Sunday 13 December 2015

दृष्टीबाधिता अभिशाप नही है


आज हम सब डिजिटल इण्डिया में अपने विकास का प्रतिबिंब देख रहे हैं। उसी के अन्तर्गत वाट्सएप क्रांती एक नया आयाम रच रही है, जहाँ अनेक ऐसे ग्रुप नजर आ जायेंगे जो अनेकता में एकता का प्रतिक है। जहाँ एक भारत नज़र आता है। ऐसा ही हम लोगों का भी वाट्सएप ग्रुप है वाइस फॉर ब्लाइंड(Voice for blind),  जिसके सभी सदस्य विभिन्न धर्म , जाति और प्रांत के हैं। संचार क्रंति के महत्व को समझते हुए हम सबके मन में विचार की एक नई क्रांति का उदय हुआ और उसके मद्देनज़र वाइस फॉर ब्लाइंड  ग्रुप पर सात दिन की विचार  गोष्ठी का आयोजन किया गया।विचारों का आदान प्रदान 3 दिसम्बर से 10 दिसम्बर तक चला। संगोष्ठी का विषय था, "विकलांगता को नई टेक्नोलॉजी के साथ मुख्यधारा में लाना"  जिसमें हमारे अनेक निःशक्त साथियों ने बढ चढ कर हिस्सा लिया और अपने विचारों तथा अनुभवों के सूरों को नित नये आयाम का आधार दिया। आयोजन का महत्वपूर्ण बिन्दु था कि समाज तथा सरकार द्वारा विकलांगता के क्षेत्र में हो रही उदासिनता को कैसे दूर किया जाये क्योंकि विकलांगता कोई अभिशाप नही है। कहते हैं "एक साधे सब सधे, सब साधे सब जाये " इसी बात को ध्यान में रखकर हमारा विशेष ध्यान दृ्ष्टीबाधित लोगों पर रहा। उनके विकास में आने वाली समस्याओं और उनका क्या निदान हो सकता है, इसपर विशेष चर्चा हुई। 
 
सप्तदिवसिय संगोष्ठी, सप्तरिषी मंडल की आभा की तरह ज्ञान के विचारों से प्रकाशमान रही। हर किसी का जज़बा आसमान छुने का था। मन में अच्छे विचार लिये विवेकानंद जी  का भारत काल की चाल को बदलने के लिये तद्पर था। 
समस्याओं के बीच में भी हर किसी के मन में समाधान का जज़बा था क्योंकि वे विज्ञान की नई टेक्नोलॉजी के साथ इतिहास रचने को तैयार हैं। सप्तसुरों के आरोह एवं अवरोह के क्रम में जिवन के सभी उतार चढाव पर विचार विमर्श हुआ। जैसे कि, उनका रहन-सहन, ब्रेल लिपी का महत्व, व्हाइट केन की प्रासंगिता तथा शिक्षा एवं जॉब में आ रही परेशानियों पर चर्चा हुई। इसके साथ ही यातायात में आ रही दिक्कतें तथा उनके निदान पर सुझाव भी आये। सुझावों को व्यवहार में लाने के लिये समाज और सरकार का साथ मिल जाये तो, निःसंदेह दृष्टीबाधित लोगों की समस्या का समाधान पलभर में हो सकता है। 


विकास के इस दौर में दृष्टीबाधिता के क्षेत्र में मुश्किले सूरसा के मुख की तरह हैं फिर भी अनेक सदस्य अपनी दृष्टीबाधिता को नकारते हुए आज समाज में नयी पहचान बना रहे हैं। राह आसान नही है फिर भी उनका मानना है कि,  "ऑधियों को जिद्द है जहाँ बिजली गिराने की हमें भी जिद्द है वहीं आशियां बसाने की" 

जन्म लेते ही यदि दृष्टी नही है तो सबसे पहले परिवार की हताशा और अवहेलना का एहसास। थोड़े बड़े हुए तो पड़ोसियों के कटाक्ष भरे शब्दों ने घायल किया। शिक्षा प्राप्त करने की राह में समाज और सरकार की उदासीनता, जीवन में अमावस का चाँद बन गई। यदि अनेक बवंडरों को पार करते हुए शिक्षा ग्रहण कर भी लिये तो रोजगार की समस्या, रेत में पानी ढूंढने के समान है। सबसे बड़ी विडंबना तो तब होती है जब बौद्धिक क्षमता के बावजूद ज्ञान की अग्नि परिक्षा से लगभग हर दृष्टीबाधित विद्यार्थी को गुजरना पड़ता है क्योंकि आज के शिक्षित समाज के जह़न में यही प्रश्न रहता है कि, दृष्टी बिना विकास कैसे????
 
मित्रों, सच तो ये है कि विज्ञान की नई टेक्नेलॉजी उनकी आँखे हैं और आगे बढने का जज़बा हर दिन जिंदगी को एक नया ख्वाब देता है। इस दुनिया में कोई भी परफैक्ट नही होता। हर किसी में  कुछ कमी है तो कुछ प्रतिभा भी होती है। किन्तु मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है पंखो से कुछ नही होता हौसले से उड़ान होती।

As far as we are concerned, Disability means Possibility


आज जिस तरह से विज्ञान की टेक्नोलॉजी किसी से भेद-भाव नही करती हर किसी के जीवन की राह आसान करती है, उसी तरह समाज और परिवार का भी हर किसी के साथ सहयोग का भाव हो तो शारिरिक अक्षमता के बावजूद विकास की नई इबारत लिखी जा सकती है।जीवन में असली सफलता हम तभी हासिल कर सकते हैं, जब हम दूसरों को सफल होने में मदद करना सीख लेते हैं। तो दोस्तों, आइये हम सब मिलकर कुछ अच्छा सोचें , कुछ अच्छा करें खुद को एवं अपनी सोच को समभाव का आसमान छुने दें क्योंकि किसी की मदद करने के लिये केवल धन की जरूरत नही होती, बल्की उसके लिये एक अच्छे मन की जरूरत होती है।

गौतम बुद्ध ने कहा है कि , किसी और के लिये दिया जलाकर आप अपने रास्ते का भी अंधेरा दूर करते हैं।

Kindness is a language which deaf can hear and blind can see 

धन्यवाद :) 
  

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