जो असंभव कार्य को संभव करदे उसे ही प्रतिभा कहते हैं। ऐसे ही प्रतिभा के धनी लुई ब्रेल ने एक ऐसी लिपी का आविष्कार किया बिना देखे सिर्फ छूकर पढा जा सकता है। अल्पआयु में ही अपनी दृष्टी को खो देने वाले लूई ब्रेल ने, ब्रेल लीपि का आविष्कार करके सभी दृष्टीबाधितों के लिये शिक्षा के क्षेत्र में अनोखा योगदान दिया है। उनके अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि आज अनेकों दिव्यांग लोग अपनी अभिव्यक्ति को लिख कर भी व्यक्त कर सकते हैं।
किसी भी लिपी का शाब्दिक अर्थ होता है, लिखित या चित्रित करना। हमारे भारत वर्ष में अनेक लीपियां हैं, जैसे कि- देवानागिरी, खरोष्ठी, ब्रह्मलिपी, गुरमुखी लिपी इत्यादि इत्यादि। उसी तरह दिव्यांग लोगों की लिखित लिपी का नाम ब्रेल लीपि है। जिसका आविष्कार 1829 में हुआ था।
ब्रेल लीपि में 6 बिन्दु होते हैं जो थोङे उभरे होते हैं। इसके सेल में दो पंक्तियां होती हैं। बाईं पंक्ति में 1,2,3 तथा दाईं पंक्ति में 4,5,6 बिन्दु होते हैं। इन्ही 6 बिंदुओं में सभी अक्षर, मात्राएं तथा संख्या समाई हुई है। भारतीय लिपियों को ब्रेल में व्यवस्थित करने के लिये 1951 में स्विकृति मिली थी। उस दौरान अलग-अलग स्कूलों में ब्रेल लिपियां अलग हुआ करती थीं, जिससे इस लिपी में पुस्तकों का आभाव रहता था। रुस्तम जी अलपाई वाला ने 1923 में 'अंध बधिर सम्मेलन' में ब्रेललिपियों की एकरुपता को ठोस तरीके से प्रस्तुत किया किन्तु विदेशी सरकार से भारत के उत्थान की आशा रखना समुन्द्र में पुल बनाने जैसा कार्य था। परन्तु अलपाई वाला हार नही माने और उनके अथक प्रयासों का परिणाम रहा कि 1952 में युनेस्को ने भारत के लगभग 20लाख दृष्टीबाधित लोगों के लिए एक भारतीय ब्रेल लीपी स्वीकार की। आधुनिक ब्रेल में अब 8 बिन्दु का प्रावधान है।
मित्रों, कोई भी लिपी ऐसे प्रतीक-चिन्हों का संयोजन है जिनके द्वारा श्रव्य भाषा को दृष्टीगोचर बनाया जाता है। लिखी हुई बातें या विचार इतिहास की घरोहर हैं। अतः हम सबको अपनी-अपनी लिपि का ज्ञान अवश्य रखना चाहिये। साक्षरता का अभिप्राय भी यही है कि, अक्षर ज्ञान। 4 जनवरी को लुई ब्रेल के जन्मदिन पर उनको शत्-शत् नमन करते हैं।
लुई ब्रेल के संक्षिप्त जीवन परिचय को सुनने के लिये विडियो देखें।
धन्यवाद
अनिता शर्मा
किसी भी लिपी का शाब्दिक अर्थ होता है, लिखित या चित्रित करना। हमारे भारत वर्ष में अनेक लीपियां हैं, जैसे कि- देवानागिरी, खरोष्ठी, ब्रह्मलिपी, गुरमुखी लिपी इत्यादि इत्यादि। उसी तरह दिव्यांग लोगों की लिखित लिपी का नाम ब्रेल लीपि है। जिसका आविष्कार 1829 में हुआ था।
ब्रेल लीपि में 6 बिन्दु होते हैं जो थोङे उभरे होते हैं। इसके सेल में दो पंक्तियां होती हैं। बाईं पंक्ति में 1,2,3 तथा दाईं पंक्ति में 4,5,6 बिन्दु होते हैं। इन्ही 6 बिंदुओं में सभी अक्षर, मात्राएं तथा संख्या समाई हुई है। भारतीय लिपियों को ब्रेल में व्यवस्थित करने के लिये 1951 में स्विकृति मिली थी। उस दौरान अलग-अलग स्कूलों में ब्रेल लिपियां अलग हुआ करती थीं, जिससे इस लिपी में पुस्तकों का आभाव रहता था। रुस्तम जी अलपाई वाला ने 1923 में 'अंध बधिर सम्मेलन' में ब्रेललिपियों की एकरुपता को ठोस तरीके से प्रस्तुत किया किन्तु विदेशी सरकार से भारत के उत्थान की आशा रखना समुन्द्र में पुल बनाने जैसा कार्य था। परन्तु अलपाई वाला हार नही माने और उनके अथक प्रयासों का परिणाम रहा कि 1952 में युनेस्को ने भारत के लगभग 20लाख दृष्टीबाधित लोगों के लिए एक भारतीय ब्रेल लीपी स्वीकार की। आधुनिक ब्रेल में अब 8 बिन्दु का प्रावधान है।
मित्रों, कोई भी लिपी ऐसे प्रतीक-चिन्हों का संयोजन है जिनके द्वारा श्रव्य भाषा को दृष्टीगोचर बनाया जाता है। लिखी हुई बातें या विचार इतिहास की घरोहर हैं। अतः हम सबको अपनी-अपनी लिपि का ज्ञान अवश्य रखना चाहिये। साक्षरता का अभिप्राय भी यही है कि, अक्षर ज्ञान। 4 जनवरी को लुई ब्रेल के जन्मदिन पर उनको शत्-शत् नमन करते हैं।
लुई ब्रेल के संक्षिप्त जीवन परिचय को सुनने के लिये विडियो देखें।
धन्यवाद
अनिता शर्मा
बढ़िया और जानकारीपूर्ण पोस्ट.
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