Saturday, 30 December 2017
Sunday, 17 September 2017
मेरी लाडली कायरा
मित्रों, आज हम आप सबसे अपनी खुशी के ऐसे पल को शेयर कर रहे हैं जिसे शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त करना आसान नही है फिरभी मेरा प्रयास होगा कि हम अपनी भावनाओं को शब्द प्रदान कर सकें। खुशी के उस लम्हे को 16 सितंबर को एक माह पुरा हो गया। ये एक माह कब और कैसे बीत गया पता ही नही चला। मित्रो, 16 अगस्त 2017 की सुबह सूरज की किरणों पर सवार मेरे घर-आँगन में मुझे नानी कहने वाली एक परी का आगमन हुआ। गोद में लेते ही, उसके सुंदर नाजुक और कोमल हांथों के स्पर्श से अनुठे आनंद का एहसास अंतरमन को अद्भुत खुशी में रंग गया। उसकी किलकरी से मन के तार झूम झूम कर गुनगुनाने लगे........छोटी सी प्यारी सी नन्ही सी आई कोई परी, भोली सी न्यारी सी, अच्छी सी आई कोई परी। उसे देखकर दुआओं की सरिता का प्रवाह स्वतः ही प्रस्फुटित हो कहने लगा... गाते मुस्कुराते खुशियों की बहारों में स्वस्थ रहे मस्त रहे और झूमती रहे संगीत की तरह। उसकी बंद खुलती आँखें और अलसाई सी मुस्कान को देखकर, हमें अपनी बिटिया का बचपन बरबरस ही याद आ गया। माँ से नानी माँ बनकर मेरी खुशी को चार चाँद लग गया। अपने आदरणिय बुजर्गों द्वारा कही बात कि, "मूल से ज्यादा सूद प्यारा होता है" इसके अर्थ का स्वतः ही एहसास हो गया। अभी मेरी लाडली परी कायरा सिर्फ एक माह की है, मन नानी माँ सुनने के लिये व्याकुल है जबकी पता है बच्चे 9माह के बाद ही बोलते हैं फिरभी 😊
सच्चाई तो यही है दोस्तों, बच्चों की प्यारी प्यारी हरकतें स्वयं को भी बच्चा बना देती हैं, जो प्राकृतिक नियम को दरकिनार करके बच्चों संग बातें करने और खेलने के लिये हर पल उत्सुक रहता है। विगत एक माह का समय लाडली कायरा की बालसुलभ हरकतों में यूँ खो गया कि पता ही नही चला। नानी के पद पर आसीन मन! कायारा की मुस्कान पर प्रफुल्लित हो हर पल यह गुनगुनाता है ...
जूही की कली मेरी लाडली नाज़ों की पली मेरी लाडली। कोमल तितली सी मेरी लाडली, हीरे की कनी मेरी लाडली, गुड़िया-सी ढली मेरी लाड़ली, मोहे लागे भली मेरी लाडली। चिराग आकांक्षा की लाडली कायरा जुग-जुग तू जिये, मेरी लाडली नन्ही-सी परी ओ मेरी लाडली...
मुझे नानी बनाकर दुनिया की सबसे बङी खुशी देने के लिये चिराग और आकांक्षा तुम दोनों को दिल से अंनत आशिर्वाद। हमें विश्वास है कि, तुम दोनों हमसे भी बेहतर अभिभावक बनकर, अपनी कायारा को ऊँचाइयों का एक नया आसमान दोगे। कायरा के सुखद भविष्य को अपने प्यार और दुलार के रंग से पल्लवित करोगे। नाना-नानी और दादा-दादी के आशिर्वाद संग कायरा तुमको ढेरसारा प्यार और दुलार 😊😊
Thank you God for all your blessing to me and my family
Wednesday, 13 September 2017
हिंदी दिवस पर विशेष.........हिंदी अपनी पहचान है
सत्तर वर्ष बीत गये, ये कैसा जनतंत्र है मित्रों, अब भी जनता अंग्रेजी की गुलाम है। अंग्रेजी में सारा तंत्र चल रहा है। स्वभाषा के बिना ये कैसी स्वतंत्रता है और जन भाषा के बिना ये कैसा जनतंत्र है। स्वतंत्र भारत में आज हिंदी की स्थिती को देखकर कौन कह सकता है कि भारत वास्तव में स्वतंत्र है। संविधान में राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त हिंदी आज भी एकराष्ट्र एकभाषा के रूप में जनमानस की आवाज नही बन सकी है। क्षैत्रिय राजनीति, एकराष्ट्र एकभाषा के विकास में सबसे बङा अवरोध है। अपनी भाषाओं की उपेक्षा का दुष्परिणाम यह भी है कि, हम अपनी भाषाओं के माध्यम से अनुसंधान नहीं करते। भारतीय भाषाओं में ज्ञान-विज्ञान का खजाना उपलब्ध है लेकिन हम लोग उसकी तरफ से बेखबर हैं। हम प्लेटो और चोम्सकी के बारे में तो खूब जानते हैं लेकिन हमें पाणिनी, चरक, कौटिल्य, भर्तृहरि और लीलावती के बारे में कुछ पता नहीं। हमारे ज्ञानार्जन के तरीके अभी तक वही हैं, जो गुलामी के दिनों में थे। जब तक हमारे देश की सरकारी भर्तियों, पढ़ाई के माध्यम, सरकारी काम-काज और अदालातों से अंग्रेजी की अनिवार्यता और वर्चस्व नहीं हटेगा, तबतक भारत का विकास श्रेष्ठता के शिखर पर नही पहुंच सकता।
एकबार महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि, "ये क्या किसी जुल्म से कम है कि अपने देश में मुझे इंसाफ पाना हो, तो मुझे अंग्रेजी भाषा का उपयोग करना पङता है। बैरिस्टर होने पर मैं स्वभाषा न बोल सकुँ! ये गुलामी नही है तो क्या है? इसमें मैं अंग्रेजों का दोष निकालुं या अपना ? हिंदुस्तान को गुलाम बनाने वाले हम अंग्रेजी बोलने वाले लोग ही हैं।"
मित्रों, राष्ट्रभाषा से ही राष्ट्र की पहचान बनती है। भाषा में हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति समाहित होती है। हम सब की आकांक्षाओं के स्वप्न भाषा में ही अपनी आंखें खोलते हैं। गौरतलब है कि, किसी भी दूसरे देश की वास्तविक नागरिकता उस देश की भाषा के जानकार होने पर ही संभव होती है। यही कारण है कि किसी भी दूसरे देश की संस्कृति को जीने और जीतने का सुख उस देश की भाषा सीखने पर ही संभव हो पाता है। जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन, पुर्तगाल, नार्वे, डेनमार्क और पोलैंड जैसे देशों की अपनी राष्ट्रभाषा है और उन्हीं भाषाओं में इन देशों का राजकाज और शिक्षा संचालित होती है। यद्यपि इन देशों में विश्व के कई देशों के धर्म, जाति, संप्रदाय और संस्कृति के लोग रह रहे हैं फिरभी वह उसी देश की राष्ट्रभाषा को अपनाए हुए अपना जीवन जीते हैं, इसलिए वह राष्ट्र भी अपने राष्ट्र परिवार के नागरिक की तरह उन्हें अपनाए रहता है। नीदरलैंड सहित यूरोप के किसी भी देश में अंग्रेजी का कोई प्रवेश नहीं है। कोई अख़बार और पत्रिका अंग्रेजी में प्रकाशित नहीं होती है। सड़क, बस, रेल यात्रा आदि की सारी सूचनाएं उस देश की अपनी राष्ट्रभाषा में लिखी रहती हैं। कई राष्ट्रों के नाम में ही वहाँ की भाषा समाहित है। उदाहरण के लिए स्पेन की स्पेनिश, फ्रांस की फ्रेंच, जर्मनी की जर्मन रूस की रशियन। स्थिति यह है कि राष्ट्र भाषा से ही राष्ट्र की पहचान होती है। लेकिन हिंदुस्तान ने अपना नाम इंडिया रख कर अपनी राष्ट्रभाषा की पहचान भी खो दी है।
स्वामी विवेकानंद जी ने तो, अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को माँ का सम्मान दिया है। उनका कहना था कि, यदि किसी भी भाई बहन को अंग्रेजी बोलना या लिखना नहीं आता है तो उन्हें किसी के भी सामने शर्मिंदा होने की जरुरत नहीं है बल्कि शर्मिंदा तो उन्हें होना चाहिए जिन्हें हिंदी नहीं आती है क्योंकि हिंदी ही हमारी राष्ट्र भाषा है, हमें तो इस बात पर गर्व होना चाहिए की हमें हिंदी आती है.....
