Thursday, 23 May 2013

भविष्यफल का ताना बाना


कल क्या होगा इस बात को जानने के लिये लगभग हम सभी उत्सुक रहते हैं और भविष्य जानने के लिये ज्योतिष विद्या के लगभग सभी तरीके अपनाते हैं। व्यपार में सफलता मिलेगी या नहीं, किसकी सरकार बनेगी, परीक्षा का परिणाम कैसा होगा, नौकरी मिलेगी या नहीं, और तो और बच्चों के विवाह से संबन्धित जानकारियों को जानने की उत्सुकता स्वाभाविक है। आज भविष्य को जानने के कई तरीके हमारे आस पास विद्यमान हैं जैसे- टैरो कार्ड, अंक ज्योतिष, ग्रँफोलॉजी, और पुराने समय से चले आ रहे कुछ संसाधन जिसका ज्ञान अधिकतम लोगों को है, जैसे- कुण्डली, नाङी शास्त्र, हस्त ज्योतिषी इत्यादि। भविष्य के साथ आज लोगों के व्यक्तित्व की भी परख करने के कई तरीके आजमाए जाते हैं।

आज का युग कंप्युटर का युग है तो जाहिर सी बात है लोगों के व्यक्तित्व को जानने में कंप्युटर का भी अपना योगदान है। कंप्युटर-फोंट्स के आधार पर लोगों के व्यक्तित्व को समझने का प्रयास किया जा रहा है। डॉ. एरिक की किताब द साइकोलॉजी ऑफ फोंट्स के अनुसार समझदार और अच्छी तरह सोच-विचार कर काम करने वाले लोग कूरियर जबकि उत्तेजक और बिंदास किस्म के लोग जॉर्जिया या शैली जैसे घुमावदार फोंट काम में लेना पसंद करते हैं। टाइम्स न्यू रोमन जैसे फोंट समझौतावादी प्रकृति को दर्शाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर किसी परंपरागत कंपनी में नौकरी के लिये आवेदन करें तो सी.वी. बनाते समय टाइम्स फोंट का इस्तेमाल करें यदि कंपनी आधुनिक है तो वर्दाना फोंट्स का इस्तेमाल करें। नौकरी छोङते समय कूरियर न्यू' का इस्तेमाल करें। अध्ययन के अनुसार पुरूषों को आयताकार जबकि महिलाओं को गोल और घुमावदार फोंट पसंद आते हैं।

पिछले कुछ वर्षों से ग्राफोलॉजी भी व्यक्तित्व- परीक्षण की एक लोक प्रिय प्रणाली बन गई है। केवल इंग्लैण्ड में ही लगभग 3,000 बङी कंपनियां इस विधा को भर्ती-प्रक्रिया में इस्तेमाल कर रहीं हैं। लिखावट के माध्यम से किसी के व्यक्तित्व के बारे व्याख्या करने की यह पद्धति ग्राफोलॉजी (लीपि विज्ञान) कहलाती है। आजकल, न केवल चयन प्रक्रिया में बल्कि मनोवैज्ञानिक विश्लेषण सहित बहुत से दूसरे क्षेत्रों में भी ग्राफोलॉजी का प्रयोग किया जा रहा है। इसके द्वारा किसी व्यक्ति के मनोविज्ञान को समझने की कोशिश की जाती है। वैवाहिक संबधों में भी दो लोग एक दूसरे के लिए उपयुक्त हैं या नहीं, ये तय करने के लिये ग्राफोलॉजिस्ट की मदद ली जा रही है।

एक और रोचक प्रणाली भविष्य को एवं व्यक्तित्व को बताने में कामयाब हो रही है, वो है कॉफी कप रीडिंग। दानेदार कॉफी पीने के बाद कप में जो आकृतियां बनती हैं उसी से आने वाले कल के बारे में बताया जाता है। कॉफी कप रीडिंग से भविष्य बताने का चलन लगभग 1400 साल पुराना है। यह सिलसिला चीन से शुरू हुआ था, उसके बाद  अरब देशों में कॉफी कप रीडिंग की शुरूवात टर्की से हुई थी। इंग्लैण्ड में भी इसका चलन ज्यादा रहा किन्तु भारत में यह बिलकुल नई तकनीक है। कॉफी कप रीडिंग के लिये घरों में मिलने वाली सामान्य कॉफी का इस्तेमाल नहीं होता इसके लिये दाने दार कॉफी की जरूरत होती है और जो कप इस्तेमाल किये जाते हैं वो यू शेप में चौङे फैले हुए होते हैं। इसमें दूध का भी प्रयोग नहीं होता। कैरियर, शिक्षा, सेहत, रिश्तों की समस्या, पैसा आदि यानि जिसकी जो समस्या हो वह बताई जा सकती है।
    
