Sunday, 11 November 2012

Happy Deepawali


ज्योर्तिमय है हर दिशा,ज्योर्तिमय आकाश। आज अमावस छुप गई,जग में फैला खुशियों का प्रकाश। त्योहार है दिपावली का, सुख समृद्धि और खुशहाली का। आओ मिल कर आहवान करें-
असतो माऽ सद्गमय , तमसो माऽ ज्योतिर्गमय।
दीपावली प्रकाश का पर्व है जिससे हमें अंधकार रूपी अज्ञान से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर बढने का संदेश मिलता है। दिपावली का त्योहार अनेक धर्मो को आत्मसात किये हुए अनेकता में एकता के दीपक से सभी को रौशन करता है। सिख, बौद्ध, जैन तथा नेपालियों एवं कई और धर्म दिपावली को पूरे उत्साह से मनाते हैं।
मान्यता अनुसार दीपावली के दिन श्री रामचन्द्र जी अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयौध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाकर उनका स्वागत किया था जिससे अमावस्या की अंधेरी रात दीयों के प्रकाश से जगमगा उठी, तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं।
दिवाली भारत में बसे कई समुदायों में भिन्न कारणों से प्रचलित है। दीपक जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं।
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्णमंदिर का शिलान्यास हुआ था और इसके अलावा १६१९ में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत् में नया वर्ष शुरू होता है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात देवी लक्ष्मी व भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए।
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ था। दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि में लीन हो गये थे। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द का अवसान दीपावली के दिन अजमेर के निकट हुआ था।
बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के अनुयायियों ने 2500 वर्ष पूर्व गौतम बुद्ध के स्वागत में लाखों दीप जला कर दीपावली मनाई थी। दीपावली मनाने के कारण कुछ भी रहे हों परंतु यह निश्चित है कि यह वस्तुत: दीपोत्सव है।
दीपावली-पर्व की विशेषता यह है कि इसमें देवताओं के पूजन, अर्चन, हवन आदि-आदि के लिए जाति-वर्ण, ऊँच-नीच, स्त्री-पुरुष, बालक, क्षेत्रीयता आदि का कोई भेद ही नहीं है। समस्त मानव जाति अपने आत्म कल्याणार्थ, मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु इस पर्व को अपने-अपने ढंग से न केवल मनाते हैं बल्कि अपनी प्रसन्नता व खुशियों को समाज के अन्य अंगों के साथ मिल-जुलकर बाँटते हैं।
प्रकाश का ये पर्व मुगल कालीन कई शाशक हिन्दूओं के साथ मिलकर मनाते थेदीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने ४० गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। दीपावली के पर्व पर सदैव माता लक्ष्मी के साथ गणेश भगवान की पूजा की जाती है। इस का कारण यह है कि दीपावली धन, समृ्द्धि व ऎश्वर्य का पर्व है, तथा लक्ष्मी जी धन की देवी है। इसके साथ ही यह भी सर्वविदित है कि, बिना बुद्धि के धन व्यर्थ है। अतः धन-दौलत की प्राप्ति के लिये देवी लक्ष्मी तथा बुद्धि की प्राप्ति के लिये श्री गणेश की पूजा की जाती है। पुराणों के अनुसार गणेंश जी माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र हैं तथा लक्ष्मी जी ने गणेश जी को वरदान दिया था कि जब भी मेरी पूजा होगी उसके साथ गणेंश की पूजा जरूर होगी। 
पाँच दिवस तक चलने वाले प्रकाश पर्व को ऋषि मुनियों ने अपने शोध एवं दूरदर्शिता से जनमानस में जनकल्याण एंव सामाजिक महत्व को  धर्म से जोङकर समझाया है। पंचदिवसिय दिपोत्सव के प्रथम दिन सभी सनातन धर्म के अनुयायी हिन्दू भगवान धन्वन्तरि जी के प्रति उनके द्वारा प्रदान किये गये आयुर्वेद के लिए नतमस्तक हो आभार प्रकट करते है। भगवान धन्वन्तरि ही आयुर्वेद के जनक कहे जाते हैं तथा देवताओं के वैद्य भी माने जाते है। कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी उन्ही भगवान धन्वन्तरि का जन्म दिवस है। जिसे बोलचाल की भाषा में धनतेरस कहते है।
छोटी दिवाली यानि नरक चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस विजय के उपलक्ष्य में ही यह पर्व मनाने का उल्लेख पुराणों में मिलता है। इस दिन प्रातः सरोवर, नदी तट आदि पर तेल, उबटन आदि मल कर स्नान का प्रावधान है। तेल व उबटन का प्रावधान इसलिये किया गया कि घरों में सफाई आदि के कारण शरीर थका हुआ तथा धूल, मिट्टी आदि से त्वचा शुष्क हो जाती है जिसके कारण किसी कार्य में मन नही लगता । तेल, उबटन, लगाकर स्नान करने से शरीर में स्फूर्ति आ जाती है। दीपावली, अथार्त दिपों की पंक्ती जिससे जन जन ज्ञान रूपी  प्रकाश से  रौशन हो, यही भारतीय मनीषियों का चिन्तन भी है। 
दीपावली की अगली सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सम्बन्ध स्पष्ट दिखाई देता है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय को पूजते हैं।
भाईदूज दिवाली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व हैजो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली एवं उनकी लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं।इसके अलावा कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से तस्वीरों अथवा मूर्तियों के माध्यम से करते हैं। वे इस दिन कारोबारी बहीखातों की पूजा भी करते हैं। उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों में इसी दिन 'गोधननामक पर्व मनाया जाता है जो भाईदूज की तरह होता है।


 सामाजिक महत्व और जन कल्याण को परिलाक्षित करता ये पंचदिवसिय दिपोत्सव हम सभी में आनंद और उत्साह का संचार करता है। मित्रों,जिस तरह दिपावली पर बाहर दिये जलाकर हम सब अमावस की काली रात को पूनम की चाँदनी में बदल देते हैं, उसी तरह अपने दिलों में सद्भावना के दिये जलाएं। सुख समृद्धि और खुशहाली के दियों के साथ दिपावली की हार्दिक बधाई।
 

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