Saturday, 31 December 2016

Happy New Year Dear Readers


2017 की सुबह खुशियों का पैगाम लाए, आप सबके इरादों को सुनहरी धूप से रौशन कर जाए ,हर कामयाबी पर आपका नाम दर्ज हो जाये, हौसले इतने बुलंद हों कि जिंदगी से लफ्ज़ ए शिकायत दूर हो जाये। सकारात्मक सोच से बङे से बङा तूफान भी झुकने पर मजबूर हो जाये।  इसी शुभकामना के साथ नव वर्ष की हार्दिक बधाई 😊😊

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बीती ताही बिसार दे, आगे की सुधि लेय

I m Possible

धन्यवाद 😊

Saturday, 24 December 2016

Merry Christmas & Happy B'Day to Atal Bihari Vajpayee



क्रिसमस के शुभअवसर पर आप सभी पाठकों को हार्दिक शुभकामनाएं।  प्रभु ईशु की अनुकंपा सबपर सदैव बनी रहे।


25 दिसम्बर 1924 को ग्वालियर में जन्मे  भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी जी को उनके जन्मदिन पर वंदन एवं नमन करते हुए उनके स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं एवं उनकी लिखी कविताओं को स्मरण करते हैं। जो आज भी ताजगी से परिपूर्ण हैं,

बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।


एवं

भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये
मरेंगे तो इसके लिये।

एवं

आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ



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संसदिय गरिमा को आत्मसात करने वाले, आदरणीय अटल जी


उच्च कोटी के वक्ता (अटल बिहारी वाजपेयी)


Thursday, 1 December 2016

विश्वविकलांगता दिवस पर विशेष

हर तारे की एक चमक होती है, हर राह की एक मंजिल होती है। विकलांगता तो महज एक शब्द है, गौर से देखो तो परफैक्ट तो कोई नही है। शारीरिक अक्षमता तो एक स्वरूप है जिसे जीवन का आधार समझना भूल है। हेलेन केलर ने कहा है कि, विश्वास वो शक्ति है जिससे उजङी हुई दुनिया में भी प्रकाश लाया जा सकता है। विश्वास के इसी बल से वर्तमान में पैराऔल्मपिक के प्रतिभावान खिलाडियों ने देश को गौरवान्वित करके ये संदेश दिया कि विकलांगता अभिशाप नही है। नकारात्मक दृष्टीकोंण ही एकमात्र विकलांगता है न की दृष्टीबाधिता। जब हम अरदास या प्रार्थना या पूजा करते हैं उस समय हमारी मुद्रा नही बल्की हमारे ह्रदय की भावना हमें उस अलौकिक शक्ती का एहसास कराती है जिसे हम सब ईश्वर, अल्लहा या ईसा कहते हैं। इसी तरह जब हम जीवन में आगे बढना चाहते हैं, आत्मनिर्भर होना चाहते हैं वहां हमारा मानसिक बल सफलता के द्वार खोलता है। ऐसे कई प्रेरणास्रोत लोग हमारे आस-पास हैं जिन्होने शारीरिक अक्षमता के बावजूद विश्व को नई-नई जानकारियों की सौगात दी है। स्टीफन हॉकिंग ने विकलांगता के बावजूद अंतरिक्ष के ऐसे रहस्यों से पर्दा उठाया है जिस पर दुनिया आश्चर्य करती है। उन्होने कहा कि, उन चिजों पर ध्यान दें जिन्हे अच्छी तरह से करने से आपकी विकलांगता नही रोकती और उन चीजों के लिये अफसोस न करें जिन्हे करने में ये बाधा डालती है। आत्मा और शरीर दोनों से विकलांग न बनें। मित्रों, वास्तविकता तो यही है कि ब्रह्मांड की सारी शक्तियां हममें विद्यमान हैं वो हम हैं कि अंधकार की बात करते हैं। सच तो ये है कि, इंसान के लिये असंभव कुछ नही है। इरादे बुलंद हो तो आज की टेक्नोलॉजी के रथ पर सवार होकर मंजिल पूरी की जा सकती है। सफलता के इस सफर में समाज का साथ सोने में सुहागा की तरह है।

अतः अपने सभी पाठकों से अपील करना चाहते हैं कि अपना सहयोग देकर अपने दृष्टीदिव्यांग साथियों को भी सम्मान से जीने का अवसर प्रदान करें। शिक्षा की इस मुहीम में आपके द्वारा दिया गया आर्थिक सहयोग अनेक दृष्टीदिव्यांग साथियों को आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान होगा। विश्वविकलांगता दिवस को महज एक दिन के कार्यक्रम तक ही न रहने दें बल्की अपने सहयोग के प्राकाश से अनगिनत आँखों की रौशनी बनकर उनके जीवन में उल्लास भर दें। इस लेख को अधिक से अधिक लोगों तक शेयर करें जिससे सहयोग की मशाल और अधिक प्रज्वलित हो सके। सहयोग कैसे कर सकते हैं इसके लिये मेल करें.......
धन्यवाद
आपके सहयोग की अभिलाषा लिये 
अनिता शर्मा
 
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Tuesday, 22 November 2016

Education is the most powerful weapon..............

मित्रों, शिक्षा सबसे शशक्त हथियार है जिससे दुनिया को बदला जा सकता है। शिक्षा तो समाज एवं देश की प्रगति के लिये एक महत्वपूर्ण तत्व है। हमारा देश तभी विकसित देश बन सकता है जब समाज का प्रत्येक वर्ग शिक्षित होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए अनिता दिव्यांग कल्याण समिति जो विगत छः वर्षों से अपने प्रचलित नाम (वॉइस फॉर ब्लाइंड) के नाम से व्यक्तिगत रूप से निःशुल्क, दृष्टीदिव्यांग लोगों को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का निरंतर प्रयास कर रही है। 

दृष्टीदिव्यांग लोगों की शिक्षा के सफर में आने वाली में सबसे बङी बाधा है, ध्वनीमुद्रण (Recorded) में पाठ्यपुस्तक का अभाव और परिक्षा के समय  सहलेखन हेतु दृष्टीसक्षम विद्यार्थियों की कमी या कह सकते हैं कि उनमें जागरुकता की कमी। मेरा मानना है कि, यदि सामान्य बच्चों में जागरुकता का अंकुरण सही तरीके से किया जाये तो वे अवश्य परिक्षा के समय सहलेखक का दायित्व निभा सकते हैं। 

साथियों, विगत वर्षों के अपने अनुभव के आधार पर हम हर्ष के साथ आप लोगों को बताना चाहेंगे कि, अनेक मुश्किलों के बावजूद आज कई दृष्टीदिव्यांग साथी शिक्षा अर्जित कर रहे हैं और आगे बढने का प्रयास कर रहे हैं।  बाधाओं के बावजूद भी जिन बच्चों को शिक्षा के सफर में  समाज का साथ मिल रहा है वो आज बैंक, रेल, विद्यालय तथा अन्य दफ्तरों में भी कार्य करते हुए आत्मनिर्भरता का जीवन यापन कर रहे हैं। समस्या लेकिन ये है कि जितने सहयोग की आवश्यकता है उतना सहयोग अभी मिल नही रहा है। मित्रों मेरा उद्देश्य उनको आत्मनिर्भर बनाना है, अतः शिक्षा के अलावा हम लोग उनको रोजगार के अवसर प्रदान करने का भी प्रयास कर रहे हैं। स्वदेशी निर्मित वस्तुओं के अभियान में हमारे दृष्टीदिव्यांग साथी भी हथकरघा पर दरी, चादर, तौलिया तथा आसन बना रहे हैं। 


आप सबसे हम अनुरोध करना चाहते हैं कि, दृष्टीदिव्यांग साथियों की शिक्षा बाधा मुक्त होकर नई ऊँचाइंयों पर पहुँचे, उनकी शिक्षा सुचारु रूप से चलती रहे इसके लिये आपका सहयोग बहुत जरूरी है। शिक्षा तो अमुल्य और अनश्वर धन है, इसे मुक्त ह्रदय से खर्च किजीये और दृष्टीबाधित लोगों के लिये शिक्षा के इस अभियान में अपना योगदान किजीये। पुस्तक का ध्वनांकन निरंतर और स्पष्ट आवाज में हो इसके लिये हम लोग इंदौर शहर में एक साउंड प्रुफ स्टुडियो का निर्माण करना चाहते हैं, जिसके लिये आर्थिक सहयोग की भी आवश्यकता है एवं इसके साथ ही बच्चोंं को प्रतियोगी परिक्षाओं के लिये एक ट्रेनिंग सेंटर भी खोलना चाहते हैं। 

दोस्तों, 2015 से वाट्सएप के माध्यम से देश के अधिकांश बच्चों को सुबह समाचार प्रकाशित किया जाता है।  दृष्टी दिव्यांग साथिसों के लिये ये देश का पहला प्रयास है। जो बहुत पसंद किया जा रहा है।

News; 26 March 2017 (By Anita Sharma)