भविष्य बताने वाली विधाओं में टैरो कार्ड इन दिनों बहुत तेजी से लोगों को आकर्षित कर रहा है। पिछले दस वर्षों में टैरो कार्ड पढने वालों की संख्या पचास गुणा बढी है। मिस्टिक इंडिया नामक संगठन के अनुसार अकेले दिल्ली में लगभग 1200 कार्ड रीडर हैं। टैरो कार्ड मामूली पत्ते नहीं होते। उन्हे एक खास आध्यात्मिक भाव के साथ भविष्यवाणी के लिये इस्तेमाल किया जाता है।

बहरहाल, भले ही ये तरीके भविष्य एवं व्यक्तित्व की जानकारी देने का दावा करते हों किन्तु ये कहना गलत न होगा कि कोई भी तर्क पूर्णतः सत्यता को प्रमाणित नहीं करते। कुछ अपवाद भी हैं। हिरोशिमा की घटना हो या भोपाल गैस त्रासदी जिसमें हजारों लोग मृत्यु के आगोश में आ गये। ये सोचने वाली बात है कि, इन हजारों लोगों को, जिनको मौत निगल गई, ज्योतिषियों ने कुंडली अथवा हाँथ देखकर कभी नहीं बताया होगा कि आप सब फलां दिन एक साथ मर जाओगे; उनको सावधान भी न किया होगा कि इस क्षेत्र को छोङ कर आप सभी कहीं और चले जाएं। मौत की सूचना मिल भी जाए तो मौत के साथ कुछ किया नहीं जा सकता। जीवन कहीं भी वाष्पीभूत हो सकता है। अतः जीवन तथा प्रकृति के नियम को भी समझना चाहिए, जिन्हे मनुष्य बदल नहीं सकता

आज तक ज्यादातर भविष्यवाणियां सही नहीं निकलती फिर भी हम सभी मानव के मन में भविष्य जानने की उत्सुकता हमेशा नित नये तरीकों को आजमाती रहती है। सब कुछ जानते समझते हुए भी आज सब कुछ जल्दि जानने की प्रवृत्ति के कारण ही भविष्य बताने वालों का व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है।

मित्रों, भविष्य जानने की कोशिश गलत नही है किन्तु भविष्य को जान कर केवल भाग्य भरोसे जीवन गुजारना एक गलत मानसिकता है। अतः कर्म पर अधिक विश्वास करना चाहिये क्योंकि भाग्य भरोसे हाँथ पर हाँथ रखकर बैठे रहना और असफलता पर भाग्य या किस्मत को कोसना गलत है।

Tuesday, 14 May 2013

मुगल गार्डेन और डॉ.ए.पी.जे अब्दुल कलाम



जीवन में बङे सपने देखने और उसे पूरा करने में विश्वास रखने वाले महान वैज्ञानिक, देश-विदेश के लाखों युवाओं के आदर्श डॉ.ए.पी.जे अब्दुल कलाम साहब अपने मजबूत हौसलों के साथ 2002में राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए। अपने कार्यकाल के दौरान आपने राष्ट्रपति भवन में स्थित मुगल गार्डेन को नये आयामों से सुशोभित किये।

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम साहब का मुगल गार्डन से लगाव राष्ट्रपति बनने के पहले से था। वर्ष 1997 में जब आपको भारतरत्न से सम्मानित किया गया था, तब तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर.नारायणन की पुत्री चित्रा नारायणन के साथ मुगल गार्डन घूमने का अवसर प्राप्त हुआ। उद्यान की अप्रतिम सुन्दरता को देखकर कलाम साहब को बहुत खुशी हुई और उद्यान को चाँदनी रात में देखने की इच्छा जाहिर किये। ये इच्छा राष्ट्रपति के.आर.नारायणन को एवं उनकी पत्नी को पता चली, उसके बाद जब भी कलाम साहब विभागीय काम से दिल्ली आते, तो राष्ट्रपति के आग्रह पर राष्ट्रपति भवन में ही ठहरते थे।

