Tuesday, 24 December 2024

भारत रत्न अटल जी के शताब्दी वर्ष पर अभिनन्दन

भारत रत्न  अटल बिहारी वाजपेयी जी को सौवें जन्मदिन पर वंदन करते हैं और नमन करते हैं। अटल जी का जीवन एक ऐसी सकारात्मक किताब है ,जिसको आत्मसात करने से यथार्थ जीवन को सुगम बना सकते हैं। बाधाओं के बावजूद निरंतर गतिमान जीवन शैली के धनी अटल जी की कविताएं प्रेरणास्रोत हैं। प्राथमिक शिक्षा से लेकर राजनीति के शिखर तक आपने अपनी अद्भुत यात्रा में अनेक अविस्मरणिय कार्य किये हैं। विश्व पटल पर विवाद शुन्य व्यक्तित्व के धनी अटल जी से मर्यादा पूर्ण वार्तालाप करने का गुंण सिखा जा सकता है। ईश्वर जीवन में इतनी ऊँचाई न देना कि अपनो को गले भी न लगा सकुं ऐसी उदारता के प्रतीक थे अटल जी। अपने राजनीति सफर में आपने अनेक अभूतपूर्व और असंभव कार्य किये जिसे स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। अभिनंदन करते हुए अटल जी की  लिखी प्रसिद्ध पंक्ति हार नही मानुगा रार नही ठानुंगा को जीवन में आत्मसात करने का प्रयास करते हुए कलम को विराम देते हैं।

अटल जी के व्यक्तित्व को विस्तार से जानने के लिए दिये गये लिंक पर क्लिक करें ..


संसदिय गरिमा को आत्मसात करने वाले, आदरणीय अटल जी

जनजन के प्रिय नेता संवेदनशील कवि अटल जी


जय हिंद वंदे मातरम् 

Tuesday, 19 November 2024

शुभं जन्मदिनम्‌


मम जन्मदिने अहं ईश्वरस्य सान्निध्यस्य,
 तस्य सामर्थ्यस्य, तस्य उद्देश्यस्य च धन्यवादं ददामि।
 शुभं जन्मदिनम्‌

मित्रों, आज मेरे जीवन के साठ वर्ष कुछ खट्टी-मीठी योदों के साथ पूर्ण हो गये। कल जो वर्तमान था आज अतीत बन गया है। बचपन, यौवन जीवन की आपाधापी में गुजरे जमाने का हिस्सा बन गया। कभी खुशी-कभी गम का तराना, वर्तमान में जियो इसी सोच में गुनगुनाते बीत गया।आज नई जिम्मेदारियों के साथ गरिमामय शब्द वरिष्ठ नागरिक की श्रेंणी में शामिल हो गये।
आज मन किया लिखुं बिते साठ वर्षों में जीवन ने क्या खोया क्या पाया.. कुछ दिल का दिल में रह गया, कुछ बिन मांगे मिल गया। 

पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर वर्तमान जन्म अपना भाग्य लेकर आया। पिता को व्यपार में तरक्की हुई तो उनकी लाडली बेटी बन गये। माता-पिता की वजह से मिले सभी रिश्तों (भाई-बहन) संग बेपरवाह बचपन खुशियों संग उङान भरता रहा। कहते हैं, वक्त तो दिन-रात में बंटा हुआ है। सच ही तो है जीवन में खुशी दिन है जो कब खत्म हो जाती है पता नही चलती। वहीं गम वो रात है, जिसके बीतने का इंतजार बहुत लम्बा होता है। असमय पिता का ईश्वर के श्री चरणों में चले जाने से कब अल्हङ बचपन छोङ, बङे हो गये पता ही नहीं चला। परंतु 12-13 वर्ष की उम्र से ही विवेकानंद जी को पढने और सामाजिक सेवा से जुङने की वजह से यथार्थ में जीना और सकारात्मक सोच ने जीवन को आसान बनाने में सहयोग दिया। मां से प्राप्त शिक्षा से कभी भी अर्थ (धन) को महत्व नहीं दिये। खुशी का सरोकार भौतिक संम्पदा से नही है ये पाठ आज भी याद है। मेरा मानना है कि, परिवार साथ हो, सब स्वस्थ रहें, बच्चे अपने-अपने जीवन में खुश और स्वस्थ रहें, यही सबसे बङी संम्पदा है।

