Monday, 14 September 2020

हिंदी अपनी पहचान है

आज सुबह से हर तरफ हिंदी दिवस की बधाई गुंजायमान हो रही है। ऐसे में मन में प्रश्न उठता है कि क्या हिंदी को एक दिवस के रूप में मनाना न्यायोचित है। गौरतलब है कि, 14 सितंबर 1949 को अनुछेद 343 एक के अनुसार हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया तथा 26 जनवरी 1950 से हिंदी अधिकारिक तौर पर बोली जाने वाली भाषा बन गई परंतु विडंबना ये है कि हिंदी प्रति वर्ष 14 सितंबर को एक दिवस के रूप में ही सिमटकर रह गई जबकी 14 सितंबर 1949 के पहले से हिंदी भारत की संवेदनाओं का शब्द है, हिंदी भारत की अभिव्यक्ति को जिवंत करती है। हिंदी तो अपनी पहचान है फिर पहचान को दिवस की दरकार क्यों??? 

महात्मा गाँधी ने एकबार कहा था कि, "राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।" 

मेरा मानना है कि ,राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को लाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करना चाहिए भारत के वे सभी प्रांत जहां हिंदी का चलन बहुत कम है वहां के बाजारों में सभी दुकानों पर एवं वहां के सभी दफ्तरों तथा अस्पतालों पर उनके बारे में स्थानिय भाषा के साथ हिंदी में भी लिखना अनिवार्य किया जाना चाहिए। गाँधी जी का उपरोक्त कथन तभी सार्थक होगा। 

मित्रों, यहां कुछ ऐसे चिकित्सकों का जिक्र करना चाहेंगे जिनकी अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकङ है फिर भी हिंदी को अपना गौरव मानते हैं , डॉ. शैलेंद्र (डॉक्टर ऑफ मेडिसंस) हैं, आप हरियाणा के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में चिकित्सा अधिक्षक हैं। उनके कार्यलय में नाम पट्टिका सम्मान बोर्ड सब हिंदी में है। उनका हिंदी प्रेम अत्यधिक रोचक है, डॉ. शैलेंद्र जाँच, निदान और औषधियां सब हिंदी में लिखते हैं। उनका कहना है कि, हमें अपनी मातृभाषा को पूरा सम्मान देना चाहिए। गोरखपुर विधानसभा सीट से चार बार विधान सभा पहुँचने वाले डॉ. राधा मोहन दास भी दवाई की पर्ची हिंदी में लिखते हैं।स्वर्गिय डॉ. जितेन्द्र सुल्तानपुर से हैं एम बी बी एस की परिक्षा में टॉप किये थे, वो भी हिंदी में दवाईयां लिखते थे। उपरोक्त चिकित्सकों से प्रेरणा लेकर अधिकांश लोगों को अपने कार्यक्षेत्र में हिंदी को अपनाना चाहिए। 

ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि हिंदी सिर्फ भाषा नही है बल्कि उस विराट सांस्कृतिक चेतना का नाम है, जिसमें अनगिनत धर्म, समुदाय, संस्कार और पंथ समाहित हैं। हिंदी तो हमारी ताकत है। हिंदी हम सबके लिए गौरव है। हिंदी तो वो सागर है जिसमें भारत की सभी भाषाओं का सम्मान विद्यमान है। हम हिंदी को याद करें , बोलचाल में बोले, अपनी भाषा हिंदी पर अभिमान करें। हिंदी को किसी दिवस में न बाँधे बल्की उसे स्वतंत्र आकाश दिजिए हिंदी तो अपनी राष्ट्रीय एकता और अखंडता की प्रतीक है।

जय हिंद वंदे हिंदी वंदे भारत 

Friday, 4 September 2020

शिक्षक दिवस पर शिक्षकों के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं



जिज्ञासा, ज्ञान और बुद्धिमानी के चुम्बक को सक्रिय बनाते हैं शिक्षक 

शिक्षा का सागर हैं शिक्षक

ज्ञान के बीज बोते हैं शिक्षक

माता-पिता का दूजा नाम हैं शिक्षक

देश के लिए मर मिटने की

बलिदानी राह दिखाते हैं शिक्षक,

प्रकाशपुंज का आधार बनकर

कर्तव्य अपना निभाते हैं शिक्षक

नित नए प्रेरक आयाम लेकर

हर पल भव्य बनाते हैं शिक्षक

नई टेक्नोलॉजी से भी पाठ पढाते हैं शिक्षक



ऐसे महान शिक्षकों को शिक्षक दिवस पर कोटी-कोटी नमन और शिक्षकों के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। 

Friday, 14 August 2020

74 वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई

 



स्वतंत्रता दिवस का पावन अवसर है आइये हम सब मिलकर ये संकल्प करें कि, विजयी-विश्व का गान अमर रहे, देश-हित सबसे पहले हो बाकि सब राग अलग हो।भारत माता की आजादी की खातिर जिन वीरों ने अपना सर्वस्व लुटाया उनके बलिदानों को देशप्रेम से अमर करें। भारत को एक विकसित राष्ट्र बनायें।तिरंगे की शान में ही भारत की पहचान है। स्वदेशी भाषा और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर एक नया इतिहास बनायें।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की उक्त पंक्ति को साकार करें.......

