Friday 22 January 2016

सुभाष चंद्र बोस, भारत माता के साहसी सेनापती

भारत माता की आजादी के लिये अपना सर्वस्य न्योछावर करने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस का बलिदान अमर है। 23 जनवरी 1897 को जन्मे सुभाष के आदर्श विवेकानंद जी थे। 20 सितंबर 1920 को आई. सी. सी. की सफल परिक्षा पास करने के बावजूद सुभाष चंद्र बोस ने 22 अप्रैल 1921 को इस महत्वपूर्ण पद से त्यागपत्र दे दिया था। इतिहास में ये दिन अमिट है क्योंकि इतने उच्च पद का त्याग करके भारत माता को नमन करने वाले वो पहले व्यक्ति थे। भारत की माटी के सच्चे प्रहरी सुभाष से अंग्रेज अधिकारी भी डरते थे। मातृ भूमी के प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा थी। ऐसा उनका एक प्रसंग आप सबसे सांझा कर रहे हैं। 

एकबार एक अंग्रेज पुलिस अधिकारी सुभाष चंद्र बोस को गिरफ्तार करने उनके घर गया। वहाँ उनके कमरे में प्रवेश करने के साथ ही चौक गया उसने विस्मित नेत्रों से कमरे को देखा बड़ा साधारण सा कमरा था कहीं कोई सजावट नहीं थी। फर्श पर एक कंबल बिछा था जिस पर सुभाष बाबु बैठे थे। आस पास कुछ पुस्तकें थी और लिखने के लिए एक पेन रखा हुआ था।  उनके हाथ में एक पुस्तक थी, संभवत: यह स्वामी विवेकानंद जी के पत्रों का संकलन था, जिसे स्वामी विवेकानंद जी ने अपने शिष्यों अपने मित्रों तथा गुरु भाइयों को समय-समय पर लिखा था। इस पत्रावली में देश प्रेम की ऐसी आग थी जिसकी गरमाहट से सुभाष का देशप्रेम ह्रदय, आजादी की चिंगारी लिये धधक रहा था। दीवार के पास एक चौकी थी जिस पर फूलों की सजावट के बीच एक चांदी की डिबिया रखी थी। यह चौकी पूजा की बेदी थी। इतना साधारण कमरा देख अंग्रेज अधिकारी के आर्श्चय का ठिकाना न था। उसने कहा मिस्टर सुभाष मेरे पास तुम्हारी गिरफ्तारी के लिए वारंट है। उसने सुभाष की तरफ विचित्र नजरों से देखते हुए कहा; सुभाष तुम क्या हो सकता थे और क्या हो गए। 

मित्रों, ये अंग्रेज अधिकारी सुभाष चंद्र बोस को इंग्लैंड के दिनों से परिचित था। उसे अभी तक 20 सितंबर 1920 का वह दिन यह था, जब सुभाष चंद्र बोस आई. सी. एस. की परिक्षा में प्रथम श्रेंणी में सफल हुए थे। सफल छात्रों के सूची में उनका चौथा स्थान था; जबकि अंग्रेजी कंपोजीशन में उन्हे प्रथम स्थान मिला था। सुभाष बाबु ने, अंग्रेजों को उनकी भाषा में धूल चटा दी थी। समाचार पत्रों में इसकी बड़ी चर्चा हुई थी उसके कुछ ही महीने बाद फिर से समाचार पत्रों ने अपने मुखपृष्ठ पर एक समाचार प्रकाशित किया जब उन्होंने आई.सी.एस. के पद से त्याग पत्र दे दिया था।  

अंग्रेज अधिकारी ग्रिफिथ की बात सुनकर सुभाष चंद्र बोस ने हंसते हुए  कहा; "ठीक कहा तुमने, मैं गुलाम हो सकता था, लेकिन आज मैं अपने देश की स्वाधीनता का सजग सिपाही हूं"।

अंग्रेज अधिकारी कुछ खिसियाते हुए बोला मुझे इसी समय तुम्हें गिरफ्तार करना है।  इस पर सुभाष फिर से हंसते हुए बोले अवश्य जो तुम्हें आदेश दिया गया है उसका पालन करो। इस पर वह अधिकारी पुनः बोला मुझे तुम्हारे कमरे की तलाशी लेनी है। अंग्रेज अधिकारी  ने हर चीज कमरे की उलट पलट कर देखी कागजों में उसे कुछ भी आपत्तिजनक ना मिला तब उसने चौकी पर रखी चांदी की डिबिया खोली इसमें कुछ चूर्ण  जैसा था उसने पूछा यह क्या है?  सुभाष ने कहा;  "इसमें मेरे देश की मिट्टी है"
अंग्रेज अधिकारी ने उत्सुकता से पूछा, लेकिन यहां पर इस डिबिया में और चौकी के ऊपर फूलों की सजावट के बीच इस को रखने का क्या प्रयोजन है? सुभाष चंद्र बोस ने उत्तर दिया,  "मैं हर रोज अपने देश की मिट्टी की पूजा करता हूं  देश की स्वाधीनता की अपने उद्देश्य का स्मरण करता हूं" 

अंग्रेज अधिकारी ने कहा मिस्टर सुभाष तुम पागल हो गए हो अन्यथा कोई मिट्टी की भी पूजा करता है।  उसने कहा तुम्हे गिरफ्तार होने का कोई दुःख नही है। सुभाष चंद्र बोस ने कहा, "कष्ट और त्याग तो स्वाराज की नींव हैं इसी पर स्वराज की कल्पना साकार होगी।" 

इस गिरफ्तारी के बाद सुभाष चंद्र बोस को मांडले जेल में रखा गया था। मांडले जेल पहुँचकर सुभाष आनंदित हो गये क्योंकि मांडले जेल, लोकमान्य बालगंगाधर , भगत सिंह तथा लाला लाजपत राय जैसे महान देशभक्तों का साक्षी रहा है। ये तो तपस्वी क्रांतिकारियों की तपोभूमि थी। 

2 मई को सुभाष बाबु ने दिलिप कुमार राय को पत्र लिखकर कहा था कि, 
"यहाँ रहकर मेरे विचारों में परिवर्तन होने लगा है। इस जेल का वातावरण मेरे मस्तिष्क में दार्शनिक विचार उत्पन्न करता है। मैं महसूस कर सकता हूँ कि लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जी ने, गीता रहस्य की रचना बहुत ही शांति और परंम संतोष के साथ की होगी।"

नेताजी सुभाष चंद्र बोस इस जेल में सबके प्रिय नेता बन गये थे। उनका व्यक्तित्व एक प्रकाश पुंज की तरह था। ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज भी राष्ट्र के लिये प्रकाश का अमर स्रोत हैं।भारत की स्वतंत्रता के जांबाज़ सिपाही सु्भाष चंद्र बोस को उनके जन्मदिन पर नमन करते हैं और उनके संदेश के साथ कलम को विराम देते हैं। "राष्ट्रवाद, मानव जाति के उच्चतम् आर्दशों सत्यम शिवम् सुन्दरम् से प्रेरित है।" 
जय हिंद

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