Thursday, 22 November 2012

समाचार पत्र की आत्मकथा


मैं समाचार पत्र, आज मैं अपने बारे में आप सभी को बताना चाहता हुँ। मेरे जन्म का मुख्य उद्देश्य, सामाजिक, आर्थिक,खेल जगत या जो भी पूरे विश्व में हो रहा है या हो चुका है, उसकी खबर जन जन तक पहुँचाना। मैं काफी प्राचीन काल से अपने नाम को सार्थक कर रहा हुँ। समय एवं काल के अनुसार मेरा लिबास एवं तरीका चेन्ज होता रहता है।
प्राचीन काल में मैं डोंडी या डुग्गी के माध्यम से जनता से मिलता था, कभी भोज पत्रों के माध्यम से मैं युद्ध की विकट स्थिती, चमत्कार या राज्यारोहंण जैसे समारोह का वर्णन करता था। राजकीय घोषणाओं के लिये मैंने शिलाखण्ड का रूप अपना लिया। सम्राट अशोक ने मुझे धर्म प्रचार का भी काम सौपा जिससे मैं धन्य हो गया, क्योंकि अशोक के शिला लेख तो इतिहास प्रसिद्ध हैं। विश्व पत्रकारिता के उदय की दृष्टी से मैं समाचार पत्रों का पूर्वज हूँ।

धीरे धीरे मानव सभ्यता के विकास के साथ मेरा भी विकास होता गया। पाँचवी शताब्दी में रोम की राजधानी से दूर स्थित नागरिकों तक मैं संवाद लेखक के रूप में जाता था।
60 ई. पू. में जूलियस सीजर ने मेरा परिचय एक्ट डायना नाम से किया जहाँ मैं शासकीय घोषणाओं को प्रचारित करता था।

16वीं शताब्दी में मैं पर्ची के रूप में आया। मेरा काम किन्तु सदैव एक ही रहा; युद्धों का सजीव चित्रण, आश्चर्य में डालने वाले प्रसंग तथा राज दरबारों के रोचक किस्सों से जनमानस को अवगत कराना।
हिन्दुस्तान में मुगल साम्राज्य की स्थापना से ही मेरे जीवन को नया आयाम मिला। इस काल में कुछ वाक्यानवीस (रीपोर्टर) हुआ करते थे जो मेरे लिये खबर लाया करते थे फिर मुझे हस्तलिखित कारिगर उन खबरों से सजाते थे। बहादुरशाह के काल में मैं सिराज-उल-अखबार के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

ईस्ट इण्डिया कंपनी को मुझसे हमेशा भय रहता था। उन दिनों जिन्हे कंपनी के विरुद्ध शिकायत थी उन महानुभावों ने मुझे अपने विचारों एवं शिकायतों से अलंकृत किया।
30मई 1826 को युगल किशोर शुक्ल ने मुझे उदन्त मार्तन्ड के नाम से प्रकाशित कर हिन्दी के प्रथम समाचारपत्र से गौरवान्वित किया। अल्प आयु यानी डेढ साल में आर्थिक परेशानियों से मुझे ग्रहण लग गया। ग्रहण की काली छाया मुझ पर से 10 मई, 1829 को दूर हुई जब राजाराम मोहन राय ने मुझे बंगदूत के नाम से सबसे परिचित कराया। मुझे नीलरतन हालदर ने शब्दों से सुसज्जित किया था। इसके बाद अलग-अलग जगहों पर विभिन्न समय एवं काल में मेरे भाई बन्धु अवतरित हुए।1826 ई. से 1873 ई. तक को मेरा पहला चरण कहा जा सकता है। बंगदूत (1829), प्रजामित्र (1834), बनारस अखबार (1845), मार्तंड पंचभाषीय (1846), ज्ञानदीप (1846), मालवा अखबार (1849), मजहरुलसरूर (1850), बुद्धिप्रकाश (1852), ग्वालियर गजेट (1853), समाचार सुधावर्षण (1854), दैनिक कलकत्ता, प्रजाहितैषी (1855), सर्वहितकारक (1855), सूरजप्रकाश (1861), लोकमित्र (1835), भारतखंडामृत (1864), तत्वबोधिनी पत्रिका (1865), इन पत्रों में से कुछ मासिक थे, कुछ साप्ताहिक। इस तरह मेरे परिवार का विकास हुआ।

1854 में श्यामसुन्दर सेन ने कलकत्ता में मुझे सुधावर्षण के नाम से जनता जनादर्न से प्रतिदिन मिलने का अवसर दिया।

