Thursday 20 December 2012

जीवन अनमोल है


आज के वैश्वीकरण के युग में सबसे आगे बढने की होङ और अति व्यस्तता भरी जीवनशैली में अवसाद, अकेलापन, निराशा और कुंठा जैसी प्रवृतियाँ कुछ ज्यादा ही अपना वर्चस्व बढा रही है। ऐसी प्रवृतियाँ कहीं न कहीं आत्महत्या को बढावा देती हैं।
आजकल अखबारों या मीडीया के अन्य माध्यमों से कई ऐसी घटनाएं सुनाई देती हैं, जहाँ घर का मुखिया व्यपार या नौकरी में नुकसान से परेशान होकर स्वयं के साथ पूरे परिवार को भी इस अग्नी में जला देता है। जरा सी नाकामयाबी से युवा इस प्रवृत्ति के शिकार हो रहे हैं। इस वायरस से बच्चे भी ग्रसित हो रहे हैं।

मित्रों, आत्महत्या अर्थात जीवन से पलायन, जीवन जो सभी धर्मों के अनुसार ईश्वर की अनुपम देन है। उसे नष्ट करने की कोशिश रचयिता का अपमान है। इस दुनिया में हम अपनी मर्जी से नही आते तो इसे नष्ट करने का भी हक हमें नही है क्योंकि जीवन कोई वस्तु नही है।

एक सर्वे के अनुसार 1960 ई. से अबतक आत्महत्या का मामला 300% बढ चुका है। शोध दर्शाते हैं कि तनाव एवं अवसाद इसके प्रमुख कारण हैं। डिप्रेशन मनोवैज्ञानिक ब्लैक होल कि तरह है, जिसमें इसका शिकार व्यक्ति अपनी खुशियां उड़ेलता जाता है, लेकिन बदले मे उदासी के सिवा कुछ नहीं मिलता और वह आत्महत्या जैसे कृत्य करता है।

दोस्तों, ये अवसाद, तनाव या कुंठा क्यों ? मनोवैज्ञानिकों के अध्यन द्वारा जो परिणाम आये हैं वो चौकाने वाले हैं। माता-पिता की बढती उम्मीदें और अपेक्षाएं, युवा में जल्दी-जल्दी सब कुछ पा लेने की चाह, माता-पिता का अति व्यस्त रहना जिससे सावेंगिक तारतम्य(Emotional Balancing) का अभाव जो बच्चों में अकेलेपन का बोध कराता है। आज आत्मविश्वास और सहनशीलता का भी अभाव ऐसे कृत्यों को बढावा दे रहा है। आजकल टेंशन ज्यादा है और-तो-और अब आठ साल का बच्चा भी कहता हैं की वह बहुत टेंशन में हैं। कहीं न कहीं छोटे परिवार भी इसके जिम्मेदार हैं।पहले संयुक्त परिवार होते थे, दादा-दादी, चाचा-चाची जैसे रिश्ते बच्चों की गलतियों को प्यार से समझाते थे, कहते थे कि गलती इंसान से ही होती है आगे से ध्यान रखना। ऐसी बातें सभी के लिये भी (moral support) भावनात्मक दवा का काम करती है। इस भावनात्मक सपोर्ट के अभाव में न जाने कितने किशोरों को आत्मघाती कदम उठाने पर मजबूर किया।