आज़ादी का पर्व, उचित है आज सगर्व मनाएँ हम। 

भवन-भवन पर ध्वज लहरा कर गीत विजय के गाएँ हम॥ 

दीप जलाएँ, नैन मिलाएँ नभ के चाँद-सितरों से। 

गूँज उठे धरती का कोना-कोना जय-जयकारों से॥



74 वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई 
जय भारत वंदे मातरम्

Wednesday, 29 July 2020

प्रसन्न कुमार पिंचा (निःशक्तजनों के मसिहा)


गौरवशाली राजस्थान की गौरवगाथा इतिहास में अमर है। आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को सहेजे पद्मावती का जौहर हो या पन्ना का बलिदान एक अनुठी मिसाल है। महाराणा प्रताप की इस वीर भूमि पर अनेक लोगों ने सिर्फ राजस्थान का ही नही बल्की सम्पूर्ण भारत का नाम गौरवान्वित किया है। उन्ही में से एक हैं प्रसन्न कुमार पिंचा जिनका जीवन अनेक लोगों के लिये प्रेरणामय है। प्रसन्न कुमार पिंचा जी पहले दृष्टीबाधित व्यक्ति हैं जिन्हे भारत सरकार के अधिनस्थ सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने विशेष रूप से सक्षम व्यक्तियों का मुख्य आयुक्त नियुक्त किया। 28 दिसम्बर 2011 को मुख्य आयुक्त का पदभार ग्रहण करते ही पी.के.पिंचा जी भारत के पहले दृष्टीबाधित व्यक्ति बन गये जिन्हे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग में सक्षम व्यक्तियों का मुख्य आयुक्त का पद प्राप्त हुआ है। सबसे बङी खुशी की बात ये है कि, ये पद उन्होने सक्षम लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा में अवल्ल आकर प्राप्त किया न की किसी आरक्षण के तहत। कानून में स्नातक तथा अंग्रेजी साहित्य से एम एस करने वाले पिंचा जी को 1999 में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी (दृष्टीबाधित) के राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। ये पुरस्कार तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायन द्वारा प्रदान किया गया था।

अनेक पुरस्कारों से सम्मानित पी. के. पिंचा जी ने बचपन से ही दृष्टीबाधित होने के बावजूद इसे कभी अपनी कमजोरी नही मानी और संघर्षो के साथ आगे बढते रहे। उनके विकास में परिवार का सहयोग बराबर रहा, खासतौर से पिता जी के विश्वास ने पी.के.पिंचा जी को जो हौसला दिया वो ताउम्र उनके जीवन की तरक्की का हिस्सा रहा। राजस्थान के चुरु जिले में मध्यम वर्गिय परिवार में जन्मे पिंचा जी की प्रारंभिक शिक्षा उनके जन्म स्थान पर ही हुई। उनके पिता जी को ये आभास था कि दृष्टीबाधिता के बावजूद उनका बेटा अपने जीवन में बहुत कुछ कर सकता है, इसी विश्वास पर उन्होने अपने बेटे प्रसन्न को कोलकता के एक दृष्टीबाधित स्कूल में शिक्षा लेने भेजा। कुछ समय पश्चात प्रसन्न कुमार अपने जन्म स्थान वापस आ गये जहाँ दसवीं की परिक्षा सामान्य बच्चों के साथ पढते हुए ही अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण किये। तद्पश्चात कॉलेज की पढाई आसाम में पुरी हुई क्योकि कारोबार की वजह से आपका परिवार असम आ गया था। वहीं आपने कानून की भी पढाई पूरी की तथा अंग्रेजी साहित्य में मास्टर की डिग्री पूरी किये।

