Monday 24 December 2012

जनजन के प्रिय नेता संवेदनशील कवि अटल जी


सम्पूर्ण विश्व को आध्यात्म का संदेश देनेवाले विश्वगुरू भारत के लोकतंत्र के सजग प्रहरी, 'अनमोल रत्न' ग्वालीयर का गौरव, संवेदनशील कवि, श्रेष्ठ पत्रकार, प्रखर वक्ता, दलगत राजनीति के परे सर्वजन प्रिय अटल बिहारी वाजपेयी जी राजनीति की पटल पर एक ऐसे मसीहा हैं, जिन्हे अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी सम्मान से याद किया जाता है
प्रख्यात चिंतक अटलजी  का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। माता का नाम कृष्णा एवं पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी थे। वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता एवं रसास्वाद के गुण विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर रियासत में अपने समय के जाने-माने कवि थे। वे ब्रजभाषा और खड़ी बोली में काव्य रचना करते थे।

बचपन से ही अटल जी की सार्वजनिक कार्यों में विशेष रुचि थी। उन दिनों ग्वालियर रियासत दोहरी गुलामी में थी। राजतंत्र के प्रति जनमानस में आक्रोश था। सत्ता के विरुद्ध आंदोलन चलते रहते थे। सन् 1942 में जब गाँधी जी ने 'अँग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा दिया तो ग्वालियर भी अगस्त क्रांति की लपटों में आ गया। छात्र वर्ग आंदोलन की अगुवाई कर रहा था। अटलजी तो सबके आगे ही रहते थे। पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी चुंकि सरकारी नौकरी में थे तो वे अटल जी को ऐसे कार्यक्रमों से दूर रहने की हिदायत देते थे, किन्तु देशप्रेम का ज़ज्बा उन्हे सदैव आगे बढने को प्रेरित करता था। इस कार्य में उनकी बङी बहन का सहयोग हमेशा रहा। राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन करने के अलावा आपने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक का दायित्व सफलता पूर्वक निभाया।
अटल जी भारत के ऐसे प्रथम राजनेता थे जिन्होंने संसद व संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा की वार्षिक बैठकों सहित कई महत्वपूर्ण विषयों पर हिंदी में भाषण देकर देश ही नहीं अपितु राष्ट्रभाषा हिंदी को भी गौरवान्वित किया। अटल जी ने संसद में अपना प्रथम भाषण हिंदी में दिया। जिससे उनका राष्ट्रभाषा प्रेम स्वतः ही उजागर हो जाता है।
तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष अनन्त शयनम आयंगर ने कहा था कि, “अटल जी हिंदी के सर्वश्रेष्ठ वक्ता हैं। वे बहुत कम बोलते हैं परन्तु जो बोलते हैं वह ह्रदयस्पर्शी होता है। अन्तर को छूने वाला होता है।
बहुत कम लोग हुए हैं भारतीय राजनीति में जिन्हें जनसभा हो या लोकसभा हर कहीं पिनड्राप साइलेंस यानी नि:शब्द हो कर सुना जाए, अटल बिहारी वाजपेयी उन गिनती के लोगों में शुमार होते हैं। प्रधान मन्त्री के पद पर रहे हों या नेता प्रतिपक्ष; बेशक देश की बात हो या क्रान्तिकारियों की, या फिर उनकी अपनी ही कविताओं की; नपी-तुली और बेवाक टिप्पणी करने में अटल जी कभी नहीं चूके। देशहित में  विपक्ष द्वारा किये गये कार्यों की भी निश्छल भाव से तारीफ करते थे। उनकी दूरदृष्टि के सभी कायल हैं। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री जी द्वारा दिया नारा 'जय जवान, जय किसान' के आगे एक शब्द 'जय विज्ञान' और जोड़ कर राजनीतिक श्रेष्ठता का अद्वितीय उदाहरण दिया।'जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान' की भावना से ओतप्रोत अटल जी की दूरदर्शिता का ही परिणाम है, वैज्ञानिक ए.पी.जे. अब्दुल कलाम को भारत के राष्ट्रपति पद के सम्मान से सम्मानित करना।

