भगवान
शिवजी का 11वां रुद्र अवतार, सबसे बलवान और
बुद्धिमान, जिसके गुरु स्वयं सूर्य, ऐसे परम पूज्य अवतार हनुमान जी को गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘अघटित घटन-सुघटन
विघटन’ कह कर उनकी शक्ति का उल्लेख किया है। हनुमान जी का सम्पूर्ण
जीवन भक्त का जीवन है। व्यक्तिगत सुख-दुख से परे एक निष्काम साधक के रूप मे सदैव
भगवान राम के चरणों में अनन्य भक्ति में लीन कर्तव्यनिष्ठ बजरंगबली अनेक नामों से
पूजे जाते हैं, जैसे- मारुति , अंजनि सुत , पवनपुत्र , संकटमोचन , केसरीनन्दन , महावीर , कपीश , बालाजी महाराज आदि।
पिता
पवन और माता अंजनी के पुत्र हनुमान जी को सभी देवताओं की शक्ति प्राप्त है। इन्द्र
के वज्र से हनुमान जी की ठुड्डी (संस्कृत मे हनु) टूट गई थी| इसलिये उनको हनुमान कहा
जाता है। परंतु ‘पद्मपुराण’ में हनुमान नाम के
विषय में विचित्र कल्पना मिलती है- ‘हनुसह’ नामक नगर में बालक ने जन्म-संस्कार प्राप्त किया, इसीलिए
वह ‘हनुमान’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। श्री हनुमान
जी स्वयं तो बलवान हैं ही, दूसरों को बल प्रदान करने में भी समर्थ हैं। बजरंगबली
प्रत्येक क्रिया में मन की गति से अग्रसर होते हैं, उनकी
तीव्रगामिता केवल परहित-साधन अथवा स्वामी-हित-साधन तक ही सीमित है। वे मन के अधीन
होकर ऐसा कोई कार्य नहीं करते जो उनकी महत्ता को धुमिल करे, इसीलिए
उनको जितेन्द्रियम् भी कहा गया है।
रघुतिप्रियभक्तम् अर्थात् भगवान श्री राम के प्रिय भक्त। वातजातम्
अर्थात वायुपुत्र हनुमान बाल-ब्रह्मचारी थे। लेकिन मकरध्वज को उनका पुत्र कहा जाता
है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार, लंका
जलाते समय आग की तपिश के
कारण हनुमानजी को बहुत पसीना आ रहा था। इसलिए लंका दहन के बाद जब उन्होंने अपनी पूँछ में लगी आग को बुझाने के लिए समुद्र
में छलाँग लगाई तो उनके शरीर से पसीने की
एक बड़ी-सी बूँद समुद्र में गिर पड़ी। उस समय एक बड़ी मछली ने भोजन समझ वह बूँद निगल ली। उसके उदर में जाकर वह बूँद एक शरीर
में बदल गई। एक दिन
पाताल के
असुरराज अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया। जब वे उसका पेट चीर रहे थे, तो उसमें
से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला। वे उसे अहिरावण के पास ले गए। अहिरावण ने उसे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर
दिया। यही वानर हनुमान पुत्र ‘मकरध्वज’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
राम भक्त हनुमान जी को सदैव सिन्दूर का चोला चढता है। ऐसा क्यों
होता है? इसकी
बहुत ही रोचक कथा है। एक बार की बात है, जब माता सीता श्रृंगार करके अपनी माँग में
सिन्दूर को सुशोभित कर रह थीं तभी हनुमान जी ने माता से निवेदन किया कि हे माता आप
अपनी माँग में सिन्दूर क्यों भरती हैं? तब माँ
सीता ने हनुमान जी को बताया कि तुम्हारे आराध्यदेव भगवान श्री राम की लंबी आयु और
स्वास्थ कामना के लिये माँग में सिन्दूर भरती हूँ। राम भक्त हनुमान जी को लगा की
जब माँ अपनी मांग में थोङा सा सिंदूर भरती हैं तो उससे आराध्यदेव दीर्घायु होते