ज़िन्दगी तो एक ढलती शाम की तरह है, जिसमें कहीं उथल-पुथल है, तो कहीं थोड़ा आराम भी।

जीवन के अगले अध्याय में परिणय सूत्र में बंघने का पल आया।भाईयों के प्यार ने  पिता की कमी का अहसास होने नहीं दिया। जन्म के बाद से पहली बार धूम-धाम से  जन्मदिन मना तद्पश्चात वरमाला से विवाह का कार्यक्रम शुरु हुआ। दरअसल हमने मां से शिकायत की थी कि भाई का जन्मदिन मनाती हैं आप, बेटियों के साथ भेदभाव क्यों करती हैं। उनका वादा था कि इसबार जरूर मनायेंगे तुम्हारा जन्मदिन। ये संयोग ही रहा कि ईश्वर ने उनको वादा पुरा करने का शुभअवसर दे दिया। हिंदी महिने के अनुसार 21 नवम्बर को वही जन्मतिथी पङ गई जब शादी की तारिख पंडितों द्वारा निकली। हर्ष और उल्लास के साथ जिन्दगी नई दिशा में चल पङी.. 
ये लोग नया परिवार ये भी हमारे पूर्व कर्मो के आधार पर बहुत अच्छा मिला। ससूर के रूप में पिता मिले जिन्होने अपने जीवन परयंत मेरी मां को दिये वादे को निभाया। सास के रूप में मां मिली, जिन्होने बिना किसी उलहाने के घर गृहस्थी सिखाई। नये परिवार के अन्य सदस्यों का भी प्यार और साथ मिला। नौकरी की वजह से बाहर रहने से सासु मां का सानिध्य ज्यादा रहा। जीवन के हरपल सुख-दुख में साथ देने वाले साथी का क्या कहना.. सामाजिक बुराई दहेज के खिलाफ, लङकियों को भी सम्मान से जीने के लिए आर्थिक सक्षम होने की सोच रखने वाले, पत्नी के आने के बाद भी घर में खाना बनाने में या अन्य कार्यों में भी सहयोग करने में कोई संकोच नहीं करते। उनके इसी व्यवहार के कारण आसपास के कई लोग कहते थे कि आप लोगों की लव-मैरिज हुई है क्या। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि अब तक का जीवन उनके साथ बहुत अच्छा बिता। ऐसा नही है कि कभी बहस या झगङा नही हुआ पर आज जिस मुकाम पर हैं वहां सोचते हैं तो लगता है, जो किया, कहा, माना उसमें भला-बुरा जिंदगी में अनुभव की कमी ही रही। वरना सच तो ये है कि मिठे के साथ नमकीन भी जरूरी है। लोकिन नमकीन की अधिकता जीवन को कसैला भी बना सकती है, इसका बैलेंस होना भी जरूरी है। धूप-छांव की बराबर मात्रा से ही तो जीवन पल्वित होता है। 

खुश रहकर गुजारो तो मस्त है जिंदगी,
दुखी रहकर गुजारो तो त्रस्त है जिंदगी,
मिलती है एकबार,  प्यार से बिताओ जिंदगी।। 