1857 में पयामें आजादी के नाम से मुझे आजादी में सरीख होने का अवसर मिला। ये सौभाग्य मुझे नाना साहेब और अजिमुल्ला खाँ की वजह से मिला। पयामें आजादी के रूप मे मैं जनता में अपनी प्रखर एवं तेजस्वी वाणीं से जोश भरने में कामयाब रहा। मेरे द्वारा ही तात्कालीन राष्ट्रीय गीत लोगों तक पहुँचा जिसकी पंक्तियाँ निम्न थीं—

हम हैं इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा

पाक वतन है कौम का, जन्नत से भी प्यारा।

आज शहिदों ने मुझको, अहले वतन ललकारा।

तोङो गुलामी की जंजीरें, बरसाओ अंगारा।

आजादी की लङाई में मेरे अन्य भाई बन्धु जैसे- धर्मप्रकाश, सूरज प्रकाश, सर्वोकारक, प्रजापति, ज्ञानप्रकाश भी अपनी तेजस्वी वाणीं से लोगों में जोश भरने में कामयाब रहे।

आजादी के संघर्ष के बाद से आज तक मेरा विकास बहुत तेजी से हुआ। अनेक नामों से दुनिया को अपडेट करते हुए खुद भी अपडेट होता गया। आलम ये है कि आज मैं ई अखबार के रूप में आपके पी. सी. पर भी दस्तक दे चुका हूँ। आज कल तो मैं सुबह की चाय के साथ अनेक नामो जैसे- नई दुनिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दबंग दुनिया, आज, नवभारत टाइम्स आदी अनेक रूपों में उगते सूरज के साथ Good morning करने आपके घर पहुँच जाता हूँ और आप सभी को हर क्षेत्र की जानकारी से प्रकाशित कर अपने आपको धन्य समझता हुँ।

निम्न शब्दों से आज मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ-

चन्द पन्नों मे सिमटा, विस्तृत संसार हूँ मैं।

कभी कड़्वा, कभी तीखा-कभी विषैला,

इन्द्रधनुषी खबरों का, मायाजाला हूँ मैं।

सफेद कागज़ पर प्रिंट काला,

खबरों और विज्ञापनो का खजाना हूँ मैं।

आप सबका प्रिय समाचार पत्र हूँ मैं।

 

 

 

Sunday, 18 November 2012

प्रसिद्ध कथन

देशभक्ति मानव-मात्र का धर्म है। देशभक्ति मनुष्य के रक्त में होती है। ऐसे ही कुछ देशभक्तों के कहे वाक्य जो हम सभी के लिये आज भी प्रेरणास्रोत हैं।
1-    सवा लाख से एक लङाऊँ। (गुरू गोविन्द सिहं)
2-    स्वतन्त्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। (लोकमान्य तिलक)
3-    तुम मुझे खून दो में तुम्हे आजादी दूँगा। (सुभाष चन्द्र बोस)
4-    मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी। (रानी लक्ष्मीबाई)
5-    अपना राज्य बुरा होने पर भी विदेशी राज्य से सौ गुना अच्छा है। (दयानन्द सरस्वति)
6-    सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है। (राम प्रसाद बिस्मिल)
7-    हिन्दुस्थान हिन्दु राष्ट्र है। (डॉ. हेडगेवार)
8-    दो आजन्म कारावास का दण्ड सुनाए जाने पर कहा था कि- अंग्रेजों! आपका राज्य पचास वर्ष नही रहेगा। (वीर सावरकर)
9-      दिल्ली चलो। (सुभाष चन्द्र बोस)
10-       आराम है हराम (जवाहर लाल नेहरु)
11-         न्यायाधीश के पुछने पर कहा कि- मेरा नाम आजाद है, पिता का नाम स्वतंत्र, निवास स्थान भारतमाता के चरणों में या जेलखाना। (चन्द्रशेखर आजाद)
     12-        करो या मरो। (महात्मा गाँधी)

     13-         उठो जागो तब तक न रुको नही जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये। (स्वामी विवेकानंद)

     14-       मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है। (स्वामी विवेकानंद)
    
      15-       जय जवान जय किसान (लाल बहादुर शास्त्री)

     16-          इंकलाब जिन्दाबाद (भगत सिहं)

      17-         सत्यमेव जयते (मदन मोहन मालवीय)
 
      18-         वंदे मातरम (बमकिम चंद्र चटर्जी)
 
 

