Monday, 14 January 2013

सबके लिये नियम एक



देश की आजादी में एवं राजनीति के इतिहास में अपना विशेष स्थान रखने वाली कई विभूतियों ने अपने जीवन में नियम को सर्वोपरि माना है। ऐसी ही महान विभूतियों के किस्से आप सबसे Share कर रहे हैं।

बात सन् 1885 की है। पुना के न्यु इंग्लिश हाईस्कूल में समारोह हो रहा था। प्रमुख द्वार पर एक स्वयंसेवक नियुक्त था, जिसे वह कर्तव्य भार दिया गया था कि आने वाले अतिथियों के निमंत्रण पत्र देखकर उन्हे सभा-स्थल पर यथा-स्थान बैठाया जाये। इसी समारोह के मुख्य अतिथी थे, मुख्य न्याधीश महादेव गोविन्द रानाडे। जैसे ही वह विद्यालय द्वार पर पहुँचे, वैसे ही स्वंय-सेवक ने उनको रोक दिया और निमंत्रण पत्र की माँग की। उन्होने का बेटे! मेरे पास तो नही है। तभी स्वयं-सेवक नम्रता पूर्वक बोला, क्षमा करें आप अंदर नही जा सकते। इसी बीच रानाडे को देख समिती के अन्य सदस्य भी आ गये और उन्हे मंच की ओर ले जाने लगे, पर स्वयं सेवक ने कहा कि, श्रीमान! यदि मेरे कार्य में स्वागत समिती के सदस्य ही रोङा अटकायेंगे तो फिर मैं अपना कर्तव्य कैसे निभा सकुंगा? कोई भी अतिथी हो, उसके पास निमंत्रण पत्र होना चाहिये। भेदभाव की नीति मुझसे न बरती जायेगी। यही स्वयं सेवक आगे चलकर गोपाल कृष्ण गोखले के नाम से प्रसिद्ध हुए।
नियम के पक्के गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का 'ग्लेडस्टोन'  कहा जाता है। गोपाल कृष्ण गोखले, महान देशभक्त और महात्मा गाँधी के राजनीतिक गुरू भी थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी व्यक्ति थे। चरित्र निर्माण की आवश्यकता से पूर्णत: सहमत होकर उन्होंने 1905 में सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकि शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है।


सबके लिये समान नियम की भावना का संदेश, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जी के जीवन से भी सीखा जा सकता है।
बात न दिनों की है जब पंडित जवाहर लाल नेहरु इलाहबाद नगर महापालिका के अध्यक्ष थे। एक दिन वो अपने कार्यलय में बैठे थे कि जल कर के टैक्ससुपरिटेंडेंट, डॉ. अबुल फजल उनके  पास आये और उनकी मेज पर एक कागज बढा कर बोले- यह उन लोगों के नामों की सूची है जिन्होने अभी तक पानी का टैक्स अदा(Payment) नही किया है। नियम के अनुसार इन सभी लोगों के कनेक्शन काट देने चाहिये। आपकी क्या राय है?”
नेहरु जी ने कहा कि, मेरी राय की क्या जरूरत? आपको दिक्कत क्या है? “
डॉ. फजल ने अपनी दुविधा बताई कि, बात दरअसल ये है कि इस सुची में जिनके नाम लिखे हैं वो सभी प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं।
नेहरु जी बेतकल्लुफी से बोले, अरे भाई, नियम तो नियम है। इसमें भला प्रतिष्ठित और सामान्य लोगों में भेद-भाव क्यों?”
फिर क्या था, उसी दिन आदेश का परिपालन हुआ। दूसरे दिन प्रातः उन प्रतिष्ठित व्यक्तियों के घर का पानी बन्द हो गया। सारे शहर में खलबली मच गई। जिन घरों में पानी बंद था, उनमें इलाहाबाद कोर्ट के चीफ जस्टिस, इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस समेत कई प्रतिष्टित व्यक्ती थे। और तो और, नेहरु जी के घर भी पानी बंद हो गया था। पानी का कनेक्शन पंडित मोती लाल नेहरु जी के नाम था, सो वह भी इसके शिकार हुए।
मोतीलाल नेहरु बहुत नाराज हुए और बोले कि, आखिर ऐसा करने से पहले कम से कम नगरपालिका को पहले एक नोटिस देना था।
नेहरु जी विनम्रता से बोले- इतना तो नागरिकों का भी कर्तव्य बनता है कि वे समय पर टैक्स अदा कर दिया करें। नियम के आगे मैं मजबूर था क्योंकि नियम तो सबके लिये एक था।
मित्रों, ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि जीवन में सबके साथ समान नियम का भाव ही आदर्श समाज को रच सकता है। जो लोग इसे जीवन का हिस्सा बनाते हैं वही जन-जन में अपनी अलग पहचान बनाते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि-, जो बातों का बादशाह नही, बल्कि उसे करके दिखाता है। वही प्रेरक इतिहास रचता है।
अल्बर्ट आइंसटाइन ने कहा है कि- सिर्फ सफल होने की कोशिश न करें, बल्कि मूल्य आधारित जीवन जीने वाला मनुष्य बनने की कोशिश किजीये।
Thanks
        

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