मित्रों, वास्तविकता तो यही है कि, राष्ट्रभाषा के वजूद से ही राष्ट्र के एकत्व की छवि बनती है। भाषा के दर्पण में संगठित राष्ट्र का दिव्य स्वरूप उभरता है। अनेकता में एकता की पहचान लिये अपने देश में हिंदी भाषा ही पूरे राष्ट्र को एक संस्कृति प्रदान कर सकती है। आज देश को एकरूपता के बंधन में बाँधने के लिये एक राष्ट्रभाषा हिंदी को वास्तविक बोलचाल और प्रशासनिक कार्यों में अधिकाधिक प्रयोग करने की आवश्यकता है।देश के विकास में आज हम सबका ये कर्तव्य बनता है कि, हम हिंदी को एक दिवस की जंजिरो से मुक्त करके जीवन भर के संवाद का माध्यम बनायें। सब मिलकर प्रण करें, भारत के भाल पर हिंदी की बिंदी सदा चमकती रहे। हम सब मिलकर हिंदी का वंदन करें, हिंद और हिंदी की जय-जयकार करें, भारत की माटी, हिंदी से प्यार करें.........
धन्यवाद 😊
पूर्व के लेख पढने हेतु ...
Monday, 14 August 2017
आजादी के सत्तर वर्ष! क्या खोया क्या पाया
भारत के नागरिक होने के नाते हम आज आजादी के 70 वर्ष का सफर पूरा कर चुके हैं। हमें 200 साल पुरानी अंग्रेजों की दासता से मुक्ति मिल गई लेकिन क्या हम अपनी रुढीवादी सोच से आजाद हो सके? क्या हम मैकाले द्वारा रोपित अंग्रेजी मानसिकता से मुक्त हो सके हैं?
हम विकासशील देश से उन्नति करके विकसित देश के साथ कदम मिलाने को तत्पर हैं। मंगल पर पहुँचकर इतिहास बनाने की क्षमता रखते हैं। नई टेक्नोलॉजी के साथ विकास के नित नये पन्ने लिखे जा रहे हैं, लेकिन ऑनर किलिंग के पन्नों से देश में आज भी दहशत पढाई जा रही है। बेटी बचाओ - बेटी पढाओ जैसे अभियान भी बेटियों को वो सम्मान नही दिला सके जहाँ बेटीयां निडर होकर स्वछंद आकाश में विचरण कर सकें। निर्भया कांड के बाद लगा था कि, ऐसा कानून बनेगा जिसकी दहशत से बेटियों तथा महिलाओं का मान सम्मान सुरक्षित रहेगा किंतु आज भी बेटियों को सरे राह रोकना, उन पर भद्दे कमेंट करना तथा उनके मान सम्मान पर कुठाराघात करना फैशन सा बन गया है, गलती किसी और की, किंतु अंगुलियां बेटियों के परिधान एवं रात्री विचरण पर ही ऊठती हैं।
प्रथम महिला आई पी एस किरण बेदी कहती हैं, "आज़ादी का मतलब है मैं बिना डरे कहीं भी घूम सकूं, मर्ज़ी से अपना जीवनसाथी चुन सकूं. ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं युवाओं को डरा देती हैं. मानसिकता को ग़ुलाम बना देती हैं और डरा हुआ आदमी भला देश के किस काम आएगा?"
दक्षिण अफ्रिका के पूर्व राष्ट्रपति नेलसंन मंडेला का कहना है कि, "स्वतंत्र होने का मतलब सिर्फ जंजीरों से मुक्ति पाना नही है बल्की इस तरह जीवन जीना है जिसमें दूसरों की स्वतंत्रता का भी सम्मान हो और उसे बढावा मिले।"
हम आज मेक इन इंडिया, स्वच्छ एवं भ्रष्टाचार मुक्त भारत को नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। नोटबंदी , तो कहीं एक राष्ट्र एक टैक्स यानि जीएसटी का अनुमोदन कर रहे हैं। लेकिन इससे इतर भ्रष्टाचार की वजह से कई मासूम परलोक सिधार गये। स्वच्छता का असर दिख रहा है 2017 की लिस्ट में मध्य प्रदेश का इंदौर शहर स्वच्छता अभियान में नम्बर एक पर रहा किंतु इंदौर जैसे तमाम शहरों में आज भी कचरे के निपटारे का सुचारु प्रबंध एक बङी समस्या है। ट्रैफिक सिंगनल पर विदेशी कैमरों की नज़र मेक इन इंडिया के सपनों को साकार होने से रोक रही हैं।
आज हम इतनी आजादी तो महसूस कर सकते हैं कि राष्टध्वज, राष्ट्र गान तथा राष्ट्र गीत का सम्मान आधुनिक माहौल में भी कर सकते हैं। लेकिन इससे इतर विशेष अवसर पर राष्ट्र ध्वज को उलटा दिखाने तथा ज़मीन पर बिखेरने जैसी मानसिकता वाले लोग भी नज़र आते हैं।
आज राजनीति के इतिहास में देश के उच्च पदों पर (राष्ट्पति, उप राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री तथा लोक सभा अध्यक्ष ) ऐसी पार्टी विद्यमान है जिनके कभी सिर्फ तीन सांसद थे। विकास की इस बेला में यदि ये पदाधिकारी लोक प्रशासन को स्वच्छता और कर्तव्य का बोध कराने में सफल होते हैं तो काफी हदतक भ्रष्टाचार से भारत को आजादी मिल सकेगी। एक राष्ट्र श्रेष्ठ राष्ट्र का सपना साकार हो सकेगा।
आइये हम सब मिलकर 70 वर्ष पूर्ण किये आजाद भारत में नई उमंग और नये जोश का शंखनाद करें। जहाँ नारी सिर्फ देवी रूप में मंदिरो में ही सम्मानित न हो बल्की भारत की सम्पूर्ण धरा पर सम्मानित हों। आजादी के इस पर्व को गौरव के शिखर पर ले जायें। शत-शत दीपक जला ज्ञान के नवयुग का आह्वान करें। स्वर्ण दिवस के लिए आज से संकल्प करें जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका नूतन निर्माण करें।
Women in Freedom Struggle
हम विकासशील देश से उन्नति करके विकसित देश के साथ कदम मिलाने को तत्पर हैं। मंगल पर पहुँचकर इतिहास बनाने की क्षमता रखते हैं। नई टेक्नोलॉजी के साथ विकास के नित नये पन्ने लिखे जा रहे हैं, लेकिन ऑनर किलिंग के पन्नों से देश में आज भी दहशत पढाई जा रही है। बेटी बचाओ - बेटी पढाओ जैसे अभियान भी बेटियों को वो सम्मान नही दिला सके जहाँ बेटीयां निडर होकर स्वछंद आकाश में विचरण कर सकें। निर्भया कांड के बाद लगा था कि, ऐसा कानून बनेगा जिसकी दहशत से बेटियों तथा महिलाओं का मान सम्मान सुरक्षित रहेगा किंतु आज भी बेटियों को सरे राह रोकना, उन पर भद्दे कमेंट करना तथा उनके मान सम्मान पर कुठाराघात करना फैशन सा बन गया है, गलती किसी और की, किंतु अंगुलियां बेटियों के परिधान एवं रात्री विचरण पर ही ऊठती हैं।
प्रथम महिला आई पी एस किरण बेदी कहती हैं, "आज़ादी का मतलब है मैं बिना डरे कहीं भी घूम सकूं, मर्ज़ी से अपना जीवनसाथी चुन सकूं. ऑनर किलिंग जैसी घटनाएं युवाओं को डरा देती हैं. मानसिकता को ग़ुलाम बना देती हैं और डरा हुआ आदमी भला देश के किस काम आएगा?"
