मित्रों, आज हम सविंधान के
विभिन्न खण्डो में की गई चित्रकारी को आपसे share करने का प्रयास कर रहे हैं।पहले संविधान का
संक्षिप्त परिचय देना आवश्यक समझते हैं।
दोस्तों, संविधान निश्चित
नियमों का संग्रह होता है। अरस्तु ने लिखा हैः- “संविधान उस पद्धिती का प्रतीक होता है जो किसी
राज्य द्वारा अपनाई जाती है”। भारत का संविधान लिखित एवं सबसे बङा संविधान है। संविधान
निर्माण की प्रक्रिया में 2 वर्ष, 11 महिना, 18 दिन लगे थे। प्रारूप समिति के
अध्यक्ष डाँ. भीमराव अमबेडकर थे। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने विश्व के अनेक
संविधानों के अच्छे लक्षणों को अपने संविधान में आत्मसात करने का प्रयास किया है।
हमारे संविधान में 22 खण्ड
हैं जिसे नंदलाल बोस ने अपनी उत्कृष्ट चित्रकारी से चित्रित किया है। विख्यात
चित्रकार नंदलाल बोस का जन्म बिहार के मुंगेर नगर में हुआ था। नंदलाल बोस ने
कलकत्ता गवर्नमेंट कॉलेज में अबनीन्द्ननाथ ठाकुर से कला की शिक्षा ली। 1922 से
1951 तक शांतिनिकेतन के कलाभवन के प्रधानाध्यापक रहे वहीं उनकी मुलाकात पं. नेहरू
जी से हुई। नेहरू जी ने नंदलाल बोस को संविधान की मूलप्रति को चित्रकारी से सजाने
के लिये आमंत्रित किया।
संविधान की मूलप्रति को
सजाने में चार साल लगे, वास्तव में ये चित्र भारतीय इतिहास की विकास यात्रा है।
संविधान के हर भाग की शुरुवात में 8 – 13 इंच के चित्र बनाये गये हैं। सुनहरे
बार्डर और लाल पीले रंग की अधिकता लिये हुए इन चित्रों की शुरुआत भारत के
राष्ट्रीय प्रतीक अशोक के लाट से की गई है। अगले भाग में भारतीय संविधान की
प्रस्तावना है जिसे सुनहरे बार्डर से घेरा गया है, जिसमें घोङा, शेर, हाथी और बैल
के चित्र बने हैं। इस बार्डर में शतदल कमल को भी जगह दी गई है।
इसके अगले भाग में मोहन
जोदङो की सील दिखाई गई है। वैदिक काल की शुरुवात होती है, किसी ऋषी के आश्रम का
दृष्य है मध्य में गुरू बैठे हुए हैं और उनके शिष्यों को दर्शाया गया है। पास में
एक यज्ञशाला बनी हुई है। मूल अधिकार वाले भाग की शुरुवात त्रेता युग से होती है।
इस चित्र में भगवान राम रावण को हरा कर सीता माता को लंका से वापस ला रहे हैं। राम
धनुष बांण लेकर आगे बैठे हैं और उनके पीछे लक्षमण एवं हनुमान हैं।
अगले क्रम में नीति
निर्देशक तत्व हैं जिसमें श्री कृष्ण को गीता का उपदेश देते हुए दिखाया गया है।
पाँचवें खण्ड में भगवान बुद्ध बीच में बैठे हुए हैं और उनके चारो ओर उनके पांच
शिष्य बैठे हैं। हिरन और बारहसिंहा जैसे जानवरों को भी दर्शाया गया है। अगले भाग
में संघ और राज्यक्षेत्र में भगवान महावीर को समाधी मुद्रा में दर्शाया गया है।
सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार को दिखाया गया है। आठवें भाग में
गुप्तकाल से जुङी कलाकृति को उकेरा गया है। इस चित्र में नृत्य करती हुई नर्तकियों
के चारों ओर राजाओं का घेरा है। यह चित्र कलात्मक दृष्टीकोंण से अत्यन्त
महत्वपूर्ण है। 10वें भाग में गुप्तकालीन नालंदा विश्वविद्यालय की मुहर दिखाई गई
है। 11वें भाग में मध्यकालीन इतिहास की शुरुवात होती है। 12वें भाग में नटराज की
मूर्ती बनाई गई है। 13वें भाग में महाबलीपुरम मंदिर पर उकेरी गई कलाकृति को
दर्शाया गया है। भागरीथी तपस्या और गंगा अवतरण को भी इसी चित्र में दर्शाया गया।
14वाँ भाग केन्द्र और राज्यों के अधीन है। इस खण्ड में मुगल स्थापत्य को जगह दी गई
है। बादशाह अकबर बैठे हुए हैं, उनके पीछे चँवर झुलाती महिलाएँ हैं। 15वें भाग में
गुरु गोविन्द सिहं और शिवाजी को दिखाया गया है।
16वें भाग में ब्रिटिशकाल शुरू
होता है, इसमें टीपूसुल्तान और रानी लक्षमीबाई को अंग्रेजो से लोहा लेते दर्शाया
गया है। 17वां खण्ड मूल संविधान में अधिकारिक भाषाओं का खण्ड है, जिसमें गाँधी जी
की दांडी यात्रा का दृष्य है। अगले भाग में गाँधी जी की नोखली यात्रा का चित्र है,
एन्ड्रयूज भी उनके साथ हैं। एक हिन्दू महिला गाँधी जी को तिलक लगा रही है और कुछ
मुस्लिम पुरूष हाँथ जोङकर खङे हैं। 19वें भाग में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आजाद
हिन्द फौज को सेल्यूट कर रहे हैं। चित्र में अंग्रेजी भाषा में लिखा है कि- इस
पवित्र युद्ध में हमें राष्ट्रपिता महात्मा गाधीँ की आवश्यकता हमेशा रहेगी। 20वें
भाग में हिमालय के उच्च शिखरों को दिखाया गया है जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति का
प्रतीक है। 21वें भाग में रेगिस्तान का चित्रण है। दूर दूर तक फैले रेगिस्तान के
बीच ऊँटों का काफिला, वास्तव में इस चित्र का उद्देश्य हमारी प्राकृतिक विविधता को
दर्शाना है। अंतिम भाग में समुंद्र का चित्र है, जिसमें एक विशालकाय पानी का जहाज
है जो हमारे गौरवशाली सामुंद्रिक विस्तार और यात्राओं का प्रतीक है।
कलात्मक चित्रों ने हमारे
संविधान को अलंकृत कर शोभायमान बनाया है।
दोस्तों, उपरोक्त जानकारी
कुछ पुस्तकों को पढने के बाद ही लिखने का प्रयास किये हैं। यदि कोई त्रुटी हुई हो
तो हम क्षमाप्रार्थी हैं।
जयहिन्द
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