पिता का विश्वास और कुछ कर गुजरने की इच्छा ने पी.के.पिंचा जी को आगे बढने का हौसला दिया। असम के जोरहाट में सबसे पहले दृष्टीबाधित क्षात्र और क्षात्राओं के लिये एक विद्यालय की शुरुवात किये और वे उस विद्यालय के संस्थापक प्राचार्य बने। कुछ समय पश्चात असम सरकार ने इस विद्यालय का अधिग्रहंण कर लिया जिससे उनकी नियुक्ति सरकारी पद में हो गई इस तरह वो असम के पहले दृष्टीबाधित गज़ट ऑफिसर बन गये तद्पश्चात असम के समाज कल्याण विभाग में उनकी पदोन्नति हो गई हालांकी उनको ये पदोन्नति आसानी से नही मिली इसके लिये उनको काफी संघर्ष करना पङा और कानूनी लङाई भी लङनी पङी। आपके आत्मविश्वास और साहस की जीत हुई और पिंचा जी की नियुक्ति गोहाटी में संयुक्त निदेशक के रूप में हुई इसी दौरान आपको भारत के राष्ट्रपति के आर नारायन द्वारा बेस्ट एम्पलॉयर का पुरस्कार मिला।

सन् 2000 में एक्शन एड नामक अंर्तराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था से पी.के.पिंचा जी को ऑफर मिला उनके साथ काम करने का यही पर पिंचा जी ने ये साबित कर दिया कि वे विकलांगता के क्षेत्र के अलावा भी अन्य क्षेत्रों में काम कर सकते हैं। पूर्वोत्तर भारत के एक्शन एड ( अंर्तराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन) के वरिष्ठ प्रबंधक तथा विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन पर एक्शन एड के कार्य़ की देखभाल करने वाले वरिष्ठ प्रबंधक एवं थीम लीडर रहे। पिंचा जी राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से भी जुङे रहे। कार्य के दौरान ही भारत सरकार द्वारा विकलांगता के क्षेत्र में दिये गये कार्यों को आपने बखुबी निभाया। इसी दौरान आपने मुख्य आयुक्त की प्रतियोगिता को अपने बौद्धिक बल पर अर्जित की न की विकलांगता के आधार पर।

पी.के.पिंचा जी ने ये सिद्ध कर दिया कि, कुछ कर गुजरने के लिये मौसम नही मन चाहिये, साधन सभी जुट जायेंगे सिर्फ संकल्प का धन चाहिये। गहन संकल्प से ही मिलती है पूर्ण सफलता। सपने तो सब देखते हैं लेकिन सपने को साकार करने का जज्बा ही लक्ष्य को सफल बनाता है।

अनेक चुनौतियों को पार करने वाले पी.के.पिंचा जी को पुराने गाने और गजलें सुनने का बहुत शौक था। आध्यात्म में रुची रखने वाले पिंचा जी को किताबें पढने का बहुत शौक था। आपने दृष्टीबाधितों के प्रति समाज में हो रहे  दुर्व्यवहार का जमकर विरोध किया और एक बार जब पी.के.पिंचा जी गुवाहटी में डेवलपमेंट बैंक, बैंक ऑफ इंडिया में खाता खोलने गये तो वहाँ कहा गया कि आप दृष्टीबाधित होने के कारण खाता नही खोल सकते तब उन्होने वहाँ ये कहा कि, क्या दृष्टीबाधित व्यक्ति को भारत की नागरिकता का अधिकार नही है?  आपकी इस जिरह के पश्चात खाता तो खुल गया लेकिन चेक पर बुक के इस्तेमाल की अनुमति नही मिली। आखिरकार कानूनी लङाई के माध्यम से आपने ये अधिकार भी प्राप्त किये जिसका लाभ आज अनेक दृष्टीबाधित लोगों को मिल रहा है। पिंचा जी का मानना है कि दृष्टीबाधिता किसी की दया पात्र नही है इसमें स्वंय का इतना हुनर है जो सामान्य स्कूल के बच्चों में भी नही होता। आज जरूरत है सिर्फ सकारात्मक दृष्टीकोंण की।