जिंदगी आगे बढी घर में नन्ही परी का आगमन हुआ। जीवन उसमें ही सिमट गया। खुशियां शुक्ल पक्ष की चंद्रमा की तरह बढती गई। कुछ समय बाद प्यारा सा बेटा भी आ गया। बच्चों संग बच्चों की दुनिया में खेलते कूदते दिन-रात पलक झपकते बीत गये। मेरी सोच है कि, बच्चों के साथ खेलना, रहना हमारे बचपन को वापस ला देता है और मां बनने की खुशी सोने में सुहागा है। समय को ईश्वर का वरदान मिल गया। बच्चे बङे हो गये जिम्मेदारी का अहसास भी बढ गया, आखिर बच्चों के भविष्य का सवाल था। हम थोङा प्रयास किये पर बच्चे ज्यादा प्रयास किये और प्रथम प्रयास में ही बेटी सीए बेटा डॉ. बन गया। उनकी कामयाबी से मन गर्व से प्रफुलित हो गया। कामयाबी ने उङान भरी बच्चे अपनी-अपनी तरक्की के आसमान में उङने को निकल पङे। बङों के आशिर्वाद से और उनके अच्छे कर्मों से अभीभूत होकर सफलता के आसमान ने भी योग्य स्थान दिया उनको। बच्चे तरक्की करते रहें इसी प्रर्थना के साथ उनको याद करते जीवन बढता रहा। अकेले होने पर यादों के झरोखों में कुछ ऐसे पल याद आये जो मन को दुखी कर गये, परवरिश के दौरान बच्चों की पिटाई करना ऐसी गलती  जो अक्षम्य है, जिसका अफसोस आज भी है। बच्चों की पिटाई का उनपर जो दूरगामी असर होता है उसका ज्ञान जब मिला, तबतक समय बहुत दूर चला गया। वो पल वापस लाना तो असंभव हो जाता है और गलती की कसक ताउम्र बनी रहती है। समय सब कुछ बदल देता है, लेकिन कुछ यादें हमेशा रहती हैं। बङी विलक्षण होती है जीवन की यात्रा, सारी पढाई लिखाई धरी रह जाती है जब जिदंगी अपना सिलेबस बदलती है। इसलिए अपने अनुभव से आज की माताओं से विनय पूर्ण अनुरोध है कि, बच्चों को सब्र के प्यार से समझायें और एक स्वस्थ वातावरण प्रदान करने का प्रयास करें।

बच्चे फूलों की तरह होते हैं। उन्हें अपनी मुस्कान से, उन पर बारिश की तरह बरसने वाले अपने कोमल कोमल शब्दों से और अपने आत्मविश्वास की कला से उन्हें खिलने दें। निःसंदेह आप अपने बगीचे को देखकर आश्चर्यचकित हो जाएंगे।

उम्र के बढते पङाव पर बच्चों की शादी के उत्सव में शामिल होकर अद्भुत खुशी मिली। ईश्वर कृपा से बच्चों को मनचाहा संसार मिला। कहते हैं मूल से सूद ज्यादा प्यारा होता, ये शत् प्रतिशत सच है। बेटी के बच्चे हुए। जीवन को नया आयाम मिला, उम्र जैसे ठहर सी गई। खुशियों के पल ने बसंत की छटा को मोहक बना दिया। नव-अंकुरित बच्चों के मुख से नन्ना शब्द सुनना ऐसी औषधी बन गई जिसने उम्र को रोक दिया। उनके साथ वापस वही खेल-कूद से जीवन को नई ऊर्जा मिली। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, नाती-नातिन, पोता-पोती जीवन के वो खजाने हैं जिसमें अपने बच्चों का अक्स नजर आता है। हालांकि अभी दादी नही बने है पर ईश्वर वो सुख भी देगा मुझे ये विश्वास है। जब भी दादी या दद्दा कहने वाला/वाली खुशबू आंगन में आयेगी, षठवर्ष होने के बावजूद नई ऊर्जा मिलेगी।  
मन के अंदर हर्ष और उल्लास होना चाहिये,
जिंदगी में हर घङी मधुमास होना चाहिए।    

जीवन यात्रा अभिलाषाओं की पंक्ति में खङी रहती है और नित नई आकांक्षाओं जन्म देती रहती है। मित्रों, जीवन में मिले अच्छे बुरे तानों से ये समझ आया कि, हम कुछ लोगों के लिए कितने भी अच्छे रहे होंगे पर कुछ लोगों की कहानी में बुरे भी रहे होंगे। अतः अब तक के बिते जीवन में साथ निभाए या साथ न निभाए सभी रिश्तों के प्रति सह्रदय कृतज्ञता प्रगट करते हैं और सबके लिए सुखद, सुंदर, स्वस्थ जीवन की मंगलकामना करते हैं। जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमाप्रर्थी भी हैं🙏 
भूल हो जाती है माना, यह जरूरी है मगर,
अपनी हर इक भूल का अहसास होना चाहिये। 

