हमारा गणतंत्र, हमारी सांस्कृतिक और राष्ट्रिय गौरव का प्रतीक है। उत्तर वैदिक युग में ही हमने गणतंत्र-व्यवस्था विकसित कर ली थी। ऋगवेद तथा अथर्ववेद में आई स्तुतियों तथा मैगस्थनीज की बातों से भी यही सिद्ध होता है कि, भारत के प्राचीन में भी गंणराज्य थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने गणतंत्रीय व्यवस्था को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग बताया है। हम सब भारतवासियों को अपनी पुरातन संस्कृति और वर्तमान गणतांत्रिक व्यवस्था पर गर्व है। आज देश में जहाँ निराशा के कारण विद्यमान हैं तो, आशा के भी उजाले चारों दिशाओं में अपना उजाला रौशन कर रहे हैं। राष्ट्रभाव की भावना का आज भी शंखनाद हो रहा है। अपनी गौरवपूर्ण गणतांत्रिक धरोहर के तले हमें अपनी अभिव्यक्ति का अधिकार है। आज हम सब विकास के नये सोपान पर चढ रहे हैं। सामाजिक चेतना की भी कोई कमी नही है। गंणतंत्र ने हमें लोकतंत्र जैसी व्यवस्था के साथ समता, स्वतंत्रता और भाई-चारे जैसे मूल्य दिये हैं। अनेकाता में एकता का प्रतीक हमारा भारत विश्व में इकलौता देश है जिसे इस पृथ्वी का स्वर्ग कहना अतिश्योक्ति न होगा। सौहार्द के रंग में रंगा हमारा देश सहिंष्णुता के विचारो से बना है। इस देश की मिट्टी में हर धर्म, जाति और समुदायों का अंकुरण है। जयशंकर प्रसाद ने तो कहा है कि, अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा। हम सब को एक सूत्र में पिरोने वाला हमारा गंणतंत्र राष्ट्रीयता की पहचान है। गणतंत्र उत्सव जन गण मन का राष्ट्रीय उल्लास है। उल्लास के इस राष्ट्रीय पर्व को हम सब मिलकर मनायें और प्रण करें कि, भारत की सांस्कृतिक गणतांत्रिक विचारों की रक्षा पूरे तन मन से करते हुए भारत को गौरव के शिखर पर ले जायेंगे। इसी के साथ आप सबको, राष्ट्रीय पर्व गंणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई।
जय भारत
वंदे मातरम् और 26 जनवरी पर निबंध को पढने के लिये लिंक पर क्लिक करेंः- वन्दे मातरम्
26 January special an essay
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