आपने अपने कार्यकाल के दौरान अनेक निःशक्त जनों तथा विकलांग लोगो के लिये कार्य किये। आपके प्रयास का ही परिणाम है कि 2013 में जारी सहलेखक (scribe) की गाइड लाइन स्पष्ट हो सकी, जिसका फायदा आज अधिकांश विद्यार्थियों को मिल रहा है। scribe की समस्या के निदान से 2013 के बाद दृष्टीबाधित लोगों के लिए अनेक क्षेत्र में नौकरी की अपार संभावनायें बनी। राज्यों में डिसएबिलिटी सर्टिफिकेट (अपंग प्रमाणपत्र) बनने में आने वाली दिक्कतों का निदान आपके प्रयासों से काफी हद तक ठीक हुआ है। निःशक्त जनों की समस्या का समाधान जल्दि और आसानी से हो सके इस हेतु पिंचा जी ने सभी राज्यो सरकारों से जल्द ही निःशक्तजन आयुक्त का पद भरने की मांग की। आपने नये अधिनियम में सात की जगह दिव्यांगों की 21 श्रेणियां अधिसूचित की और उसे सख्ती से लागू करने का आदेश भी दिया। पिंचा जी चाहते थे कि, पूरे भारत वर्ष में दिव्यांगजनो के अधिकारों के लिए जितना अधिक युवावर्ग आगे आयेगा उतना अधिक सशक्तिकरण दिव्यांगजनों का होगा। युवाओं को वो आगे बढने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करते थे एवं उनकी समस्याओं के निदान के लिए हमेशा उपलब्ध थे। पिंचा सर किसी दायरे में बंधे नहीं थे, वे सबके अपने थे और सब उनके अपने थे। अस्वस्थ होने के बावजूद भी वो हर किसी की सहायता को तैयार रहते थे। निःशक्त लोगों के जीवन में आने वाली वैधानिक समस्याओं का निवारण कैसे हो इस बात को आपने विडियो संदेश में बहुत अच्छे से समझाया है। हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषा में आपके ज्ञानवर्धक संदेश यूट्यूब पर उपलब्ध हैं। आपके कार्यों की सराहना करना सूरज को दिये दिखाने जैसा है। आज आप भले ही हमसब के बीच नहीं हैं परंतु आपके द्वारा दिखाए गये रास्ते हम सभी का मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे। आपके द्वारा स्थापित आदर्श हम सभी की प्रेरणा है। 2012 में आपने मुझे जिस तरह प्रोत्साहित किया संदेश भेजकर वो मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं है।

ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि जिसतरह विश्व स्तर पर हेलेन केलर का नाम लिया जाता है वैसे ही भारत में आप निःशक्त लोगों के मसिहा हैं। आपके सपनों को साकार करना ही सच्ची  श्रद्धांजली  होगी। वाइस फॉर ब्लाइंड आपके दिखाये मार्ग पर हमेशा चलने का प्रयास करेगा। वाइस फॉर ब्लाइंड के सभी सदस्य नम आँखों से आपको 
भावपूर्ण श्रद्धांजली  अर्पित करते हैं। 

नोट--- मेरी यादों में पिंचा सर........

साथियों 2012 में जब हम इन्क्लूसिव प्लेनेट पर सामान्य ज्ञान के ऑडियो पोस्ट करते थे तब पिंचा सर का मेरे पास प्रोत्साहन संदेश आया था। एक कमिश्नर का संदेश पढकर जो खुशी मुझे मिली उसको हम शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते। पिंचा सर ने इन्क्लूसिव प्लेनेट पर से मेरा नम्बर लेकर प्रोत्साहित किया था। उसके बाद तो कई बार बात हुई मेरे कार्यों को विस्तार से सुने। पिंचा सर ने ही हमें 2013 की scribe guide line की प्रति दी, जिसे हम फोटो कॉपी करके अधिकांश दृष्टीदिव्यांग बच्चों को वितरित किये। आपके द्वारा यूट्यूब पर अपलोड किये जाने वाले विडियो पर भी एक दो बार चर्चा हुई। अपने संदेशों से पिंचा सर भारत के प्रत्येक निःशक्त की समस्या का समाधान करना चाहते थे। 
प्रसन्न कुमार पिंचा जी खुद अपने आप में सिमटी हुई सदी हैं, आपके कार्य और व्यवहार हम सबके लिए जिवंत पाठशाला है।  



अनिता शर्मा
अध्यक्ष
वॉइस फॉर ब्लाइंड 











Friday, 29 May 2020

प्रयास अभी शेष है (Motivational poem)



प्रयास अभी शेष है

अंतिम छोर तक जंग अभी शेष है

परिस्थिति को अंतिम दौर मान कर

कभी आत्मसमर्पण न कर, उम्मीद अभी शेष है

घोर अंधकार में प्रकाश की एक धुंधली किरण काफी है !

जो हौसलों को बुलंद कर देता है

मंजिल जितनी दूर हुई , प्रयास अधिक मजबूत हुए



सघर्ष अभी जारी है ,प्रयास अभी शेष है

हार मन कर बैठ जाना नियति नहीं

लक्ष्य भेदना ही अंतिम प्रयास नहीं

लक्ष्य के उस पार जाना, अद्भुत की खोज करना

असाध्य का साधन करना

दुर्लभ को सुलभ बनाना ही अंतिम छोर नहीं

लक्ष्य के उस पार जाना अभी शेष है

प्रयास अभी शेष है

प्रयास अभी शेष है


नोट-- प्रस्तुत कविता मेरी सखी सरोज यादव द्वारा लिखी गई है। सरोज जी ने अपनी कविता में आज की परिस्थिती पर बहुत सकारात्मक संदेश दिया है। सरोज जी इंदौर में जीडीसी महाविद्यालय में प्रोफेसर हैं। आप  दृष्टीबाधित बालिकाओं को भी बहुत अच्छे से पढाती हैं। 