हैं, तब हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर मलकर मां से कहा कि मेरे सिंदूर
लगाने से भी मेरे आराध्यदेव की आयु लंबी होगी। तब माता सीता ने हनुमान जी की प्रभु
भक्ति देख प्रसन्न होते हुए आर्शीवाद दिया कि जो भी मनुष्य हनुमान जी को सिदूंर
चढाएगा उसकी हर मनो कामना पूर्ण होगी। माना जाता है कि आदि-अनादिकाल से भक्तगणं आज
भी इस प्रथा का पूरी निष्ठा से पालन करते हैं। रामायण के अनुसार हनुमान जी जानकी
माता के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है
उनमें बजरंगबली भी हैं।
संकट मोचन पवनपुत्र हनुमान जी में भक्तो की असीम आस्था है। मंदसौर
शहर के बीच स्थित तलाई वाले बालाजी जी को चोला चढाने के लिये सालों इंतजार करना
पङता है। वाराणसी का संकट मोचन मंदिर देश के प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों में से एक
है। इस मंदिर में आस्था रखने वाले भक्तों की संख्या लाखों में है। भक्त इस मंदिर को
दुःखहर्ता मंदिर भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास जी ने इस मंदिर की
स्थापना करवाई थी और वे रोज यहाँ पूजा करने आते थे। सभी के संकट को हरने वाले अंजनीपुत्र
हनुमान जी की पूजा देश के सभी आंचलों में भक्तगंण
पूरी आस्था से करते हैं।
हनुमान ज्यन्ति के इस पावन पर्व पर सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण
हो एवं सभी पर संकटमोचन बजरंगबली की असीम कृपा बनी रहे यही कामना करते हैं।
apko bhi hamumaan jayanti ki bhadhai...
ReplyDeleteJai Hanuman..........
ReplyDeleteJai Hanuman..........
ReplyDeleteBrij Bhushan Gupta, New Delhi, 9810360393
हनुमान के पिता का नाम केसरी था और उनकी माता अंजना थीं। केसरी और अंजना के पुत्र हनुमान को पवन सुत या पवन पुत्र क्यों कहा जाता है। https://goo.gl/UAjRnl
ReplyDeleteपहले आपको और आपके परिवारको हनुमानजी महोत्सव की खूब खूब बधाई। आपके लेखन के मारफत हमे कुछ हनुमानजी के जीवन जे बारेमें कुछ रोचक बातें जानने को मिली इसलियें आपको धन्यवाद करता हूं। खास करके सिंदूवाली बात मैंने मेरी जिंदगीमें पेहली बार आपसे जानने की मिली और उसके आपका आभारी है। मुझे इतना मालूम है कि भगवान श्रीरामजीकी भक्ति शरू करने से पेहले श्री हनुमानजीकी पूजा अर्चना करनी चाहियें। आपसे प्राथना है कि आप आपके लेखन कार्य से हमे धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान देते रहिए। जय श्रीराम🙏
ReplyDeleteपहले आपको और आपके परिवारको हनुमानजी महोत्सव की खूब खूब बधाई। आपके लेखन के मारफत हमे कुछ हनुमानजी के जीवन जे बारेमें कुछ रोचक बातें जानने को मिली इसलियें आपको धन्यवाद करता हूं। खास करके सिंदूवाली बात मैंने मेरी जिंदगीमें पेहली बार आपसे जानने की मिली और उसके आपका आभारी है। मुझे इतना मालूम है कि भगवान श्रीरामजीकी भक्ति शरू करने से पेहले श्री हनुमानजीकी पूजा अर्चना करनी चाहियें। आपसे प्राथना है कि आप आपके लेखन कार्य से हमे धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान देते रहिए। जय श्रीराम🙏
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