Friday, 24 January 2014

लोकतंत्र का बदलता स्वरूप


जब अंग्रेज सरकार की मंशा भारत को एक स्वतंत्र उपनिवेश बनाने की नजर नही आ रही थी, तभी 26 जनवरी 1929 के लाहौर अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरु जी की अध्यक्षता में कांग्रेस ने पूर्णस्वराज्य की शपथ ली।  26 जनवरी , भारतीय इतिहास में इसलिये भी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि  1950 में भारत का संविधान, इसी दिन अस्तित्व मे आया और भारत वास्तव में एक संप्रभु देश बना। भारत के संविधान में भारत को लोकतांत्रिक देश घोषित किया गया। जिसका आशय होता है, जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन। परन्तु आज के परिपेक्ष में क्या हम वाकई लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं ?

जिस भारत देश के संविधान ने धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक राज्य घोषित किया, जहाँ राज्याध्यक्ष का पद वंशानुगत न होकर निर्वाचित होना तय किया गया, वहाँ आज वंशानुगत राजनीति ने अपने पाँव अंगद की तरह जमा दिये हैं।

अनेकता में एकता का सपना लिए जब कोई व्यक्ति अपने राज्य से दूसरे राज्य में नौकरी या व्यपार के लिए जाता है तो उसे वहाँ, लोकतंत्र की बदलती तस्वीर दिखती है। जहाँ भाषाई और क्षेत्रवाद की भावनाएं राजनैतिक संरक्षण के बल पर अन्य दूसरे राज्यों के लोगों को रहने नहीं देती। इतिहास साक्षी है भाषाई राजनैतिक ताकतें हिंसा को ही जन्म देती हैं।

चाणक्य ने कहा था कि, किसी देश को नष्ट करना हो तो उस देश की संस्कृति को नष्ट कर दो।

आज यही प्रयास अपने देश में अपनो द्वारा ही हो रहा है। जिसे जनता देश की भलाई के लिए चुनाव में जिताकर सत्ता देती है वे स्वहित को सर्वोपरि मानते हुए, देश की सांस्कृतिक पहचान अनेकता में एकता को नष्ट कर रहे हैं। राजनेताओं द्वारा फैलाए जा रहे जहर से लोकतंत्र का दम घुट रहा है। भाषावाद ने भारत की एकता को गम्भीरता से प्रभावित किया है। प्रत्येक चुनाव में राजनैतिक दल अपने निहित स्वार्थ के लिए मतदाताओं को भाषा-विषयक आश्वासन देते हैं।

आज जातिय समिकरण लोकतांत्रिक व्यवस्था का मखौल उङा रहे हैं। आज की राजनैतिक पार्टियाँ निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्याशी तय करते समय इस बात का बारिकी से आंकलन करती हैं कि उस क्षेत्र में किस जाति का बहुल है। तद्पश्चात उसी जाति के व्यक्ति को वहाँ का उम्मीदवार घोषित करती हैं। जबकि संविधान में धर्म, जाति, वंश के आधार पर भेद-भाव निषेध बताया गया है। राजनैतिक दल अपने स्वार्थ में इस तरह रंग गये हैं कि लोकतांत्रिक विचार-धाराओं को दरकिनार करते हुए, अल्पसंख्यक की दुहाई देते हुए जाति-भेद को बढावा दे रहे हैं। जो किसी भी देश के विकास में बहुत बङी बाधा है।

नेल्सन मंडेला ने कहा था कि, "मानवता को बचाए रखने के लिए जातिवाद का हर स्तर पर विरोध होना चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति का जीवन मूल्यवान है। हम किसी के साथ भेदभाव नही कर सकते।"
 
ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने क्षेत्रिय असंतुलन हमें विरासत में सौंपा। आजादी के 6 दशकों बाद भी हम इस समस्या से ग्रसित हैं। आज भी भारत में कई ऐसे स्थान हैं जहाँ पानी, बिजली तथा स्वास्थ संबंधी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। फिर भी क्षेत्रिय असंतुलन को अनदेखा करते हुए भारत की एकीकरण की स्वस्थ भावना को आघात पहुँचाने में जन-प्रतिनिधियों को संकोच नही होता। अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग अलापते हुए कई राज्यों का विघटन हो रहा है।

आधुनिक व्यवस्था का अवलोकन करें तो, ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, लोकतंत्र को जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन कहना केवल प्रतीक के रूप में ही रह गया है। सुनने में ये बात उतनी ही मोहक है जितनी किसी कवि की ऊँची उङान। आज लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था बन गया है, जहाँ हर-तरफ क्षेत्रवाद, जातिवाद, भाषावाद का बिगुल बज रहा है और बहुत से विशिष्ट लोग धन एवं बाहुबल से जनसत्ता पाने के लिए लोकतंत्र के मूल्यों की अवहेलना कर रहे हैं।


गणंतंत्र दिवस के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई के साथ ये उम्मीद करते हैं कि, लोकतंत्र के वास्तविक मूल्यों का सम्मान होगा और कामना करते हैं-  
सब मिलकर मनाएं लोकतंत्र का पर्व तथा भारतीय होने पर करें गर्व।

      



5 comments:

  1. Happy Republic Day, desh kii raajneeti me bahut bade parivartan kii aavshykta hai...aur aaj nahi to kal ye zaroor hoga... shayad AAP ki safalta is or badhta ek kadam hai...

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  2. Sachmuch desh me bahut bde parivartan ki aavasykta hai. aaj har jagah jaati aur bhasha ki samsya dkhne ko mil rhi hai.
    aur ydi bharat ko tutne se bachana hai to JATI CHHODO BHARAT JODO sidhhant ko apnana hi pdega.
    thanks for your best article. bahut hi achha hai.
    thank you

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  3. Bahut hi best lekh.. sachmuch desh ki rajniti me bahut bde parivartan ki aavsykta hai.. aaj desh me har jagah jaati aur bhasha ki smsya hai. aur desh ko ydi tutne se bchana hai to JAATI CHHODO BHARAT JODO sidhhant ko apnana hi pdega.
    thanks itne achhe lekh ke liye.

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  4. Sir ji ne sahi kaha hai ki desh ki rajniti me bahut bda parivartan hona chahye and sachmuch jaati aur bhasha pure desh ko baant rhe hain..
    ydi bharat ko ek samuche rastra ke rup me dkhna hai to bharat ke logon ko ek siddhant se jina hoga ki JAATI CHHODO BHARAT JODO..
    thank you apka lekh bahut hi best hai.. bahut achha hai. aise hi likhte rahiyega
    dhanyawad

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