लिंक पर क्लिक करके आप मेरे द्वारा लिखित सकारात्मक लेख पढ सकते हैं
Memorable Articles written by Anita Sharma

ज़िन्दगी हर कदम, एक नयी जंग हैं

धन्यवाद 😊


Tuesday, 28 April 2020

ज़िन्दगी हर कदम, एक नयी जंग हैं


उजाले की किरण आएगी, सवेरा तो स्वर्णिम होगा। कल एक बेहतर दिन होगा। कोविड 19 हारेगा हम सबकी जीत का शंखनाद होगा इसी  शुभकामनाओं के साथ सबसे पहले चिकित्सा से जुङे सभी  बंदो को शत् शत् नमन करते हैं। तद्पश्चात  सभी सुरक्षा कर्मी , सफाई कर्मी एवं स्वयं सेवकों और उनके परिवार को नमन करते हैं । ये वो लोग हैं जिन्होने  धर्म से इतर  अपने जीवन से बढकर इंसानियत को सर्वोपरी माना है और कहीं न कहीं  स्वामी विवेकानंद जी के उद्देश्य को सार्थक कर रहे हैं.......
मानव सेवा ही  सच्ची ईश्वर सेवा है...

मित्रों, ये सच है कि आज की स्थिती तनावपूर्ण है और विपरीत परिस्थिती में निराशा का भाव पनपना एक साधरण सी बात है परंतु इसपर संयम के साथ विजय हासिल की जा सकती है। जीवन में धूप-छाँव की स्थिती तो हमेशा रहती है। सुख-दुख एवं रात-दिन का चक्र अपनी गति से चलता रहता है। ये आवश्यक नही है कि, हर पल हमारी सोच के अनुरूप ही हो।ये भी सच है कि कई बार विपत्ती मनुष्य को उसकी लापरवाही पर ध्यान दिलाने का अवसर देती है। दोस्तों, ज़िन्दगी तो हर कदम, एक नयी जंग है जिसे आत्मविश्वास से जीता जा सकता है।   

मनोवैज्ञानिक जेम्स का कथन है कि, ये संभव नही है कि सदैव अनुकूलता बनी रहे प्रतिकूलता न आए। 
दोस्तों, कुदरत सबको हैरान कर देती है, कई बार मरुभूमी से पानी निकल जाता है तो कहीं बंजर धरती पर फूल खिल जाता है। ऐसे अनेक चमत्कार इस कुदरत में हमें देखने को मिल जाते हैं। असीमित उपलब्धियों और चमत्कारों से भरी इस धरती पर  कोविड 19 महामारी की क्या मजाल जो ज्यादा दिन टिक पायेगी। इतिहास गवाह है कि, महामारी जब भी आई है उसने इंसानी जीवन को और अधिक व्यवस्थित किया है। इंसान के आचार विचार से लेकर कार्य व्यवहार में अकल्पनिय बदलाव हुए हैं। किसी भी महामारी का सकारात्मक पहलु ये है कि, इंसानी प्रतिरोधक क्षमता धिरे-धिरे किसी रोग या विषाणु के प्रति सामर्थ विकसित करती है। पूर्व में अनेक ऐसी महामारी को विश्व ने देखा है जो आज सामान्य बिमारी हो गई है। आने वाले समय में कोरोना का भी यही हस्र होगा। जब कोई आपदा आती है तो अपने साथ उसका निदान भी लाती है। आज भले ही कोबिड 19 का कहर  चिंताजनक हो परंतु ये भी सच है कि इस बिमारी पर विजय प्राप्त करने वालों की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है। मित्रों, आज कोबिड 19 का सफर चीन से शुरु हुआ है । ऐसा पहली बार नही हुआ है। 1347 में चीन के जहाजों से चुहे के माध्यम से प्लेग जैसी महामारी इटली पहुँची थी और इस महामारी ने आधे यूरोप को स्वाह कर दिया था। उस दौरान जिंदगी आज की तरह गतिशील नहीं थी लिहाजा इसका पैर अंर्तराष्ट्रीय सिमाओं पर बढने से पहले ही रोक दिया गया। 