सभी पाठकों से पुनः निवेदन करना चाहते हैं कि, अपनी क्षमातानुसार आर्थिक सहायता देकर शिक्षा के इस सफर को आप भी अपने सहयोग के दीपक से प्रकाशित करें। आपका सहयोग स्वस्थ और शिक्षित समाज बनाने में महत्वपूर्ण पहल होगी। शिक्षा तो हमारे समाज की आत्मा है जो की एक पीढी से दूसरी पीढी को दी जाती है। अरस्तु ने कहा है, युवकों की शिक्षा पर ही राज्य आधारित है। 

"सूर्यकांत त्रिपाठी के कथन के साथ अपनी कलम को विराम देते हैं, संसार में जितने प्रकार की प्राप्तियां हैं, उनमें शिक्षा सबसे बढकर है।" 

अधिक जानकरी के लिये आप मेल करें
voiceforblind@gmail.com 

धन्यवाद 

Thursday, 27 October 2016

शुभ दीपावली



 सबके जीवन में हर्षोउल्लास, प्रतिष्ठा तथा समृद्धी का दीपक सदैव प्रज्वलित रहे। इसी मंगलकामना के साथ  एक भारत श्रेष्ठ भारत के सभी जन को दीपावली की हार्दिक बधाई, आइये दीपों के इस त्योहार में एक दीपक अपने फौजी साथियों की मंगलकामना के लिये भी रौशन करें। हम सब मिलकर ये कामना करें कि, दीपोत्सव का ये पर्व सबके जीवन को शुभता के प्रकाश से आलोकित करे। 

शुभ दीपावली मंगल दीपावली 
धन्यवाद 
 अनिता अशोक शर्मा 

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  Happy Deepawali

Monday, 10 October 2016

Happy Dashahara





अमन और शांती के देश में आज  आतंक रूपी रावण का संहार करने के लिये प्रभु राम के अवतार में हमारे देश की सशक्त सेना में अद्भुत शौर्य है। हम सबको अपने विश्वास की भक्ती से  सेना का मनोबल बढाना है तथा अनेकता में एकता की इस धरती पर से सबको मिलकर आतंकवादी रूपी रावण का सर्वनाश करना है।   स्वच्छ और सुंदर भारत का सपना साकार करते हुए दशहरा के इस विजयी पर्व को पूर्णतः सार्थक करना है। इसी प्रण के साथ दशहरे की हार्दिक बधाई 

Saturday, 1 October 2016

एक खत, माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और माननीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु जी को




माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी एवं माननीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु जी
नमस्कार,

विषयः- स्वच्छता अभियान 


सर्वप्रथम आदरणीय प्रधानमंत्री जी  एवं आदरणीय रेल मंत्री जी आप दोनों को कोटी-कोटी धन्यवाद। वर्तमान में देश की दशा और दिशा को स्वच्छ वातावरण की ओर मुखारित करने में आपकी पहल सराहनीय है। ये अभियान निःसंदेह आपके संरक्षण में भारत को स्वच्छता के शिखर पर ले जायेगा  जनभागीदारी से स्वच्छता की ऐसी इबारत लिखेगा कि विश्व भी इसका उदाहरण देगा। परंतु कुछ ऐसे बिंदु भी हैं  जहाँ जनभागीदारी के साथ सरकारी महकमों को भी दृढता से आगे आना होगा। जैसे कि, इक्ठ्ठे किये गये कचरे का समय पर सुनियोजित निपटारा एवं अस्वच्छ क्षेत्रों के प्रतिनीधियों को इस अव्यवस्था का जिम्मेदार ठहरा कर। 


माननीय मोदी जी, हमारे भारत में ही सिक्किम एक ऐसा राज्य है जहाँ सर्वत्र स्वच्छता दृष्टीगोचर होती है। यदि सिक्किम की बात की जाये तो, ये ज्ञात होता है कि, वहाँ कई ऐसे कानून बनाये गये हैं जिसे तोङने पर दंड लगता है। सिक्किम जैसी कानून व्यवस्था  पूरे देश में लागू की जा सकती है क्योंकि हमारे देश में कुछ ऐसी मानसिकता भी है जिनकी चेतना सिर्फ कानून के डर से ही जागृत होती है। ऐसे में मेरे मन में एक विचार है, जिसे आप अपने अनुसार अम्लीजामा पहनाये तो ये स्वच्छ मिशन चीरकाल तक स्थायी रह सकता है और भविष्य में इस प्रयोजन हेतु जागरुकता अभियान चलाने की आवश्यकता न होगी क्योंकि ये एक व्यवस्था बन जायेगी। 


इसकी शुरुवात पार्षद एवं सरपंच से कर सकते हैं, जिस पार्षद एवं सरपंच के एरिया में साफ-सफाई न हो उसकी सरकारी निधी में कटौती कर दी जाये। इसका असर ये होगा कि हमारे जनप्रतिनिधी घर -घर जाकर लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरुक करेंगे जैसे वोट मांगने जाते हैं। दरअसल हर शहर में ऐसी कई झुग्गी - झोपङिया हैं जहाँ स्वच्छता की सबसे ज्यादा आवश्यकता है किंतु वहाँ हमारे जनप्रतिनिधी सिर्फ चुनाव के समय ही जाते हैं। माननिय रेल मंत्री जी आपको इस खत में शामिल करने का आशय भी यही है कि कई शहरों के शुरु होने से पहले रेल की पटरियों के बिलकुल किनारे अनगिनत अवैध झुग्गियां हैं जहाँ गंदगी का विकराल रूप देखा जा सकता है जिसका निवारण रेल मार्ग में पङने वाले सभी ग्राम प्रधान और निकटतम् क्षेत्र के जनप्रतिनिधी के द्वारा ही संभव हो सकता है। स्टेशन भले ही साफ हो लेकिन जो बाहर से आत है उसे  स्टेशन से पहले  बाहर का एरिया ही दिखता है  "First Impression is the last Impression" के आधार पर उसके मन में शहर की नकारात्मक तस्वीर ही बनती है। यदि उदाहरण के तौर पर भोपाल स्टेशन की बात करें तो 2017 में यहाँ भव्य स्टेशन बनने का प्रावधान है किंतु मुम्बई और दिल्ली से जाने वाली गाङियों को भोपाल के बाहर की ऐसी तस्वीर दिखती है जहाँ गंदे पानी के भरे गढ्ढे , झुग्गियों का समूह और कचरे का साम्राज्य है। 


दूसरा विचार है कि, हमारे सभी सरकारी और गैरसरकारी संस्थानो में ये नियम बना दिया जाये कि जिन कर्मचारी के घर के आसपास गंदगी रहेगी उनका सालाना भत्ता रोक दिया जायेगा। जब कंपनियां हेलमेट और सीट बैल्ट के लिये कढाई से पेश आती हैं तो इस पर भी कङा रुख कर सकती हैं, आखिर साफ-सफाई का भी ताल्लुक जीवन से जुङा हुआ है। अनेक जान लेवा बिमारियां गंदगी की ही सौगात है। सभी सरकारी एवं गैरसरकारी विद्यालयों के द्वारा बच्चों और माताओं को  सरस्वती शिशु मंदिर की तर्ज पर यानी पालक संपर्क के माध्यम से समझाया जा सकता है। विद्यालयों में बच्चों द्वारा फैलाई गंदगी पर उन्हे  आर्थिक दंड की बजाय अध्ययन का कुछ अतिरिक्त कार्य देना चाहिये। 

जिस तरह स्वच्छ विद्यालय, शहर और कार्यलयों की जानकारी दी जा रही है उसी प्रकार देश के उन क्षेत्रों को भी सबके समक्ष लाया जाये जहाँ गंदगियों का अम्बार है। इस अभियान के तहत स्वच्छता पर पुरस्कार वितरण उत्तम और मानवीय पहल है परंतु  कुछ कढवी दवाईयों की भी दरकार है। 

गाँधी जयन्ती और लाल बहादुर शास्त्री जी की जयन्ती पर हार्दिक बधाई के साथ स्वच्छता अभियान की  वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई , ये कामना करते हैं कि बहुत जल्द हमारा देश "स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत" के रूप में विश्व में पहचाना जाये और गाँधी जी का सपना साकार हो। 


धन्यवाद
अनिता शर्मा 
दृष्टीदिव्यांग हेतु कार्यरत 



Friday, 30 September 2016

शुभ नवरात्री



नवरात्री के शुभ अवसर पर 
वाइस फॉर ब्लाइंड की तरफ से 
आप सबको हार्दिक बधाई, 
माँ दुर्गा के आशिर्वाद से आप सबके जीवन में
खुशियों की बहार आये, 
आपका जीवन मंगलमय दीपों से रौशन हो 
जय माता दी 