आज मेरे जन्मदिन पर स्वयं को भी शुभकामनाएं देते हुए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं.. जितना भी शेष जीवन है वो मनचाही समाज सेवा भी कर सके क्योंकि दृष्टीबाधित बच्चों के साथ बिताया सफर भी जीवन को नित नई ऊर्जा प्रदान करता रहा है। ये बहुत बङा सत्य है कि ऊपर वाले ने सबके के लिए रास्ता तय करके रखा है। वो अपने बंदो को सहयोग की भावना के लिए आगे बढने की प्रेरणा देता है। किसकी कब सहायता करनी है उसके इशारे से ही होती। हमसब तो उसके संसाधन हैं। सहयोग संसाधन लिस्ट में ईश्वर हमें भी बराबर बनाये रखे। स्वस्थ रहें, जिंदगी से कोई शिकायत न रहे ऐसी भावना हो। जिंदगी तो एक किताब की तरह है.. जिसके कुछ अध्याय दुखद, कुछ सुखद और कुछ रोमांचक हैं। अब अगला पन्ना पलटेंगे तब पता चलेगा कि आगे क्या लिखा है.. भरोसा है जो भी लिखा होगा अच्छा होगा, अच्छे के लिए ही होगा। फिलहाल आज अपनी खुशनुमा यादों के साथ जन्मदिन मनाते हैं और जेहिं बिधी राखे राम तेहीं बिधी रहिये आप पर अमल करते हैं। 
सभी पाठकों को मेरी जीवन यात्रा पढने के लिए तहेदिल से धन्यवाद 

बढती रहती है अनुभव की मात्रा,

ज्यों-ज्यों बढती रहती है जीवन यात्रा।

निखार आये गुंणवत्ता में उत्तरोत्तर,

तब ही सार्थक है जीवन यात्रा। 
🙏





Wednesday, 30 October 2024

भारतीय पर्व-उत्सव (शुभ दीपावली )


भारत के प्रमुख त्योहारों में दीपवली विशेष पर्व है, इसे आलोक पर्व के रूप में मनाते हैं। कृषी प्रधान देश भारत में हजारों वर्ष पूर्व इस उत्सव का प्रचलन ऋतुपर्व के रूप में हुआ था। समयानुसार इस पर्व के साथ महत्वपूर्ण एतिहासिक घटनाएं प्रचलित होने लगी। दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का महत्व प्राचीन ग्रंथ सनत्कुमार संहिता  से मिलता है, जिसमें दानवराज बलि के कारागार में बंद देवी लक्ष्मी को वामन अवतार  भगवान विष्णु जी द्वारा मुक्त कराने का उल्लेख है। वैदिक साहित्य के अतिरिक्त अन्य प्राचीन भारतीय साहित्य में भी दीपावली का अनेक प्रसंग है। स्वच्छता की दृष्टी से ये पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। घर की सफाई के लिए चूना, नीलाथोथा आदि कीटनाशक पदार्थों का प्रयोग सीलन, दुर्गंध और अस्वास्थकर वातावरण को दूर करते हैं। असंख्य दीपों से उत्पन्न होने वाला प्रकाश, वर्षा ऋतु में पैदा होने वाले किटाणुों का नाश करता है। दीपक में जलने वाले 
सरसों के तेल का धुआँ सासों के जरिये संक्रामक कृमियों का संहार करता है। 

शुभता और स्वच्छता के प्रतीक पर्व पर ईश्वर से यही कामना करते हैं कि,  दिपोत्सव की रोशनी पूरे साल हताशा के अंधेरे को नष्ट कर सबके घर-आंगन-मन को रोशन करती रहे। अंधेरे के आकाश को परास्त करने वाले नन्हें से दीपक सा साहस हम सब में भी बना रहे। इसी मंगल कामना के साथ  सभी पाठकों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

Wednesday, 2 October 2024

जय माता दी 🙏 प्रार्थना की शक्ति


मित्रों, आइये हमसब मिलकर, माँ दुर्गा की आराधना और प्रार्थना करते हैं।नवरात्री के विशेष पर्व पर प्रार्थना की अद्भुत शक्ति को समझने का प्रयास भी करते हैं। 

जब भी हम सब पुरी आस्था से अपने - अपने ईश्वर की प्रार्थना करते हैं तो एक संबल मिलता है और हमारा आत्मबल मजबूत हो जाता है। 

साथियों , जब हमारे चारों ओर निराशा और अंधकार के बादल मंडराने लगते हैं तो हम किसी ऐसे की तलाश करते हैं, जिससे हम अपनी बात कह सकें। तब हमारी तलाश ईश्वर पर ही खतम होती है। ईश्वर का सबल मिलते ही हमारा आत्मबल मजबूत होने लगता है। 