मित्रों, परिवर्तन प्रकृति का नियम है और प्रकृति हमेशा बेहतर कल लेकर आती है। सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में होने वाले बदलाव कभी स्थिर नहीं रहते। कहते है! आवश्यकता आविष्कार की जननी है और परिस्थिती हमारी अदृश्य शिक्षक होती है जो विध्वंश में सृजन का मार्ग प्रशस्त करती है। पूर्व में आई महामारियों का इतिहास गवाह है कि कहीं साम्राज्वाद का विस्तार हुआ तो कहीं इसका हास हुआ। रहन सहन में  सकारात्मक बदलाव भी आया। चौदहवीं सदी के पांचवें और छटे दशक में प्लेग की महामारी ने पूरे यूरोप में तांडव मचाया जिसने यूरोप की सामंतवादी व्यवस्था पर जमकर प्रहार किया तो 1897 में राइडरपेस्ट नामक वायरस ने यूरोपिय देशों को अफ्रिका के एक बङे हिस्से पर अपना औपनिवेश बढाने का माहौल दिया। उस दौरान अफ्रिका में इस वायरस ने 90 फीसदी मवेशियों को अपना काल बना चुका था जिससे वहां की आर्थिक और सामाजिक स्थिती पूरी तरह चरमरा गई थी। यूरोपिय देशों का जब विस्तार हुआ तो समुंद्री यात्राओं की शुरुआत भी हुई। अर्थव्यवस्था की नई तकनिकों का भी इजाद हुआ।

1918 में स्पेनिश फ्लू फैला जो आज के कोविड 19 जैसा ही था। उस दौरान इसने पांच करोङ जिंदगियों को अपाना शिकार बनाया था जिसमें 18 लाख भारतिय भी थे। उस समय भी शारीरिक दूरी और कोरंटाइन जैसे तरिके ही अपनाये गये थे। 

मित्रों,1918 में वायरस की संकल्पना बिलकुल नई थी परंतु उसके बाद कई एंटीबॉयोटिक दवाओं की खोज हुई। इस महामारी के बाद सभी देश सोशलाइज्ड मेडिसिन और हेल्थकेयर पर आगे आये। रूस पहला देश था जिसने केन्द्रियकृत मेडिसिन की शुरुवात की। धिरे-धिरे ब्रिटेन अमेरिका और फ्रांस भी इसके अनुगामी बने। 1920 में कई देशों ने स्वास्थ मंत्रालयों का गठन किया। उसी दौरान विश्व स्वास्थ संगठन की परिकल्पना भी साकार हुई। 

मित्रों, महामारी  का इतिहास हमें यही सीख देता है कि, विपरीत परिस्थितियों में भी अपार संभावनाएं छुपी रहती है। अल्फ्रेड एडलर के अनुसार, “मानवीय व्यक्तित्व के विकास में कठिनाइंयों एवं प्रतिकूलताओं का होना आवश्यक है। ‘लाइफ शुड मीन टू यु’ पुस्तक में उन्होने लिखा है कि, यदि हम ऐसे व्यक्ति अथवा मानव समाज की कल्पना करें कि वे इस स्थिती में पहुँच गये हैं, जहाँ कोई कठिनाई न हो तो ऐसे वातावरण में मानव विकास रुक जायेगा।“ ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि, ये महामारी नये युग का सूत्रपात करेगी।  वर्तमान समय हमें ये सीख दे रहा है कि,हमारी प्रथमिकता क्या हो!....

रविन्द्र नाथ टैगोर ने कहा है कि, “हम ये प्रर्थना न करें कि हमारे ऊपर खतरे न आएं, बल्कि ये प्रार्थना करें कि हम उनका सामना करने में निडर रहें”

अतः मित्रों, आज की स्थिती को देखते हुए सकारात्मक सोच के साथ घर पर रहें बाहर न जायें क्योंकि 
कोरोना बहुत स्वाभिमानी है वो ूतब तक आपके घर नही आयेगा जब तक आप उसे घर लेकर नहीं आयेंगे इसलिये  स्वयं को और समाज को स्वस्थ रखने में पूरा सहयोग करें सोशल डिस्टेंसिगं को अमल करें घर पर रहते हुए  विश्व कल्याण की प्रार्थना करें। मित्रों, सच तो ये ही है कि,  हर मुश्किलों का एक सुनहरा अंत होता है। क्या हुआ आज खुशियों का पतझङ है किंतु पतझङ के बाद ही बसंत आता है ये भी जरूर याद रखिये......

अपनी शुभकामनाओं के साथ कलम को यहीं विराम देते हैं.......