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शक्ति और प्रकृती

शक्ति की उपासना का पर्व




Friday, 16 September 2016

Rio Paralympic 2016 (Congratulations) Devendra Jhanjhariya

रियो पैरालिंपिक 2016 में देवेन्द्र झांझरिया ने लिखी एक नई इबारत भाला फेंक (जैवलिन थ्रो) प्रतियोगिता में अपना ही पिछला विश्व रेकार्ड तोङते हुए नया विश्व कीर्तिमान रचते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया। राजस्‍थान के चुरू जिले से ताल्‍लुक रखने वाले देवेंद्र जब आठ साल के थे तो पेड़ पर चढ़ने के दौरान एक इलेक्ट्रिक केबिल की चपेट में आ गए थे। जिसकी वजह से डॉक्‍टरों को उनका बायां हाथ काटने के लिए मजबूर होना पड़ा। अपनी विकलांगता को देवेंद्र ने मजबूरी नही बनने दी और लकङी तथा सरकंडे का भाला बनाकर अभ्यास करने लगे। उनके जज़्बे ने एक नई पहचान दी और देवेंद्र ने अनेक पुरस्कारों के साथ नया कीर्तिमान रचा। राजस्थान सरकार ने बुधवार को रियो पैरालिंपिक-2016 में भालाफेंक स्पर्धा का गोल्ड मेडल जीतने वाले भारतीय पैरा-एथलीट देवेंद्र झझारिया को 75 लाख रुपये की पुरस्कार राशि देने की घोषणा की है। 2002 में देवेंद्र ने कोरिया में आयोजित आठवीं एफईएसपीआईसी खेलों में गोल्‍ड मेडल जीता। 2004 में पहली बार एथेंस पैरालिंपिक खेलों के लिए क्‍वालीफाई किया। उस खेल में उन्‍होंने पुराने 59.77 मी के विश्‍व रिकॉर्ड को तोड़कर 62.15 मी जेवलिन थ्रो करके नया कीर्तिमान बनाया। 2012 में पदम श्री से सम्‍मानित होने वाले देश के पहले पैरालिंपिक खिलाड़ी बने। देवेंद्र ने 2013 में फ्रांस के लियोन में आयोजित आईपीसी एथलेटिक्‍स विश्‍व चैंपियनशिप में स्‍वर्ण पदक जीता। 2014 में दक्षिण कोरिया में आयोजित एशियन पैरा गेम्‍स और 2015 की वर्ल्‍ड चैंपियनशिप में उन्‍होंने सिल्‍वर मेडल हासिल किया। 2014 में फिक्‍की पैरा-स्‍पोर्ट्सपर्सन ऑफ द ईयर चुने गए। देवेन्द्र उपलब्धी ने सिद्ध कर दिया कि---  मंजिल उन्ही को मिलती है, जिनके सपनो में जान होती है। पंखो से कुछ नही होता, हौसलों से उङान होती है।

Tuesday, 13 September 2016

मैं हिंदी हूँ

भारत के मेरे सभी साथियों मैं आज आप सबसे अपने मन की बात कहती हूँ। मैं आप सबकी हिंदी हूं जिसे आप वर्ष में सिर्फ एक दिन 14 सितंबर को याद करते हैं। मुझे संविधान की पुस्तक में जकङ कर रख दिया गया है, जबकि मैं भी अपने पंखो को खोलना चाहती हूं। चारो दिशाओं में उङना चाहती हूं। मैं नदियों की तरह कल-कल करती हुई धरती पर प्रवाहित होना चाहती हूं। दूर आसमान में मस्त पवन के संग बातें करना चाहती हूं। साथियों, मैं ऋषियों की वाणी से निकल कर जन-जन का सुर बनना चाहती हूँ।

साहित्यकारों की कमान से निकल प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों के संग गुनगुनाना चाहती हूं। आज आप हमारे नाम से सप्ताह मना रहे हो, कविताओं और निबन्धों का आयोजन कर रहे हो। जबकि मैं तो हर पल आपका साथ चाहती हूँ। सरकारी कामकाज की गलियों से निकलकर निजीकार्यलयों के कागजों पर चमकना चाहती हूं। आज के वैश्वीकरण में युग में मैं भी तकनिकी शब्दों से अलंकृत होना चाहती हूँ। मित्रों, ऐसा नही है कि मुझमें क्षमता नही है। सच्चाई तो ये है कि, मैं अंनतकाल से तकनिकी का आधार थी। परंतु समय का एक पल ऐसा आया जब मुझे कैद कर गुलाम बना लिया गया। आज मेरा देश तो स्वतंत्र हो गया लेकिन मैं आज भी स्वतंत्र विचरण नही कर सकती क्योंकि, जाते-जाते वो लोग मेरे घर में ही ऐसी जहरीली मानसिकता का जहर घोल गये जहां मेरी बहने ही मुझसे दूर हो गईं। आज मैं सात समन्दर पार सम्मानित होती हूं किंतु अपनो में बेगानी सी भटक रही हूं।  मैं रस, छंद, अलंकारो से अलंकृत भारत के भाल की बिंदी हूं। अनजाने भी अपने हो जाते हैं मेरे व्यवहार से फिर क्यों मुझे अपनो ने ही सिर्फ दिवस या सप्ताह में समेट लिया है। मैं तो स्वाभीमान हुँ तुम्हारा, यदि मिले सुर मेरा तुम्हारा तभी तो अभिमान होगा क्योकि मैं हूं हिंदी और हिंदुस्तान हमारा।  

मेरी तो अभिलाषा है कि, स्वदेश में या विदेश में जहाँ भी मिले भारतवासी वार्तालाप हिंदी में हो। हिंद का गौरव; हिंदी भारत की कामयाबी का परचम चहुँओर फहराये। मेरे प्यारे साथियों, यदि वास्तव में मुझे सम्मानित करना चाहते हो तो आज दृणसंक्लप करो कि, मुझे दिवस के बंधनो से मुक्त करके खुला आसमान दोगे। शिक्षा और धनार्जन में भी मुझे साथ रखोगे। मुझे विश्व में प्रथम स्थान पर विभूषित करके भारत का सम्मान करो
धन्यवाद  :)  

Monday, 12 September 2016

Rio Paralympic 2016 (Congratulations) Deepa



बधाई बधाई बधाई, आँधियों के आसमान पर एक और आशियाँ

पैरालिंपिक खेलों में एक महिला ने भारत के लिए इतिहास रचा है. भारत की दीपा मलिक ने शॉट-पट में रजत पदक जीत लिया है. दीपा ने 4.61 मीटर तक गोला फ़ेंका और दूसरे स्थान पर रहीं. पैरालिंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली दीपा पहली भारतीय महिला बन गई हैं.45 साल की दीपा हरियाणा से हैं और साल 2012 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से नवाज़ा गया था. दीपा ने राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीते हैं. वो शॉट-पट के अलावा, जैवलिन थ्रो और मोटर साइकलिंग जैसे खेलों में भी खूब बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं.

दीपा से पहले इन्हीं पैरालिम्पिक खेलों की हाई जम्प प्रतियोगिता में भारत गोल्ड और ब्रॉन्ज मेडल जीत चुका है.

सोचिये! 119 खिलाङी रियो ओलंपिक में सिर्फ 2 मेडल जबकि 19 खिलाङी और अब तक 3 मेडल और तो और एक गोल्ड भी। ये कारनामा ऐसे खिलाङियों द्वारा हो रहा है जिनका जीवन आसान नही है। शारीरिक अक्षमता के बावजूद देश को गौरवान्वित करने वाले सच्चे हीरो को हमारा समाज, वो सम्मान नही देता जिसके वो हकदार हैं । अपने दिव्यांग खिलाङियों के जज़्बे को प्रोत्साहित किजीये और समाज में भी बराबर का दर्जा देकर सम्मानित किजीये।


Saturday, 10 September 2016

Rio Paralympic 2016 (Congratulations)


देश के ऐसे खिलाङियों ने ये कारनामा किया है जिनका जीवन आसान नही है। ये देश के वो हीरो हैं जिन्होने आँधियों के बीच में अपना आशियाँ बनाया है। ऊंची कूद में तमिलनाडु के रहने वाले मरियप्पन थांगावेलू ने गोल्ड पर कब्जा जमाते हुए इतिहास रच दिया है तो वहीं दिल्ली के करीब ग्रेटर नोएडा से आए वरुण सिंह भाटी ने 1.86 मीटर कूद कर इसी इवेंट में कांस्य पदक अपने नाम किया है। भारत के गौरव मरियप्पन थांगावेलू और वरुण सिंह भाटी को वाइस फॉर ब्लाइंड का सलाम। शारीरिक अक्षमता के बावजूद इन खिलाङियों ने ये सिद्ध कर दिया कि, जहाँ चाह है वहाँ राह है।


रियो डी जेनेरो: रियो में चल रहे पैरा ओलिंपिक खेलों में भारत ने इतिहास रचा है. हाई जंप इवेंट में भारत ने स्वर्ण और कांस्य पदक पर कब्ज़ा जमाया है. ऊंची कूद में तमिलनाडु के रहने वाले मरियप्पन थांगावेलू ने गोल्ड पर कब्जा जमाते हुए इतिहास रच दिया है तो वहीं दिल्ली के करीब ग्रेटर नोएडा से आए वरुण सिंह भाटी ने 1.86 मीटर कूद कर इसी इवेंट में कांस्य पदक अपने नाम किया. मिलनाडु सरकार ने मरियप्पन को 2 करोड़ रुपए के ईनाम देने की घोषणा की है.।


राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ट्विटर पर इस जीत के लिए थांगावेलू और भाटी को बधाई दी है. Congrats M.Thangavelu and V.Bhati on winning gold and bronze respectively in men's High Jump event at Rio Paralympics

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्विटर पर इन दोनों को खिलाड़ियों को इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर शुभकामनाएं दी हैं.India is elated! Congratulations to Mariyappan Thangavelu on winning a gold & Varun Singh Bhati for the bronze at the

मरियप्‍पन थांगावेलू , मुरलीकांत पेटकर (स्वीमिंग 1972 हेजवर्ग) और देवेंद्र झाझरिया (भाला फेंक, एथेंस 2004 ) के बाद गोल्ड जीतने वाले तीसरे भारतीय हैं। बीजिंग ओलंपिक्स में स्वर्ण जीत चुके शूटर अभिनव बिंद्रा ने भी इस मौके पर दोनों खिलाड़ियों को बधाई दी। वहीं बीजिंग ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने उम्मीद जताई कि इन दोनों खिलाड़ियों को वही सम्मान दिया जायेगा जो ओलंपिक पदक विजेता पी वी सिंधू और साक्षी को मिला।


अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी ट्विटर पर इन दोनों खिलाड़ियों के ऐतिहासिक प्रदर्शन पर शुभकामनाएं दी.. joy for India .. Gold & Bronze for Thangavelu and Bhatti in high jump ! COME ON INDIA !!!