अपने प्रधानमंत्री काल में दलगत राजनीति से परे, जिन विशिष्ठ नेताओं एवं सामाजिक कार्यकताओं से अटलजी की व्यक्तिगत घनिष्ठता रही उनमें नरसिंह राव, ज्योति बसु, सोमनाथ चटर्जी, इन्द्रकुमार गुजराल, करूणानिधि, शरद पवार के नाम प्रमुख हैं। नरसिंह राव उनके गुणों से सदैव प्रभावित थे, उन्होने 1993 के जनेवा में हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के बेहद महत्वपूर्ण सम्मेलन में उस समय के नेता विपक्ष अटलजी को भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेता नियुक्त कर भारतीय लोकतन्त्र में एक स्वस्थ परम्परा का आरम्भ किया था।

अटल जी के संघर्षमय जीवन, परिवर्तनशील परिस्थितियाँ, राष्ट्रव्यापी आन्दोलन, जेल-जीवन आदि अनेकों आयामों को उनकी कविता में देखा जा सकता है।
इमरजेन्सी के दौरान तबियत खराब होनेपर बैंगलूर जेल से अटल जी को ऑलइण्डिया इंस्टीट्यूट में तीसरी या दूसरी मंजिल पर रखा गया था। जहाँ रोज सुबह रोने की आवाज उनको विचलित कर देती। अपनी उसी वेदना को कवि अटल जी ने इस तरह व्यक्त किया।

दूर कहिं कोई रोता है,
तन पर कपङा भटक रहा मन,
साथी है केवल सूनापन,
बिछुङ गया क्या स्वजन किसी का,
क्रंदन सदा करुण होता है।

इमरजेन्सी का जिक्र करते हुए कहते हैं कि उस वक्त स्वतंत्रता का अपहरण हुआ था। इमरजेन्सी के एक वर्ष बाद अपनी भावनाओं को निम्न शब्दों में अभिव्यक्त किये।

एक बरस बीत गया,
झुलसाता जेठ मास,
शरद चाँदनी उदास,
सिसकी भरते सावन का,
अंतर्घट रीत गया,
एक बरस बीत गया।


इमरजेन्सी के बाद जनता ने जनता पार्टी पर विश्वास किया था। जय प्रकाश जी के नेतृत्व में राजघाट पर शपथ ली गई थी कि सब मिलकर साथ चलेंगे और देशहित के लिये मिलकर कार्य करेंगे किन्तु वो शपथ पूरी न हो सकी जनता पार्टी टूट गई, अपनी इसी विरह वेदना को कवि अटल जी ने इस तरह अभिव्यक्त किया।

क्षमा करो बापू! तुम हमको,
बचन भंग के हम अपराधी,
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी।

जयप्रकाश जी! रखो भरोसा,
टूटे सपनों को जोड़ेंगे।
चिताभस्म की चिंगारी से,
अन्धकार के गढ़ तोड़ेंगे।

जिंदगी के शोर और राजनीति की आपाधापी में शब्दों के रंगो से रंगी कवि अटल जी की कविताएं सभी संवेदनशील इंसानो की कविताएं हैं।


हार नहीं मानूंगा
रार नई ठानूंगा
काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं.......

ये महज़ कविता की पंक्तियां नहीं बल्कि एक ऐसे जीवट आदमी की जीवन गाथा को व्यक्त करती है जिसने भारतीय राजनीति के फलक पर ऐसी इबारतें लिख दी जिसे भूलाया नही जा सकता। भारतीय राजनीति क्या, विश्व राजनीति में भी अगर कोई एक नाम बिना किसी विवाद के कभी लिया जाएगा तो वह नाम होगा अटल बिहारी वाजपेयी जी का। यह एक ऐसा नाम है जिस के पीछे काम तो कई जुड़े हुए हैं पर विवाद शून्य हैं।

 प्रखर राष्ट्रवादी भारतमाता के सपूत पं. अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्म दिवस '25 दिसंबर' को भारतीय जनता पार्टी ने 'सुशासन दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है।
अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे ही इकलौते विनम्र राजनीतिज्ञ हैं, क्योंकि उन के जीवन का मूल-मंत्र है:-

मेरे प्रभु !
मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना
गैरों को गले न लगा सकूं
इतनी रुखाई
कभी मत देना।
"भारत को लेकर अटल जी का दृष्टिकोंण - ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो।"

मित्रों, ऐसे ही खुशहाल भारत बनाने की शपथ लेकर,  अभिमान, स्वाभिमान और स्नेहशील सत्यम्‌, शिवम्‌ और सुन्दरम्‌ के प्रतिरूप अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिन पर उनका वंदन एवं अभिनंदन करते हैं तथा  ईश्वर से उनके शीघ्र स्वास्थ की प्रर्थना करते हैं।

जयहिंद




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