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि, ऐसे ख्याल तब आते हैं जब दर्द हद से ज्यादा बढ जाता है। मित्रों, दुनिया के बड़े नेताओं में अब्राहम लिंकन जितना दुख शायद ही किसी ने झेला हो। बचपन में ही पहले भाई, फिर माँ का देहांत। चाची ने पाला। फिर वे भी महामारी की शिकार हो गयीं। बाद में बहन की मौत। खुद उनके चार बच्चों में केवल एक युवा हो पाया। इतनी मौत देखने के बाद किसी पर कैसा असर होगा, समझा जा सकता है।अनेक चुनावों में हार, व्यपार में नाकामयाबी जिससे वे उदास रहते थे। कई बार नदी के किनारे अकेले बैठे रहते। उन्होने कई कविताएं ऐसी लिखीं, जिसमें घोर उदासी दिखती है। ऐसी ही एक कविता को कई इतिहासकार सूसाइडल नोट करार देते हैं। कई बार उनके दोस्त रात में साथ सोते की कहीं वे आत्महत्या न कर लें। इतने दुखी लिंकन आखिर अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित राष्ट्रपति बने। पूरे अमेरिका को एक सूत्र में बांधा। गुलामों की मुक्ति के नायक बने और सबसे बढ़ कर दुनिया में जीने के अधिकार, स्वतंत्रता व भाईचारे के लिये कार्य किये। लिंकन ने अपने दुखों का मुकाबला सामाजिक जिम्मेदारियों के लिए खुद को समर्पित करके किया। हमेशा काम की पूजा की। राष्ट्र की चुनौतियों के मुकाबले के लिए खुद को तैयार किया। कहते हैं, जब एक तरफ करोड़ों राष्ट्रवासियों के जीवन में खुशियां भरने का सवाल हो, तो अपना बड़ासेबड़ा दुख भी पंख के समान लगता है।
यदि आप युवा हैं और अपने दुखों से परेशान हैं, तो एक बार अपने समाज या राष्ट्र की चिंता करके देखें। आपका पहाड़सा दुख क्षण भर में राईसा हल्का लगने लगेगा।

कहते हैं कि, अगर जरूरतें आविष्कार की जननी हैं, तो तनाव को आप महान बनाने की भट्टी कह सकते हैं। मनुष्य व तनावों का संबंध पुराना हैं। कई बार लोगों के तानो से आत्महंता को ये लगता है कि, वो कुछ नही कर सकता, जीवन में कुछ नही बदलने वाला, मेरी किसी को जरूरत नही है, दुनिया बङी खराब है आदि। ऐसी बातें नकारत्मकता को बढावा देती हैं। ये बातें पूरे समाज को नुकसान पहुँचाती हैं। "पॉजिटिव एडिक्शन" के लेखक विलियम ग्लॉसर कहते हैं-“हमें हमेशा याद रखना चाहिये कि कभी भी दूसरे की पीडा खुद महसूस नही की जा सकती। यदि किसी व्यक्ति में आत्महत्या का विचार आता है या वो ऐसा कृत्य करता है तो ये परिवार और समाज की असफलता को भी दर्शाता है।
दोस्तों पाँचो ऊँगली बराबर नहीं होती, कोई भी सर्वगुणं सम्पन्न नही होता। पिछली सदी के दो बड़े नाम पूछे जायें, तो सहज ही महात्मा गांधी व आइंस्टीन के नाम आयेंगे। दोनों ही शुरुआती पढ़ाई में औसत थे। आइंस्टीन को तो मंदबुद्धि बालक माना जाता था। स्कूल शिक्षक ने यहां तक कह दिया था कि यह लड़का जिंदगी में कुछ नहीं कर पायेगा। अगर वह निराश हो गये होते, तो क्या दुनियाँ आज यहां होती। उन्हें "फादर ऑफ मॉडर्न फ़िज़िक्स" कहा जाता है।

जिंदगी के किसी मोड़ पर असफलता मिलते ही आत्मघाती कदम उठाने वाले युवा, आइंस्टीन से सीख ले सकते हैं। युवाओ को सही दिशा देने में अभिभावकों और शिक्षकों की भी अहम भूमिका हैं। गार्डनर ने बताया कि, बुद्धिमता आठ तरह कि होती हैं। इसीलिए गणित या अँग्रेजी में फेल हों या आईआईटी की प्रवेश परीक्षा मे असफलता मिले, तो हार न मानें। असफलता तो सफलता की सीढ़ी है। आइंस्टीन ने भी यही माना और अपने परिवार, पड़ोसी व गुरुजी को गलत साबित कर दिया।
जो मानते हैं कि आप जिंदगी में कुछ नहीं कर सकते, उन्हे आप भी गलत साबित कर सकते है।