पैरालंपिक खेलों के इतिहास में भारत के लिए ये तीसरा गोल्ड है। इससे पहले 1972 (जर्मनी) में तैराक मुरलीकांत पेटकर और जेवलिन थ्रोअर देवेंद्र झाझड़िया ने एथेंस पैरा ओलंपिक 2004 में गोल्ड जीता था।

1968 में भारत ने पहली बार पैरा ओलंपिक गेम्स में हिस्सा लिया, लेकिन कोई भी पदक जीतने में नाकामयाब रहा। 1972 में जर्मनी में हुए खेलों में पैरालंपिक खिलाड़ी मुरलीकांत पेटकर ने भारत के लिए पहला पदक जीता। आपको बता दें कि पेटकर ने स्विमिंग में गोल्ड जीता और उनसे पहले किसी भी खिलाड़ी ने सामान्य ओलंपिक खेलों में भी भारत के लिए गोल्ड नहीं जीता था। सेना के जवान मुरलीकांत पेटकर न सिर्फ भारत के लिए पहला सोना जीता बल्कि उन्होंने सबसे कम समय में 50 मीटर तैराकी प्रतियोगिता जीतने का वर्ल्ड रिकार्ड (पैरालंपिक) भी बनाया। उन्होंने यह रेस 37.33 सेकेंड में पूरी की। 84 वर्षीय पेटकर 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में बुरी तरह घायल हो गए थे।

Sunday, 4 September 2016

गणेश चतुर्थी विशेष


हिन्दु धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले निर्विघ्नं देव गणेंश जी की पूजा अर्चना प्राचीन काल से प्रचलित है। आज भले ही हम सब डिजिटल इंडिया के तहत आधुनिकता के परिवेश में विकास के सोपान पर कदम दर कदम बढ रहे हैं, फिरभी गणेश जी की अर्चना आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पुरातन काल में थी। वर्तमान में तो गंणेश चतुर्थी का त्योहार पहले से भी अधिक धूम-धाम से मनाते हैं। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इस पर्व को स्वतंत्रता के दौरान  राष्ट्रीय त्योहार बना दिया था, जिसका मकसद था लोगों में देशभक्ती का जज़्बा जगाना।

शुभता और मंगल फल प्रदान करने वाले गंणेश जी का त्योहार इस वर्ष 5 सितंबर को मनाया जायेगा। पुराणों में गणेंश जी के आठ अवतारों का वर्णन हैः- वक्रतुंड, एकदंत, महोदर, गजानन, लंबोदर, विकट, विघ्नराज एवं धूम्रवर्ण। गणेंश जी के सभी अवतार विशेष सिद्धी दायक है। शुभ-लाभ, ऋृद्धी-सिद्धी प्रदायक विघ्ननाशक गणेंश जी ऐसे देवता हैं, जो सर्वमान्य एवं सार्वभौम्य हैं। विघ्नहर्ता गंणेश जी का वंदन करते हुए श्रद्धा पूर्वक शत् शत् नमन करते हैं। भगवान शकंराचार्य ने कहा है--

यमेकाक्षरं निर्मलं निर्विकल्पं
गुणातीतमानन्दमाकारशून्यम्।
परं पारमोंकारमामनायगर्भ
वदंति प्रगल्भं पुराणं तमीडे।।
अर्थातः-  जिसे एकाक्षर, विमल, विकल्परहित, त्रिगुणातीत, परंमानंदमय निराकार और प्रणव स्वरूप, वेदगर्भ और पुराण पुरुष कहकर मुनिगण श्रद्धापूर्वक कीर्तन करते हैं, मैं उन ईशानंद गणपति की स्तुती करता हूँ। 

सिद्धी विनायक गंणेश जी आप सबकी मनोकामना पूर्ण करें इसी भावना के साथ गंणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं  

पूर्व की पोस्ट पढने के लिये लिंक पर क्लिक करेंः-- 

प्रथम पूज्य श्री गंणेश    

मंगल मूर्ती वरदविनायक गणेश

Thursday, 25 August 2016

Sugamya Pustakalaya



मित्रो, हर्ष के साथ आप सबको अवगत कराना चाहते हैं कि, 24 अगस्त 2016 को अपने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा शुरु किये गये सुगम्य भारत के अन्तर्गत सुगम्य पुस्तकालय का उद्घाटन विज्ञान भवन में माननीय मंत्रियों श्री रवी शंकर प्रसाद जी, श्री प्रकाश जावेडकर जी और श्री थावर चंद जी गहलोत द्वारा सम्पन्न हुआ है।

सुगम्य पुस्तकालय एक ऑनलाइन मंच है, जहां पर प्रिंट विकलांग लोगों के लिए सुलभ सामग्री उपलब्ध करायी जाती है। इस पुस्‍तकालय में विविध विषयों और भाषाओं तथा कई सुलभ प्रारूपों में प्रकाशन उपलब्‍ध है। इसे डेज़ी फोरम ऑफ इंडिया संगठन के सदस्यों जिसमें से एक सदस्य हम भी हैं और टीसीएस एक्‍सेस के सहयोग से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के दिव्‍यांग सशक्तिकरण विभाग द्वारा तैयार किया गया है। यहां पर दृष्टिदिव्यांग लोगों के लिए सुलभ प्रारूपों में पुस्तकें उपलब्ध हैं। विविध भाषाओं में दो लाख से अधिक किताबें हैं। देश और दुनिया भर में सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय पुस्तकालय, बुकशेयर सहित पुस्तकालयों का एकीकरण किया जा रहा है। इससे हमारे कई साथियों को एक ही प्लेटफॉर्म पर अधिक से अधिक पुस्तकें उपलब्ध हो जायेंगी। 

ये मेरे लिये सौभाग्य का विषय है कि, मेरे द्वारा ध्वनांकित अध्ययन सामग्री का लाभ अब इस पुस्तकालय के माध्यम से अधिक से अधिक विद्यायर्थी लाभान्वित हो सकेंगे। 





Tuesday, 26 July 2016

Quiz Contest with Divyang Students


दोस्तों, रविवार 24 जुलाई को वाइस फॉर ब्लाइंड द्वारा सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इस आयोजन का उद्देश्य था कि, अपने दृष्टीबाधित साथी अपनी योग्यता का प्रदर्शन करें। आज जिस तरह सभी परिक्षाओं में सामान्य ज्ञान अवश्य पूछा जाता है, ऐसे में शैक्षणिक विकास को आगे बढाने के लिये सामान्य ज्ञान की जानकारी भी अति आवश्यक है।

मुझे ये कहते हुए बहुत खुशी हो रही है कि, उन बच्चों ने पूरे उत्साह से इस प्रतियोगीता में हिस्सा लिया। इस आयोजन से उनका हौसला भी बढा। प्रतियोगिता दो वर्ग में थी। एक विद्यालय स्तर की और दूसरी महाविद्यालय स्तर की थी। सभी प्रतिभागी समय से आयोजन स्थल पर पहुंच गये थे, जबकि उस दिन बारिश भी बहुत हो रही थी। तेज बारिश के बावजूद समय पर पहुँच जाना उनके आगे बढने के जज़्बे को बंया करता है। इस प्रतियोगिता में इंदौर के सभी दृष्टीबाधित संस्थाओं से बच्चे आये थे। प्रतियोगिता में विद्यालय स्तर पर प्रियंका प्रथम तथा मनिषा द्रुतिय स्थान पर रही। महाविद्यालय वर्ग में प्रथम रुबी दुबे और द्रुतिय मंगल दास पाटिल। 


प्रतियोगिता सम्पन्न होने के बाद बच्चों ने अपनी अन्य प्रतिभाओं का प्रदर्शन किया। एलिस ने भारत देश पर एक गीत सुनाया जिसकी रचना भी उसने की है। नरेन्द्र ने कई लोगों तथा जानवरों की मिमिक्री की, इसके अलावा वाद्ययंत्रों की धुन को इस तरह प्रस्तुत किया लग रहा था कि, वाद्यंत्र बज रहा है। जितेंद्र जब गाना सुना रहा था तो उसने संगत देकर गीत को संगीतमय बना दिया। अर्जुन ने एक ड्राइंग बनाई। अन्य बच्चों ने भी बहुत अच्छी प्रस्तुति दी। उनके उत्साह को देखकर लग रहा था , जिंदगी जीना इसको कहते हैं। इन बच्चों के उत्साह ने सकारात्मक संदेश दिया......

