Thursday 4 April 2013

A request


हम सब सामाजिक प्राणीं हैं। समाज के अलग-अलग वर्गों के सहयोग से ही हमारा विकास होता है, या यूँ कहें कि हम सब एक दूसरे के सहयोग पर ही निर्भर हैं। ऐसे ही सहयोग की कामना दृष्टीबाधित बच्चे भी हम सभी से रखते हैं। आज अपनी मेहनतशिक्षा और विज्ञान के आधुनिक उपयोग से अनेक दृष्टीबाधित बच्चे आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रहे हैं किन्तु समाज एवं सरकार की उदासीनता की वजह से कई बार आगे बढने से वंचित रह जाते हैं। जरा सोचिये, अगर  आप साल भर खूब मन लगाकर पढाई करें और परिक्षा के समय किन्ही कारणों से परिक्षा न दे पायें तो कैसा लगेगा! निःसंदेह बहुत तकलीफ होगी। अभी हाल में कई दृष्टीबाधित बच्चियों ने खूब मन लगाकर पढाई की। किन्तु परीक्षा के समय सहलेखक (Scribe) न मिलने कारण या राइटर के देर से आने के कारण परीक्षा न दे सकीं, जिसके कारण उनका भविष्य प्रभावित हुआ। पूरे वर्ष सफलता के सपने लिये तैयारी करती बच्चियों का सपना सामाजिक उदासीनता की वजह से टूट गया। सभ्य समाज का ये कैसा रूप है? हम किस मानवीय समाज की बात करते हैं?

वैज्ञानिक दृष्टीकोंण से हम 80% ज्ञान आँखों द्वारा अर्जित करते हैं और 20% सुनकर एवं स्पर्श के माध्यम से सीखते हैं। दृष्टीबाधित बच्चे दृष्टीज्ञान के अभाव में केवल 20%  ज्ञान से ही अपना विकास करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी शैक्षणिक व्यवस्था में लगभग 9वीं कक्षा से उच्च कक्षा हेतु ब्रेल में पुस्तकें नही हैं। दृष्टीबाधित बच्चे विषय संबन्धित पाठ्यक्रम को सुनकर करके याद करते हैं, जो कई सामाजिक संस्थाएं या समाज के कुछ लोग रिकार्ड (Record) कर देते हैं। आगे बढने में सबसे बङी समस्या है राइटर की। परिक्षा के समय ये बच्चे अपने उत्तरों को मौखिक बोलते हैं जिन्हें सामान्य बच्चे उत्तर पुस्तिका पर लिखते हैं। 
कई बार ऐसा होता है कि समाज के कुछ जागरुक व्यक्ति संस्थाओं में जाते हैं और दृष्टिबाधित बच्चों के लिये कपङे तथा भोजन इत्यादि की व्यवस्था करते हैं। ये बहुत अच्छी बात है और जरूरी भी है। परन्तु एक विचार कीजिये- क्या हम अपने बच्चे का पूर्णविकास सिर्फ कपङे या भोजन से कर सकते हैं? कदापी नहीं। हम उसके मानसिक एवं शैक्षणिंक विकास के लिये उसे विद्यालय भेजते हैं एवं वहाँ से जुङी सभी आवश्यकताओं को पूरा भी करते हैं। तो दृष्टीबाधित बच्चियों के प्रति ये कैसी जागरुकता जो संपूर्ण विकास को नजर अंदाज करती है?

मित्रों, सामाजिक चेतना का सहयोग मिले तो निःसंदेह दृष्टीबाधित बच्चों में भी आत्म सम्मान से जीवन जीने की मानसिकता का विकास होगा, जो समाज और देश के लिये हितकारी होगा। आपका एक सार्थक प्रयास कई दृष्टीबाधित बच्चों के जीवन को रौशन कर सकता है और उनके आत्मनिर्भर बनने के प्रयास में सहयोग दे सकता है। 
अहिल्याबाई की पावन नगरी इंदौर के पाठकों से एक निवेदन है कि, इंदौर में देवीअहिल्या विश्वविद्यालय की परिक्षाएं लगभग 18 अप्रैल से शुरु होंगी। वहाँ सामान्य छात्राओं के साथ 35 दृष्टीबाधित छात्राएं भी परीक्षा देंगी, परिक्षा के समय सहलेखक (Scribe) की आवश्यकता की पूर्ती हेतु हम आपके सहयोग की अपेक्षा करते हैं। अधिक जानकारी के लिये आप हमें मेल कर सकते हैं। E-mail : voiceforblind@gmail.com
इस कार्य हेतु आपका दिया वक्त उनके लिये जीवन का सबसे अनमोल तोहफा होगा। 
आप सभी पाठकों को तहेदिल से धन्यवाद देते हैं। आपके सुझाव एवं विचार हमारे लिये प्रेरणास्रोत हैं।

2 comments:

  1. आपके संदेश को फेसबुक पर प्रसारित कर रहा हूँ।


    सादर

    ReplyDelete
  2. I love looking through an article that will make men and women think.
    Also, thanks for allowing for me to comment!


    My page :: camcrush.thumblogger.com

    ReplyDelete