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।

सर्वे सन्तु निरामयाः।

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।

मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥


जयहिंद वंदे मातरम्
अनिता शर्मा 









Sunday, 5 April 2020

आओ आशाओं के दिए जलाएं

मित्रो, जिस तरह रात के बाद सुबह की किरण इस बात का आगाज करती हैं कि सब संभव है। उसी तरह निराशाओं के घनघोर अंधकार को आशाओं और उम्मीदों के उजाले से  हम सब मिलकर  कोविड 19  से व्याप्त निराशा के माहौल को 9 दिए के माध्यम से नौ दो ग्यारह कर सकते हैं।

मित्रों, उम्मीद तो वर्षों से दरवाजे पर खङी वो मुस्कान है, जो हमारे कानो में धीरे से कहती है सब अच्छा होगा। आइये रात 9 बजे हम सब मिलकर ....

"मन की अलसाई सरिता में, नई उम्मीदों की नाव चलाए। नभ की सिमाओं पर, आशाओं के दीप जलाएं।।"
धन्यवाद
अनिता शर्मा
voiceforblind@gmail.com

Tuesday, 24 March 2020

गुङिपङवा, नववर्ष और चैत्र नवरात्र की हार्दिक हार्दिक बधाई




मित्रों,
नव वर्ष की इस पावन बेला पर चन्दन मिश्रित चले बयार, नमस्कार की परंपरा का विश्व में शंखनाद हो। बंद हो कोरोना का रोना, मंगलमय सारा संसार रहे और आशाओं के गीत चारों दिशाओं में गूंजते रहें। हाट, बाजार, मंदिरों में रौनक फिर से बहाल हो जाये। सुखी और स्वस्थ जीवन का सपना साकार होजाये। स्वर्ण रश्मियों के रथ पर सवार सूरज! हर घर आंगन में खुशियों का उपहार बांटे। इसी शुभकामना के साथ गुङिपङवा, नववर्ष और चैत्र नवरात्र की हार्दिक हार्दिक बधाई 🙏🙏🙏

आइये हम सब मिलकर आज की परिस्थिती में सुरक्षा के संकल्पों के साथ नये अनुष्ठान का आहवान करें ...... जय हिंद वंदे मातरम् 






Saturday, 15 February 2020

मोबाइल दुनिया और सिमटता बचपन


आज हर तरफ मोबाइल जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। मोबाइल ने जहाँ दुनिया को छोटा कर दिया है, वहीं कुछ ऐसी समस्याओं को भी जन्म दे रहा है जिससे भारत का भविष्य कहे जाने वाले बच्चे अत्यधिक प्रभावित हो रहे हैं। आज दो तीन वर्ष के बच्चों को भी मोबाइल का इस्तमाल करते बहुतायत में देखा जा सकता है और अनेक अभिभावकों को ये कहते भी सुना जा सकता है कि, उनका बच्चा मोबाइल देखे बिना खाना नही खाता या वो मोबाइल के लिये बहुत जिद्द करता है।

दोस्तो, ये वो उम्र होती है जिसमें क्या अच्छा है क्या बुरा है समझना नामुमकिन है। ऐसे में मन में ये प्रश्न आना भी लाज़मी है कि, इतने छोटे बच्चे के सामने मोबाइल रूपी जिन्न प्रकट कहां से हुआ। स्वाभाविक है कि, ये जिन्न परिवार के सभी सदस्यों के हांथ में हर पल विराजमान है। मानते हैं कि, मोबाइल हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है, लेकिन इससे बच्चों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अफसोस तो इस बात का है कि मोबाइल रूपी जिन्न से छुटकारा पाने के लिये कोई दवा भी नही बनी है, जिसको बच्चों को खिलाकर उनकी आदत को छुङा दिया जाये। बच्चों में ये जिन्न नित नये विकार (जैसे- जिद्दीपना, चिङचिङापन और अनिन्द्रा) उत्पन्न कर रहा है। इस विकार का उपचार यही है कि, बच्चों को मोबाइल जिन्न से दूर किया जाये। जो आज की तेज भागती दुनिया में कुछ अभिभावकों को असंभव सा लगता है किंतु यदि अभिभावक ठान लें कि हम अपने बच्चे को इस जिन्न से मुक्त करा सकते हैं, तो दुनिया की कोई भी ताकत आपके बच्चे को इस दुष्प्रभाव के जाल में नहीं फंसा सकती। 