दक्षिण अफ्रिका के पूर्व राष्ट्रपति नेलसंन मंडेला का कहना है कि, "स्वतंत्र होने का मतलब सिर्फ जंजीरों से मुक्ति पाना नही है बल्की इस तरह जीवन जीना है जिसमें दूसरों की स्वतंत्रता का भी सम्मान हो और उसे बढावा मिले।"
हम आज मेक इन इंडिया, स्वच्छ एवं भ्रष्टाचार मुक्त भारत को नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। नोटबंदी , तो कहीं एक राष्ट्र एक टैक्स यानि जीएसटी का अनुमोदन कर रहे हैं। लेकिन इससे इतर भ्रष्टाचार की वजह से कई मासूम परलोक सिधार गये। स्वच्छता का असर दिख रहा है 2017 की लिस्ट में मध्य प्रदेश का इंदौर शहर स्वच्छता अभियान में नम्बर एक पर रहा किंतु इंदौर जैसे तमाम शहरों में आज भी कचरे के निपटारे का सुचारु प्रबंध एक बङी समस्या है। ट्रैफिक सिंगनल पर विदेशी कैमरों की नज़र मेक इन इंडिया के सपनों को साकार होने से रोक रही हैं।
आज हम इतनी आजादी तो महसूस कर सकते हैं कि राष्टध्वज, राष्ट्र गान तथा राष्ट्र गीत का सम्मान आधुनिक माहौल में भी कर सकते हैं। लेकिन इससे इतर विशेष अवसर पर राष्ट्र ध्वज को उलटा दिखाने तथा ज़मीन पर बिखेरने जैसी मानसिकता वाले लोग भी नज़र आते हैं।
आज राजनीति के इतिहास में देश के उच्च पदों पर (राष्ट्पति, उप राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री तथा लोक सभा अध्यक्ष ) ऐसी पार्टी विद्यमान है जिनके कभी सिर्फ तीन सांसद थे। विकास की इस बेला में यदि ये पदाधिकारी लोक प्रशासन को स्वच्छता और कर्तव्य का बोध कराने में सफल होते हैं तो काफी हदतक भ्रष्टाचार से भारत को आजादी मिल सकेगी। एक राष्ट्र श्रेष्ठ राष्ट्र का सपना साकार हो सकेगा।
आइये हम सब मिलकर 70 वर्ष पूर्ण किये आजाद भारत में नई उमंग और नये जोश का शंखनाद करें। जहाँ नारी सिर्फ देवी रूप में मंदिरो में ही सम्मानित न हो बल्की भारत की सम्पूर्ण धरा पर सम्मानित हों। आजादी के इस पर्व को गौरव के शिखर पर ले जायें। शत-शत दीपक जला ज्ञान के नवयुग का आह्वान करें। स्वर्ण दिवस के लिए आज से संकल्प करें जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका नूतन निर्माण करें।
आप सभी पाठकों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई
पूर्व के लेख अवश्य पढेंः-----
Women in Freedom Struggle
Sunday, 13 August 2017
Monday, 3 July 2017
Vivekanand ji thoughts (Strength is life , Weakness is Death)
विश्व धर्म सभा में भारत को गौरवान्वित करने वाले स्वामी विवेकानंद जी के विचार आज भी हम सभी के लिये महत्वपूर्ण हैं। अपने लक्ष्य को हासिल करने में स्वामी जी के विचार ऑक्सीजन की तरह हैं जो विपरीत परिस्थिती में जीवन को उर्जा प्रदान करते हैं। स्वामी जी कहते हैं...
"यदि परिस्थितियों पर आपकी मजबूत पकङ है तो , जहर उगलने वाले भी आपका कुछ नही बिगाङ सकते।"
विचारों में बहुत शक्ति है. विचार करते समय हम जिन भावों का चयन करते हैं , उनका हमारे जीवन पर बहुत ही गहरा प्रभाव पडता है. मनोवैज्ञानिक भी निराशा के छणों में स्वयं से सकारत्मक संवाद करने पर जोर देते हैं ।
Talk to yourself Once in a day ... otherwise you have missing meeting an Excellent person in this world.
आप अपने लक्ष्य को अपनी काबलियत के स्तर से नीचे न रखें, बल्की अपनी काबलियत के स्तर को अपने लक्ष्य के जितना बङा बनाइये क्योंकि संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरिका है, असंभव से आगे निकल जाना।
मित्रों, हम जो बोते हैं वही काटते हैं, हम स्वंय अपने भाग्य के विधाता हैं। हवा का कार्य तो बहना है, जिन नावों के पाल खुल जाते हैं हवा उनकी दिशा अपने अनुसार बदल देती है, लेकिन जिनके पाल बंधे होते हैं वो अपनी मर्जी से अपनी दिशा में बढते हैं और सफलता पूर्वक अपने गंतव्य पर पहुँचते हैं इसलिये भाग्य भरोसे न रहते हुए अपनी मदद स्वंय करो तुम्हारी मदद कोई और नही कर सकता। तुम खुद के सबसे बङे दुश्मन हो और खुद के ही सबसे अच्छे मित्र हो। अतः Believe in yourself and the world will be at your feet.
एकबार स्वामी जी से किसी ने पुछा कि, सब कुछ खो देने से भी बुरा क्या है, स्वामी जी ने उत्तर दिया , "उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे हम सब कुछ वापस पा सकते हैं।" इसलिये उम्मीद का दिया हमेशा जलना चाहिये और दृण इच्छाशक्ति के साथ एक समय में एक काम करो , ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जायें। सभी शक्ति तुम्हारे अंदर है, तुम सब कुछ कर सकते हो।
Strength is life , Weakness is Death
प्रिय पाठकों नमस्कार, आप सब मंगलमय होगें और आशा करते हैं कि मेरे द्वारा लिखे लेख आप लोगों को रोचक लग रहे होंगे। इधर कुछ समय से समय अभाव के कारण लेख लिखने का समय कम मिल रहा है क्योकि जैसा कि आप लोगों को ज्ञात ही है कि, स्वामी विवेकानंद जी के दिये संदेश को आत्मसात करते हुए दृष्टीबाधित बच्चों को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अंर्तगत उनकी पाठ्यपुस्तकों को ध्वनांकित करना सबसे महत्वपूर्ण है। वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा 9वीं तथा 11वीं का पाठ्यक्रम बदल जाने से पूर्व की ध्वनांकित पाठ्यपुस्तक अब काम नही आयेगी। अतः वर्तमान में नई पुस्तकों का ध्वनांकन समय पर पूरा करना अहम कार्य है। आप सबसे निवेदन है कि जो पाठक इस कार्य में अपना योगदान देना चाहते हैं वो हमें मेल करें। शिक्षा सबसे सशक्त हथियार है जिससे दुनिया को बदला जा सकता है।
Talk to yourself Once in a day ... otherwise you have missing meeting an Excellent person in this world.
आप अपने लक्ष्य को अपनी काबलियत के स्तर से नीचे न रखें, बल्की अपनी काबलियत के स्तर को अपने लक्ष्य के जितना बङा बनाइये क्योंकि संभव की सीमा जानने का केवल एक ही तरिका है, असंभव से आगे निकल जाना।
मित्रों, हम जो बोते हैं वही काटते हैं, हम स्वंय अपने भाग्य के विधाता हैं। हवा का कार्य तो बहना है, जिन नावों के पाल खुल जाते हैं हवा उनकी दिशा अपने अनुसार बदल देती है, लेकिन जिनके पाल बंधे होते हैं वो अपनी मर्जी से अपनी दिशा में बढते हैं और सफलता पूर्वक अपने गंतव्य पर पहुँचते हैं इसलिये भाग्य भरोसे न रहते हुए अपनी मदद स्वंय करो तुम्हारी मदद कोई और नही कर सकता। तुम खुद के सबसे बङे दुश्मन हो और खुद के ही सबसे अच्छे मित्र हो। अतः Believe in yourself and the world will be at your feet.
एकबार स्वामी जी से किसी ने पुछा कि, सब कुछ खो देने से भी बुरा क्या है, स्वामी जी ने उत्तर दिया , "उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे हम सब कुछ वापस पा सकते हैं।" इसलिये उम्मीद का दिया हमेशा जलना चाहिये और दृण इच्छाशक्ति के साथ एक समय में एक काम करो , ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ। उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जायें। सभी शक्ति तुम्हारे अंदर है, तुम सब कुछ कर सकते हो।
Strength is life , Weakness is Death
प्रिय पाठकों नमस्कार, आप सब मंगलमय होगें और आशा करते हैं कि मेरे द्वारा लिखे लेख आप लोगों को रोचक लग रहे होंगे। इधर कुछ समय से समय अभाव के कारण लेख लिखने का समय कम मिल रहा है क्योकि जैसा कि आप लोगों को ज्ञात ही है कि, स्वामी विवेकानंद जी के दिये संदेश को आत्मसात करते हुए दृष्टीबाधित बच्चों को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अंर्तगत उनकी पाठ्यपुस्तकों को ध्वनांकित करना सबसे महत्वपूर्ण है। वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा 9वीं तथा 11वीं का पाठ्यक्रम बदल जाने से पूर्व की ध्वनांकित पाठ्यपुस्तक अब काम नही आयेगी। अतः वर्तमान में नई पुस्तकों का ध्वनांकन समय पर पूरा करना अहम कार्य है। आप सबसे निवेदन है कि जो पाठक इस कार्य में अपना योगदान देना चाहते हैं वो हमें मेल करें। शिक्षा सबसे सशक्त हथियार है जिससे दुनिया को बदला जा सकता है।
धन्यवाद
Thursday, 29 June 2017
नई राह पर बढते कदम
किरणों का साथ पाकर जीना सीखती आशाएँ, मानो उड़ना चाहती हैं
क्षितिज के भी उस पार अजब सुर्ख एहसास से, जाग उठी सुबह के साथ.....
