बसंत की विदाई और ग्रीष्म के आगमन के बीच में भीनी-भीनी महक लिये होली का त्योहार अपने रंगो की बहार से भारत की फीजा को उल्लास पूर्ण बना देता है। तरह तरह के रंग-गुलाल सबके जीवन को अनगिनत भावनाओं से सराबोर कर देते हैं। ये रंग मन को तो रंगते ही हैं, साथ ही वसंत के झोके के साथ फागुन के रंगो की बहार लिये जीवन के अवसाद पर खुशियों भरे रंगो की भी बौछार कर देते है।
होली तो एक ऐसा त्योहार है जिसमें अनेक भावों का रंग समाया हुआ है। ये सारे देश का त्योहार है। होली में हिन्दु मुस्लिम एकता का रंग और गहरा हो जाता है। नवाब आसिफ उद्दौला के समय तो होली आते ही अयोध्या के आस-पास के क्षेत्रों से कलाकार लखनऊ आ जाते थे और अपनी कला का प्रदर्शन करते थे, जिनमें कहारों का 'कहरवां' और धोबियों का 'बरहण' काफी सराहा जाता था। नवाब वाजिद अली ने तो होली के लिये विशेष गीत लिखा था.....
"ऐसे कन्हाई से प्रीत न करिए, बहिया गहे मोरी सारी रे।
पिया मेरा मन ललचाए, काहे मारत पिचकारी रे।
फागुन का सबसे पुराना त्योहार होली है जिसमें समय-समय पर नए-नए विधान जुड़ते गए। पौराणिक काल की कथा के अनुसार प्रहलाद और उनकी बुआ होलिका का किस्सा मशहूर है। इतिहास के अनुसार तो सुलतान, शंहशाह और बादशाह भी आम जनता के साथ मिलकर होली का त्योहार मनाते थे। बरसाने की होली तो कृष्ण और गोपियों की गाथा से रंगी हुई है।
होली ने तो क्रांति में भी रंग भर दिया था। कानपुर की होली इसका जिवंत उदाहरण है। 1942 में कानपुर को एशिया का मेनचेस्टर कहा जाता था। देश के कोने-कोने से गाॉव के लोग रोजी रोटी कमाने यहाँ आते थे। होली पर ये लोग कई दिनों तक खुशी के रंग से सराबोर रहते थे, जिसे कुछ अंग्रेज अफसर पसंद नही करते थे। एक बार एक अंग्रेज अधिकारी पर रंग पड़ गया , उसने कलेक्टर से कह कर सख्त आदेश जारि करवाया जिसमें होली न खेलने की बात कही गई।
इस सांस्कृतिक गुलामी के खिलाफ पूरे कानपूर के नागरिकों ने क्रांति का शंखनाद कर दिया। हटिया के रज्जन बाबू पार्क में तिरंगा फैलाया गया। अनेक साथी गिरफ्तार हुए और पूरे शहर में होली एक क्रांति का प्रतीक बन गई थी। इस क्रांति में हिन्दु मुस्लिम और सिख्ख सभी लोग शामिल थे। इस क्राति का ऐसा असर हुआ कि अंग्रेजों को झुकना पड़ा और होली खेलने की इजाज़त देनी पड़ी। इस जीत के बाद कानपुर में पूरे सात दिन तक होली मनाई गई तभी से आज तक कानपुर में सात दिन तक होली मनाई जाती है।
क्रांति हो या धार्मिक तथा सामाजिक माहौल हो, होली के त्योहर में ये सभी रंग इस तरह समाये हुए हैं कि ये पर्व भाई-चारे का प्रतीक बन गया है।होली का पर्व तो अपने रंगों के कारण सम्पूर्ण विश्व को, अपने रंग अपनी संस्कृति में बदल लेता है। कोई किसी भी देश का नागरिक हो लेकिन होली के रंगों के कारण विदेश में भी फगुआ के दिन भारतीय दिखाई देता है। यही तो होली की वैश्विक सांस्कृत विरासत है। गंगा जमुनी रंग में रंगा ये पर्व
होली तो एक ऐसा त्योहार है जिसमें अनेक भावों का रंग समाया हुआ है। ये सारे देश का त्योहार है। होली में हिन्दु मुस्लिम एकता का रंग और गहरा हो जाता है। नवाब आसिफ उद्दौला के समय तो होली आते ही अयोध्या के आस-पास के क्षेत्रों से कलाकार लखनऊ आ जाते थे और अपनी कला का प्रदर्शन करते थे, जिनमें कहारों का 'कहरवां' और धोबियों का 'बरहण' काफी सराहा जाता था। नवाब वाजिद अली ने तो होली के लिये विशेष गीत लिखा था.....