ठोकर खाकर गुनगुनाना जिंदगी है,

गम पाकर मुस्कुराना जिंदगी है,

सुख के साथ जिये तो क्या जिये,

गम भुलाकर जश्न मनाना जिंदगी है.......









लिंक पर क्लिक करें - 


Spirit above Darkness ( Narendra & Jitendra)












Wednesday, 15 June 2016

दिव्यांग साथियों के संग सुखद सफर


2011 में कुछ दृष्टीबाधित बालिकाओं को पढाने के साथ मेरे इस सफर की शुरुवात हुई। उनके मन में आगे बढने का गजब का जज़बा दिखा हमें, लेकिन अध्ययन सामग्री का अभाव उन्हे आगे बढने से रोक रहा था। उन बच्चियों की आगे बढने की इच्छा ने हमें प्रेरित किया कि, हमको उनके लिये कुछ करना है। यहीं से एक ऐसे सफर की शुरुवात हुई जहाँ मेरी आवाज उन सब बच्चों की आंखे बन गई जो शिक्षा के माध्यम से आगे बढना चाहते हैं।

मेरा उद्देश्य हैः- “शिक्षा के माध्यम से दृष्टीबाधित बच्चों को आत्मनिर्भर बनाना”

आज 2011 की छोटी सी शुरवात पूरे भारत के दृष्टीबाधित बच्चों को शिक्षा के प्रकाश से रौशन कर रही है। इस मुहीम में हम अध्ययन सामग्री को रेकार्ड करने के साथ-साथ विभिन्न प्रतियोगी परिक्षाओं जैसे- बैंक, रेल, एम.पी.पीएस.सी, यू पी एस सी, नेट तथा हिन्दी भाषी राज्यों का सामान्य ज्ञान रेकार्ड करने लगे और 2012 से उसे यू ट्यूब पर भी अपलोड करने लगे। इसका असर बहुत ही सकारात्मक हुआ। विभिन्न शहरों के दृष्टीबाधित बच्चे लाभान्वित हुए। यू ट्यूब से सामान्य बच्चों को भी इसका लाभ हो रहा है। इसके बाद हम इन्क्लुसिव प्लेनेट वेबसाइट पर भी शैक्षणिक ऑडियो अपलोड करने लगे। इस वेबसाइट से लगभग 10,000 दृष्टीबाधित बच्चे जुङे हुए थे। कुछ समय पश्चात ये वेबसाइट दुर्घटना वश बंद हो गई। लेकिन इस दौरान अधिकांश बच्चे मुझसे जुङ गये। मेरी रेकार्डिंग का दायरा बहुत ज्यादा बढ गया। विभिन्न शहरों के बच्चे मुझे अपनी पुस्तक भेजने लगे और हम उनको रेकार्ड करके उसकी सीडी बनाकर उनको भेज देते थे जो आज एक बङे क्षेत्र में तब्दील हो गया है। 2012 में ही आई वे ने मेरा इंटरव्यु लिया जिसका प्रसारण रौशनी का करवां के तहत भारत के लगभग 32 शहरों में विभिधभारती के माध्यम से दृष्टीबाधित बच्चों ने सुना। विगत वर्षों में मेरे द्वारा तैयार की गई बैंक अध्ययन सामग्री से पढकर लगभग 500 बच्चों का सलेक्शन बैंक में हुआ है। लगभग 50 बच्चों का रेल में एवं संविधा शिक्षा में भी लगभग 100 छात्र-छात्राओं का सलेक्शन हुआ है। प्रतियोगी परिक्षाओं के ऑडियो से लाभान्वित होकर कुछ बच्चे यूपीएससी में भी सलेक्ट हुए हैं। 10वीं से लेकर महाविद्यालय तक के छात्र-छात्राओं के लिये विषय सम्बंधी सामग्री को रेकार्ड कर चुके हैं जिससे अब तक हजारों बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं।

दृष्टीबाधित बच्चों को आगे बढने में दूसरा अवरोध है, परिक्षा के समय सहलेखक (Scribe) की, जिसकी वजह से पढने के बावजूद समाज की उदासीनता उनको आगे बढने से रोक देती है। हमने इस ओर भी ध्यान दिया और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा वेबसाइट के माध्यम से तथा व्यक्तिगत भी हम लोगों को जागरुक करने का प्रयास किये। मेरा मकसद इन बच्चों को मुख्यधारा में भी लाना है। जिसके लिये 2012 में अपना ब्लॉग रौशन सवेरा बनाये जहाँ सामाजिक जागरुकता के लिये लेख लिखने लगे। जिसका सकारात्मक उत्तर प्राप्त हुआ। कार्य की अधिकता के कारण 12 जनवरी 2015 को हम वाइस फॉर ब्लाइंड नाम का एक क्लब बनाये जिसमें भारत के कई शहरों से लोग जुङ रहे हैं। हमारे क्लब का कन्सेप्ट भारत में बिलकुल नया है। इसमें हमारे सदस्य मेरे द्वारा भेजी गई पुस्तकों को रेकार्ड करते हैं और गुगल ड्राइव के माध्यम से हमें रेकार्ड अध्ययन सामग्री भेज देते हैं। हम उसे डाउन लोड करके उसकी सीडी बनाकर उन बच्चों को भेज देते हैं, जिनकी पुस्तक होती है। इसके अलावा हमारे सदस्य अपने शहर में ही आवश्यकता अनुसार परिक्षा के दौरान सहलेखक का दायित्व भी निभाते हैं। अभी मेरे क्लब में 250 सदस्य हैं। मेरा पूरा कार्य निःशुल्क है और मेरे सदस्य भी निःशुल्क ही कार्य करते हैं। अभी तक हम व्यक्तिगत ही सीडी एवं पोस्ट का खर्च वहन कर रहे हैं। शिक्षा की इस मुहीम में मेरा परिवार मेरे साथ है।

2014 में रेडियो उङान ने एक मुलाकात के तहत मेरा इंटरव्यु लिया। 2016 में लंदन के रेडियो करिश्मा द्वारा भी मेरा इंटरव्यु लिया गया जिसे भारत के साथ एशिया के अन्य पाँच देशों में भी सुना गया। इसके अलावा दैनिक भास्कर, फ्री प्रेस, हिन्दुस्तान टाइम्स, पत्रिका, दबंग दुनिया जैसे समाचार पत्रों तथा अच्छीखबर एवं मल्हार मिडिया पर मेरे कार्यों को स्थान दिया गया। जिससे इस मुहीम में लोग जुङते गये और अकेले शुरुवात किया गया सफर आज कारवां बन गया।

नई टेक्नोलॉजी को अपनाते हुए हम डेजी में रेकार्डिंग कर रहे हैं जिससे भविष्य में उनकी पढाई आसान हो जायेगी। डेजी क्या है?

DAISY (Digital Accessible Information Systems)

डेजी एक ऐसा तकनिकी मापन है, जिसके माध्यम से रेकार्ड की गई पुस्तक को सभी दृष्टीबाधित साथी आराम से पढ सकते हैं। ये तकनिक अत्याधुनिक है, जिसमें दृष्टीबाधित लोग आम पुस्तक की तरह ही रेकार्ड की हुई पुस्तक को पढ सकते हैं। जैसे कि, प्रत्येक पंक्ति, पैराग्राफ, पेज अनुसार, हैडिंग के अनुसार इत्यादि। उदा. यदि किसी को सीधे 10वां पेज ही पढना है तो वह डायरेक्ट 10वां पेज खोलकर पढ सकता है। ऐसा सामान्य रेकार्डिंग में संभव नही है। कहने का आशय ये है कि, डेजी के माध्यम से की गई रेकार्डिंग को सामान्य पुस्तक की तरह पढा जा सकता है जिससे उन्हे बहुत फायदा होगा। मेरी योजना है, इंदौर में एक बेहतरीन स्टुडियो बनाने की जिसमें और अधिक तथा बेहतर अध्ययन समग्री रेकार्ड हो सके। इस कार्य हेतु हमें आर्थिक सहयोग की आवश्यकता है। 

  
मेरा मानना है कि, यदि किसी को एक मछली देंगे तो उसको एक दिन का खाना देंगे लेकिन यदि हम उसे मछली पकङना सिखाते हैं तो उसको जिंदगी भर का भोजन उपलब्ध करा सकते हैं एवं आत्मनिर्भर बना सकते हैं। 


इसी बात को यथार्थ में लाने के लिये हम 1 मई से 7 मई 2016 तक अपने एक सदस्य के सहयोग से स्वरोजगार की एक कार्यशाला का आयोजन किये, जिसमें मुम्बई, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के दृष्टीबाधित सदस्यों ने बढचढ कर हिस्सा लिया। कार्यशाला के बाद एक रोजगार मेले का आयोजन किये जिसमें सभी दृष्टीबाधित साथियों ने कोल्ड ड्रिंक, पोहा, भेल, कपङें, पतंजली का प्रोडक्ट, गुजरात की खाद्य सामग्री जैसी वस्तुओं को उत्साह के साथ बेचा। आयोजन की सफलता का आलम ये है कि आज कई बच्चों एवं अन्य एन जी ओ द्वारा ये कार्यक्रम फिर से करने का अनुरोध हो रहा है।

