आज सुबह से हर तरफ हिंदी दिवस की बधाई गुंजायमान हो रही है। ऐसे में मन में प्रश्न उठता है कि क्या हिंदी को एक दिवस के रूप में मनाना न्यायोचित है। गौरतलब है कि, 14 सितंबर 1949 को अनुछेद 343 एक के अनुसार हिन्दी को राजभाषा घोषित किया गया तथा 26 जनवरी 1950 से हिंदी अधिकारिक तौर पर बोली जाने वाली भाषा बन गई परंतु विडंबना ये है कि हिंदी प्रति वर्ष 14 सितंबर को एक दिवस के रूप में ही सिमटकर रह गई जबकी 14 सितंबर 1949 के पहले से हिंदी भारत की संवेदनाओं का शब्द है, हिंदी भारत की अभिव्यक्ति को जिवंत करती है। हिंदी तो अपनी पहचान है फिर पहचान को दिवस की दरकार क्यों???
महात्मा गाँधी ने एकबार कहा था कि, "राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है।"
मेरा मानना है कि ,राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को लाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्य करना चाहिए भारत के वे सभी प्रांत जहां हिंदी का चलन बहुत कम है वहां के बाजारों में सभी दुकानों पर एवं वहां के सभी दफ्तरों तथा अस्पतालों पर उनके बारे में स्थानिय भाषा के साथ हिंदी में भी लिखना अनिवार्य किया जाना चाहिए। गाँधी जी का उपरोक्त कथन तभी सार्थक होगा।
मित्रों, यहां कुछ ऐसे चिकित्सकों का जिक्र करना चाहेंगे जिनकी अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकङ है फिर भी हिंदी को अपना गौरव मानते हैं , डॉ. शैलेंद्र (डॉक्टर ऑफ मेडिसंस) हैं, आप हरियाणा के लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में चिकित्सा अधिक्षक हैं। उनके कार्यलय में नाम पट्टिका सम्मान बोर्ड सब हिंदी में है। उनका हिंदी प्रेम अत्यधिक रोचक है, डॉ. शैलेंद्र जाँच, निदान और औषधियां सब हिंदी में लिखते हैं। उनका कहना है कि, हमें अपनी मातृभाषा को पूरा सम्मान देना चाहिए। गोरखपुर विधानसभा सीट से चार बार विधान सभा पहुँचने वाले डॉ. राधा मोहन दास भी दवाई की पर्ची हिंदी में लिखते हैं।स्वर्गिय डॉ. जितेन्द्र सुल्तानपुर से हैं एम बी बी एस की परिक्षा में टॉप किये थे, वो भी हिंदी में दवाईयां लिखते थे। उपरोक्त चिकित्सकों से प्रेरणा लेकर अधिकांश लोगों को अपने कार्यक्षेत्र में हिंदी को अपनाना चाहिए।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि हिंदी सिर्फ भाषा नही है बल्कि उस विराट सांस्कृतिक चेतना का नाम है, जिसमें अनगिनत धर्म, समुदाय, संस्कार और पंथ समाहित हैं। हिंदी तो हमारी ताकत है। हिंदी हम सबके लिए गौरव है। हिंदी तो वो सागर है जिसमें भारत की सभी भाषाओं का सम्मान विद्यमान है। हम हिंदी को याद करें , बोलचाल में बोले, अपनी भाषा हिंदी पर अभिमान करें। हिंदी को किसी दिवस में न बाँधे बल्की उसे स्वतंत्र आकाश दिजिए हिंदी तो अपनी राष्ट्रीय एकता और अखंडता की प्रतीक है।
जय हिंद वंदे हिंदी वंदे भारत