प्रार्थना के लिये किसी भाषा या व्याकरण की जरूरत नही है। आवश्यकता है पूर्ण आस्था के साथ अपने ईश के समक्ष संपूर्ण समर्पण। प्रार्थना से हममें ऐसी ऊर्जा का संचार होता जिससे हममें विपरीत परिस्थिती में भी सही सोच रखने का साहस मिलता है। मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि, प्रार्थना से अंतर्मन की सोई ऊर्जा सक्रिय हो जाती है, जिससे कई बार तो असाध्य रोग भी ठीक हो जाता है। ध्यानयोग्य बात ये है कि, प्रार्थना के समय हमारा मन पूरे विश्वास के साथ ईश्वर के प्रति केंद्रित होना चाहिये। प्रार्थना का अभिप्राय ये कदापी नहीं है कि, हमारे सभी कार्य पूर्ण हो जायेंगे। बल्की हमें उचित कार्य करने और सही दिशा में  अग्रसर होने की शक्ति प्राप्त होती है। 

कहते हैं, ईश्वर भी उसी की सहायता करते हैं जिनको स्वयं पर विश्वास होता है। प्रार्थना से ध्यान का अभ्यास भी होता है। प्रार्थना करते समय व्यक्ति का मंदिर में होना जरूरी नही है लेकिन व्यक्ति के मन में ईश्वर का होना जरूरी है। जब विचार, इरादा और प्रार्थना सब सकारात्मक हो तो जिंदगी अपने आप सकारात्मक हो जाती है। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, प्रार्थना ऐसे करो कि सबकुछ भगवान पर ही निर्भर करता है और प्रयास ऐसे करो कि सबकुछ आप पर निर्भर करता है। 

अपनी कलम को विराम देते हुए यही कहना चाहेंगे कि , प्रार्थना और विश्वास दोनों अदृश्य हैं, परंतु दोनों में इतनी ताकत है कि नामुमकिन को मुमकिन बना देते हैं। विश्वास बनायें रखें सब अच्छा होगा 🙏

माँ की कृपा हमसब पर सदैव बनी रहे इसी मंगलकामना के साथ सभी पाठकों को दुर्गा उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं 



लिंक पर क्लिक करके पूर्व के लेख भी पढें 🙏


गायत्री मंत्र का शाब्दिक महत्व


माँ दुर्गा का अनुपम पर्व 

Saturday, 1 June 2024

श्रीकांत बोल्ला A inspiring Story



मित्रों,  

आज हम श्रीकांत बोल्ला देखकर आए। सबसे पहले तो फिल्म के हीरो राजकुमार राव को धन्यवाद देते हैं, जिन्होने मिस्टर श्रीकांत बोल्ला के किरदार को बहुत खूबसूरती से निभाया है। फिल्म देखकर पहला विचार यही आया कि , एक छोटी सी जगह , आर्थिक तंगी और शारीरिक अक्षमता के बावजूद एक बच्चा अपने दृणविश्वास के बल पर करोणों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन सकता है!!!!!! 

ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि , श्रीकांत की राह आसान नहीं थी। जन्म से अवहेलना का तंज, पढाई में बाधाएं, भारतीय शिक्षा नीति की कमियां इत्यादि ऐसे अवरोध हैं जो एक दृष्टीबाधित व्यक्ति को हमेशा आगे बढने से रोकते हैं।  आमतौर पर सभी दृष्टीबाधित लोगों को उपरोक्त बाधाओं को झेलना पङता है। परंतु जो अपने जज़बे को दृणसंकल्प के साथ यथार्थ में अमलीजामा पहनाता है वही श्रीकांत  बनता है।  

श्रीकांत की आत्मकथा सभी के लिए सकारात्मक संदेश देती है, चाहे वो शारीरिक सक्षम हो या अक्षम। मुश्किलें तो जीवन में सबके साथ आती रहतीं है। परंतु सफलता के सपने को देखना और उसको जीना सबसे बङी शक्ति है जिसको श्रीकांत ने हमेशा सकारात्मक सोच के साथ आगे बढाया। हम सब कुछ कर सकते हैं ये वाक्य वो जादूई शक्ति है जिससे सफलता की ऊंचाईयों को छुआ जा सकता है। आर्थिक तंगी कभी भी सफलता की बाधक नही है, जहां चाह है वहां राह आसान हो जाती है। कहते हैं, जो अपने पथ पर अटल है वही सफल है। 