अपने दृष्टबाधित साथियों के लिए कहना चाहेंगे कि, "हर व्यक्ति एक हुनर लेकर पैदा होता है, बस उस हुनर को दुनिया के सामने लाना है।"
क्षितिज के भी उस पार अजब सुर्ख एहसास से, जाग उठी सुबह के साथ.....
मित्रों, गुजरात के डायमंड शहर सूरत में 25 जून 2017 को "आई कल्ब" द्वारा आयोजित करियर सेमीनार में अनेक ऐसे हिरे मिले जिनको थोङा सा भी तराशा जाये तो वो बेशकीमती हीरे बन जायेंगे। इस सेमिनार में सूरत के अलावा अहमदाबाद, राजकोट तथा नवसारी से भी लोग शिरकत किये थे। वहाँ उपस्थित बच्चों के मन में आगे बढने का जज़्बा काबिले तारीफ रहा। वहाँ नये विषय को लेकर पढने पर विस्तृत चर्चा हुई उसका परिणाम ये हुआ कि कुछ बच्चे अपने कंफर्ट जोन से निकलकर साहस के साथ अपने मनपसंद विषय को पढने की राह पर निकल भी गये।
इस संगोष्ठी में प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी कैसे करनी है तथा आत्मनिर्भरता के लिये अन्य सभी विकल्पों पर प्रकाश डाला गया। मेरे साथ इंदौर से रजनी शर्मा जो, आन्ध्र बैंक में राज्यभाषा अधिकारी है तथा पायल जैन जो, प्राइवेट आई टी कंपनी में अकांटेंट हैं, वो भी गईं थीं। बैंक की परिक्षा तथा स्कॉलरशिप की जानकारी भी हम लोगों द्वारा शेयर की गई। वहाँ कुछ ऐसे भी नगीने मिले जो स्वंय तो आत्मनिर्भर हैं और अनेक लोगों को भी रोजगार का अवसर दे रहे हैं। दृष्टीबाधिता के बावजूद वहाँ उन बच्चों का हौसला और आगे बढने की चाह देखकर यही लगा कि, "अगर फलक को जिद है, बिजलियाँ गिराने की तो उन्हे भी जिद है,वहीं आशियाँ बनाने की"
हम लोगों के प्रति उनका प्यार और सम्मान अविसमरणिय पल है। उन लोगों के जोश को देखकर हम लोग के अंदर नई ऊर्जा का संचार हुआ तथा इस कार्य को आगे बढाने की प्रेरणा मिली और दिल ने कहा , हर तारे में एक चमक होती है, हर राह की एक मंजिल होती है, रख हौसला कुछ कर दिखाने का हर हौसले में जीत होती है।
हम लोगों के प्रति उनका प्यार और सम्मान अविसमरणिय पल है। उन लोगों के जोश को देखकर हम लोग के अंदर नई ऊर्जा का संचार हुआ तथा इस कार्य को आगे बढाने की प्रेरणा मिली और दिल ने कहा , हर तारे में एक चमक होती है, हर राह की एक मंजिल होती है, रख हौसला कुछ कर दिखाने का हर हौसले में जीत होती है।
अपने दृष्टबाधित साथियों के लिए कहना चाहेंगे कि, "हर व्यक्ति एक हुनर लेकर पैदा होता है, बस उस हुनर को दुनिया के सामने लाना है।"
Wednesday, 24 May 2017
परिस्थितियों का दास नही, स्वामी बने........
दोस्तों, आज की आधुनिक दुनिया में रोजगार के नित नये अवसर बन रहे हैं। नई तकनिकों की क्रांति से आज शारीरिक अक्षमता भी आत्मनिर्भरता में बाधक नही है।आज दरकार है बस उन्हे समझने की और अपनी रुची के अनुसार उसका चयन करने की और एक बार जब हम अपने लक्ष्य को निर्धारित कर लें तो फिर उसी दिशा में आगे बढें। लक्ष्य के मार्ग में परिस्थिती हमेशा अनुकूल ही मिलेगी ये संभव नही है किंतु सकारात्मक दृष्टीकोंण से हम मार्ग में आने वाली बाधाओं को अनुकूल जरूर बना सकते हैं ये विश्वास बहुत आवश्यक है।
मित्रों, कई बार राह में जब आगे बढते हैं तो ठोकर भी लगती है और परिस्थितियां ऐसी भी आ जाती हैं कि मन की भावनाएं आहत हो जाती है। जिससे घबराकर हम आगे बढने से कतराते हैं और विपरीत बातों को याद करते रहते हैं। हम ये भूल जाते हैं कि, नाटक की कहानी में नायक-खलनायक, अच्छे-बुरे-भले सभी पात्र होते हैं.. इनके बिना कहानी आगे नही बढती और न ही कहानी में आनंद आता है। उसी तरह जीवन में भी अच्छी बुरी परिस्थितिया आती रहती हैं और हमारा जीवन भी सुख-दुःख के साथ आगे बढता रहता है। ये हम पर निर्भर करता है कि हम उसे किस तरह समझ रहे हैं। यदि हम हर वक्त बाधाओं के बारे में ही सोचते रहेंगे तो अनजाने में ही सही हम उसे अपने जीवन में आकर्षित ही करते हैं।
दोस्तों, भारतीय खेलों के इतिहास में दृष्टीबाधित सागर बहेती ने अपने विश्वास के बल पर एक गौरवशाली अध्याय जोड़ते हुए बोस्टन मैराथन पूरी कर इतिहास रच दिया। वह इस मैराथन में हिस्सा लेने वाले पहले दृष्टीबाधित भारतीय भी हैं। बेंगलुरु के रहने वाले बहेती की यह उपलब्धि इस मायने में खास है कि इस मैराथन के लिए क्वालीफाई करना बेहद मुश्किल और प्रतिस्पर्धी है। सागर ने शारीरिक अक्षमता की सभी मुश्किलों को पार कर यह मुकाम हासिल किया है। उन्होने 42.16 किमी की इस मैराथन को महज 4 घंटे में ही पूरा कर लिया। वर्ष 2016 में पैराओल्मपिक में हमारे कई साथियों ने शारीरिक अक्षमता के बावजूद अपने साहस से परिस्थिती को अनुकूल बनाकर भारत को स्वर्ण और रजत पदकों से गौरवांवित किया है।
मित्रों, कई बार राह में जब आगे बढते हैं तो ठोकर भी लगती है और परिस्थितियां ऐसी भी आ जाती हैं कि मन की भावनाएं आहत हो जाती है। जिससे घबराकर हम आगे बढने से कतराते हैं और विपरीत बातों को याद करते रहते हैं। हम ये भूल जाते हैं कि, नाटक की कहानी में नायक-खलनायक, अच्छे-बुरे-भले सभी पात्र होते हैं.. इनके बिना कहानी आगे नही बढती और न ही कहानी में आनंद आता है। उसी तरह जीवन में भी अच्छी बुरी परिस्थितिया आती रहती हैं और हमारा जीवन भी सुख-दुःख के साथ आगे बढता रहता है। ये हम पर निर्भर करता है कि हम उसे किस तरह समझ रहे हैं। यदि हम हर वक्त बाधाओं के बारे में ही सोचते रहेंगे तो अनजाने में ही सही हम उसे अपने जीवन में आकर्षित ही करते हैं।
सच तो ये है कि, यदि हम नकारात्मक विचारों की उपेक्षा करते हैं, उन पर ध्यान नही देते तो वो हमारे जीवन में घटित नही होते। इसलिये शुभ एवं सकारात्मक विचारों को ही सोचना चाहिये क्योंकि हमारी सोच चुंबक का काम करती है। यदि हमें वास्तव में आगे बढना है और अपने लक्ष्य को सफलता से हासिल करना है तो विषतुल्य सोच से स्वयं को बचाना चाहिये। जीवन में आगे बढने के लिए हमारा सकारात्मक दृष्टीकोंण एक रामबांण औषधी की तरह है।