मनोवैज्ञानिक पॉल जी क्विनेट की किताब सुसाइड: द फॉरएवर डिसीजन के अनुसार दुनिया में अधिकांश लोगों ने अपने जीवन में कम से कम एक बार आत्महत्या करने पर गंभीर विचार किया है। यानि मन में ऐसे विचार का आना साधारण सी बात है किन्तु ऐसे विचार को लोग किसी से कहते नही क्योंकि कई लोग उन्हे पागल, कायर या बुजदिल, एवं बुरा इंसान समझते हैं। जबकि ऐसे विचार पीङा और उससे लङने के साधन के बीच के असंतुलन का परिणाम है, जिसे आपसी बातचीत और भावात्मक सहयोग से रोका जा सकता है। अन्ना हजारे भी एकबार आत्महत्या के लिये रेलवे की पटरियों तक पहुंचे थे, लेकिन बुक स्टॉल पर पङी विवेकानंद की किताब ने उन्हे बचा लिया। आज वे देश को बदल रहे हैं।

गलत कदम उठानेवालों का नाम केवल थाने में दर्ज होता है। वहीं, हिम्मत से काम लेनेवालों का नाम किताबों में मॉडल बनता है। आप भी यदि तनाव में हैं, तो आत्मघाती कदम उठाने की बजाय दुनिया को बेहतर बनाने में हाँथ बंटाएँ। जिदंगी ब्लाइंड लेन नही है, बल्की खुला आसमान है, जहाँ आगे बढने के हजार रास्ते हैं।

दोस्तो, 15 सेकेंड की ताली आत्महत्या के विचार जैसे वायरस को दूर करने की सबसे अचूक एवं रामबांण दवा है। हमारे शरीर के सभी अंतरिक उत्सर्जन संस्थानो के प्वॉइंट हमारी हथेलियों में होते हैं और जब हम ताली बजाते हैं तो उन सभी उत्सर्जन अंगो को उत्तेजना मिलती है, जिससे इम्यून सिस्टम का सुचारू रूप से संचालन होता है और निराशा, कुंठा, अवसाद तथा तनाव के कारणो का कारगर इलाज होता है। ताली से हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढती है। "आयुष्यमान भवः न्यास एवं शोध संस्थान" के संस्थापक अरुण ऋषि देशभर में जन स्वास्थ के लिये ये अभियान चला रहे हैं। कुछ समय पूर्व ही जब मुंबई पुलिस के जवानों को डिप्रेशन से लङने का पाठ पढा रहे थे, तो समूचा परेड ग्राउंड तालियों से गूंज रहा था।
ताली वज्रासन में बैठकर या आसन पर खङे रहकर हांथो में तेल लगाकर ही बजाएं। आँखे बंद रखें, मुह से ऊँ का जाप करें। ताली की शुरुवात सबसे पहले प्रथमा उंगली से दूसरे हाँथ की हथेली के मध्य भाग पर चार बार चोट करें, फिर मध्यमा उँगली को भी साथ लेकर वही क्रिया दोहरायें, इसी क्रम में तीसरी एवं चौथी उँगली को भी साथ लेकर चार बार चोट करते हुए अंत में पाँचो उँगलियो से ताली जोर से एवं शिघ्रता पूर्वक बजाएं।
वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि ताली बजाने से हमारे शरीर का तापक्रम बढ जाता है और कोलस्ट्राल पिघलने लगता है। ताली के कंपन से रक्त धमनियों के सभी अवरोध समाप्त हो जाते हैं, जिसके कारण ह्रदय को आराम मिलता है और श्वेत रक्त कण (White Blood cell) के पर्याप्त मात्रा में होने से रक्त का प्रवाह पॉजिटिव डाइरेक्शन में प्रवाहित होता है। इससे डिप्रेशन को नियंत्रित करने में सफलता मिलती है।

मित्रों, जिंदगी है तभी तो सब कुछ है अन्यथा कुछ भी नहीं। जीवन ईश्वर का दिया हुआ अमूल्य तोहफा है, इसे हर दिन जी भर के जियें।
                                                  Life is a song – sing it.
                                          Life is a game – play it.
                                          Life is a challenge – meet it.
                                          Life is a dream– realize it
                                          Life is a sacrifice – offer it.
                                              Life is love – enjoy it.
                   

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