मित्रों, सामान्यतः सभी लोगों में और उनके कार्यों में अच्छाईयां और कमियां दोनो होती है। कोई भी परफैक्ट नही होता। फिर भी अक्सर देखा जाता है कि, लोग कमियों को ज्यादा हाईलाइट करते हैं क्योंकि उनके विचार से यदि कमियों को ज्यादा दिखाएंगे तो व्यक्ति अपनी गलतियों को सुधार लेगा। परंतु सच्चाई ये नही होती, कई बार लगातार गलतियों को गिनाने से व्यक्ति त्रस्त हो जाता है और वे उस कार्य को करना ही छोङ देता है या इतना ज्यादा हतोत्साहित हो जाता है कि निराशा के आगोश में चला जाता है। वो सोचने लगता है कि हम तो जिंदगी में कुछ कर ही नही सकते। मनोवैज्ञानिक नजरिये से यदि सोचें तो, सच्चाई ये है कि जब हम किसी की गलतियों को फोकस करते हैं तो सिर्फ दूसरों के नजरिए से देखते हैं। हम ये नही सोचते कि यदि हमें हरपल नाकामी ही दिखाई जायेगी तो हमें कैसा लगेगा। अक्सर हम लोग पर उपदेश कुशल बहुतेरे की धारा में बहते जाते हैं। सामान्यतः लोग प्रशंसा और प्रोत्साहन के महत्व को नही समझते और बेवजह घर के सदस्यों की, समाज की और सरकार की गलतियों को ढूंढते रहते हैं। जिससे किसी का भी आत्मविश्वास डगमगा सकता है। आज हम सभी दूसरों की गलतियाँ निकालने में इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि, प्रोत्साहन और प्रशंसा के जादूई असर को नजरअंदाज़ कर देते हैं।
दोस्तों, यदि हम किसी को आगे बढाना चाहते हैं तो उसके अच्छे कामो की प्रशंसा करें। उसे आगे बढाने के लिए प्रोत्साहित करें। नाकामियां तो उस रात की तरह है जिसे प्रोत्साहन रूपी प्रकाश से दूर किया जा सकता है। जब किसी की गलती को देखें तो उसको उसकी अच्छाई पहले बताएं फिर अपनेपन से उसकी गलतियों को समझाएं। जैसे कि, यदि एक बच्चा विज्ञान, अंग्रेजी या सामाजिक अध्ययन में क्लास में सबसे ज्यादा अंक ला रहा है। परंतु गणित और हिन्दी में उसे अपेक्षाकृत नम्बर नही मिल रहा हैं तो, उसकी कमियों पर फोकस न करते हुए उससे ये कह सकते हैं कि, आप के पास बुद्धी है और आप मेहनत भी करते हो तभी तो बाकी विषयों में अच्छा कर रहे हो। आप थोङी ज्यादा मेहनत करोगे तो गणित में भी अच्छे अंक जरूर आयेंगे। उसे विश्वास दिलाएं कि उसका प्रयास सराहनिय है और लगातार प्रयास से सभी विषय में अच्छे अंक आयेंगे। यकिनन ऐसे हौसले से कल्पना के परे परिणाम आते हैं। विपरीत परिस्थिती में लोगों के कटाक्ष से व्यक्ति टूट जाता है लेकिन प्रोत्साहन मिले तो सफलता के रेर्काड तोङ देता है। प्रशंसा और प्रोत्साहन ऐसी जङी बूटियां हैं जो असफलताओं में भी आगे बढने की ऊर्जा देती हैं। वैसे भी सीखना तो नैवर एंडिंग प्रॉसेज है अर्थात कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया। प्रोत्साहन और प्रशंसा तो ऐसा अनमोल उपहार है, जो किसी को भी बिना खर्च के दिया जा सकता है और इससे निराशा के पल में उम्मीद के दिए जलाए जा सकते हैं। प्रोत्साहन और प्रशंसा तो सोने पे सुहागे की तरह है, जिसके मिलने से हम सभी सफलता के शिखर को छू सकते हैं।
अतः मित्रों, प्रोत्साहन और प्रशंसा के भाव को शब्दो की अभिव्यक्ति दें क्योकि ये भाव एक मिठास की तरह है जो मन में मधुरता और कार्य में सकारात्मक गति प्रदान करते हैं। प्रोत्साहन और प्रशंसा की खुशबु को निश्छल मन से प्रसारित करें क्योंकि सफलता के रास्ते में ये अचूक औषधी है।
स्वामी विवेकानंद जी ने प्रोत्साहित करते हुए कहा है, All Power is within you; You can do anything & everything. So...
Arise, awake & stop not till the goal is reached.
दोस्तों, यदि हम किसी को आगे बढाना चाहते हैं तो उसके अच्छे कामो की प्रशंसा करें। उसे आगे बढाने के लिए प्रोत्साहित करें। नाकामियां तो उस रात की तरह है जिसे प्रोत्साहन रूपी प्रकाश से दूर किया जा सकता है। जब किसी की गलती को देखें तो उसको उसकी अच्छाई पहले बताएं फिर अपनेपन से उसकी गलतियों को समझाएं। जैसे कि, यदि एक बच्चा विज्ञान, अंग्रेजी या सामाजिक अध्ययन में क्लास में सबसे ज्यादा अंक ला रहा है। परंतु गणित और हिन्दी में उसे अपेक्षाकृत नम्बर नही मिल रहा हैं तो, उसकी कमियों पर फोकस न करते हुए उससे ये कह सकते हैं कि, आप के पास बुद्धी है और आप मेहनत भी करते हो तभी तो बाकी विषयों में अच्छा कर रहे हो। आप थोङी ज्यादा मेहनत करोगे तो गणित में भी अच्छे अंक जरूर आयेंगे। उसे विश्वास दिलाएं कि उसका प्रयास सराहनिय है और लगातार प्रयास से सभी विषय में अच्छे अंक आयेंगे। यकिनन ऐसे हौसले से कल्पना के परे परिणाम आते हैं। विपरीत परिस्थिती में लोगों के कटाक्ष से व्यक्ति टूट जाता है लेकिन प्रोत्साहन मिले तो सफलता के रेर्काड तोङ देता है। प्रशंसा और प्रोत्साहन ऐसी जङी बूटियां हैं जो असफलताओं में भी आगे बढने की ऊर्जा देती हैं। वैसे भी सीखना तो नैवर एंडिंग प्रॉसेज है अर्थात कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया। प्रोत्साहन और प्रशंसा तो ऐसा अनमोल उपहार है, जो किसी को भी बिना खर्च के दिया जा सकता है और इससे निराशा के पल में उम्मीद के दिए जलाए जा सकते हैं। प्रोत्साहन और प्रशंसा तो सोने पे सुहागे की तरह है, जिसके मिलने से हम सभी सफलता के शिखर को छू सकते हैं।
अतः मित्रों, प्रोत्साहन और प्रशंसा के भाव को शब्दो की अभिव्यक्ति दें क्योकि ये भाव एक मिठास की तरह है जो मन में मधुरता और कार्य में सकारात्मक गति प्रदान करते हैं। प्रोत्साहन और प्रशंसा की खुशबु को निश्छल मन से प्रसारित करें क्योंकि सफलता के रास्ते में ये अचूक औषधी है।
स्वामी विवेकानंद जी ने प्रोत्साहित करते हुए कहा है, All Power is within you; You can do anything & everything. So...
Arise, awake & stop not till the goal is reached.
अनीता जी आपका ये लेख वाकई बहुत ही अच्छा है. अच्छा लिखा है आपने.
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