कल की बात है पोस्ट ऑफिस में रजिस्ट्री करने गये थे। एक रजिस्ट्री का चार्ज 39 रूपये था। पोस्ट ऑफिस वाले ने मुझे एक रूपये वापस करने की बजाय एक रूपये का टिकट दे दिया। जरा सोचिये! आज के E-Mail & SMS के जमाने में कौन पत्र लिखता है, जिसे इस टिकिट की जरूरत पङेगी? फिर भी पूँजीवाद के और वैश्वीकरण के इस युग में प्रत्येक उत्पादक का पहला उद्देश्य होता है, अपने लाभ को बढाना। अपने उद्देश्य की पूर्ती के लिये आज उत्पादक या दूकानदार नित नये तरीकों से शोषण कर रहा है। चाहे वो सरकारी महकमा हो या दवा की दुकान हो या किराने की दुकान हर जगह चिल्लर की कमी की दुहाई देकर फुटकर पैसे की जगह टॉफी पकङा देते हैं। बाजारवाद की ये प्रणाली एकदम अलग है क्योंकि ये सिर्फ एकतरफा है। आलम ये है कि जब हम दुकानदार से 96 रूपये की कोई चीज लेते हैं तो जाहिर सी बात है उसे 100 का नोट देते हैं किन्तु वो चार रूपये वापस करने की वजाय हमें चार रूपये कि चार टॉफियाँ दे देता है। वहीं यदि हम 104 का कोई सामान लेते हैं तो हम उसे चार रूपये की बजाय चार टॉफियाँ दें तो वह नही लेता। ऐसा क्यों ?
इतिहास पर यदि एक नजर देखें तो, जब किसी एक वस्तु या सेवा के बदले दूसरी बस्तु या सेवा का लेन-देन होता है तो इसे वस्तु विनिमय (Bartering) कहते हैं। जैसे एक गाय लेकर 10 बकरियाँ देना या अनाज के बदले अनाज इत्यादि। इस पद्धति में विनिमय की सार्वजनिक इकाई (अर्थात मुद्रा, रूपये-पैसे) का इस्तेमाल नही किया जाता था। मुद्रा के प्रादुर्भाव के पहले सारा लेन-देन (विनिमय) वस्तु-विनिमय के रूप में ही होता था। जाहिर सी बात है इस तरह की प्रणाली में वस्तु का सही निर्धारण नही होता था। तब मुद्रा प्रणाली का विकास हुआ। किन्तु आज जो बाजार की व्यवस्था है, वो तो सिर्फ शोषण की प्रणाली है।
One Way विनिमय प्रणाली को प्रचार के नये तरीकों से मीडीया भी बढावा दे रहा है। हाल ही में एक प्रचार में एक लङका टैक्सी ड्राइवर से किराये से वापस बचे पुरे छुट्टे पैसे माँगता है, लेकिन ड्राइवर एक रूपये वापस करने के बजाय उसे एक विडियो दिखाता है और बोलता है कि देख लो पूरा तुम्हारा एक रूपये वसूल हो जायेगा। जिस कंपनी का प्रचार है उसका मकसद है ये बताना कि एक रूपये में पूरा विडियो देखा जा सकता है किन्तु अनजाने में ही सही, ये प्रचार आज की वस्तु विनिमय प्रणाली को बढावा ही दे रहा है। अलग-अलग जगह पर ये एकतरफा विनिमय प्रणाली अपना माया जाल फैलाए हुई है। बुक फेयर में छुट्टे की जगह स्टीकर दे देते हैं। ये गौर करने वाली बात है क्या वास्तव में सरकार फुटकर पैसों की सप्लाई नही कर पा रही है? या इस अंधी लूट को बढावा देना उसकी साजिश का हिस्सा है। जरा सोचीये !
सच कहा आपने , फुटकर के बहाने हम हर महीने सैकड़ों रूपये अनावश्यक चीजें लेने में बर्वाद कर देते हैं. समस्या तो है पर पता नहीं इसका समाधान क्या है ?
ReplyDeleteसोचता हूँ मैं भी जेब में टॉफ़ी रख के चलूँ !!
Iss se bachane ke liye hamain khule rupayai lekar market janaa chahiye......Brij Bhushan Gupta, New Delhi, 9810360393
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