दोस्तों, आपको एक सच्ची घटना मणीपुर की बताते हैं, जहाँ 28 वर्ष के IAS आर्मस्ट्रांग पामें ने अकल्पनिय कार्य को साकार कर दिया। वहाँ दुर्गम पहाङियों से लोगों को गुजरने में बहुत तकलीफ होती थी। इस ओर सरकार की उदासीनता से परेशान हुए बिना अपने वेतन से बची जमापूँजी तथा गॉव वालों के सहयोग से सङक बनाने की योजना पर काम शुरु कर दिये। उनके विश्वास को देखकर पङोस के गॉव वालों ने भी आर्थिक सहयोग किया तथा युवाओं ने श्रम दान दिया, जिसकी वज़ह से 100 किलोमीटर लंबी सङक बन गई। जिसका नाम जनता की सङक रखा गया। उनके आत्मविश्वास ने गॉव वालों का रास्ता आसान कर दिया। गॉव वालों ने पामें को मिरेक लायन से विभूषित किया।
दोस्तों, आपको एक सच्ची घटना मणीपुर की बताते हैं, जहाँ 28 वर्ष के IAS आर्मस्ट्रांग पामें ने अकल्पनिय कार्य को साकार कर दिया। वहाँ दुर्गम पहाङियों से लोगों को गुजरने में बहुत तकलीफ होती थी। इस ओर सरकार की उदासीनता से परेशान हुए बिना अपने वेतन से बची जमापूँजी तथा गॉव वालों के सहयोग से सङक बनाने की योजना पर काम शुरु कर दिये। उनके विश्वास को देखकर पङोस के गॉव वालों ने भी आर्थिक सहयोग किया तथा युवाओं ने श्रम दान दिया, जिसकी वज़ह से 100 किलोमीटर लंबी सङक बन गई। जिसका नाम जनता की सङक रखा गया। उनके आत्मविश्वास ने गॉव वालों का रास्ता आसान कर दिया। गॉव वालों ने पामें को मिरेक लायन से विभूषित किया।
अक्सर कई लोग आगे बढना तो चाहते हैं लेकिन मार्ग में आने वाली तकलिफों का सामना नही कर पाते, जबकी इनमें से कुछ तकलीफें हमारे लिये एक सबक होती हैं और भविष्य में हमें दृण बनाने के लिये हितकारी भी होती हैं। ऐसे में हमारी सोच पत्थर की तरह अङियल न होकर पानी की तरह होनी चाहिये जो किसी भी परिस्थिती में आगे बढने का राह बना ही लेता है, पानी एक छोटे से छिद्र से भी बह जाता है वो अवरोध हटने का इंतजार नही करता। इसी तरह हमें भी विकल्प तलाशते हुए आगे बढते रहना चाहिये न की बाधाओं की दुहाई देकर रुकना चाहिये। जिस प्रकार से राह में आने वाले कंकङ-पत्थर को हम बीन कर नही हटा सकते हैं, लेकिन पाँवों में जूत पहनकर उससे अपने पैर को सुरक्षित रख सकते हैं। ठीक इसी तरह राह में आने वाली विपरीत परिस्थितियों को हम अपने ज्ञान तथा आत्मविश्वास से दूर कर सकते हैं।
"Always remember that your present situation is not your final destination. The best is yet to come "
दोस्तों, भारतीय खेलों के इतिहास में दृष्टीबाधित सागर बहेती ने अपने विश्वास के बल पर एक गौरवशाली अध्याय जोड़ते हुए बोस्टन मैराथन पूरी कर इतिहास रच दिया। वह इस मैराथन में हिस्सा लेने वाले पहले दृष्टीबाधित भारतीय भी हैं। बेंगलुरु के रहने वाले बहेती की यह उपलब्धि इस मायने में खास है कि इस मैराथन के लिए क्वालीफाई करना बेहद मुश्किल और प्रतिस्पर्धी है। सागर ने शारीरिक अक्षमता की सभी मुश्किलों को पार कर यह मुकाम हासिल किया है। उन्होने 42.16 किमी की इस मैराथन को महज 4 घंटे में ही पूरा कर लिया। वर्ष 2016 में पैराओल्मपिक में हमारे कई साथियों ने शारीरिक अक्षमता के बावजूद अपने साहस से परिस्थिती को अनुकूल बनाकर भारत को स्वर्ण और रजत पदकों से गौरवांवित किया है।
"You can always improve your situation. But you do so by facing it, not by running away."
अंततः यही कहना चाहेंगे दोस्तों, मनुष्य परिस्थितियों का दास नही है, वरन उनका निर्माता है। ये बात जितनी ज्ल्दी समझ आ जाये सफलता उतनी जल्दी हमारे पास होगी।
बेहतर से बेहतर कि तलाश करो
मिल जाये नदी तो समंदर कि तलाश करो
टूट जाता है शीशा पत्थर कि चोट से
टूट जाये पत्थर ऐसा शीशा तलाश करो
Saturday, 13 May 2017
Happy Mother's Day
धरती मां को नमन करते हुए सृष्टी की सभी माँ को नमन करते हैं। प्रकृति में वात्सल्य रूप पशु, पक्षी एवं मनुष्य में एक समान नज़र आता है। गर्भ से लेकर जीवन पर्यन्त अपने आँचल की छाँव में सुरक्षा की ढाल लिये माँ अपने बच्चे की जरूरत को बिना कहे ही समझ जाती है। उसकी दुआएं उसका आर्शिवाद हर पल बच्चे की खुशहाली, तरक्की तथा स्वस्थ जीवन की कामना लिये पल्लवित होती है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश का सम्लित रूप माँ स्नेह का निर्झर झरना है। ममता के प्रवाह में उसकी ऊर्जा शिशु को सुखद और सफल भविष्य देती है। इस सृष्टी की सबसे अनुपम कृति माँ को पुनः वंदन एवं नमन
Tuesday, 4 April 2017
मेरा परिचय (Anita Sharma)
दृष्टीबाधित क्षेत्र में मेरा सफर 2011 से इंदौर की दृष्टीबाधित बालिकाओं को पढाने के साथ शुरू हुआ फिर उनकी पाठ्य सामग्री को रेकार्ड भी करने लगे। रेकार्डिंग से बच्चों को शिक्षा में काफी मदद मिलने लगी और एक दूसरे से पता चलते कई दृष्टीबाधित बच्चे हमसे रेकार्डिंग कराने लगे। सबसे पहले दिल्ली की संस्था आई वे ने मेरा इंटरव्यु लिया और मेरे इस इंटरव्यू को रौशनी का कारवाँ नामक प्रोग्राम के माध्यम से विविधभारती पर प्रसारित हुआ, जिसे भारत के विभिन्न राज्यों के 35 शहरों में सुना गया और भारत के कई शहरों और राज्यों के बच्चे मुझसे रेकार्डिंग कराने लगे।इसके पश्चात विभिन्न दृष्टीदिव्यांग छात्र-छात्राओं के सम्पर्क में आने से यह ज्ञात हुआ कि, पाठ्यक्रम के ध्वनाकंन से अधिक समस्या प्रतियोगी परिक्षाओं से संबन्धित सामग्री के ध्वनाकंन में रहती है। जो रोजगार हेतु अत्यन्त आवश्यक है। इसिलिये दृष्टीदिव्यांग बच्चों को साक्षर के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनाने हेतु सामान्य ज्ञान एवं समसामयिक विषयों का ध्वनांकन प्रारंभ किया। जिसके लिये प्रतिदिन लगभग 5 से 6 घंटे रेर्काडिंग करते हैं।
मेरी शिक्षा स्नातक है और सेंटजेवियर कॉलेज (बॉम्बे) से मैने रेडियो जॉकी, ब्रॉडकास्टिंग, अनाउंसिंग तथा डबिंग का कोर्स किया है। इस क्षेत्र में काम का मुझे अच्छा अवसर मिला। लेकिन अब हम पूरी तरह से बिना किसी आर्थिक लाभ के दृष्टीबाधित बच्चों के लिये काम कर रहे हैं। मुझे आत्मिय खुशी मिलती है कि, मेरी आवाज माँ सरस्वति के कार्य़ में लगी है।
मेरा मानना है कि, किसी सार्थक काम का मौका देकर जिंदगी हमें सबसा बङा ईनाम देती है।
मेरा उद्देश्य है शिक्षा के माध्यम से दृष्टीबाधित बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना.
जिसके तहत......