Friday, 16 November 2012

सकारात्मक नजरिया


जीवन में कामयाबी के शिखर तक पहुँचने के लिये सही नजरिये का विशेष महत्व है। सफलता के लिए सही एटीट्यूड जरूरी है, क्योंकि इसके बिना हम चाहे कितने ही टेलेंटेड क्यों न हों, सफल नही हो सकते। मित्रों, बाइबिल में लिखी एक कहानी आपको बताते हैं जिससे ये स्पष्ट हो जायेगा कि नजरिया सही हो तो लक्ष्य तक पहुँचना आसान होता है।

गोलियथ नाम का एक ऱाक्षस था। उसने हर व्यक्ती के मन में अपनी दहशत बैठा रखी थी। एक दिन की बात है कि 17 साल का डेविड नाम का एक भेंङ चलाने वाला लङका अपने भाईयों से मिलने उसी गाँव में आया जहाँ लोग राक्षस के आतंक से भयभीत थे। उसने अपने भाईयों से कहा कि आप लोग इससे लङते क्यों नही हो? तब लोगों ने कहा कि वो इतना बङा है कि उसे मारा नही जा सकता। डेविड ने उन्हे समझाया कि बात ये नही है कि बङा होने की वजह से उसे मारा नही जा सकता, बल्कि हकीकत तो ये है कि वह इतना बङा है कि उस पर लगाया निशाना चूक ही नही सकता। डेविड ने उस राक्षस को गुलेल से लगातार पत्थर मार कर मार दिया। दोस्तों राक्षस वही था, लेकिन डेविड का उसके लिये नजरिया अलग था। सकारात्मक नजरिये से उसने गाँव वालों को राक्षस के आतंक से मुक्त कराया।

सकारात्मक नजरिया रखने से हम अपनी किस्मत को खुद दिशा दे सकते हैं। उचित नजरिये के लिये मन की एकाग्रता और आत्मविश्वास आवश्यक पहलु हैं।

यदि हम कोई महान कार्य करना चाहते हैं तो सबसे पहले मन में आत्मविश्वास का भाव होना चाहिये, क्योंकि जिस मनुष्य का मन संदेह, चिन्ता और भय से भरा हो, वह महान कार्य तो क्या, कोई सामान्य कार्य भी नहीं कर सकता। संदेह और संशय मन को कभी भी एकाग्र नही होने देते।

संसार में जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, यदि हम उनका जीवन इतिहास पढ़ें तो पाएंगे कि सभी में एक समानता थी और वह समानता थी- लक्ष्य के प्रति उचित नजरिया एवं आत्मविश्वास। ईसा, मोहम्द साहब, गुरुनानक देव, बुद्ध, कबीर, गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस, भगत सिहं जैसे हजारों महापुरुषों ने जीवन में सकारत्मक होने का संदेश दिया। इनमें से किसी की भी परिस्थिती अनुकूल नही थी। हर किसी ने मुश्किलों से जूझकर उन्हे अपने अनुकूल बनाया। ईसा ने अपने हत्यारों के लिये भी प्रभु से प्रार्थना की कि प्रभु उन्हे क्षमा करना, इन्हे नही पता ये क्या कर रहे हैं। ऐसा कर उन्होने अद्मय सकारत्मकता का संदेश दिया। बुद्ध ने शिष्य आनंद को 'आधा गिलास पानी भरा है' का सकारात्मक संदेश दिया। ब्रिटिश पुलिस अधिकारी सांर्डस की हत्या के बाद भगत सिंह फूट-फूट कर रो पङे थे और कहा कि ये राजनीती हत्या है, कितना सुंदर जवान था! यह उनकी सकारत्मकता ही थी।

यदि हम विचारों का महत्व भलीभांति समझ लें और आत्मविश्वास तथा पुरुषार्थ के साथ लक्ष्य को कार्यरूप में परिणित करना आरंभ कर दें तो हमारी उन्नति के मार्ग स्वत: खुल जाएंगे।

धीरूभाई अंबानी ने कहा है कि- कठिन समय में भी अपने लक्ष्य को मत छोड़िये और विपत्ति को अवसर में बदलिए

उनके उचित नजरिये का ही परिणाम है रिलायंस ग्रुप जिसका विश्व में अपना विशिष्ट स्थान है।