कहते हैं, बच्चे तो कच्ची मिट्टी के समान होते हैं। उन्हें जैसा आकार दो वो वैसा ढल जाते हैं। वे अपने आसपास के माहौल से ही सीखते हैं। जैसा व्यवहार उन्हें अपने आसपास मिलता है वो वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं। ये कहना अतिश्योकति न होगा कि, बच्चे कहना सुनने में इतने सफल नही होते जितना अनुकरण करने में सफल होते हैं। इसलिये हम बच्चों से जो चाहते हैं उसको हमें अपने व्यवहार में अमल करना होगा। दरअसल बच्चे जब देखते हैं कि अधिकतर समय मेरे अभिभावक मोबाइल में उलझे रहते हैं, तो उन्हें लगता है कि शायद मोबाइल मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन है, इसलिए वह भी मोबाइल में खोने लगता है। कई बार तो बच्चे को मोबाइल नहीं चाहिये होता है वो अपने माता-पिता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए भी चिल्लाने या गुस्से जैसी हरकत करता है। परंतु हम लोग समझते हैं कि बच्चे को मोबाइल चाहिये और उसको मोबाइल देकर निश्चिंत हो जाते हैं और अनजाने में ही एक खतरनाक आदत को बढावा दे देते हैं। फिर जब बच्चे पर मोबाइल का जिन्न हावी हो जाता है तो सबसे उसकी शिकायत करते हैं। मित्रों, अपने बच्चे की कोई भी गलत आदत की शिकायत कभी भी किसी से नहीं करना चाहिये। इससे बच्चे का बालमन अत्यधिक क्रोधित होता है और वह अधिक जिद्दी होता है। अतः जो गलत आदत हम अभिभावकों की वजह से बच्चे में आई है उसे सुधारना भी हमें ही चाहिए। बच्चे का जिद्द करना या गुस्सा करना हमेशा गलत नही होता। कई बार वो अपने अभिभावक पर अपना अधिकार समझते हैं इसलिये भी करते हैं। ऐसी स्थिती में उनको डांटने या मारने से परहेज करना चाहिये। बच्चा जब ज्यादा ही नाराज या जिद्द करे तो उसे गोद में लेकर प्यार करें उसके मूड को डाइवर्ट करें। कहते हैं प्यार की ताकत से तो पत्थर भी पिघल जाता है वो तो बच्चा है, माता-पिता का प्यार भरा स्पर्ष उसके लिये सबसे बङा उपहार होता है। आज की अत्याधुनिक जीवन शैली में बच्चों को सबसे ज्यादा माता-पिता 
के प्यार और देखभाल की जरूरत होती है। ऐसे में जरूरी है कि हम अपने बच्चे के साथ अधिक से अधिक समय बिताएं। उनको कहानियां सुनायें, हो सके तो कहानियों को अभिनय के माध्यम से भी सुनायें। इससे बच्चा मोबाइल का इस्तेमाल भी धीरे-धीरे बंद कर देगा। 

अलबर्ट आइंसटाइन ने कहा है कि, “यदि आप अपने बच्चे को बुद्धीमान बनाना चाहते हैं तो उन्हे परियों की कहानी सुनाएं। यदि उन्हे और अधिक बुद्धीमान बनाना चाहते हैं तो उन्हे और अधिक परियों की कहानी सुनाएं।“

बच्चे का घरेलू कामों में सहयोग लें, इससे बच्चा आत्मनिर्भर बनेगा और कुछ व्यवहारिक चीजें भी सीखेगा। बच्चे का सहयोग लेते समय उसे ये एहसास करायें कि उसकी वजह से काम जल्दी हो गया।

मित्रों, ये भी सच है कि, कोई भी आदत एक ही बार में नहीं छूटती किंतु धीरे-धीरे बच्चो के टीवी व मोबाईल देखने के समय को कम करके इस आदत को दूर किया जा सकता है। आज समय की माँग है कि, एक दूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय हम सब मिलकर हर बच्चे को उसका बचपन लौटाएं, मिलकर एक बेहतर कल बनायें। क्योंकि बचपन तो उस कोरी किताब की तरह है जिसपर जो चाहो लिखा जा सकता है। कहते हैं, इमारत वही मजबूत होती है जिसकी नींव मजबूत हो, यही नियम बच्चों के विकास पर भी लागू होता है। अच्छे संस्कारों से बनी बचपन की नींव सभ्य और सुसंस्कृति युवा का आधार है।

नेहरु जी के कथन के साथ अपनी कलम को विराम देते हैं और सभी युवा अभिभावकों से अनुरोध करते हैं कि, डांटने और मारने जैसी गलतियां आप लोग मत करिये क्योंकि क्रोध पूर्ण प्रतिक्रिया किसी भी समस्या का समाधान नही है खास तौर से बच्चे की आदत सुधारने में तो किसी जहर से कम नही है। अतः धैर्य के रथ पर सवार होकर सकारत्मक विश्वास के साथ बच्चे को खुशनुमा माहौल दिजिये

नेहरु जी का कथन हैः- “Children are likes buds in a garden and should be carefully and lovingly nurtured, as they are the future of the Nation and citizens tomorrow.”


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बदलता बचपन जिम्मेदार कौन????

आज के बालक भारत का भविष्य हैं