हमारे बचपन को वापस ला देता है और मां बनने की खुशी सोने में सुहागा है। समय को ईश्वर का वरदान मिल गया। बच्चे बङे हो गये जिम्मेदारी का अहसास भी बढ गया, आखिर बच्चों के भविष्य का सवाल था। हम थोङा प्रयास किये पर बच्चे ज्यादा प्रयास किये और प्रथम प्रयास में ही बेटी सीए बेटा डॉ. बन गया। उनकी कामयाबी से मन गर्व से प्रफुलित हो गया। कामयाबी ने उङान भरी बच्चे अपनी-अपनी तरक्की के आसमान में उङने को निकल पङे। बङों के आशिर्वाद से और उनके अच्छे कर्मों से अभीभूत होकर सफलता के आसमान ने भी योग्य स्थान दिया उनको। बच्चे तरक्की करते रहें इसी प्रर्थना के साथ उनको याद करते जीवन बढता रहा। अकेले होने पर यादों के झरोखों में कुछ ऐसे पल याद आये जो मन को दुखी कर गये, परवरिश के दौरान बच्चों की पिटाई करना ऐसी गलती  जो अक्षम्य है, जिसका अफसोस आज भी है। बच्चों की पिटाई का उनपर जो दूरगामी असर होता है उसका ज्ञान जब मिला, तबतक समय बहुत दूर चला गया। वो पल वापस लाना तो असंभव हो जाता है और गलती की कसक ताउम्र बनी रहती है। समय सब कुछ बदल देता है, लेकिन कुछ यादें हमेशा रहती हैं। बङी विलक्षण होती है जीवन की यात्रा, सारी पढाई लिखाई धरी रह जाती है जब जिदंगी अपना सिलेबस बदलती है। इसलिए अपने अनुभव से आज की माताओं से विनय पूर्ण अनुरोध है कि, बच्चों को सब्र के प्यार से समझायें और एक स्वस्थ वातावरण प्रदान करने का प्रयास करें।

बच्चे फूलों की तरह होते हैं। उन्हें अपनी मुस्कान से, उन पर बारिश की तरह बरसने वाले अपने कोमल कोमल शब्दों से और अपने आत्मविश्वास की कला से उन्हें खिलने दें। निःसंदेह आप अपने बगीचे को देखकर आश्चर्यचकित हो जाएंगे।

उम्र के बढते पङाव पर बच्चों की शादी के उत्सव में शामिल होकर अद्भुत खुशी मिली। ईश्वर कृपा से बच्चों को मनचाहा संसार मिला। कहते हैं मूल से सूद ज्यादा प्यारा होता, ये शत् प्रतिशत सच है। बेटी के बच्चे हुए। जीवन को नया आयाम मिला, उम्र जैसे ठहर सी गई। खुशियों के पल ने बसंत की छटा को मोहक बना दिया। नव-अंकुरित बच्चों के मुख से नन्ना शब्द सुनना ऐसी औषधी बन गई जिसने उम्र को रोक दिया। उनके साथ वापस वही खेल-कूद से जीवन को नई ऊर्जा मिली। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, नाती-नातिन, पोता-पोती जीवन के वो खजाने हैं जिसमें अपने बच्चों का अक्स नजर आता है। हालांकि अभी दादी नही बने है पर ईश्वर वो सुख भी देगा मुझे ये विश्वास है। जब भी दादी या दद्दा कहने वाला/वाली खुशबू आंगन में आयेगी, षठवर्ष होने के बावजूद नई ऊर्जा मिलेगी।  
मन के अंदर हर्ष और उल्लास होना चाहिये,
जिंदगी में हर घङी मधुमास होना चाहिए।    

जीवन यात्रा अभिलाषाओं की पंक्ति में खङी रहती है और नित नई आकांक्षाओं जन्म देती रहती है। मित्रों, जीवन में मिले अच्छे बुरे तानों से ये समझ आया कि, हम कुछ लोगों के लिए कितने भी अच्छे रहे होंगे पर कुछ लोगों की कहानी में बुरे भी रहे होंगे। अतः अब तक के बिते जीवन में साथ निभाए या साथ न निभाए सभी रिश्तों के प्रति सह्रदय कृतज्ञता प्रगट करते हैं और सबके लिए सुखद, सुंदर, स्वस्थ जीवन की मंगलकामना करते हैं। जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमाप्रर्थी भी हैं🙏 
भूल हो जाती है माना, यह जरूरी है मगर,
अपनी हर इक भूल का अहसास होना चाहिये। 

आज मेरे जन्मदिन पर स्वयं को भी शुभकामनाएं देते हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं.. जितना भी शेष जीवन है वो मनचाही समाज सेवा भी कर सके क्योंकि दृष्टीबाधित बच्चों के साथ बिताया सफर भी जीवन को नित नई ऊर्जा प्रदान करता रहा है। ये बहुत बङा सत्य है कि ऊपर वाले ने सबके के लिए रास्ता तय करके रखा है। वो अपने बंदो को सहयोग की भावना के लिए आगे बढने की प्रेरणा देता है। किसकी कब सहायता करनी है उसके इशारे से ही होती। हमसब तो उसके संसाधन हैं। सहयोग संसाधन लिस्ट में ईश्वर हमें भी बराबर बनाये रखे। स्वस्थ रहें, जिंदगी से कोई शिकायत न रहे ऐसी भावना हो। जिंदगी तो एक किताब की तरह है.. जिसके कुछ अध्याय दुखद, कुछ सुखद और कुछ रोमांचक हैं। अब अगला पन्ना पलटेंगे तब पता चलेगा कि आगे क्या लिखा है.. भरोसा है जो भी लिखा होगा अच्छा होगा, अच्छे के लिए ही होगा। फिलहाल आज अपनी खुशनुमा यादों के साथ जन्मदिन मनाते हैं और जेहिं बिधी राखे राम तेहीं बिधी रहिये आप पर अमल करते हैं। 
सभी पाठकों को मेरी जीवन यात्रा पढने के लिए तहेदिल से धन्यवाद 

बढती रहती है अनुभव की मात्रा,

ज्यों-ज्यों बढती रहती है जीवन यात्रा।

निखार आये गुंणवत्ता में उत्तरोत्तर,

तब ही सार्थक है जीवन यात्रा। 
🙏