सकारत्मकता का अर्थ सही चीजों और घटनाओं को सही परिप्रेक्ष्य में समझना होता। मेरे साथ ही बुरा क्यों होता है, या मुझको लोग पसंद नही करते जैसी बिमार मानसिकता से शायद ही कुछ अच्छा होता है बल्की मैं लोगो को पसंद करता हूँ की भवना से स्नेह एवं प्यार मिलता है।

अतः मित्रों, सही नजरिये एवं आत्मविश्वास से संपन्न मनुष्य कमजोर परिस्थितियों में भी नही घबरायेगा। अनेक कठिनाइयों के होते हुए भी वह प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदल सकेगा। मनोवैज्ञानिक तो यहाँ तक कहते हैं कि सकारात्मक सोच से अनेक असाध्य रोग भी ठीक हो सकते हैं। सही सोच को आत्मसात करके हम जीवन की पुस्तक में सफलता की कहानी लिख सकते हैं। जो भी कार्य करें उसकी शुरुवात सकारात्मक सोच से करें, क्योंकि प्रगति उचित नजरिये से ही मिलती है।


Sunday, 11 November 2012

Happy Deepawali


ज्योर्तिमय है हर दिशा,ज्योर्तिमय आकाश। आज अमावस छुप गई,जग में फैला खुशियों का प्रकाश। त्योहार है दिपावली का, सुख समृद्धि और खुशहाली का। आओ मिल कर आहवान करें-
असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय।
दीपावली प्रकाश का पर्व है जिससे हमें अंधकार रूपी अज्ञान से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर बढने का संदेश मिलता है। दिपावली का त्योहार अनेक धर्मो को आत्मसात किये हुए अनेकता में एकता के दीपक से सभी को रौशन करता है। सिख, बौद्ध, जैन तथा नेपालियों एवं कई और धर्म दिपावली को पूरे उत्साह से मनाते हैं।
मान्यता अनुसार दीपावली के दिन श्री रामचन्द्र जी अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयौध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाकर उनका स्वागत किया था जिससे अमावस्या की अंधेरी रात दीयों के प्रकाश से जगमगा उठी, तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।
दिवाली भारत में बसे कई समुदायों में भिन्न कारणों से प्रचलित है। दीपक जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं।
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्णमंदिर का शिलान्यास हुआ था और इसके अलावा १६१९ में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत् में नया वर्ष शुरू होता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात देवी लक्ष्मी व भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए।
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ था। दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि में लीन हो गये थे। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द का अवसान दीपावली के दिन अजमेर के निकट हुआ था।
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जला कर दीपावली मनाई थी। दीपावली मनाने के कारण कुछ भी रहे हों परंतु यह निश्चित है कि यह वस्तुत: दीपोत्सव है।
दीपावली-पर्व की विशेषता यह है कि इसमें देवताओं के पूजन, अर्चन, हवन आदि-आदि के लिए जाति-वर्ण, ऊँच-नीच, स्त्री-पुरुष, बालक, क्षेत्रीयता आदि का कोई भेद ही नहीं है। समस्त मानव जाति अपने आत्म कल्याणार्थ, मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु इस पर्व को अपने-अपने ढंग से न केवल मनाते हैं बल्कि अपनी प्रसन्नता व खुशियों को समाज के अन्य अंगों के साथ मिल-जुलकर बाँटते हैं।
प्रकाश का ये पर्व मुगल कालीन कई शाशक हिन्दूओं के साथ मिलकर मनाते थेदीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने ४० गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। दीपावली के पर्व पर सदैव माता लक्ष्मी के साथ गणेश भगवान की पूजा की जाती है। इस का कारण यह है कि दीपावली धन, समृ्द्धि व ऎश्वर्य का पर्व है, तथा लक्ष्मी जी धन की देवी है। इसके साथ ही यह भी सर्वविदित है कि, बिना बुद्धि के धन व्यर्थ है। अतः धन-दौलत की प्राप्ति के लिये देवी लक्ष्मी तथा बुद्धि की प्राप्ति के लिये श्री गणेश की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार गणेंश जी माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र हैं तथा लक्ष्मी जी ने गणेश जी को वरदान दिया था कि जब भी मेरी पूजा होगी उसके साथ गणेंश की पूजा जरूर होगी। 
पाँच दिवस तक चलने वाले प्रकाश पर्व को ऋषि मुनियों ने अपने शोध एवं दूरदर्शिता से जनमानस में जनकल्याण एंव सामाजिक महत्व को  धर्म से जोङकर समझाया है। पंचदिवसिय दिपोत्सव के प्रथम दिन सभी सनातन धर्म के अनुयायी हिन्दू भगवान धन्वन्तरि जी के प्रति उनके द्वारा प्रदान किये गये आयुर्वेद के लिए नतमस्तक हो आभार प्रकट करते है। भगवान धन्वन्तरि ही आयुर्वेद के जनक कहे जाते हैं तथा देवताओं के वैद्य भी माने जाते है। कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी उन्ही भगवान धन्वन्तरि का जन्म दिवस है। जिसे बोलचाल की भाषा में धनतेरस कहते है।
छोटी दिवाली यानि नरक चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस विजय के उपलक्ष्य में ही यह पर्व मनाने का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इस दिन प्रातः सरोवर, नदी तट आदि पर तेल, उबटन आदि मल कर स्नान का प्रावधान है। तेल व उबटन का प्रावधान इसलिये किया गया कि घरों में सफाई आदि के कारण शरीर थका हुआ तथा धूल, मिट्टी आदि से त्वचा शुष्क हो जाती है जिसके कारण किसी कार्य में मन नही लगता । तेल, उबटन, लगाकर स्नान करने से शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। दीपावली, अथार्त दिपों की पंक्ती जिससे जन जन ज्ञान रूपी  प्रकाश से  रौशन हो, यही भारतीय मनीषियों का चिन्तन भी है। 
दीपावली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सम्बन्ध स्पष्ट दिखाई देता है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय को पूजते हैं।
भाईदूज दिवाली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व हैजो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली एवं उनकी लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं।इसके अलावा कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं। उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में इसी दिन 'गोधननामक पर्व मनाया जाता है जो भाईदूज की तरह होता है।