1 = शिक्षा संबन्धी पाठ्य पुस्तक को रेकार्ड करना। जिसे बच्चे पोस्ट के द्वारा हमें भेजते हैं। रेकार्ड करके CD एवं DVD में कॉपी करके डाकविभाग के माध्यम से भेजना।
2 = विभिन्न प्रतियोगी परिक्षाओं हेतु जैसे की बैंक, आई ए एस, पी सी एस, रेल , यूजीसी नेट की अध्ययन सामग्री को रेकार्ड करके उन बच्चो को देना जो प्रतियोगी परिक्षाओं की तैयारी करके आत्म निर्भर बनना चाहते हैं।
3 = प्रतियोगी परिक्षाओं का ऑडियो YouTube पर अपलोड करना, जिससे ज्यादा से ज्यादा बच्चे लाभांवित हों। इस प्रयास से कई दृष्टी सक्षम बच्चों को भी शिक्षा में मदद मिल रही है।
4 = परिक्षा के समय दृष्टीबाधित बच्चों को scribe (सहलेखक) उपलब्ध कराना। जिसे पूरा करने के लिये समाज में लोगों को सहलेखक के सहयोग हेतु जागरूक करना। जागरुकता का ये अभियान अच्छीखबर वेबसाइट और कुछ समाचार पत्र के सहयोग से संपादित हो रहा है। इसके अलावा हम अपने ब्लॉग पर भी लेख लिख कर लोगों को इस कार्य हेतु जागरुक करने का प्रयास कर रहे हैं।
5 = मोटीवेशनल लेख तथा प्रसिद्ध व्यक्तियों का जीवन सारांश लिखना तथा उसे रेकार्ड करके ऑडियो फार्म में दृष्टीबाधित बच्चो तक पहुँचाना।
6 = दृष्टीबाधित बच्चों की शिक्षा को आसान बनाने के लिये नये नये सॉफ्टवेयर को सीखना। जिससे सरल ढंग से अनेक बच्चों को शिक्षा का लाभ मिल सके। इन सब प्रयासों से आज हजारों बच्चों को लाभ हो रहा है तथा कई बच्चे आत्मनिर्भर होकर अपना एवं अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं।
Voice For Blind
उपरोक्त सभी कार्यों को बङे पैमाने पर करने हेतु अधिक से अधिक लोगों क संघटन आवश्यक था। इस हेतु Voice For Blind क्लब का गठन 12 जनवरी 2015 को किया गया। जिसका मकसद है भारत के लगभग सभी शहरों में रहने वाले दृष्टीदिव्यांग बच्चों की मदद क्लब सदस्यों द्वारा उनके शहर में ही मिल सके।
डिजीटल इंडिया के सपने को साकार करते हुए विगत दो वर्षों से निरंतर वाट्सअप के माध्यम से दैनिक समाचार का प्रसारण किया जा रहा है, जो देश का पहला प्रयास है। जिसे Voice For Blind के सौजन्य से अनिता शर्मा द्वार ध्वनांकित किया जा रहा है। इस प्रयास से रोज हजारों बच्चों को भारत के विभिन्न राज्यों में अखबार पढने का लाभ मिल रहा है। वाट्सअप के माध्यम से ही सामान्य ज्ञान जैसे अन्य ज्ञान वर्धक जानकारी भी प्रसारित करना। भारत में इस तरह से दृष्टीदिव्यांग साथियों को अध्ययन सामाग्री प्रेषित करना देश का पहला प्रयास है।
News
समय-समय पर इन प्रयासों को प्रिंट मिडीया तथा इलेक्ट्रॉनिक मिडिया ने अपने-अपने कॉलम में स्थान दिया है। इंटरनेट रेडियो, " रेडियो उड़ान" पर भी मेरा साक्षात्कार प्रसारित हुआ जो दृष्टी दिव्यांग साथियों द्वारा संचालित किया जा रहा है तथा जिसका प्रसारण कई देशों में होता है। इस तरह दिन प्रतिदिन और भी बच्चों को इस प्रयास का लाभ मिल रहा है।
Radio udaan: Ek mulakat with Mrs Anita Sharma
रेडियो करिश्मा ने लंदन से इंटरव्यू लेकर इस कार्य को एशिया के अन्य देशों तक पहुँचाया जिससे वहाँ भी इस कार्य का लाभ ले सकें। प्रतिष्ठित अच्छीखबर वेबसाइट पर भी इन प्रयासो को प्रकाशित किया जा चुका है।
नेत्रहीन लोगों के जीवन में प्रकाश बिखेरती अनीता शर्मा
प्रिंट मिडिया में, दैनिक भास्कर, नई दुनिया, फ्री प्रेस, अमर उजाला, पत्रिका तथा दबंग दुनिया ने भी समय-समय पर अलग-अलग गतिविधियों को प्रकाशित किया है।
शिक्षा एवं रोजगार की इस मुहीम में आपका भी स्वागत है.....
वर्तमान में हम इंदौर में अध्ययन सामग्री को रेकार्ड करने हेतु एक साउंड प्रुफ स्टुडियो का निर्माण करना चाहते हैं तथा अपने दृष्टी दिव्यांग साथियों के लिये कम्प्युटर प्रशिक्षण केन्द्र खोलना चाहते हैं। इस हेतु स्थान की व्यवस्था हो चुकी है। परंतु अन्य वस्तुएं जैसेः- कम्प्युटर एवं उससे संबन्धित उपकरण, फर्निचर तथा आधारभूत सामग्री की व्यवस्था अभी शेष है, इस हेतु आपका सहयोग! निःसंदेह अपने दृष्टी दिव्यांग साथियों को आत्मनिर्भरता का प्रकाश देगा.....
पुस्तकों को रेकार्ड करने में
परिक्षा के समय सहलेखक बनने में
और
साउंड प्रुफ स्टुडियो में एवं कम्प्युटर प्रशिक्षण केन्द्र हेतु आर्थिक सहयोग में.............
आइये हम सब मिलकर दृष्टीदिव्यांग जनों के जीवन में शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भरता का दीप प्रज्वलित करने का प्रयास करें
Please watch this Act :- A Social Message "Ehsaas" Act by Visually Challenge Girls
Please Watch this amazing Dance :- A Brilliant Performance By Visually Impaired Girls
आपके सहयोग की अपेक्षा में
अनिता शर्मा
अध्यक्ष
अनिता दिव्यांग कल्यांण समिति
Voice For Blind
अध्यक्ष
अनिता दिव्यांग कल्यांण समिति
Voice For Blind
Monday, 27 March 2017
Inspirational Article; "कौन कहता है आसमां में सुराख नही हो सकता"
मित्रों, विक्रम संवत के अनुसार चैत्र माह की प्रतिपदा से देवी के नौ रूपों का आर्शिवाद लिये हिन्दु नव वर्ष का आरंभ होता है। नव वर्ष की इस बेला पर देवी मां की आराधाना एवं वंदना करते हुए संकल्प करें... बुलंदी पर पहुंचने का, अपने लक्ष्य को हासिल करने का और अपने इस संकल्प को, आत्मविश्वास की उमंग तथा जोश की ऊर्जा से भर दें। कहा जाता है कि, जब एक रास्ता बंद होता है तो दस रास्ते खुल जाते हैं इसलिये बाधाओं को दरकिनार करते हुए शक्ति के इस पावन पर्व पर सकारात्मक ऊर्जा के साथ निरंतर बढते रहें। सच यही है, जीतता वही है जिसमें जीतने का विश्वास और मेहनत करने की लगन होती है क्योंकि हम कोई भी कार्य करें वो आरंभ से अंत तक निर्विघन पूरा हो ऐसी संभवाना कम होती। परंतु ऐसी स्थिती में अपने सपनों को वही साकार कर पाता है जो अपने संकल्प कोआत्मविश्वास के प्रकाश से रौशन रखता है।
मित्रों, ऐसे कई लोग हैं जिनका जिवन आसान नही था, किन्तु वे अपने दृणसंकल्प से आज ्अनेक लोगों के लिये प्रेरणास्रोत हैं.... मेजर देवेन्द्र पाल कारगिल युद्ध में अपना दायाँ पैर गँवा चुके थे, परंतु उन्होने इस घटना को अपने पर हावी नही होने दिया। एक बहादुर सैनिक की तरह इस जंग को भी अपने संकल्प से जीत गये। वे भारत के पहले ब्लेड रनर हैं। अब तक वे नौ मैराथन में हिस्सा ले चुके हैं, जिसमें से चार में देवेन्द्र बिना किसी कृतिम अंग के दौङकर ये सिद्ध कर दिये कि संकल्प शक्ति से कुछ भी असंभव नही है।
पैदाइशी विकलांगता के अभिशाप को अस्विकार करते हुए शरद गायकवाङ ने हाँथ के अभाव में नौ वर्ष की आयु से तैरना शुरु किया। उनकी दृण इच्छाशक्ति का ही कमाल था कि, 2014 में उन्होने पैरा इंडियन एशियन गेम्स में लगातार 6 गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिये। इसी गेम में शरद गायकवाङ ने पी.टी.उषा के 25 साल पहले बनाये ओलंपिक रेकार्ड को भी ध्वस्त कर दिये। शरद अपनी ज्वलंत जीवन शक्ती के बल पर 40 राष्ट्रीय पदक एवं 30 अंतर्राष्ट्रीय पदक से सम्मानित हो चुके हैं। देश को गौरवान्वित करने वाले शरद पहले ऐसे भारतीय युवा हैं, जो लंदन में आयोजित ओलंपिक 2010 में शामिल हुए थे।
शिक्षा के क्षेत्र में CBSC 12वीं में 96% अंक लाकर सबको चौकाने वाले कार्तिक देख नही सकते लेकिन अपने हौसले के बल पर आज अमेरिका के प्रतिष्ठित, कैलिफोर्निया की स्टेनफोर्ड युनिवर्सिटी में अध्ययन कर रहे हैं। साइंस जैसे विषय के साथ भारत में अपना एक अलग मुकाम बनाना उनके लिये आसान नही था, फिर भी उनका मन विचलित नही हुआ और अपनी लगन से आगे बढते गये। स्टेनफोर्ड युनिवर्सिटी ने प्रतिभाशाली कार्तिक को अपने खर्चे पर अपने यहाँ एडमिशन दे दिया।
दोस्तों, मेजर देवेन्द्र पाल, शरद गायकवाङ और कार्तिक ने अपनी कमजोरी को दृण संकल्प से ताकत में बदल दिया। उन्होने अपने संकल्प से स्वयं के जीवन में कई आश्चर्य साकार किये हैं और ये सिद्ध कर दिया कि, आसमां में भी सुराख किया जा सकता है। इनके जज़्बे को देखकर कहा जा सकता है .......
