भारत के मेरे सभी साथियों
मैं आज आप सबसे अपने मन की बात कहती हूँ। मैं आप सबकी हिंदी हूं जिसे आप वर्ष में
सिर्फ एक दिन 14 सितंबर को याद करते हैं। मुझे संविधान की पुस्तक में जकङ कर रख
दिया गया है, जबकि मैं भी अपने पंखो को खोलना चाहती हूं। चारो दिशाओं में उङना
चाहती हूं। मैं नदियों की तरह कल-कल करती हुई धरती पर प्रवाहित होना चाहती हूं।
दूर आसमान में मस्त पवन के संग बातें करना चाहती हूं। साथियों, मैं ऋषियों की वाणी
से निकल कर जन-जन का सुर बनना चाहती हूँ।
साहित्यकारों की कमान से निकल प्राथमिक
विद्यालयों में बच्चों के संग गुनगुनाना चाहती हूं। आज आप हमारे नाम से सप्ताह मना
रहे हो, कविताओं और निबन्धों का आयोजन कर रहे हो। जबकि मैं तो हर पल आपका साथ
चाहती हूँ। सरकारी कामकाज की गलियों से निकलकर निजीकार्यलयों के कागजों पर चमकना
चाहती हूं। आज के वैश्वीकरण में युग में मैं भी तकनिकी शब्दों से अलंकृत होना
चाहती हूँ। मित्रों, ऐसा नही है कि मुझमें क्षमता नही है। सच्चाई तो ये है कि, मैं
अंनतकाल से तकनिकी का आधार थी। परंतु समय का एक पल ऐसा आया जब मुझे कैद कर गुलाम
बना लिया गया। आज मेरा देश तो स्वतंत्र हो गया लेकिन मैं आज भी स्वतंत्र विचरण नही
कर सकती क्योंकि, जाते-जाते वो लोग मेरे घर में ही ऐसी जहरीली मानसिकता का जहर घोल गये जहां
मेरी बहने ही मुझसे दूर हो गईं। आज मैं सात समन्दर पार सम्मानित होती हूं किंतु अपनो
में बेगानी सी भटक रही हूं। मैं रस, छंद,
अलंकारो से अलंकृत भारत के भाल की बिंदी हूं। अनजाने भी अपने हो जाते हैं मेरे
व्यवहार से फिर क्यों मुझे अपनो ने ही सिर्फ दिवस या सप्ताह में समेट लिया है। मैं तो स्वाभीमान हुँ तुम्हारा, यदि मिले सुर मेरा तुम्हारा तभी तो अभिमान होगा क्योकि मैं हूं हिंदी और हिंदुस्तान हमारा।
मेरी तो अभिलाषा है कि, स्वदेश में या विदेश में जहाँ भी मिले भारतवासी वार्तालाप
हिंदी में हो। हिंद का गौरव; हिंदी भारत की कामयाबी का परचम चहुँओर फहराये। मेरे
प्यारे साथियों, यदि वास्तव में मुझे सम्मानित करना चाहते हो तो आज दृणसंक्लप करो
कि, मुझे दिवस के बंधनो से मुक्त करके खुला आसमान दोगे। शिक्षा और धनार्जन में भी
मुझे साथ रखोगे। मुझे विश्व में प्रथम स्थान पर विभूषित करके भारत का सम्मान करो
धन्यवाद :)