 सामाजिक महत्व और जन कल्याण को परिलाक्षित करता ये पंचदिवसिय दिपोत्सव हम सभी में आनंद और उत्साह का संचार करता है। मित्रों,जिस तरह दिपावली पर बाहर दिये जलाकर हम सब अमावस की काली रात को पूनम की चाँदनी में बदल देते हैं, उसी तरह अपने दिलों में सद्भावना के दिये जलाएं। सुख समृद्धि और खुशहाली के दियों के साथ दिपावली की हार्दिक बधाई।
 

Monday, 5 November 2012

अनमोल समय

आनेवाला पल जानेवाला है, हो सके तो इसमें जिंदगी बिता दो
पल जो ये जानेवाला है।

गुलजार का लिखा ये गीत बहुत ही खूबसूरती से संदेश देता है कि वक्त को बर्बाद न् करो, क्योंकि जिन्दगी इसी से बनी है| जीवन छोटा ही क्यों न हो, समय की बर्बादी से वह और भी छोटा हो जाता है। अतः मित्रों, समय का उचित उपयोग करके हम अपने जीवन को आम से खासबना सकते हैं।

हम सभी के पास 24 घंटे होते हैं, न इससे कम न ज्यादा। हम समय को बढा नही सकते सिर्फ अपनी रुचियों और क्रियाओं को व्यवस्थित कर सकते हैं। अधिकतर लोगों का यही कहना होता है कि क्या करें वक्त ही नही मिलता ?

मित्रों, ईश्वर ने समय सबको बराबर बाँटा है जिनसे हम भौतिक और आध्यात्मिक दोनो ही साधनों से अपने लक्ष्य को पा सकते हैं। अमीर-गरीब, बूढे-जवान सभी को ईश्वर प्रतिदिन 24 घंटे का एक चेक देता है, जिसे उसी दिन भुना सकते हैं या उसका उपयोग कर सकते हैं अन्यथा चेक रद्द(नष्ट) हो जायेगा। समय ऐसा धन है जो एक बार नष्ट गया तो वापस नही मिलता। ईश्वर के इस अनमोल उपहार का उपयोग हम कैसे करते हैं उसी आधार पर हमारी सफलता निश्चित होती है।

हर सफल व्यक्ति के पीछे सफलता के कई कारण होते हैं जिसमें समय प्रबंधन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हमारे पास एक दिन में उतने ही घंटे होते हैं जितने हेलर केलर, लुईपाश्चर, आइंस्टाइन, लियोनार्डो द विन्ची, माइकल ऐंजेलो जैसी अनेक विभूतियों के पास थे। हम हैं कि समय का रोना रोकर अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागने का प्रयास करते। मित्रों, जो समय का ज्यादा दुरुपयोग करते हैं, वे ही समय की कमी की सबसे ज्यादा शिकायत करते हैं। शेक्सपीयर ने कहा है कि-
मैंने समय को नष्ट किया है। अब समय मुझको नष्ट कर रहा है।