पैदाइशी विकलांगता के अभिशाप को अस्विकार करते हुए शरद गायकवाङ ने हाँथ के अभाव में नौ वर्ष की आयु से तैरना शुरु किया। उनकी दृण इच्छाशक्ति का ही कमाल था कि, 2014 में उन्होने पैरा इंडियन एशियन गेम्स में लगातार 6 गोल्ड जीतकर इतिहास रच दिये। इसी गेम में शरद गायकवाङ ने पी.टी.उषा के 25 साल पहले बनाये ओलंपिक रेकार्ड को भी ध्वस्त कर दिये। शरद अपनी ज्वलंत जीवन शक्ती के बल पर 40 राष्ट्रीय पदक एवं 30 अंतर्राष्ट्रीय पदक से सम्मानित हो चुके हैं। देश को गौरवान्वित करने वाले शरद पहले ऐसे भारतीय युवा हैं, जो लंदन में आयोजित ओलंपिक 2010 में शामिल हुए थे।
शिक्षा के क्षेत्र में CBSC 12वीं में 96% अंक लाकर सबको चौकाने वाले कार्तिक देख नही सकते लेकिन अपने हौसले के बल पर आज अमेरिका के प्रतिष्ठित, कैलिफोर्निया की स्टेनफोर्ड युनिवर्सिटी में अध्ययन कर रहे हैं। साइंस जैसे विषय के साथ भारत में अपना एक अलग मुकाम बनाना उनके लिये आसान नही था, फिर भी उनका मन विचलित नही हुआ और अपनी लगन से आगे बढते गये। स्टेनफोर्ड युनिवर्सिटी ने प्रतिभाशाली कार्तिक को अपने खर्चे पर अपने यहाँ एडमिशन दे दिया।
दोस्तों, मेजर देवेन्द्र पाल, शरद गायकवाङ और कार्तिक ने अपनी कमजोरी को दृण संकल्प से ताकत में बदल दिया। उन्होने अपने संकल्प से स्वयं के जीवन में कई आश्चर्य साकार किये हैं और ये सिद्ध कर दिया कि, आसमां में भी सुराख किया जा सकता है। इनके जज़्बे को देखकर कहा जा सकता है .......
लक्ष्य भी है, मंज़र भी है,
चुभता मुश्किलों का खंज़र भी है !!
प्यास भी है, आस भी है,
ख्वाबो का उलझा एहसास भी है !!
फिर भी इतिहास रचने को हर हाल में तैयार है!!
अपने हौसले से उङान भरते हुए कहते हैं
अगर देखना चाहते हो, तुम मेरी उड़ान को,
तो जाओ जाकर थोड़ा ऊँचा करो इस आसमान को |
आप सब अपने हौसले के बल पर आसमान की बुलंदी पर सफलता का परचम फैलाएं इसी मंगल कामना के साथ आप सबको नव वर्ष की हार्दिक बधाई
Sunday, 12 March 2017
Happy Holi
त्योहार है खुशियों का, जब सारे रंग खिलते हैं। उल्लास और उमंग संग सब संग मिलकर मनायें होली। आज के दिन भूलिये भेदभाव अभिमान। इन्द्रधनुषी रंग में धो लिजीये बैर और विद्वेष। ऐसी खेलें होली कि हिन्दु मुस्लिम सिख्ख का फर्क रहे ना आज। रंगो के इस पर्व पर मरुस्थल मन में बह उठे भाई-चारे की मृद शीतल जल-धार। वृंदावन की सुगंध लिये बरसाने की फुहार संग आप सभी पाठकों को और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
(होली पर लेख पढने के लिये लिंक पर क्लिक करें)
होली की बधाई
Tuesday, 7 March 2017
महिला दिवस पर विशेष (Happy Women Day)
नारी महज दो अक्षर नही है वो तो आत्मविश्वास से भरी एक प्रेरक मिसाल है। अपने हौसले के दम पर अनंतकाल से नित नये कीर्तिमान रच रही है। माँ, बेटी हर रूप में वो सृष्टी का आधार। आसमान सा है उसका विस्तार एवं धरती सा है धैर्य उसमें। स्नेह का दरिया बन बहती है निर्झर अविरल। रिश्तों नातों से सजा गरिमामय श्रृंगार है उसका। ऐसी नारी को महज एक दिन नही, ता उम्र मेरा सलाम है।
मैं अनिता शर्मा आज के इस खास दिन अपनी उन बहनों से गुजारिश करती हुँ, जो घर परिवार का ध्यान रखते हुए अपनी संतुष्टी के लिये समाज के ऐसे वर्ग का सहयोग करना चाहती हैं , जो शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनना चाहते हैं परन्तु दृष्टी दिव्यांगता के कारण पुस्तक पढने में अक्षम हैं। आत्मनिर्भरता का सपना सजोये ऐसे बहुत से विद्यार्थी हैं जो ध्वनांकित यानी Recorded पाठ्य सामग्री के अभाव में आगे बढने से वंचित रह जाते हैं। यदि इन बच्चों को आपका सहयोग मिल जाये तो ये बच्चे भी इतिहास रच सकते हैं। आप घर पर ही रहते हुए इनकी शिक्षा को सुगम बना सकती हैं। शिक्षा की इस मुहीम में सहयोग की इच्छा रखने वाली बहने, अधिक जानकारी के लिये मेल करें ...........
Mail ID- voiceforblind@gmail.com
सखियों, हम आपलोगों के साथ एहसास एकांकी का लिंक शेयर कर रहे हैं। इस नाटक के निर्देशन से लेकर अभिनय तक हमारी दृष्टीबाधित बेटियों ने खूबसूरती से निभाया है और समाज को संदेश दिया है कि, बेटी को यदि शिक्षित करोगे तो वो भी उत्कृष्ठ कार्य कर सकती है।
एहसास
Mail ID- voiceforblind@gmail.com
सखियों, हम आपलोगों के साथ एहसास एकांकी का लिंक शेयर कर रहे हैं। इस नाटक के निर्देशन से लेकर अभिनय तक हमारी दृष्टीबाधित बेटियों ने खूबसूरती से निभाया है और समाज को संदेश दिया है कि, बेटी को यदि शिक्षित करोगे तो वो भी उत्कृष्ठ कार्य कर सकती है।
एहसास
Tuesday, 31 January 2017
जय-जय माँ सरस्वती
जयती जय-जय माँ सरस्वती
जयती वीणा वादिनी
आए तेरे द्वार पर हम
कर कृपा सुर दायिनी---
कर कृपा हम पर हे माता
ज्ञान की गंगा बहा
मिटे बैर भारत से
हिंसा का हो अंत
राष्ट्रीयता की भावना
हो परम घर्म,
तेरी विणा के सुर से
बहे सुख शांति और समृद्धि की बयार
जयती-जय-जय माँ सरस्वती
जयती वीणा वादिनी—
माँ सरस्वती का आर्शिवाद हम सब पर सदैव रहे इसी अभिलाषा के साथ सभी पाठकों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें।
Wednesday, 25 January 2017
Monday, 23 January 2017
बेटियों का दिल से करें स्वागत
मित्रो, नवरात्री के अवसर पर समस्त भारत में कन्याओं को सम्मान दिया जाता है। उनकी पूजा करके हम सब देवी माँ की आराधना करते हैं। लेकिन क्या हम पूरे वर्ष या कहें ताउम्र बच्चियों को वो सम्मान देते हैं???