इस फिल्म में श्रीकांत जी का एक संवाद बहुत खास है, "नाना, अंधा भाग नही सकता लङ सकता है।" ये संवाद बहुत गूढ बात कहता है........... अपनी समस्याओं से भाग जाना (जो बहुत आसान पथ है) या अपने सपनों को साकार करने के लिए हर मुसिबत से डटकर लङना। 

इस कहानी में स्पष्ट है कि, एक शिक्षित व्यक्ति किसतरह से रोजगार के माध्यम से स्वयं आत्मनिर्भर बनकर अनेक लोगों को आत्मनिर्भर बना सकता है। श्रीकांत के जीवन में दो किरदार बहुत महत्व रखते हैं, एक शिक्षिका देविका और आर्थिक मदद करने वाला व्यक्ति रवी। 

फिल्म देखने के बाद वहीं उपस्थित कुछ लोगों से हमने पूछा कि, इस फिल्म को देखकर आपका क्या विचार है, ज्यादातर लोगों ने यही कहा कि हम लोग अक्सर छोटी छोटी समस्याओं से घबङा जाते हैं, रास्ता बदल लेते हैं । परंतु श्रीकांत के जीवन को देखकर लगा कि समस्याओं से भागने की बजाय समस्याओं को भगाने का उपाय करना चाहिये।

अगला प्रश्न मेरा था कि, क्या आपलोगों के मन में ये विचार आया कि हमें भी देविका या रवी बनकर सहायता करनी चाहिये ?

कुछ लोगों का उत्तर था कि, हां जरूर हम शिक्षा के क्षेत्र मेंं अवश्य मदद करना चाहेंगे। आशा करते हैं ये फिल्म समाज को जागरुक अवश्य करेगी । 


श्रीकांत जी का संक्षिप्त परिचय 
(श्रीकांत  का जन्म 7 जुलाई 1992को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के सीतारमपुरम में एक तेलुगु भाषी परिवार में हुआ था। वह जन्म से ही दृष्टिबाधित थे। श्रीकांत साइंस पढ़ना चाहते थे लेकिन दृष्टीबाधित होने के कारण उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी गई। श्रीकांत ने भी हार नहीं मानी। कई महीनों तक कोर्ट में लड़ाई लड़ने के बाद आखिरकार श्रीकांत देश के पहले दृष्टीबाधित बने, जिन्हें 10वीं के बाद साइंस पढ़ने की इजाजत मिली।दृष्टी नहीं हैं लेकिन  23 साल की उम्र में खड़ी कर दी 80 करोड़ की कंपनी। श्रीकांत की कंपनी कंज्यूमर फूड पैकेजिंग, प्रिंटिंग इंक और ग्लू का बिजनेस कर रही है। आज कंपनी के हैदराबाद और तेलंगाना के पांच प्लांट हैं। इनमें सैकड़ों लोग काम कर रहे हैं। फिलहाल उनकी कंपनी में चार हजार लोग काम कर रहे हैं। खास बात यह है कि उनकी कंपनी में 70 फीसदी लोग दृष्टीबाधित और अश्क्त हैं। इन लोगों के साथ वे खुद भी रोजाना 15-18 घंटे काम करते हैं। अपनी सफलता के बारे में श्रीकांत का कहना है कि जब दुनिया कहती थी, यह कुछ नहीं कर सकता तो मैं कहता था कि मैं सब कुछ कर सकता हूं।)

मित्रों, मेरा भी यही उद्धेश्य है:---- शिक्षा के माध्यम से दृष्टीबाधित बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना।

"शिक्षा के माध्यम से अपने प्रिंट दिव्यांग साथियों को आत्मनिर्भर बनाने में; मैं (अनिता शर्मा) वॉइस फॉर ब्लाइंड के नाम से प्रयासरत हुँ। (वॉइस फॉर ब्लाइंड) ई लर्निंग का ऐसा मंच है जो दिखता नही किंतु हजारों प्रिंट दिव्यांग साथियों को देश दुनिया की जानकारी से अपडेट कराते हुए, शिक्षा की अलख को सोशल मिडिया की सभी विधाओं जैसे- यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर, स्काईप तथा वाट्सअप के माध्यम से रौशन कर रहा है, जिसके प्रकाश में भारत के विभिन्न राज्यों के प्रिंट दिव्यांग साथी लाभान्वित होकर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हैं।"