 आज की भागदौङ और प्रतिस्पर्धा वाले समय में उत्साह से भरा पूरा एक दिन कब गुजर जाता है पता ही नही चलता। वहीं असंतुष्ट इच्छाएं और इंतजार से बीता पूरा दिन, अंतहीन प्रतीत होता है।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।

पल में परले होएगी, बहूरी करेगा कब।।

कबीरदास की उपरोक्त पंक्ती समय के महत्व को परिलाक्षित करती है। जीवन में समय का महत्वपूर्ण स्थान होता है। बीता समय कभी लौट कर नहीं आता। अतः हमे चाहिए कि जो समय हमें मिला है उसका सदुपयोग करें।

स्वेट मार्टन ने कहा है कि, हर व्यक्ति को तुरंत दान महा कल्यांण वाली सोच रखनी चाहिये।Make a habit of doing it now

कहते हैं, जो सोया सो खोया, इसलिये वक्त के साथ कदम मिलाकर चलने में ही समझदारी है। समय प्रबंधन ही सर्वश्रेष्ठ कला है जिसके सही उपयोग से हम हर पल को सर्वोत्म बना सकते हैं।

बैंजीमेन फेंक्लिन ने कहा है कि- जो काम आप आज कर सकते हैं, उसे कल पर न टालें।

अनेक शोधों से सिद्ध हो चुका है कि समय का सही नियोजन, असफलता को दूर करते हुए सफलता की ओर बढता कदम है।

मनोवैज्ञानिक डॉ. सुजेन क्लिफोर्ड के अनुसार टाइम मेनेजमेंट तनाव घटाने तथा काम व व्यक्तिगत जीवन को समृद्ध बनाने का तरीका है। समय नियोजन लोगों को अधिक कुशलता से काम करने में मदद करता है।

 'पुरुष बली नहि होत है, समय होत बलवान'

अशोक चक्रधर के अनुसार- समय बङा बलवान है, सबको मारे लात

हंसे कोई रोए कोई, समय समय की बात।।

सच ही तो है दोस्तो, यदी हम जीवन में घटित बुरे वक्त को धैर्य और थोङी समझदारी से निकाल दें तो आगे का पल सुनहरा बना सकते हैं। समय वो चिकित्सक है जो सभी प्रकार के जख्मो को भर देता है।
Time is big healer.

आज के वैश्वीकरण युग में टाइम मेनेजमेंट की चुनौती समय प्रबंधन करना ही नही है बल्की स्वयं का प्रबंधन करना भी है, ताकि सभी कामों को सही तरीके से करने के लिये हमारे पास समय हो जिससे परिवार और काम के बीच संतुलन बन सके। विकास की यात्रा में परिवार का साथ सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। अतः इनके महत्व को भी समझना सफल समय नियोजन है।

वारेन बफे ने कहा है कि-समय अच्छी  कंपनियों का मित्र होता है और औसत दर्जे की कंपनियों का दुश्मन।

किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिये किसी शुभ समय के इंतजार में समय बर्बाद न करो क्योंकि समय पर किया हुआ थोड़ा सा भी कार्य उपकारी होता है | समय पर कार्य नहीं करने से व्यक्ति लाभ और उन्नति से कोसों दूर हो जाता है। मार्टिन लूथर किंग जूनीयर ने कहा है कि-

सही काम करने के लिए समय हर वक्त ही ठीक होता हैं

मित्रों, समय किसी की प्रतीक्षा नही करता। दौड़ना काफी नहीं है, समय पर चल पड़ना ही समय का सार्थक नियोजन है। कहते हैं, बीता हुआ समय और मुख से निकले शब्द कभी भी वापस नहीं आते। गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि- समय फिरने पर मित्र भी शत्रु हो जाते हैं। अतः मन में विचार रखो कि हर दिन मेरा सर्वश्रेष्ठ दिन है; यह मेरी जिन्दगी है, मेरे पास यह क्षण दुबारा नहीं होगा। यकीनन दोस्तों इसी विचार के साथ आगे बढा कदम जीवन को सफलता की ओर ले जाएगा।

मित्रों मेरा मानना है कि यदि किसी को कुछ देना चाहते हो तो उसे अच्छा वक्त दो

 विवेकानंद जी की पंक्ती से कलम को विराम देते हैं।

Everything is easy, when you are busy.

But nothing is easy, when you are lazy.