कलाम साहब के अनुसार- तब मुझे पता न था कि राष्ट्रपति भवन में मुझे पूर्णमासी की साठ रातें देखने का अवसर मिलेगा। जिन दिनों मैं वहाँ था, मुगल गार्डन मेरे लिये एक बङा प्रयोग स्थल बन गया था। वह एक बङा संवाद मंच था जिस से मैने प्रकृति के और अपने देश वासीयों के साथ मन की बातें की, जहाँ मैने विविध क्षेत्रों से आये लोगों से विचार-विमर्श किया। बाग के अनेक पशु-पक्षी मेरे अंतरंग हो गये थे। बगीचे का सुव्यवस्थित परिवेश और पेङ-पौधे मुझे शान्ति प्रदान करते थे। कलाम साहब के कार्य-काल में 2007 में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ घूमते हुए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शौकत अजीज ने कहा था कि अगर मुगल गार्डन में द्विपक्षिय मिटिंग हो जाये तो, दोनो देशों के भेद-भाव छू मंतर हो जायेंगे।

डॉ. कलाम साहब ने बगीचे में दो झोपङियां बनवाईं थीं। दोनो प्राकृतिक पदार्थों से बनी है। एक का नाम थिंकिग हट तथा दूसरी का नाम इम्मोरटल हट है। थिंकिग हट का डिजाइन त्रिपुरा के कारिगर द्वारा किया गया है। आपकी पुस्तक इनडोमिटेबल स्पिरिट का बहुत बङा हिस्सा इसी हट में लिखा गया है। दूसरी हट, इम्मोरटल हट यानि, अमर स्थलि। डॉ.कलाम साहब की पुस्तक गाइडिंग सोल, जो जीवन के लक्ष्य की खोज पर आधारित है, उसका उद्भव इसी हट में हुआ था। राष्ट्रहित से जुङे कई विचार-विमर्श डॉ.कलाम साहब अपने मित्रों के साथ इन्ही हटों में किया करते थे। अनेक कविताओं का उद्भव भी यहाँ हुआ था।
डॉ.कलाम साहब की सामाजिक चेतना एवं प्राकृतिक प्रेम की वजह से मुगल गार्डन में कई नये सुधार भी किये गये थे। स्पर्शनीय पौधों के बगीचे की नींव सामाजिक जागरुकता का स्पष्ट उदाहरण है। भारत में एवं विश्व में इस तरह के बगीचे बहुत कम है। लखनऊ में सी.एस.आई.आर नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीटयूट में स्पर्शनीय उद्यान है। राष्ट्रपति कलाम साहब के प्रयासों का ही परिणाम है कि 2004 राष्ट्रपति भवन में स्पर्शनीय बगीचा लगाया गया। फल, फूल, औषधी तथा मसालों के पौधों की क्यारियों पर सूचना पट्टिका के जरिये संबधित पौधे के बारे में हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषाओं और ब्रेल लिपि में लिखा है। प्रतिवर्ष जब भी ये बगीचा दृष्टीबाधितों के लिये खोला जाता कलाम साहब उनके साथ जाते थे। दृष्टीबाधितों की खुशी देखकर कलाम साहब बहुत खुश होते थे। 2006 में मुगल गार्डन में संगीतमय फव्वारा लगाया गया था।
जब अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्लयु बुश अपनी पत्नि और शिष्य मंडल के साथ भारत आये थे, तब उनके सम्मान में मुगल गार्डन में प्रतिभोज आयोजित किया गया था। इस प्रतिभोज में बहुत से कलाकार एवं बुद्धी जीवी और अतिविशिष्ठ व्यक्ति भी आमंत्रित थे। जॉर्ज दम्पत्ति इस अद्भुत आयोजन से अत्यधिक प्रभावित हुए थे। डॉ. कलाम साहब के अनुसार पूर्णिमा की एक रात को जब पंडित शिवकुमार शर्मा ने 500 लोगों के सम्मुख संतूर-वादन किये तो यह संगीतमय बगीचे का स्वर्णिम क्षंण था।