इस मुहीम में यदि आप भी जुङना चाहते हैं तो हमें,  voiceforblind@gmail.com पर मेल करें

अपनी कलम को विराम देते हुए यही कहेंगे कि,



बिना कष्ट के सिध्दियां मिलती नहीं

जो तपा उसी की जय है।

कण कण में तेरा परिचय है,

यदि मन में दृणविश्वास है। 


आपका थोङा सा समय किसी को आत्म सम्मान से जीने का अवसर दे सकता है

धन्यवाद 🙏









Monday, 15 April 2024

ॐ श्री रामाय नमः

 


राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।

सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥

रामलला विराज गए, धरती पुलकित है, मन हर्षित है। भारत की हवा राममय हो गई है। पाँच सौ वर्षों का संघर्ष सफल रहा। कर्तव्यपरायणता और नैतिकता के प्रतीक विष्णु के सातवें अवतार “श्री राम” के आगमन पर सम्पूर्ण भारत के ह्रदय में राम नाम की गूंज है। अयोध्या में बालसुलभ मुस्कान के साथ लोकाभिराम नयनाभिराम विराजमान हो गये। 
तुलसीदास जी ने इसी मनोहर स्वरूप का वर्णन करते हुए लिखा ...

वर दंत की पगति कुंदकली, अधराधर-पल्लव खोलन की ।

चपला चमके घन बीच, जगै छबि मोति अमोलन की।।

घुंघरारी लटैं लटकैं मुख ऊपर, कुंडल लोल कपोलन की।

निवछावरि प्रान करैं तुलसी, बली जाऊँ लला इन बोलन की ।।


अर्थातः कुंदकली के समान उज्ज्वल वर्ण दंतावली, अधरपुटों का खोलना और अमूल्य मुक्ता मालाओं की छवि ऐसी जान पड़ती है मानो श्याम मेघ के भीतर बिजली चमकती हो। मुख पर घुँघराली अलकें लटक रही हैं। तुलसीदास जी कहते हैं-  
लल्ला! मैं कुंडलों की झलक से सुशोभित तुम्हारे कपोलों और इन अमोल बोलों पर अपने प्राण न्योछावर करता हूँ।
 
राम की महिमा तो अनंत है। कमलनयन रघुपति का ध्यान शिव शंकर महादेव भी  करते हैं। रघुपति राघव राजा राम का  दर्शन अयोध्या में ऐसा प्रतीत हो रहा है, "मानो सोने की सुंदर डिबिया में मनोहर रत्न सुशोभित हो।"सबका मंगल और कल्याण करने वाले आजानबाहु श्री रघुनाथ का वेद और पुराण भी वंदन करते हैं। कलियुग में श्री पुरुषोत्तम राम का नाम मनचाहा फल देने वाले कल्पवृक्ष के समान है।

 राम तो अंत्योदय से सर्वोदय का मार्ग हैं। राम एक विचार हैं, जीवन की धङकन हैं। आज जीवन की आपाधापी में व्याकुल मन का गंतव्य हैं राम। निर्बल के बल हैं राम। राम शब्द में दो अर्थ समाया हुआ है, सुखद होना और ठहर जाना। यदि सुखद ठहराव के शब्दों पर ध्यान दें तो सबमें राम का नाम आलोकित है, जैसेः- आराम, विराम, विश्राम, अभिराम, उपराम, ग्राम। ऐसे कौशल्यानंदन जानकीवल्लभ श्री राम को , कर से कर को जोड़कर बारंबार प्रणाम है। आज रामनवमी के अवसर पर हम सब ये प्रतिज्ञा करें कि नर नाहर श्री पुरूषोत्म का रामराज फिर लायेंगे। भारत को समृद्ध, सशक्त, समदर्शी बनायेंगे।

जासु नाम भव भेषज हरन घोर त्रय सूल
सो कृपाल मोहि तो पर सदा रहउ अनुकूल॥

अर्थात:-जिनका नाम जन्म-मरण रूपी रोग की औषध और तीनों पीड़ाओं (आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक दुःखों) को हरने वाला है, वे कृपालु श्री रामजी मुझ पर और आप पर सदा प्रसन्न रहें॥

इसी शुभकामनाओं के साथ सबको रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