संदेशों, आर्शिवचनों, शुभकामनाओं से भरा एक
प्यारा उपहार, लिफाफे में रखा एक ऐसा हस्त लिखित कागज जो जज़बातों तथा अपनेपन की
सुनहरी याद दिलाता है। कितने सुखद एहसास की याद दिलाता है, वो पल जब सुनते हैं-
डाकिया डाक लाया, डाकिया डाक लाया। खुशी का पयाम
कहीं,......
दोस्तों, एक निश्चित समय पर पोस्टमैन की साइकिल की घंटी या उसकी चिर-परिचित आवाज -"पोस्टमैन" एक ऐसी ध्वनि जिसको सुनकर बरबस ही दरवाजे की ओर कदम बढ जाते, ये देखने को कि किसका खत आया।
मित्रों, आज तो देखते-देखते हम उस युग में आ गये
हैं, जहाँ भौगोलिक दूरियाँ समाप्त हो गईं हैं। ISD एवं STD ने बातों का दायरा बढा दिया।
SMS तथा E-Mail पर तो
समय की भी बंदिश नही है। आज हर शख्स मोबाइल फोन कान पर लगाये हाँथ लहराकर इस तरह
डूबा दिखाई देता है, जैसे किसी मन पसंद गाने का आंनद ले रहा हो। बेशक दुनिया करीब
आ गई है किन्तु पत्रों ने साहित्य को जो गहनतम, व्यक्तिगत और अंतरंग आयाम दिये हैं, वो भावनात्मक
एहसास, आज के SMS में असंभव है।
भरतीय डाक सेवा विश्व की सबसे बङी डाक सेवा
मानी जाती है। दूसरे नम्बर पर चीन का नाम आता है। संदेश प्रणाली का संर्दभ अथर्ववेद में भी मिलता है। पहले दूत और कबूतर के माध्यम से सूचना दी जाती थी। गीतकारों ने क्या खूब
लिखा है- "कबूतर जा, कबूतर जा पहले प्यार की पहली चिठ्ठी साजन को पहुँचा।", "फूल
तुम्हे भेजा है खत में, फूल नही मेरा दिल है।" या "लिखे जो खत तुम्हे वो तेरी याद
में हजारों रंग के नजारे बन गये"। ऐसी अद्भुत रचनाएं कवि की कल्पनाओं को सजीव कर देती हैं, जब हम सब किसी अपने
का पत्र पढते हैं।
दोस्तों, उन खतों की बात ही कुछ और है जो हमारे
अभिभावकों ने हमें लिखे। ये पत्र उनके न रहने पर भी उनके होने का एहसास कराते हैं। एक छोटे बच्चे की टेढी-मेढी लाइनों से लिखा शब्द जब पत्र की शक्ल में होता
है, तो बच्चे की तस्वीर कागज में स्वतः ही उभर आती है। आज के E-Mail युग में Key-Board पर सभी अक्षर एक समान; "किसने लिखा?" लिखावट से तो समझ नही सकते। उन बधाई पत्रों का महत्व और बढ जाता है जिस पर भेजने वाला अपने हाँथ से कुछ लिख देता है। ऐसे कार्ड
या स्वलिखित पत्र रस्मो-रिवाजों से परे, भेजने वाले की भावनाओं को तथा अपनेपन को परिलाक्षित
करते हैं।
मित्रों, अमेरिका के 32वें राष्ट्रपति फ्रैंकलिन
डेलानो रूजवेल्ट की आदत थी कि जब भी उनका निजी सचिव कोई पत्र टाइप करके उनके
हस्ताक्षर के लिये लाता तो वह कहीं-कहीं कुछ लिख देते या अंत में पेन से कुछ लिख
देते। सचिव उसे वापस टाइप करके हस्ताक्षर के लिये ले आता। रूजवेल्ट वापस कुछ लिख
देते, आखिर सचिव ने पूछ ही लिया कि- “आपको जो लिखना हो, वो डिक्टेशन देते समय ही क्यों नही लिखवा देते? हाँथ से लिख देने
से पत्र कुछ भद्दा नही लगता?”
राष्ट्रपति रूजवेल्ट सचिव को समझाते हुए बोले- “मित्र, यह तुम्हारी
भूल है, मेरे हाँथ से लिख देने से पत्र की शोभा और बढ
जाती है। मेरे लिखने से पत्र औपचारिक नही रहता, वो सौहार्दपूर्ण हो जाता है।“
चिठ्ठियाँ जज़बातों को जाहिर करने का सबसे अच्छा
माध्यम हैं। आज भी सीमा पर तैनात जवानों को अपने वतन से हजारों मील दूर चिठ्ठियों
के माध्यम से ही संदेश मिलता है। इन संदेशों में उनके घर, गाँव और देश की मिट्टी
की सुगंध होती है। ये पत्र उन्हे ताजगी देते हैं। हौसला बढाता हुआ माँ का आर्शिवाद, जिम्मेदारियों का संदेश देती पिता की नसीहत, जिससे वे वतन की रक्षा और अधिक सजगता से करते हैं। अपनों का संदेश पढकर गुनगुनाने
लगते हैं- "चिठ्ठी आई है आई है, बङे दिनों के बाद वतन की मिट्टी आई है।"
बेशक आज हम आधुनिक संसाधनों से परिपूर्ण हैं -
"फिर
भी भावनाओं के शब्दों से,
कोरे कागज को सजाना लाज़मी है।
चिठ्ठी-पत्री के माध्यम से अपनी दुआएं
और
शुभकामनाएं
अपनों तक पहुँचाना भी लाज़मी है।
जो खत तूफानों से, विस्फोटों से,
बदलती हुई सदियों में न
डरा,
उसे एक छोटा सा SMS निगल गया।
उन खतों को वापस गुनगुनाना भी लाज़मी है।"