बायो डायवर्सिटी पार्क का आगाज भी डॉ. कलाम साहब के कार्यकाल में ही हुआ था। जिसमें बहुत से पक्षियों और पशुओं की प्रजातियाँ लाई गई थी। मछलियों के लिये तालाब, खरगोश के खोह, बत्तखों के घर और पक्षियों के ठिकाने से ये पार्क प्रकृति प्रेम का अद्भुत स्थल बन गया है। एक बार डॉ. कलाम साहब अपने मित्र डॉ. सुधीर के साथ टहलने निकले तभी एक नन्ही हिरनी रास्ते में दिखी जिसे उसकी माँ ने त्याग दिया था। वो ठीक से चल भी नही पा रही थी क्योंकि उसकी दो टाँगे जन्म से ही चोटिल थी। डॉ. सुधीर के इलाज से वो कुछ दिनों बाद ठीक हो गई और कुछ हफ्तों बाद हिरनों के झुण्ड ने उसे अपना लिया। डॉ. कलाम साहब के अनुसार, मैं इस घटना से बहुत अभिभूत हुआ था। राष्ट्रपति भवन में मुगल गार्डन और परिसर के अन्य बगीचों ने जो आनंद की अनुभूति मुझे दी, उसके प्रति बहुत भावुक हूँ। मैं इस बात के लिये सर्वशक्तिमान का शुक्रिया अदा करता हुँ, जिसने मुझे कुदरत का यह सुख लेने का मौका दिया।

देश-विदेश के लाखों युवाओं के आदर्श और प्रेरणास्रोत डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम सबसे अधिक लोकप्रिय राष्ट्रपति एवं वैज्ञानिक हैं। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के अनमोल संदेश के साथ कलम को विराम देते हैं।
  
"अपने मिशन में कामयाब होने के लिए , आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकचित्त निष्ठावान होना पड़ेगा."


नोट  (प्रस्तुत जानकारी टर्निंग प्वांइट पुस्तक पर आधारित है, यदि कोई भूल हुई हो तो क्षमाप्रार्थी है.)


Wednesday, 8 May 2013

Special Mother: पन्ना धाय



भारत का इतिहास त्याग और बलिदान के गौरव को समाहित किये हुए है। इसका हर पन्ना बलिदान की गौरवगाथा को सुनाता है। इतिहास का ऐसा ही एक पन्ना, पन्ना धाय के बलिदान एवं स्वामीभक्ति की अनूठी मिशाल को परिलाक्षित करते हुए स्वर्णअक्षरों से लिखा गया। माँ का ये रूप राजस्थान के लिये ही नही वरन पूरे भारत वर्ष के लिये गौरव का प्रतीक है।

स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना धन्य हैं! जिसने अपने कर्तव्य-पूर्ति में अपनी आँखों के तारे पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया। मेवाड़ के इतिहास में जिस गौरव के साथ महाराणा प्रताप को याद किया जाता है, उसी गौरव के साथ पन्ना धाय का नाम भी लिया जाता है, जिसने स्वामीभक्ति को सर्वोपरि मानते हुए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था। पन्ना धाय राणा साँगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं। पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं। अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्ना धाय का जन्म कमेरी गावँ में हुआ था। राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना 'धाय माँ'  कहलाई थी। पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था। उदयसिहं की माँ स्वर्ग सिधारते समय पन्नाधाय को बालक की परवरिश करने का दायित्व दे गईं थीं। पन्ना ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की।

सन् 1535 मे चितौड़ का असली उत्तराधिकारी , विक्रमादित्य का अनुज उदय सिंह, जब मात्र छ: वर्ष का था| दासी पुत्र बनबीर ने चितौड़ की राजगद्दी हथिया लेने की मंशा से विक्रमादित्य की हत्या कर , लक्ष्य के एक मात्र अवरोध चितौड़ के वंशानुगत उत्तराधिकारी बालक उदय को भी रास्ते से हटाने के लिये उसके कक्ष की ओर बढा किन्तु पन्ना धाय को उसके अमानवीय इरादों का आभास हो गया था। उसने तुरंत शिशु उदय सिंह को टोकरी में सुला पत्तियों से ढक कर एक सेवक को उसे सुरक्षित निकालने का दायित्व सोंपा | फिर खाट पर उदय सिंह की जगह अपने पुत्र चंदन को लिटा दिया | सत्ता के मद में चूर क्रुद्ध बनबीर ने वहां पहुँचते ही तलवार घोंप कर पन्ना के बालक को उदय समझ मार डाला | बलबीर को कुछ पता चलता उसके पहले ही शिशु का अंतिम संस्कार कर दिया गया। स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना धन्य हैं! जिसने अपने कर्तव्य-पूर्ति में अपनी आँखों के तारे पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया।