"ऐसे कन्हाई से प्रीत न करिए, बहिया गहे मोरी सारी रे।
पिया मेरा मन ललचाए, काहे मारत पिचकारी रे।
फागुन का सबसे पुराना त्योहार होली है जिसमें समय-समय पर नए-नए विधान जुड़ते गए। पौराणिक काल की कथा के अनुसार प्रहलाद और उनकी बुआ होलिका का किस्सा मशहूर है। इतिहास के अनुसार तो सुलतान, शंहशाह और बादशाह भी आम जनता के साथ मिलकर होली का त्योहार मनाते थे। बरसाने की होली तो कृष्ण और गोपियों की गाथा से रंगी हुई है।
होली ने तो क्रांति में भी रंग भर दिया था। कानपुर की होली इसका जिवंत उदाहरण है। 1942 में कानपुर को एशिया का मेनचेस्टर कहा जाता था। देश के कोने-कोने से गाॉव के लोग रोजी रोटी कमाने यहाँ आते थे। होली पर ये लोग कई दिनों तक खुशी के रंग से सराबोर रहते थे, जिसे कुछ अंग्रेज अफसर पसंद नही करते थे। एक बार एक अंग्रेज अधिकारी पर रंग पड़ गया , उसने कलेक्टर से कह कर सख्त आदेश जारि करवाया जिसमें होली न खेलने की बात कही गई।
इस सांस्कृतिक गुलामी के खिलाफ पूरे कानपूर के नागरिकों ने क्रांति का शंखनाद कर दिया। हटिया के रज्जन बाबू पार्क में तिरंगा फैलाया गया। अनेक साथी गिरफ्तार हुए और पूरे शहर में होली एक क्रांति का प्रतीक बन गई थी। इस क्रांति में हिन्दु मुस्लिम और सिख्ख सभी लोग शामिल थे। इस क्राति का ऐसा असर हुआ कि अंग्रेजों को झुकना पड़ा और होली खेलने की इजाज़त देनी पड़ी। इस जीत के बाद कानपुर में पूरे सात दिन तक होली मनाई गई तभी से आज तक कानपुर में सात दिन तक होली मनाई जाती है।
क्रांति हो या धार्मिक तथा सामाजिक माहौल हो, होली के त्योहर में ये सभी रंग इस तरह समाये हुए हैं कि ये पर्व भाई-चारे का प्रतीक बन गया है।होली का पर्व तो अपने रंगों के कारण सम्पूर्ण विश्व को, अपने रंग अपनी संस्कृति में बदल लेता है। कोई किसी भी देश का नागरिक हो लेकिन होली के रंगों के कारण विदेश में भी फगुआ के दिन भारतीय दिखाई देता है। यही तो होली की वैश्विक सांस्कृत विरासत है। गंगा जमुनी रंग में रंगा ये पर्व
इंसानियत का पैगाम है। रंगो के इस महोत्सव पर सुख, समृद्धी और खुशहाली के रंग से सबका जीवन मंगलमय हो।
होली की हार्दिक बधाई
No comments:
Post a Comment