भारतवासियों
में उपवास करने की प्रथा बहुत ही पुरानी और महत्वपूर्ण हैं। धार्मिक दृष्टी से अगर
हम देखें तो, उपवास दो शब्दों उप + वास से मिलकर बना है जिसका अर्थ
है, निकट निवास करना अर्थात उपवास के माध्यम से ईश्वर से निकटता बढ जाती है। हम सब
धर्म की चर्चा करते हैं एवं कुछ सकारात्मक सोचते हैं जो हम सभी के बेहतर जीवन के
लिये उपयोगी है।
आयुर्वेद
के प्रसिद्ध ग्रन्थ चरक संहिता से लेकर आज के विभिन्न चिकित्सीय शोधों ने उपवास को
लाभकारी बताया है। उपवास का तातपर्य है कि शरीर के पाचनतंत्र को आराम देना। कुदरत
की माँग भी है कि कुछ समय पेट को आराम दिया जाये ताकि स्वस्थ जीवन बिताया जा सके। उपवास
का मतलब भूखा मरने से नही है न ही इसके नाम पर फरियाली पकवान खाना...! जैसे- खिचड़ी, चिप्स, फरियाली
मिक्चर, साबूदाना
बड़े, मूँगफली के
नमकीन दाने आदि दिन भर
खाते रहने से लाभ के बजाय हानि ही होती है। वहीं यदि उपवास सही तरीके से किया जाए तो शरीर को कोई नुकसान
नहीं पहुँचता। हमारे शरीर में कई तरह के विषाक्त एकत्र हो जाते हैं उनको शरीर से
निकालना भी उपवास है।
उपवास के
समय अधिक मात्रा में जल का सेवन करना चाहिए। अधिक कमजोरी होने पर नींबू-पानी ले सकते हैं।
इससे आँतों की सफाई अच्छी तरह से हो जाती है। उपवास वाले दिन सुबह एवं शाम पैदल घूमना चाहिए।
आज कई
धर्मों में ऐसी मानसिकता जन्म ले रही है जहाँ व्रत कंपटिशन की शक्ल में दृष्टीगोचर
हो रहा है, दूसरों में अपने को श्रेष्ठ साबित करने के लिये अधिक से अधिक व्रत करते
हैं। उपवास के सार्थक लाभ को समझ कर उसे आत्मसात करना चाहिये। कहते हैं “काया राखे धर्म” कोई भी व्रत या उपास अपनी
शारीरिक शक्ती के आधार पर करना चाहिये, न तो किसी के कहने पर या न किसी की देखा
देखी, स्व विवेक से किया उपास ही सही अर्थ में उपवास है।
उपवास
का उद्देश्य होता है पाचन प्रणाली को पूर्ण रूपेण अवकाश प्रदान करना। जो भी भोजन
हम ग्रहण करते हैं उसे पचाने के लिए शरीर को बहुत सारी उर्जा खर्च करनी पड़ती है |शरीर की
पाचन प्रणाली सुचारू ढंग से कार्य करती रहे इसलिए उसे सप्ताह में कम से कम एक दिन
के लिए पूर्णतया अवकाश प्रदान करना चाहिए | हमारे धर्म
शास्त्रों में विभिन्न व्रत,उपवास को स्वस्थ्य की द्रष्टि से
ही जोड़ा गया है।
आस्था ,पवित्रता के
साथ किया गया उपवास हमारे मस्तिष्क व् शरीर दोनों को शुद्ध करता है| उपवास के दौरान भोजन को
पचाने वाली जो उर्जा बचती है वह शरीर के दोष दूर करने एवं रोगमुक्त करने में लग
जाती है| तीव्र रोगों में उपवास के समान कोई औषधि
नही है| इस मामले में मनुष्य से अधिक जानवर अधिक संवेदनशील
होते हैं क्योंकि वे बीमार पड़ने पर सबसे पहले भोजन का त्याग कर देते हैं और बिना
किसी औषधि के स्वस्थ्य भी हो जाते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि रोगमुक्त करने की
शक्ति शरीर मे ही मौजूद है, आवश्यकता इस बात की है कि उस उर्जा का सही वक्त पर सही
उपयोग किया जाये|
आयुर्वेद में उल्लेख है- अग्नि आहार को पचाती है और उपवास दोषों को पचाता
अर्थात नष्ट करता है। निश्चय ही उपास ऐसी औषधि है जिसमे बिना किसी
खतरे के रोग दूर कर देने की क्षमता है। अमेरिका के सुप्रसिद्ध
डॉक्टर चाल्सर् सी. हक्सले की चिकित्सा पद्धति के अनुसार, उपवास पद्धति
से कठिन रोग भी अच्छे हो जाते हैं।
उपवास केवल
भोजन त्यागने से ही पूर्ण नही होता, हमें अपने विचारों को भी सात्विक बनाना चाहीये
तभी सही मायने में उपवास पूरा होता है क्योंकि ये वो क्रिया है जिससे हमारी इक्छा
शक्ती (will power) मजबूत होती है। Strong, will power से हम जीवन की विषम परिस्थितियों से सामना कर सकते हैं एवं
शान्त भाव से उसका निवारण भी। अतः मित्रों, स्वस्थ मन और स्वस्थ तन के लिये उपवास
अचूक औषधि है।
Upvaas Oushdhi hai.............
ReplyDeleteUpvaas Oushdhi hai.............
ReplyDeleteBrij Bhushan Gupta, New Delhi, 9810360393