गुजरात का डाडिंया
आज लगभग पूरे भारत में जोर शोर से मनाया जाता है। शनिवार की शाम डांडिये की
मनोहारी प्रस्तुती हमारी संस्था में भी हुई। पूरे जोश एवं उल्लास के साथ बच्चियों
ने गरबा नृत्य किया जो बहुत ही स्पेशल था क्योंकि ये गरबा दृष्टीबाधित बच्चियों
द्वारा प्रस्तुत किया गया था। उनकी प्रस्तुती मन को मोहने वाली थी।
भारत के विभिन्न
प्रान्तो एवं मध्य प्रदेश के विभिन्न आँचलों से आई इन बच्चियों ने गरबा नृत्य
द्वारा गुजरात की याद दिला दी। पिछले महिने 5 सितंबर को शिक्षक दिवस का कार्यक्रम
भी दिल को जीतने वाला था। पूरे कार्यक्रम का आयोजन दृष्टीबाधित बच्चियों ने (रूप
रेखा से संचालन तक) स्वतः ही किया था।
उनका संचालन देख कर मन प्रफुल्लित हो गया था।
मित्रों, सामान्य
बच्चों के कार्यक्रम तो हम सभी अपने बच्चों के विद्यालयों में या अन्य माध्यमो से
देखते ही हैं किन्तु इन बच्चियों का कार्यक्रम सकारात्मक संदेश देता है, जिनको
ईश्वर ने बनाने में थोङी कंजूसी की है फिर भी ईश्वर से कोई शिकायत किये बिना, ये
बच्चियाँ सभी त्योहारों को पूरे उत्साह एवं आंनद के साथ मनाने का प्रयास करती हैं,
उनकी दृष्टीबाधिता उनके हौसले में बाधा नही है। उनका जज़्बा काबिले तारीफ है।
ये बच्चियाँ
सांस्कृतिक गतिविधियों में पूरे जोश से अपनी योग्यता को तो प्रमाणित करती ही हैं,
इसके अलावा शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका
प्रदर्शन उच्च कोटी का होता है। कई बच्चियों ने अपनी-अपनी कक्षा में प्रथम स्थान
अजिर्त किया है जो सामान्य बच्चों के साथ ही संचालित होती है।
आत्मनिर्भर बनने का
सपना लिये निरंतर आगे बढने का प्रयास कर रही इन बच्चियों को, आपका थोङा सा साथ उनके हौसले को
और भी आगे बढा सकता है क्योंकि समाज की सामान्य धारा के साथ इनको भी जुङने का पूरा
अधिकार है।
रूजवेल्ट ने कहा है
कि- किसी सार्थक काम के लिये अवसर दे कर जिंदगी हमें सबसे बङा ईनाम देती है।
आज की आधुनिक शिक्षा
में जिस तरह कम्प्युटर का वर्चस्व है वहाँ भी ये बच्चियाँ पूरे विश्वास के साथ
कम्प्यूटर शिक्षा को पूरे हौसले से सीख रही हैं क्योकि जिंदगी में आगे बढने का
सपना उन्हे सकारात्मक ऊर्जा देता है।
माननीय डॉ. अब्दुल
कलाम का कहना है कि- ईश्वर की सभी रचनाओं से प्यार करो, किसी के जीवन में उजाला
लाओ। उनका मानना है कि- सुन्दर परिवेश रचता है, सुन्दर विचार। सुन्दर विचारों से ही
ताजगी और कृतित्व का सृजन होता है।
मित्रों, मानवीय
विचारों को यथार्थ में साकार करते हुए हम सभी को भी दृष्टीबाधित बच्चियों के
प्रयास में अपना सहयोग देना चाहिये क्योंकि उन्हे आपका साथ चाहिये दया नही।
बच्चियों का जज़बा देखकर बरबस ही निम्न पंक्तियों पर विश्वास हो जाता हैः—
"मंजिल उन्ही को मिलती
जिनके सपनो में जान होती है
पंखो से कुछ नही
होता हौसलों से उङान होती है।"
अनीता जी, आप की भावाभिव्यक्ति अच्छी है लेकिन एक पाठक के रूप में मेरी यह जिज्ञासा अधिक थी की उन लडकियों ने किस तरह गरबा किया...वह सब लाइव लिखा होता तो यह लेख मुझे और ज्यादा पसंद आता.
ReplyDeleteभावाभिव्यक्ति अच्छी लगी इसके लिये धन्यवाद, दृष्टीबाधित बच्चियों ने गरबा कैसे किया ये स्वाभाविक जिज्ञासा है। इन बच्चियों को साधारण लोगों की अपेक्षा अधिक अभ्यास करना पङता है एवं इनको, उनकी दैनिक क्रियाकलापों को माध्यम बनाकर सिखाया जाता है। पूरा डांडिया नगाङे पर 16 मात्राओं की ताल को आधार मानकर किया गया था, किसी गीत पर प्रस्तुती नही थी। वैसे भी इनका रिदम सेंस बहुत अच्छा होता है।
Deleteय़े बच्चियाँ अपने कार्यकौशल का प्रर्दशन जिस सफलता से करती हैं वो मेरे लिये भी जिज्ञासा का विषय है एवं प्रेरणास्रोत भी है।
Netrheen bachhon ke jeevan mein jyoti jalaane ka prayas sachmuch prerna daayak hai. main aapke is prayaas kii tahe dil se sarahna karta hun.
ReplyDeleteBacchon ka khud is tarah ka karykram aayojit karna darshaata hai ki wo kisi se kam nahi hain.
Thank you very much, Gopal
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