त्याग की अद्भुत मिशाल पन्ना धाय माँ को कभी भुलाया नही जा सकता। उनका नाम सदैव अमर है। ऐसी विरांगना को मातृदिवस पर शत्-शत् नमन।

Thursday, 2 May 2013

एकतरफा विनिमय प्रणाली


कल  की बात है पोस्ट ऑफिस में रजिस्ट्री करने गये थे। एक रजिस्ट्री का चार्ज 39 रूपये था। पोस्ट ऑफिस वाले ने मुझे एक रूपये वापस करने की बजाय एक रूपये का टिकट दे दिया। जरा सोचिये! आज के E-Mail & SMS  के जमाने में कौन पत्र लिखता है, जिसे इस टिकिट की जरूरत पङेगी? फिर भी पूँजीवाद के और वैश्वीकरण के इस युग में प्रत्येक उत्पादक का पहला उद्देश्य होता है, अपने लाभ को बढाना। अपने उद्देश्य की पूर्ती के लिये आज उत्पादक या दूकानदार नित नये तरीकों से शोषण कर रहा है।  चाहे वो सरकारी महकमा हो या दवा की दुकान हो या किराने की दुकान हर जगह चिल्लर की कमी की दुहाई देकर फुटकर पैसे की जगह टॉफी पकङा देते हैं। बाजारवाद की ये प्रणाली एकदम अलग है क्योंकि ये सिर्फ एकतरफा है। आलम ये है कि जब हम दुकानदार से 96 रूपये की कोई चीज लेते हैं तो जाहिर सी बात है उसे 100 का नोट देते हैं किन्तु वो चार रूपये वापस करने की वजाय हमें चार रूपये कि चार टॉफियाँ दे देता है। वहीं यदि हम 104 का कोई सामान लेते हैं तो हम उसे चार रूपये की बजाय चार टॉफियाँ दें तो वह नही लेता। ऐसा क्यों ?

इतिहास पर यदि एक नजर देखें तो, जब किसी एक वस्तु या सेवा के बदले दूसरी बस्तु या सेवा का लेन-देन होता है तो इसे वस्तु विनिमय (Bartering) कहते हैं। जैसे एक गाय लेकर 10 बकरियाँ देना या अनाज के बदले अनाज इत्यादि। इस पद्धति में विनिमय की सार्वजनिक इकाई (अर्थात मुद्रा, रूपये-पैसे) का इस्तेमाल नही किया जाता था। मुद्रा के प्रादुर्भाव के पहले सारा लेन-देन (विनिमय) वस्तु-विनिमय के रूप में ही होता था। जाहिर सी बात है इस तरह की प्रणाली में वस्तु का सही निर्धारण नही होता था। तब मुद्रा प्रणाली का विकास हुआ। किन्तु आज जो बाजार की व्यवस्था है, वो तो सिर्फ शोषण की प्रणाली है।


One Way  विनिमय प्रणाली को प्रचार के नये तरीकों से मीडीया भी बढावा दे रहा है। हाल ही में एक प्रचार में एक लङका टैक्सी ड्राइवर से किराये से वापस बचे पुरे छुट्टे पैसे माँगता है, लेकिन ड्राइवर एक रूपये वापस करने के बजाय उसे एक विडियो दिखाता है और बोलता है कि देख लो पूरा तुम्हारा एक रूपये वसूल हो जायेगा। जिस कंपनी का प्रचार है उसका मकसद है ये बताना कि एक रूपये में पूरा विडियो देखा जा सकता है किन्तु अनजाने में ही सही, ये प्रचार आज की वस्तु विनिमय प्रणाली को बढावा ही दे रहा है। अलग-अलग जगह पर ये एकतरफा विनिमय प्रणाली अपना माया जाल फैलाए हुई है। बुक फेयर में छुट्टे की जगह स्टीकर दे देते हैं। ये गौर करने वाली बात है क्या वास्तव में सरकार फुटकर पैसों की सप्लाई नही कर पा रही है? या इस अंधी लूट को बढावा देना उसकी साजिश का हिस्सा है। जरा सोचीये !