यदि सच्चाई के साथ उत्तर सोचेगें तो, यही उत्तर मिलेगा कि हम उन्हे वो सम्मान नही दे रहे हैं जिनकी वो हकदार हैं।
मेरे पूर्व के विचारों को पढने के लिये लिंक पर क्लिक करेंः-
बेटी बचाओ जैसी योजनाएं और अनेक कार्यक्रम इस बात की पुष्टी करते हैं कि आज अत्याधुनिक 21वीं सदी में भी हम लिंगानुपात के बिगङते आँकङे को सुधार नही पा रहे हैं। पोलियो, कैंसर, एड्स जैसी बिमारियों को तो मात दे रहे हैं किन्तु बेटीयों के हित में बाधा बनी संकीर्ण सोच को मात नही दे पा रहे हैं।
Read More:- बेटी है तो कल है
मित्रों मेरा मानना है कि, कैंसर से भी गम्भीर बिमारी से ग्रसित हमारी दकियानुसी रुढीवादी सोच का कुठाराघात बेटीयों पर जन्म से ही होने लगता है। अनेक जगहों की प्रथा के अनुसार बेटा होने पर उसका स्वागत थालियों, शंख तथा ढोल बजाकर करते हैं वही बेटी के जन्म पर ऐसा सन्नाटा जैसे कोई मातम मनाया जा रहा हो।
Read More:- रुढीवादी सोच को अलविदा कहें
प्रसिद्ध कवित्री सुभद्राकुमारी चौहान जब अपनी बेटी की शादी कर रहीं थीं तो, विवाह संस्कार में कन्यादान की प्रथा को करने से, उन्होने एवं उनके पति ने ये कहते हुए मना कर दिया कि मेरी बेटी कोई वस्तु नही है और उन दोनों ने कन्यादान की रस्म नही की।
Read More:- बालिका दिवस पर सभी बेटीयों को बधाई
बेटी बिना नही बनता घरौंदा। विश्व जननी का ही एक रूप है बेटी। सदा उसका सम्मान करें
A Daughter is one of the most beautiful gifts this world has to give
धन्यवाद ः)
यदि सच्चाई के साथ उत्तर सोचेगें तो, यही उत्तर मिलेगा कि हम उन्हे वो सम्मान नही दे रहे हैं जिनकी वो हकदार हैं।
मेरे पूर्व के विचारों को पढने के लिये लिंक पर क्लिक करेंः-
बेटी बचाओ जैसी योजनाएं और अनेक कार्यक्रम इस बात की पुष्टी करते हैं कि आज अत्याधुनिक 21वीं सदी में भी हम लिंगानुपात के बिगङते आँकङे को सुधार नही पा रहे हैं। पोलियो, कैंसर, एड्स जैसी बिमारियों को तो मात दे रहे हैं किन्तु बेटीयों के हित में बाधा बनी संकीर्ण सोच को मात नही दे पा रहे हैं।
Read More:- बेटी है तो कल है
मित्रों मेरा मानना है कि, कैंसर से भी गम्भीर बिमारी से ग्रसित हमारी दकियानुसी रुढीवादी सोच का कुठाराघात बेटीयों पर जन्म से ही होने लगता है। अनेक जगहों की प्रथा के अनुसार बेटा होने पर उसका स्वागत थालियों, शंख तथा ढोल बजाकर करते हैं वही बेटी के जन्म पर ऐसा सन्नाटा जैसे कोई मातम मनाया जा रहा हो।
Read More:- रुढीवादी सोच को अलविदा कहें
प्रसिद्ध कवित्री सुभद्राकुमारी चौहान जब अपनी बेटी की शादी कर रहीं थीं तो, विवाह संस्कार में कन्यादान की प्रथा को करने से, उन्होने एवं उनके पति ने ये कहते हुए मना कर दिया कि मेरी बेटी कोई वस्तु नही है और उन दोनों ने कन्यादान की रस्म नही की।
Read More:- बालिका दिवस पर सभी बेटीयों को बधाई
बेटी बिना नही बनता घरौंदा। विश्व जननी का ही एक रूप है बेटी। सदा उसका सम्मान करें
A Daughter is one of the most beautiful gifts this world has to give
धन्यवाद ः)
Wednesday, 11 January 2017
कैश लेस और बैग लेस युग में दिव्यांगो की शिक्षा का विशेष मंच "Voice For Blind"
दोस्तों, एक पंक्ति बहुत कॉमन है कि, “जो दिखता है वो बिकता है” सच तो ये भी है कि, ऐसे कई आयाम हैं जो दिखते नही परंतु सफल विकास में नींव के पत्थर की तरह मजबूत आधार प्रदान करते हैं। फिल्मों की सफलता के पीछे हजारों ऐसे हाँथ होते हैं जो दिखते नहीं, किसी भी शानदार इमारत की नींव दिखती नही परंतु इमारत को चिरकाल तक स्थाई रखने में नींव के योगदान को नकारा नही जा सकता। आज विकास के इस दौर में रोटी, कपङा और मकान के साथ शिक्षा एवं रोजगार भी मूलभूत आवश्यकता है। शिक्षा की इस मूहीम में वॉइस फॉर ब्लाइंड अपने दृष्टी दिव्यांग साथियों को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने में प्रयासरत है।
आज भारत डिजिटल इंडिया की ओर बढ रहा है, जहाँ शिक्षा के आयाम भी बदल रहे हैं। नित नई टेक्नोलॉजी के साथ हमसब कदम ताल करते हुए आगे बढ रहे हैं। जहाँ तीन दशक पहले अपने दृष्टी दिव्यांग साथी कैसेट के माध्यम से पढते थे, वहीं आज ई लर्निंग के तहत गूगल ड्राइव, पेन ड्राइव के साथ यूट्यूब तथा वाट्सएप पर शिक्षा अर्जित कर रहे हैं। शिक्षा के ये नये आयाम अपने दृष्टी दिव्यांग साथियो की पढाई को सुगम बना रहे हैं। मित्रों, ये लेख लिखने का खास मकसद है,
दरअसल वॉइस फॉर ब्लाइंड ई लर्निंग का ऐसा मंच है जो दिखता नही किंतु हजारों प्रिंट दिव्यांग साथियों को देश दुनिया की जानकारी से अपडेट कराते हुए, शिक्षा की अलख वाट्सएप तथा यूट्यूब के माध्यम से प्रदान कर रहा है जिसके प्रकाश में इंदौर के अलावा भारत के विभिन्न राज्यों के दृष्टी दिव्यांग साथी लाभान्वित होकर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हैं। फिर भी समाज द्वारा अक्सर ये पूछा जाता है कि, आपकी संस्था में कितने बच्चे रहते हैं?
दोस्तो, वॉइस फॉर ब्लाइंड ऐसा ई मंच है जहां कागजों और भवनों से परे अनेक दृष्टीदिव्यांग साथी शिक्षित हो रहे हैं। जो उनके लिये ज्यादा सुगम(आसान) है। अहिल्याबाई की पावन नगरी के सभी सम्भ्रांत वर्ग से मेरा विशेष निवेदन है कि, ई लर्निंग के इस प्रयास में वॉइस फॉर ब्लाइंड को अपना भरपूर सहयोग प्रदान करके इंदौर को डिजिटल इंडिया के तहत ई लर्निंग का ऐसा एजुकेशन हब बनाने में सहयोग करें जिसकी आवाज चारों दिशाओं में गुंजायमान हो। इसके तहत इंदौर शहर में पाठ्य सामग्री के ध्वनांकन हेतु एक साउंड प्रूफ स्टुडियो का आगाज है, जहां उच्च तकनिकी माध्यम से ई बुक रेकार्ड की जा सके तथा कम्प्युटर ट्रेनिंग सेंटर के माध्यम से दृष्टी दिव्यांग साथियों को डिजीटलाइजेशन में पारंगत किया जा सके, ताकि हमारे दृष्टी दिव्यांग साथी भी कैश लेस और बैग लेस समाज में मुख्यधारा के साथ कदमताल कर सकें। If you want to CONTACT us, Kindly E:- Mail us at voiceforblind@gmail.com
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