इन बच्चों की जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए विगत एक वर्ष से सुबह समाचार रेकार्ड करके वाट्सअप के माध्यम से भेज रहे हैं जो लगभग सम्पूर्ण भारत के दृष्टीबाधित बच्चे सुन रहे हैं। इन समाचारों का चयन हम दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और गुगल न्यूज से करते हैं। वाट्सएप पर मेरे ग्रुप वाइस फॉर ब्लाइंड में हर रविवार को शाम को किसी ऐसे विषय पर चर्चा होती है जो प्रतियोगी परिक्षाओं में उपयोगी हो। आज की आधुनिक तकनिक वाट्सएप, स्काईप तथा यू ट्यूब के माध्यम से शिक्षा का प्रचार प्रसार सुगम हो गया है। एक जगह ही बैठे हुए विभिन्न शहरों के बच्चों को ऑन लाइन पढाना स्काईप के माध्यम से आसान हो गया है। YouTube पर मेरे ऑडियो को Anita Sharma के नाम से सर्च किया जा सकता है। YouTube मेरे 350 विडियो हैं जहाँ पर 12,967 subscribers हैं तथा 1,693,583 views हैं।

19 मई 2016 को अनिता दिव्यांग कल्याण समिति का पंजिकरण हो गया है। जिसका मकसद अपने दृष्टीबाधित साथियों को आत्मनिर्भर बनाना है और प्रयास ये है कि, इंदौर में ही शिक्षा की समस्त सुविधा उपलब्ध हो जाये जिससे हमारे दृष्टीबाधित साथियों को घर छोङकर दिल्ली न जाना पढे। रविवार को मन की बात में प्रधानमंत्री नरेनंद्र मोदी जी द्वारा सम्बोधित दिव्यांग शब्द हमें बहुत अच्छा लगा अतः हम सोमवार को इस नाम से आवेदन कर दिये, संभवतः मध्य प्रदेश में इस नाम से ये पहला पंजिकरण है। 


 मेरी आवाज किसी की आँखें बन जायें इसी मकसद को लेकर कार्य कर रहे हैं, अतः जो भी नई तकनिक इन लोगों के लिये लाभदायक होती है उसे सीखकर उस माध्यम से रेकार्डिंग करना हमें खुशी देता है। अब तक हम 2000 से भी ज्यादा किताब mp3 में रेकार्ड कर चुके हैं। जो निरंतर जारी है इसी के साथ अब डेजी में भी पुस्तक रेकार्ड करना शुरु कर दिये हैं। डेजी में अब तक 6 पुस्तक रेकार्ड कर चुके हैं। 2015 में हम डेजी की सदस्यता लिये हैं। जिसकी ट्रेनिंग के लिये बैंगलोर गये थे। 

आप सबके साथ से हजारों दृष्टीबाधित बच्चों का सपना साकार हो सकता है। किसी सार्थक काम का मौका देकर जिंदगी हमें सबसे बङा ईनाम देती है। आज दृष्टीबाधिता लाचारी नही है, हम सबका सहयोग और विज्ञान की नई टेक्नोलॉजी से हमारे दिव्यांग साथी भी आत्मनिर्भरता का जीवन यापन कर सकते हैं, जो हमारे समाज के लिये सुखद पल होगा। शिक्षा के इस हवन में आपके सहयोग की अभिलाषा रखते हैं। अधिक जानकारी हेतु मेल करें ......
Thanks & Regards

Anita Sharma

Mail ID:- voiceforblind@gmail.com 

                 sharmaanita207@gmail.com

YouTube :- Anita Sharma






Friday, 3 June 2016

अनिता दिव्यांग कल्याण समिती



रौशन सवेरा के सभी पाठकों को हर्ष के साथ सुचित करना चाहते हैं कि, "अनिता दिव्यांग कल्याण समिती"  का पंजियन हो गया है। वाइस फॉर ब्लाइंड की छत्र-छाया में वर्ष 2011 से दृष्टीबाधित लोगों को शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का कार्य निरंतर और निःशुल्क गतिमान है। अब इस कार्य को विकास की नई ऊँचाइयों तक ले जाने में अनिता दिव्यांग कल्याण समिती का विशेष योगदान रहेगा। जिसके तहत एक ऑडियो लाइब्रेरी बनाने का सपना है। 

आप लोग सोच रहे होंगे कि, कार्य तो बिना पंजियन के भी चल रहा था फिर पंजियन की आवश्यकता क्यों 

मित्रों, दृष्टीबाधित लोगों के लिये अध्ययन सामग्री को रेकार्ड करने का कार्य तथा परिक्षा के समय सहलेखन का कार्य यकिनन बेहतर चल रहा है किन्तु इसे नई तकनिक के साथ आगे बढाने के लिये पंजियन एक मजबूत पहल है। 2015 में हम डेजी की सदस्यता ले चुके हैं लेकिन सदस्यता की शर्त थी कि भविष्य में संस्था रजिस्टर्ड होना चाहिये।  नई तकनिक डेजी के माध्यम से रेकार्ड की गई पुस्तक से पढाई अधिक सुविधा जनक है। अब समझते हैं डेजी के बारे में,......



डेजी क्या है

DAISY (Digital Accessible Information Systems)


डेजी एक ऐसा तकनिकी मापन है, जिसके माध्यम से रेकार्ड की गई पुस्तक को सभी दृष्टीबाधित साथी आराम से पढ सकते हैं। ये तकनिक अत्याधुनिक है, जिसमें दृष्टीबाधित लोग आम पुस्तक की तरह ही रेकार्ड की हुई पुस्तक को पढ सकते हैं। जैसे कि, प्रत्येक पंक्ति, पैराग्राफ, पेज अनुसार, हैडिंग के अनुसार इत्यादि।

उदा. यदि किसी को सीधे 10वां पेज ही पढना है तो वह डायरेक्ट 10वां पेज खोलकर पढ सकता है। ऐसा सामान्य रेकार्डिंग में संभव नही है। कहने का आशय ये है कि, डेजी के माध्यम से की गई रेकार्डिंग को सामान्य पुस्तक की तरह पढा जा सकता है जिससे उन्हे बहुत फायदा होगा। इस तरह की रेकार्डिंग को पढने के लिये डेजी उपकरण भी होता है। जिसे सरकार की तरफ से उपलब्ध कराया जा रहा है। इसमें एक तकनिक ऐसी भी है, जिससे टेक्स संदेश का प्रदर्शन भी होता है और आवाज भी आती है। डेजी तकनिक दृष्टीबाधित लोगों के लिये बेहतर भविष्य है।  विदेशों में इस तकनिक का लाभ हमारे दिवयांग साथी ले रहे हैं। भारत में भी कुछ शहरों में शुरुवात हुई है लेकिन अपने इंदौर में इसका अभाव है।

मेरी आवाज किसी की आँखें बन जायें इसी मकसद के साथ निरंतर आगे बढ रहे हैं जिसके तहत जो भी नई तकनिक इन लोगों के लिये लाभदायक होती है उसे सीखकर उस माध्यम से रेकार्डिंग करना हमें खुशी देता है। अब तक हम 2000 से भी ज्यादा किताब mp3 में रेकार्ड कर चुके हैं, जो निरंतर जारी है। इसी के साथ अब डेजी में भी पुस्तक रेकार्ड करना शुरु कर दिये हैं। डेजी में अब तक 6 पुस्तक रेकार्ड चुके हैं। मित्रों, इच्छा तो वाइस फॉर ब्लाइंड नाम से ही संस्था बनाने की थी किंतु पंजियन कार्यलय के अधिकारी को ये नाम समझ में नही आया अतः अनिता दिव्यांग कल्याण समिती नाम अस्तित्व में आया। फिलहाल वाइस फॉर ब्लाइंड के लोगो का ट्रेड मार्क रजिस्ट्रेशन करवा लिये हैं जिसके संरक्षण में जो दृष्टीबाधित बच्चे रोजगार करके आगे बढना चाहते हैं उनकी मदद की जा सकेगी। अब मेरा सपना है  इंदौर में एक स्टुडियो बनाने का जहाँ उच्चकोटी की रेकार्डिंग हो और अध्ययन सामग्री की बेहतरीन ऑडियो लाइब्रेरी का गठन हो। 


सभी पाठकों से निवेदन है कि, शिक्षा के इस प्रकाश में आप भी सहयोग का एक दिपक अवश्य प्रज्वलित करें। 


धन्यवाद 
अनिता शर्मा 

Wednesday, 11 May 2016

दृष्टीबाधितों हेतु स्वरोजगार कार्यशाला


मित्रों, गत सप्ताह  कुछ कर गुजरने की चाहत लिये विभिन्न राज्यों के हमारे दृष्टिबाधित साथियों ने वाइस फॉर ब्लाइंड द्वारा आयोजित स्वरोजगार कार्यशाला में आत्मनिर्भता की और एक कदम बढाते हुए जलेसर उत्तर प्रदेश में उपस्थित हुए। वाइस फॉर ब्लाइंड के वालिंटर अंचल अग्रवाल इस आयोजन के सहयोगी पार्टनर थे जिनके सहयोग से आर्दश इंटर कॉलेज में सात दिन तक प्रवास की व्यवस्था की गई थी। इस कार्यशाला में 1मई से 7मई 2016 तक गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश के दृष्टीबाधित साथियों ने शिरकत की। सबसे पहले दिन सभी बच्चों को ताजमहल का दिदार कराया गया। जिसे उन्होने छुकर महसूस किया। 


कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य थाः-  स्वरोजगार के द्वारा आत्मनिर्भर बनना
मित्रों, जिसतरह आज पढने के बाद भी नौकरी मिलना एक बहुत बङी समस्या बनी हुई है, ऐसे में आत्मनिर्भरता हेतु हमें कुछ अलग विकल्प तलाश करना चाहिये। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैने सोचा कि क्यों न हम अपने साथियों को स्वरोगार के लिये प्रोत्साहित करें। इस कार्यशाला में ये समझाया गया कि दृष्टीबाधिता के बावजूद कौन सा कार्य किया जा सकता है तथा किस तरह उसे सफल बनाया जा सकता है। सबसे पहले तो आप सभी साथियों को ये बताना चाहेंगे कि आज विज्ञान की नई टेक्नोलॉजी इन लोगों के लिये वरदान है और कम्प्युटर इनकी आँखें हैं। जिसमें कुछ सॉफ्टवेयर जैसे कि जॉज 13,14 और 16 कम्प्युटर पर कार्य करना आसान बना देते हैं। इसी को आधार बनाकर कुछ ऑनलाइन बिजनस के बारे में मैने समझाया, जैसे किः- ऑनलाइन अनुवादक का कार्य, स्क्रिप्ट राइटिंग तथा प्रचार लिखने का काम। जिसकी आवाज अच्छी हो वो ऑनलाइन डबिंग का काम भी कर सकता है। इसके लिये कई वेब साइट हैं जहाँ रजिस्ट्रेशन कराकर कार्य किया जा सकता है। इसके अलावा अपनी वैज्ञानिक आँखों के सहारे टूर एण्ड ट्रैवल तथा साइबर कैफे का बिजनस भी किया जा सकता है। ऑनलाइन शॉपिंग का भी चलन बहुत ज्यादा चल रहा है इस हेतु अपनी वेबसाइट बनाकर एक शॉप रजिस्टर की जा सकती है। 


ऐसे ही और भी बहुत से काम ऑनलाइन के माध्यम से किये जा सकते हैं। इसके अलावा ऑफलाइन भी बहुत से काम किये जा सकते हैं वैसे ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि ये बच्चे लगभग सभी बिजनस कर सकते हैं। यहाँ ट्रेनिंग के दौरान उन्हे पंतजली के 12 प्रोडक्ट को बेचने की ट्रेनिग दिये थे हम जो बहुत सफल रहा। इसके अलावा गुजरात के लोग वहाँ से खाने का समान तथा उनकी संस्था द्वारा बनाये गये समान जैसे कि- ऑफिस फाइल, अगरबत्ति तथा कैंडिल लेकर आये थे। जिसको बेचने की ट्रेनिंग इस कार्यशाला में दी गई। अंचल की तरफ से प्लास्टिक के समान तथा कोल्ड ड्रिंक बेचने की ट्रनिंग दी गई। इसी दौरान एक 2 मई को अच्छी खबर वेबसाइट के गोपाल मिश्रा का भी लेक्चर था। उन्होने पर्सनालटी डेवलपमेंट तथा इंटरव्यु के कौशल को निखारने हेतु कुछ सुझाव दिये।

कार्यशाला के आखिरी दिन एक मेले का आयोजन किया गया। जहाँ सभी प्रतिभागियों ने अपनी-अपनी दुकान लगाई और जलेसर की जनता को उसमें ग्राहक के तौरपर आमंत्रित किया गया। हमारे सभी दृष्टीबाधित साथियों ने सफलता पूर्वक दुकानदारी की जिसे देखकर वहाँ की सभी जनता आर्श्यचकित थी क्योंकि समान बेचने से लेकर रुपये का लेन देन तक इन साथियों ने स्वतः ही किया। कुछ दुकान पर हमारे कार्यकर्ता सिर्फ ये वॉच करने के लिये थे कि कहीं कोई समान कुछ असमाजिक तत्व चोरी न कर लें। इंदैर के कुछ बच्चों ने तो इंदौरी पोहे की दुकान लगाई जिसमें उनके साथ एक लोविजन साथी था। पोहे की दुकान पर जबरदस्त बिक्री हुई। गुजरात के सभी आइटम भी बिक गये थे। कुछ लोगों ने टॉफी की दुकान लगाई थी। कोल्डड्रिंक तथा टॉफी की दुकान पर भी जबरदस्त रिस्पॉस मिला। यहाँ सभी बच्चों ने पहलीबार ये कार्य किया था जिसमें वे उम्मीद से कहीं ज्यादा उत्साह पूर्वक कार्यकरते हुए सफल रहे। 


सात दिन के बीच में एक दिन पर्यावरण को प्रोत्साहन देने हेतु वृक्षारोपण का कार्यक्रम भी रखा गया था, जिसमें सभी बच्चों ने बहुत उत्साह के साथ पौधारोपण किया। 



मुझे ये कहते हुए अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है कि, स्वरोजगार हेतु  पहला कदम सफल रहा। बच्चों के उत्साह ने ये सिद्ध कर दिया कि आँधियों को जिद्द है जहाँ बिजली गिराने की वहीं जिद्द है हमें अपना आशियाँ बनाने की। 

धन्यवाद
Voice For Blind 




Tuesday, 26 April 2016

जीवन में सफल होना है तो, सपने देखें




मंजिल उन्ही को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है, पंखो से कुछ नही होता हौसले से उङान होती है। जी हाँ मित्रों, प्रत्येक मनुष्य अपनी सफलता के लिये बेहतरीन सपने देखता है, सच तो ये है की जीवन में सफलता इन्ही सपनो के आधार पर मिलती है और इससे पहले की सपने सच हों हमें सपने देखना होगा। किसी ने सच कहा है कि अपने सपनो को साकार करने के लिये दृणसंकल्प हो जाओ तो इस दुनिया की कोई भी ताकत उसे पूरा होने से नही रोक सकती।


कई बार सपने जल्दी पूरे नही होते और हम लोग उम्र की दुहाई देकर तथा भाग्य में नही है ये सोचकर अपने सपनो को एक ऐसा सपना समझ लेते हैं जो कभी पूरा नही होता। वास्तविकता तो ये है कि, सपने देखने और सपनो को साकार करने की इच्छा किसी भी उम्र की मोहताज नही होती। ये भी एक सच्चाई है कि हमारे देश में सरकारी नौकरी के लिये आयु सीमा का निर्धारण किया गया है लेकिन इसका मतलब ये तो नही है कि सपनो को पूरा करने के अन्य विकल्प न हो। ऐसा भी नही है कि जो लोग आगे बढना चाहते हैं उनके लिये रास्ते बंद हो गये हों। वर्तमान की यदि बात करें तो भारत सरकार की कई ऐसी योजनाएं हैं, जो हमें अपने सपनो को साकार करने में मददगार हैं क्योंकि नींद नही सपने बदलते हैं, मंजिल नही रास्ते बदलते हैं, जगा लो जीतने का जज़बा , किस्मत की लकीरें बदले या न बदले वक्त जरूर बदलता है।



धीरूभाई अंबानी ने कहा है कि, "जो सपने देखने की हिम्मत रखते हैं वो सारी दुनिया जीत जाते हैं।"

मित्रों, रास्ते तो बहुत हैं, सिर्फ दरकार है जीवन में कुछ कर गुजरने की दृणइच्छाशक्ती की जिसके लिये उम्र बाधा नही है। मन में ठान ले तो जीत है वरना, लक्ष्य के करीब होते हुए भी व्यक्ति निराश हो जाता है। मन की शक्ति को पहचान कर ही लियोनार्डो दि विन्ची ने 51 वर्ष की उम्र में अपनी पेटिंग मोनालिया को बनाया था। जो उनके जीवन की सबसे प्रसिद्ध पेंटिग है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने तो 90 वर्ष की आयु में तुलसी राम चरित्र मानस लिखी थी। नेल्सन मंडेला का अधिकतम जीवन संघर्ष में बीत गया था। फिर भी वे 75 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रिका के राष्ट्रपति बने।


महात्मा बुद्ध का कहना था कि, "जिसने अपने मन को वश में कर लिया, उसकी जीत को देवता भी हार में नही बदल सकते"।


मनोवैज्ञानिकों का तो कहना है कि.....

