Friday, 27 February 2015

स्कूल एडमिशन एक जटिल समस्या

दोस्तों, भारत की बढती आबादी के साथ स्कूलों में दाखिले की समस्या भी एक मेजर प्रॉबलम है। हर कोई अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में पढाना चाहता है। शिक्षा ग्रहणं करना हम सभी का मौलिक अधिकार भी है। परंतु प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के कारण कई अभिभावक अपने बच्चों का दाखिला मन पसंद स्कूल में नही करा पाते। सामान्य लोगों की तरह दृष्टीबाधित बच्चों के माता-पिता भी अपने बच्चे को पढाना चाहते हैं। उनके तो सिर्फ इतने ही अरमान होते हैं कि किसी  भी विद्यालय में हमारे दृष्टीबाधित बच्चे को दाखिला मिल जाए और बच्चा नियमित स्कूल जाते हुए शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बन सके।  हमारे समाज की ये विडंबना है कि, सामान्य बच्चों की अपेक्षा दृष्टीबाधित बच्चों को दाखिले के लिए अधिक दिक्कतों का सामना करना पङता है क्योंकि उन्हे तो अक्सर देखते के संग ही मना कर दिया जाता है। आलम तो ये है कि सरकारी स्कूल में भी एडमिशन लेने से मना कर देते हैं। प्राइवेट स्कूल में दाखिला तो बहुत दूर की बात है।

कुछ समय पूर्व मुझे एक रेडियो चैनलरेडियो उङान पर एक मुलाकात कार्यक्रम में शिरकत करने का अवसर मिला। जिसमें दाखिले को लेकर परिचर्चा हुई। वहाँ मुझे जो जानकारी प्राप्त हुई, उससे हमारे समाज की उदासीनता और संकीर्ण सोच ही परिलाक्षित होती है। वहाँ उपस्थित जानकारी और लोगों के अनुभव सुनने से पता चला कि, दृष्टीबाधिता के कारण बच्चों के एडमिशन नही होते जिससे बच्चों के साथ उनके माता-पिता को भी अनेक परेशानियों का सामना करना पढता है। यहाँ तक कि उनसे कह दिया जाता है कि, अपने बच्चे को घर पर रखो या किसी स्पेशल स्कूल में ले जाओ। कुछ लोगों का नजरिया तो इतना ज्यादा तकलीफ दायक होता है कि, वो किसी भी शिक्षित सभ्य समाज को परिभाषित नही करता। उनका कहना होता है कि, तुम्हारे पिछले जन्म का पाप है और तुम तो अभिशाप हो। सोचिए! किसी के लिए भी ये सुनना कितना तकलीफ दायक होगा। फिर भी दृष्टीबाधित बच्चे बुरा नही मानते अपने एडमिशन के लिए अनुरोध करते हैं। मित्रों, दृष्टीबाधित बच्चे भी हमारे ही समाज का एक हिस्सा हैं, जिसमें उनकी कोई गलती नही है बल्की इस प्रकार की अक्षमता तो कुछ प्राकृतिक कारणों या जन्म के समय हुई लापरवाही तथा दवाईयों के गलत इफेक्ट से हो जाती है। मेरा व्यक्तिगत अनुभव ये है कि, यदि समाज में उनके प्रति स्वस्थ सोच और सहयोग की भावना  हो तो किसी भी  दृष्टीबाधित बच्चे को किसी भी स्कूल में पढाया जा सकता है। जहाँ तक उनके लिखने की प्रणाली ब्रेल लीपी की शिक्षा की बात करें तो, उनको प्राथमिक स्तर पर कई प्राइवेट तथा सरकारी संस्थाओं द्वारा प्राप्त हो जाती है। परंतु आगे की शिक्षा हेतु उन्हे सामान्य बच्चों के साथ ही पढने की जरूरत होती है। कई बच्चे सामान्य बच्चों के साथ पढते हुए सफलता की इबारत भी लिख रहे हैं। ये भी सच है कि जिन बच्चों को एडमिशन मिला उनका सफर आसान नही था। कई स्कूलों में एडमिशन के लिए चक्कर लगाना पङा। कहते हैं पाँचो ऊँगली बराबर नही होती उसी तरह समाज में भी कुछ अच्छे लोग भी हैं, जिन्होने एडमिशन दिया और दृष्टीबाधित बच्चों से उन्हे उत्साह जनक परिणाम भी मिले। 

दोस्तों, इस लेख के माध्यम से आप सबसे पुनः अनुरोध करते हैं कि, अपने आस-पास के स्कूलों में ऐसे बच्चों के एडमिशन की प्रक्रिया को सरल बनाएं। निःसंदेह इन बच्चों के साथ थोङी ज्यादा मेहनत करनी होगी, परंतु विचार किजीए हम सभी की थोङी जागरुकता कई बच्चों के जीवन को रौशनी दे सकती है और उन्हे आत्मनिर्भर बनाकर समाज में भारतीय संस्कृती का शंखनाद कर सकती है। उनकी शिक्षा हेतु सहलेखक और पाठ्यपुस्तक की रेर्काडिंग में अपनी जागरुकता को एक नई दिशा दिजीए। अधिक जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें..

"जिंदगी हमें किसी सार्थक काम का अवसर देकर सबसे बङा ईनाम देती है। आओ कुछ अच्छा सोचें, कुछ अच्छा करें, स्वंय को और अपनी सोच को सामाजिक कार्य के माध्यम से आसमान छुने दें।" 


धन्यवाद 







2 comments:

  1. achhijankari.blogspot.in/2015/02/paisa.html?m=1

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  2. Bahut achhi soch, aur usse bhi achhe aapka netrheen vidyarthoyon ke liye kiya jaa raha prayss hai .

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