जिन लोगों के सपने अधुरे रह गये हों तो उन्हे अपने सपनों को महत्व देना चाहिये। आज तो विज्ञान की इतनी टेक्नोलॉजी आ गई है जिसकी मदद से हम शारीरिक असमर्थता के बावजूद अपने सपनो को पूरा करते हुए कामयाबी का सफर तय कर सकते हैं।विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक और लेखक स्टीफन हॉकिंस को तो आप सब जानते ही होंगे। नब्बे फीसदी विकलांग होने के बावजूद उनकी क्षमता का लोहा पूरी दुनिया मानती है। महान वैज्ञानिक स्टीफन विलियम हॉकिंग पर 'जितेंद्र' शब्द बिल्कुल सटीक बैठता है। वे एक न ठीक होने वाली बिमारी यानी स्टीफ मोटर न्यूरॉन बिमारी से पीङित हैं। बचपन से होनहार और महत्वाकांक्षी स्टीफन के सपने भी बहुत महत्वाकांक्षी थे, जिसे वे अपनी बिमारी के बावजूद भी खुली आंखों से देख रहे हैं तथा उसे पूरा करने में शिद्दत से लगे हुए हैं। हॉकिंग के जज़बे का आलम ये है कि वे व्हीलचेयर पर बैठे - बैठे अंतरिक्ष विज्ञान की जटिल पहेलियों और रहस्यों को सुलझा रहे हैं। ब्लैक होल को लेकर उनकी थ्योरी बहुत मजेदार है। हॉकिंस खासतौर से कॉसमोलॉजी पर काम कर रहे हैं। जिसके अंतर्गत ब्रह्मांड की उत्पत्ती, संरचना और स्पेस के बारे में अध्ययन किया जाता है।

दोस्तों, जिंदगी को बेहतर बनाने की संभावना हमेशा रहती है। सफलता पाने के लिये हमारी परिस्थिती और बीता हुआ कल कभी भी अवरोध नही बन सकते क्योंकि हर नया दिन हमें नये उजाले के साथ हमें आगे बढने की प्रेरणा देता है। हम सबके प्रिय मिसाइल मैन ए.पी.जे. कलाम साहब कहते हैं कि, सपने देखना कभी न छोङें और सपने वो हों जो आपको नींद न आने दें।

एक प्रसिद्ध दार्शनिक ने कहा है कि, जीवन में कोई व्यक्ति तब तक बुढा नही होता जबतक वह अपने सपने पूरे करने में लगा रहता है। गाँधी जी ने कहा था कि, सपने ऐसे देखो की आप हमेशा जीवित रहोगे। कहते हैं सफलता के सपनो का रुकना मनुष्य को कमजोर एवं असाहय कर देता है इसलिये उम्र का कोई भी दौर क्यों न हो अपने सपनो को कभी भी मरने नही देना चाहिये। इन्हे हमेशा अपनी पॉजीटिव सोच और मजबूत इरादों से सिंचना चाहिये क्योंकि आँखों में सजे सपने ही हम सबकी आशाओं के स्रोत हैं। तो हम सब सपने देखें और अपनी दृण सोच के साथ सपनो को आसमान छुने दें।


हर सपने में चमक होती है,


हर राह एक मंजिल होती है,


रख हौसला कुछ कर दिखाने का,


हर सपने की जीत होती है।


Saturday, 16 April 2016

धन्यवाद :)




मित्रों, इस महिने बैंक तथा रेल में कार्य करने हेतु हमारे कई विद्यार्थियों का सलेक्शन हुआ है। सबसे पहले तो उन सभी दिव्यांग साथियों को बहुत-बहुत बधाई जिनका सलेक्शन हो गया है। इन बच्चों का सफर आसान नही है लेकिन इनका जज़बा और आगे बढने तथा आत्मनिर्भर बनने की लगन ने इनके सपने को साकार किया है। इन बच्चों के सफर में अपने समाज के कई सहयोग के हाँथ भी लगातार साथ दे रहे हैं। भारत के विभिन्न शहरों में वाइस फॉर ब्लाइंड के माध्यम से लोग उम्दा तथा समय पर रेकार्डिंग कर रहे हैं, जिससे हमारे दिव्यांग साथी बराबर लाभांवित हो रहे हैं। सहलेखन की व्यवस्था में भी हमारे युवा हेल्पिंग हेंड के साथ बराबर सहयोग दे रहे हैं। हम सबकी इस मुहीम में हमारे सम्माननिय पत्रकार गणं भी अपने-अपने समाचार पत्रों के माध्यम से लोगों को जागृत कर रहे हैं और अपने अंदाज में इस कार्य में सहयोग देकर वाइस फॉर ब्लाइड के मकसद को साकार कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य है - शिक्षा के माध्यम से दृष्टिबाधित लोगों को आत्मनिर्भर बनाना। 



वाइस फॉर ब्लाइंड कल्ब के सदस्यों के साथ अच्छीखबर वेब साइट के संस्थापक  गोपाल मिश्रा तथा मल्हार मिडिया की सीईओ ममता जी का भी बराबर सहयोग मिल रहा है। समाचार पत्र पत्रिका के उमेश जी, फ्री प्रेस के तरुण जी, दैनिक भास्कर के अमित जी तथा हिंदुस्तान टाइम्स की निडा का सहयोग भी लोगों को इस कार्य हेतु जोङ रहा है। हम सभी साथियों का तहे दिल से धन्यवाद देते हैं कि उन्होने हमें हौसला दिया तथा 2012 में अकेले चले इस सफर को  सहयोग का कारवां बना दिया। भविष्य में भी आप सबके साथ की आकांक्षा रखते हैं। और भी कई नये सहयोग के हाँथ आगे आयेंगे इस बात का विश्वास है।  पुनः आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद तथा बधाई 




परहित सरसि धर्म नही कोई


वसुधैव कुटुबंकम की भावना से पल्लवित हमारी भारतीय संस्कृति की पहचान है  परहित सरसि धर्म नही कोई । "साथी हाँथ बढाना एक अकेला थक जायेगा मिलकर बोझ उठाना"  मदर इंडिया का ये प्रसिद्ध गाना लगभग हम सभी की जुबान पर है. इस गीत में जिवंत समाज का बहुत ही महत्वपूर्ण संदेश छुपा हुआ है क्योंकि प्रकृति के नियमानुसार  भी सभी जीव जगत का जीवन चक्र सहयोग की बुनियाद पर ही टीका है।  परिवार, समाज, देश हो या दुनिया सब एक दूसरे के सहयोग से ही फल फूल रहे हैं। ऐसे में समाज की कमजोर कड़ी को विशेष ध्यान की आवश्यकता  होती है।  जो किसी भी समाज की उन्नति के लिये आवश्यक चरण है। अक्सर हम सबने महसूस किया होगा कि परिवार में जो बच्चा सबसे कमजोर होता है, माँ का उस पर विशेष स्नेह होता है। ऐसे ही स्नेह की अपेक्षा हमारे दृष्टीबाधित साथी भी चाहते हैं, जहाँ उन्हे दया नही बल्की आगे बढने के लिये हम सबका सहयोग  चाहिये।

आज सरकार द्वारा अनेक सुविधायें देने की बात कही जाती है। परन्तु ये सुविधायें और योजनायें सिर्फ मंत्रालय की फाइलों मे ही सिमट कर रह गईं हैं या चंद शहरों चंद संस्थानों की ही अमानत है। आज भी अनेक शहरों में दृष्टीबाधित बच्चे उन योजनाओं से वंचित है। जैसे कि, परिक्षा के समय सहलेखक को दिया जाने वाला भत्ता हो या रेर्काडिंग की सुविधा।  सबसे बड़ी विडंबना है कि, सरकार द्वारा पारित योजनाओं को सरकार के ही अधिनस्त कर्मचारी नही मानते और अपने मन की करते हैं। उदाहरण के तौर पर 2013 की सहलेखन की गाइड लाइन को अनेक राज्यों के विद्यालय अभी भी नही मान रहे हैं। जिसका खामियाजा उन लोगों को भुगतना पड़ता है जिनकी कोई गलती नही है। दृष्टीबाधिता हो या किसी भी प्रकार की शारीरिक विकलांगता, सरकार तथा समाज की उदासीनता की बली चढ जाती है। 

आज अनेक उदासीनता के बावजूद भी कई  सहयोग के हाँथ भी आगे बढ रहे हैं। जिसका सफल परिणाम भी दिखाई दे रहा है। इस महिने बैंक के आये परिणाम में मेरे 15 विद्यार्थियों का सलेक्शन विभिन्न बैंको में हुआ है। इसके साथ ही voice for blind कल्ब के माध्यम से सहयोग करने के लिये आज के युवा अपना समय दे रहे हैं और कई लोग देने के लिये अपनी इच्छा जता रहे हैं। ये सहयोग भारत के भविष्य के लिये एक अच्छा संकेत है और उन सभी दृष्टीबाधित लोगों के लिये शुभ संकेत है जो अनेक परेशानियों के बावजूद भी आगे बढना चाहते हैं, आत्मनिर्भर होना चाहते हैं। 



धन्यवाद

जय भारत 






Thursday, 14 April 2016

शुभ रामनवमी


          आप सबको रामनवमी की हार्दिक बधाई 
                 

नवराते में शक्ति पूजें, हर तन बने बज्र के जैसा,
 राज करे चाहे कोई भी, राजा हो श्रीराम के जैसा।

हर शबरी के द्वार चलें हम, जहां अहिल्या दीप जलाएं,
राम तत्व है सबके अंदर, आओ फिर से उसे जगाएं।

शुभ-अवसर है राम-जन्म का, आओ सब मिल शीश झुकाएं,
अंदर बैठे तम को मारें, आओ मिलजुल खुशी मनाएं।